पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Kaamanaa - Kumaari) RADHA GUPTA, SUMAN AGARWAL & VIPIN KUMAR
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| Puraanic contexts of words like kaaliya, Kaali, Kaaleya, Kaaveri, Kaavya etc. are given here. कालिमाश लक्ष्मीनारायण २.१२३.२४ ( कालिमाश राजा द्वारा कालिमा सागर योग पर पंचम यज्ञ के आयोजन का उल्लेख ) ।
कालिय गर्ग २.१२ ( कृष्ण द्वारा कालिय नाग के दमन का वृत्तान्त ), २.१३ ( अश्वशिरा मुनि के शाप से वेदशिरा मुनि का ही जन्मान्तर में कालिय नाग बनने का उल्लेख ), २.१४ (कालिय के यमुना जल में निवास के रहस्य का उल्लेख ), ब्रह्म १.७७ ( कृष्ण द्वारा कालिय नाग के दमन का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१९ ( सुरसा - पति कालिय नाग के वास से यमुना जल का विषाक्त होना, कृष्ण द्वारा कालिय दमन, कृष्ण के कहने से कालिय का कालिन्दी छोडकर रमणक द्वीप में जाना तथा कृष्ण के वरदान से गरुड से निर्भय होने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.१२४ ( भण्डासुर नामक दैत्य द्वारा सृष्ट राजासुर नामक महास्त्र से कालिय प्रभृति दानवों की उत्पत्ति, ललिता देवी के वामहस्त की अनामिका के नख से सृष्ट वासुदेव द्वारा चतुरूप होकर कालिय प्रभृति दानवों के विनाश का कथन ), भविष्य ३.३.१२.४५ ( पंचशब्द नामक गज पर आरूढ होकर राजा कालिय के बलखानि के साथ युद्ध का उल्लेख ), ३.३.१२.११६ ( राजा जम्बुक के तीन पुत्रों में से एक ), ३.३.१२.१२३ ( कालिय के पूर्व जन्म में जरासंध होने का उल्लेख ), भागवत ५.२४.२९ ( कालिय की महातल में स्थिति तथा कद्रू वंशोत्पन्न क्रोधवशा समुदाय से सम्बद्ध होने का उल्लेख ), १०.१६ (कृष्ण द्वारा कालिय नाग का दमन तथा नागपत्नियों के प्रार्थना करने पर कृष्ण की कालिय नाग पर कृपा का वृत्तान्त ), १०.१७ ( कालिय नाग के कालियदह में आगमन के हेतु का कथन ), वायु ५०.१८ ( पृथ्वी के प्रथम अतल नामक भूभाग में कालिय नाग की स्थिति का उल्लेख ), ६९.७२ ( कद्रू से उत्पन्न प्रधान नागों में कालिय का उल्लेख ), विष्णु ५.७ ( कृष्ण द्वारा कालिय दमन का वृत्तान्त ), ५.१३.४ ( कृष्ण की दिव्य लीलाओं में कालिय दमन का उल्लेख ), स्कन्द ५.२.१०.६ ( कद्रू द्वारा शाप के पश्चात् कालिय नाग द्वारा यमुना में तप का उल्लेख ), हरिवंश २.११.४९ ( गरुड के भय से कालियदह में नागराज कालिय के निवास तथा श्रीकृष्ण द्वारा कालिय के निग्रह के विचार का उल्लेख ), २.१२ ( कृष्ण द्वारा कालिय नाग का दमन, गरुड से अभय प्राप्त कर कालिय के समुद्र में प्रस्थान का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.४७०.३ ( कालिय सर्प के निवास से यमुना जल के विषाक्त होने का उल्लेख ) । kaaliya/ kaliya कालिय यम - नियम - संयम की धारा को वेद में यमुना नदी कहते हैं। यमुना ही स्वर्ग है । यह यमुना नदी जीवन में बह रही है । इसमें अहंकार रूपी अहि, सर्प उत्पन्न हो गया है जो इस धारा को दूषित कर रहा है । यही कालिय नाग है । इस अहंकार को यदि परमात्मा को समर्पित कर दें तो फिर अहंकार पर कृष्ण के चरणचिह्न बन जाते हैं। फिर रमणक द्वीप रूपी इस रमणीय संसार में कालिय को भय प्राप्त नहीं होगा । - फतहसिंह
काली गरुड ३.१६.९९(भीमसेन – पत्नी का नाम, अन्य नाम केवला व द्रौपदी), ब्रह्माण्ड २.३.८.९२ ( काली व पराशर से कृष्ण द्वैपायन की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.७.७२ ( काली प्रभृति शक्तियों के पूजन हेतु मधुपान की प्रशस्तता का उल्लेख ), ३.४.३२.१८ ( कालचक्र की चार द्वारपालिकाओं में काली का उल्लेख ), ३.४.४४.५९ ( काली का वर्ण शक्ति के रूप में उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.९१ ( काली देवी का प्रकृति देवी के प्रधान अंश के रूप में उल्लेख, शुम्भ - निशुम्भ से युद्ध में दुर्गा के ललाट से काली का प्राकट्य, सुपूजित होने पर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदाता ), भविष्य ४.२० ( भाद्रपद शुक्ल तृतीया में हरकाली देवी की पूजा, व्रत व पूजा फल का वर्णन ), भागवत ९.२२.३१ ( भीमसेन - पत्नी, सर्वगत - माता ), मत्स्य १३.३२ ( सती देवी की कालंजर पर्वत पर काली नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), २२.२० ( काली नदी का पितरों की प्रिय नदी के रूप में उल्लेख ), ५०.२८ ( चैद्योपचर व गिरिका - पुत्री, कुरु वंश ), ५०.४५ ( अपर नाम दाशेयी तथा मत्स्यगन्धा, काली के गर्भ से शन्तनु - पुत्र विचित्रवीर्य की उत्पत्ति का उल्लेख ), १७९.१४ ( अन्धकासुर रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट अनेक मातृकाओं में से एक ), १७९.६४ ( अन्धकासुर विनाश के अनन्तर जगद्भक्षण हेतु उद्यत शिव- सृष्ट मानस मातृकाओं के उत्पात शमनार्थ नृसिंह की अस्थियों से काली / शुष्करेवती की उत्पत्ति का उल्लेख ), मार्कण्डेय ८७.५ ( चण्ड - मुण्ड आदि दैत्यों द्वारा अम्बिका को पकडने का उद्योग करने पर क्रुद्ध अम्बिका के ललाट से काली की उत्पत्ति का उल्लेख ), लिङ्ग १.१०६.१४ ( दारुक दैत्य वधार्थ शिव के कण्ठ विष से काली की उत्पत्ति का उल्लेख ), वामन ५४.६ ( शंकर द्वारा विनोद में पार्वती को काली नाम से सम्बोधित करने का उल्लेख ), शिव ७.१.२४.३१ ( परिहास में शिव द्वारा शिवा को काली कहने तथा शिवा का गौर वर्ण प्राप्ति हेतु तप करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.४५.३८ ( ६४ योगिनियों में से एक ), ५.१.६४.६ ( काली नामक योगिनी द्वारा भैरव के पालन का उल्लेख ), ५.३.१९८.७० ( कालञ्जर तीर्थ में उमा की काली नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.३६.३६ ( शोषण हेतु काली कराली इति मन्त्र जपने का निर्देश ),७.१.१३३( महाकाली पूजा विधान व फल का वर्णन ), योगवासिष्ठ ६.२.८४.१( काली के स्वरूप का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१६६.२१ ( देवों की रक्षार्थ पार्वती की देह से प्रकट कोशरूपा सुन्दरी का कृष्ण वर्ण होने से काली नाम से व्यवहृत होने का उल्लेख ), १.१७९.६६, ७६ ( हिमालय व मेना की तीन पुत्रियों - रागिणी , कुटिला तथा काली में काली की उमा नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), १.१९५ ( शिव - पत्नी शिवा के कृष्ण वर्ण से गौर वर्ण होने के हेतु का कथन ), १.३३७.५१( काली के शंखचूड से युद्ध का कथन ), द्र. गन्धकाली, भद्रकाली ।kaalee/ kali
कालीमण्डलीन लक्ष्मीनारायण २.२१५.१३ ( कुलम्बायन राष्ट्रेश तथा विगोष्ठा नगरी - पति कालीमण्डलीन द्वारा श्री हरि की पूजा का उल्लेख ) ।
कालीवर्मा भविष्य ३.३.३२.१८१ ( पृथ्वीराज - सेनानी कालीवर्मा के कलिङ्ग के साथ युद्ध का उल्लेख ) ।
कालेय पद्म १.६६ ( जयन्त द्वारा कालकेय के भ्राता कालेय के वध का उल्लेख ), भागवत ५.२४.३० ( रसातल वासी पणि नामक दैत्यों के तीन उपनामों में से एक उपनाम ), ८.७.१४( समुद्र मन्थन के अवसर पर नागराज वासुकि के श्वास से नि:सृत विषाग्नि के धूम से कालेय प्रभृति असुरों के निस्तेज होने का उल्लेख ), ८.१०.३४ ( देवासुर संग्राम में कालेय असुरों के साथ वसुओं के युद्ध का उल्लेख ), मत्स्य १९७.९ ( आत्रेयी से उत्पन्न ५ प्रवरकर्ता ऋषियों में से एक ), शिव ५.२८.२७ ( महामुनि कालेय व्यास द्वारा सनत्कुमार के प्रति प्रणाम आदि द्वारा कृतज्ञता ज्ञापन का उल्लेख ), स्कन्द ६.३५.११ ( कालेय दैत्यों के उत्पात से पीडित ऋषि, मुनि व देवों द्वारा अगस्त्य से समुद्र शोषण की प्रार्थना का उल्लेख ) । kaaleya/ kaleya
कालोदर ब्रह्माण्ड १.२.१८.५५( ह्लादिनी नदी का पूर्व दिशा की ओर बहते हुए कालोदर प्रभृति राज्यों को प्लावित करने का उल्लेख ), वायु ४७.५२ ( गङ्गा की सप्त धाराओं में से एक ह्लादिनी नामक धारा का कालोदर प्रभृति पूर्वीय राज्यों को प्लावित करते हुए पूर्वीय समुद्र में विलीन होने का उल्लेख ) ।
कावेरी पद्म ३.१६.२+ ( कावेरी - नर्मदा संगम का संक्षिप्त माहात्म्य : कुबेर का तप से यक्षाधिपति बनने का उल्लेख ), ब्रह्म १.८.१९ ( युवनाश्व - पुत्री, जह्नु - भार्या, सुनन्द - माता, युवनाश्व के शाप से गङ्गा के अर्ध भाग से कावेरी के निर्गत होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१४ ( शंस्य अग्नि द्वारा कावेरी प्रभृति सोलह धिष्णियों में स्वयं को स्थापित करने से १६ नदी पुत्रों, धिष्ण्यों की प्राप्ति का उल्लेख ), १.२.१६.३५ ( कावेरी प्रभृति नदियों के सह्य पर्वत से निर्गमन का उल्लेख ), २.३.७.३५७ ( उडीसा प्रान्त से कावेरी नदी के पश्चिम तक वामन नामक हस्ती वन होने का उल्लेख ), २.३.१३.२८ ( श्राद्धादि पितृकार्य के लिए अति प्रशस्त स्थानों में कावेरी का उल्लेख ), २.३.६६.२९ ( कावेरी का यौवनाश्व - पौत्री, जह्नु - भार्या, सुनह - माता के रूप में उल्लेख ), भागवत ५.१९.१८ ( भारतवर्ष की मुख्य - मुख्य नदियों में कावेरी का उल्लेख ), ७.१३.१२ (प्रह्लाद द्वारा कावेरी नदी के तट पर सोए हुए दत्तात्रेय मुनि के दर्शन का उल्लेख ), १०.७९.१४ (तीर्थयात्रा प्रसंग में बलराम का कावेरी में स्नान करते हुए श्रीरङ्ग क्षेत्र में पहुंचने का उल्लेख ), मत्स्य २२.२७ ( कावेरी पितृ तीर्थ में स्नानादि से कुरुक्षेत्र से शताधिक फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५१.१३ ( आहवनीय अग्नि द्वारा स्वयं को १६ भागों में विभक्त कर कावेरी प्रभृति १६ नदियों के साथ विहार करने का उल्लेख ), ११४.२३ ( सह्य पर्वत की शाखाओं से प्रकट होने वाली तथा दक्षिणापथ में प्रवाहित होने वाली नदियों में कावेरी का उल्लेख ), १६३.६१ ( कावेरी प्रभृति नदियों, पर्वतों तथा जनपदों को हिरण्यकशिपु द्वारा प्रकम्पित करने का उल्लेख ), १८९.२ ( कावेरी - नर्मदा सङ्गम का माहात्म्य : कुबेर का तप से यक्षाधिपति बनने का वृत्तान्त ), वायु २९.१३ ( शंस्य अग्नि द्वारा स्वयं को १६ भागों में विभक्त कर कावेरी प्रभृति १६ नदियों से अनेक पुत्रों की प्राप्ति का उल्लेख ), ४३.२६ ( भद्राश्व वर्ष की अनेक नदियों में कावेरी नदी का उल्लेख ), ४५.१०४ ( सह्य पर्वत के पादमूल से कावेरी नदी के नि:सृत होने का उल्लेख ), ७७.२८ ( कावेरी तीर्थ में सिद्धि की प्राप्ति, पितरों का उद्धार तथा शरीर त्याग से अमरावती प्राप्ति का कथन ), ९१.५८ ( सरिताओं में श्रेष्ठ कावेरी का यौवनाश्व - पौत्री, जह्नु - भार्या तथा गङ्गा व सुहोत्र - माता के रूप में उल्लेख ), १०८.७९ ( मुण्डपृष्ठ की उपत्यका में लोमश ऋषि द्वारा आवाहित नदियों में कावेरी का उल्लेख , कावेरी प्रभृति नदियों में स्नान कर पिण्डदान से पितरों को स्वर्ग पहुंचाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४७ ( कावेरी नदी द्वारा वृषभ वाहन से जनार्दन के अनुगमन का उल्लेख ), शिव १.१२.१८ ( २७ मुखों वाली, सह्याद्रि पर्वत से उत्पन्न कावेरी नदी का संक्षिप्त माहात्म्य ), स्कन्द २.१.२५.६ ( कावेरी तीर निवासी दुराचार नामक विप्र की जाबालि तीर्थ में स्नान से मुक्ति की कथा ), २.४.४.५ ( कार्तिक मास में कावेरी में स्नान से पापों से मुक्ति का वर्णन ), २.४.१२.३७ (कावेरी के उत्तरी तट वासी देवशर्मा ब्राह्मण - पुत्र की कार्तिक मास में हरिकथा श्रवण से पाप मुक्ति की कथा ), ५.३.२९ ( कावेरी संगम तीर्थ का माहात्म्य : कुबेर को तीर्थ के प्रभाव से यक्षाधिपतित्व की प्राप्ति ), हरिवंश १.२७.९, १० ( युवनाश्व - पुत्री, जह्नु - पत्नी, सुनह - माता, युवनाश्व के शाप से गङ्गा द्वारा अपने ही अर्ध भाग से कावेरी को प्रकट करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५६४.१५ (कावेरी नदी का संक्षिप्त माहात्म्य : कुबेर की तपस्या के कारण कौबेरी नाम धारण, कावेरी में स्नान मात्र से परमगति की प्राप्ति का उल्लेख ), कथासरित् ३.५.९५ ( वत्सराज उदयन द्वारा कावेरी नदी का उल्लङ्घन कर चोल राजा को पराजित करने का उल्लेख ) । kaaveri/ kaveri
काव्य अग्नि ३३७ ( काव्य के स्वरूप का वर्णन ), ३४६ ( काव्य गुणों का विवेचन ), ३४७ ( काव्य दोष विवेचन ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.९८ ( काव्य प्रभृति ऋषियों द्वारा तप से ऋषित्व प्राप्ति का उल्लेख ), १.२.३२.१०४ ( उन्नीस मन्त्रवादी ऋषियों में काव्य का उल्लेख ), १.२.३३.७ ( श्रुतर्षियों में काव्य का उल्लेख ), १.२.३६.४७ ( तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), २.३.१.७६ ( भृगु व दिव्या के पुत्र शुक्र की ही काव्य तथा उशना नाम से प्रसिद्धि, असुरों के गुरु, सोमपा पितरों की मानसी कन्या गौ के पति, त्वष्टा , वरत्री, शण्ड व मर्क के पिता ), २.३.६८.८६ ( पूरु को राजा बनाने के संदर्भ में ययाति की प्रजा के समक्ष शुक्र /काव्य/उशना - प्रदत्त वर का उल्लेख ), २.३.७२.९५ ( यज्ञों द्वारा असुरों का परित्याग करके देवों के समीप चले जाने पर भयभीत असुरों द्वारा स्वगुरु काव्य से रक्षा की प्रार्थना, असुर रक्षार्थ मन्त्र प्राप्ति हेतु काव्य का महादेव के निकट गमन, महादेव के कथनानुसार काव्य द्वारा कुण्ड धूम - पान रूप तपश्चरण, प्रसन्न होकर महादेव द्वारा काव्य को धनेशत्व, प्रजेशत्व तथा अवध्यत्व रूप वरों के प्रदान का वृत्तान्त ), २.३.७३ ( काव्य का इन्द्र - पुत्री जयन्ती के साथ १० वर्ष तक परोक्ष रूप से वास, बृहस्पति द्वारा काव्य का रूप धारण कर दैत्यों को पढाना, १० वर्ष पश्चात् काव्य का दैत्यों के समीप गमन, बृहस्पति को देखकर काव्य द्वारा दैत्यों को सचेत करने का प्रयत्न, दैत्यों के सचेत न होने पर काव्य द्वारा दैत्यों को चेतना के लुप्त होने तथा पराजय होने का शाप प्रदान करने का वृत्तान्त ), वायु २९.८ ( भरताग्नि - पुत्र, अग्नि वंश ), ५९.९० ( काव्य , बृहस्पति प्रभृति ऋषिगणों द्वारा ज्ञानबल से ऋषित्व प्राप्ति का उल्लेख ), ५९.९६ ९ (उन्नीस मन्त्रवादी ऋषियों में काव्य का उल्लेख ), ६२.४१ ( तामस मन्वन्तर के सप्त ऋषियों में काव्य हर्ष का उल्लेख ), ६५.७४ ( भृगु व दिव्या से उत्पन्न शुक्र की उशना तथा काव्य नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ९७.९४ ( संत्रस्त असुरों द्वारा काव्य से स्व दैन्यावस्था के निवेदन का उल्लेख ), ९८ ( शुक्राचार्य का अपर नाम, आराधना से प्रसन्न शिव द्वारा काव्य को दर्शन देना, काव्य का जयन्ती के साथ १० वर्ष तक अदृश्य रूप से निवास , बृहस्पति द्वारा छद्म रूप धारण कर दैत्यों का गुरु बनना, काव्य का दैत्यों को शाप देने का वृत्तान्त ), ९९.१७३ ( सेनजित् के चार पुत्रों में से एक, अजमीढ वंश ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१५ ( महाकाव्य के लक्षणों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४५०.२९( काव्यों में संहिता की श्रेष्ठता का उल्लेख ) । kaavya/ kavya
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