पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Kaamanaa - Kumaari) RADHA GUPTA, SUMAN AGARWAL & VIPIN KUMAR
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Puraanic contexts of words like Kaavya, Kaasha, Kashiraaja, Kaashi etc. are given here. काव्यगण ब्रह्माण्ड १.२.२३.३९ ( काव्य नामक पितरों द्वारा सुधामृत को पीने का उल्लेख ), १.२.२८.४, २३, ७० ( काव्यों का पितर रूप में उल्लेख ), २.३.१०.८५ ( चार मूर्तिमान पितरों में से एक, स्वधा व अग्नि कवि के पुत्र, ज्योतिर्मास नामक देवलोक में स्थिति, काव्यों की मानसी कन्या योगोत्पत्ति को सनत्कुमार द्वारा शुक्र को देने तथा शुक्र की महिषी बनने का उल्लेख ), मत्स्य १४१.४ ( चार प्रकार के पितरों में काव्यों का उल्लेख ), १४१.१३ ( पुरूरवा द्वारा स्वधामृत से काव्य प्रभृति पितरों को तृप्त करने का उल्लेख ), १४१.१७ ( अष्टकापति आर्तव पितरों को काव्य कहे जाने का उल्लेख ), वायु ५६.१३ ( काव्यों का पितर रूप में उल्लेख ), ५६.१६ ( काव्यों के कवि - पुत्र होने का उल्लेख ), ५६.१७ ( काव्यों के घृतपायी होने का उल्लेख ), कथासरित् ७.८.५५ ( काव्यालङ्कारा : ऐरावती नगरी के राजा परित्यागसेन की दो रानियों में से एक ) ।
काश ब्रह्माण्ड २.३.११.७७ ( अश्व प्रजापति के पृथ्वी पर पतित बालों से काश की उत्पत्ति, श्राद्ध कर्म में काश की पवित्रता तथा वैभव के इच्छुक व्यक्ति द्वारा काश पर पिण्डदान करने का उल्लेख ), २.३.६७.४( शुनहोत्र के तीन पुत्रों में से एक, चन्द्र वंश ), वायु ७५.४१ ( आकाशमार्ग से पृथ्वी पर गिरे हुए प्रजापति के बालों से काश नामक तृण विशेष की उत्पत्ति तथा श्राद्धकर्म में काश की परम पवित्रता के कारक, वैभव के इच्छुक व्यक्ति द्वारा काश पर पिण्डदान करने का उल्लेख ), ९२.३ ( सुतहोत्र के तीन पुत्रों में से एक, चन्द्र वंश ), विष्णु ४.८.५ ( सुहोत्र के तीन पुत्रों में से एक ), योगवासिष्ठ ३.३७.३१( काश देश के निवासियों की विशिष्टता का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.२३३.१ ( काशमित्र देश में लबादन मन्त्री द्वारा सेनापति आदि के सहयोग से अधर्मी राजा मानवेश्वर का विष द्वारा नाश का वृत्तान्त ) । kaasha/ kasha
काशि गरुड ३.२८.५५(काशिका : गाधिराज - भार्या, शची का अंश), ब्रह्माण्ड २.३.६७.७ ( काशिप :काश्य/ काश के तीन पुत्रों में से एक, चन्द्र वंश ), भागवत ९.१७.४ ( काश्य - पुत्र, राष्ट्र - पिता, पुरूरवा वंश ) ।
काशिराज गणेश २.१२.७+ ( काशिराज द्वारा पुत्र के विवाह हेतु कश्यप से महोत्कट गणेश की प्राप्ति, मार्ग में राक्षसों का विघ्न आदि ), २.५०.१९ ( काशिराज की गणेश भक्ति की पराकाष्ठा का वर्णन, काशिराज का मुद्गल ऋषि से संवाद ), २.५१.३५ ( काशिराज का चर्म देह से ही विनायक के लोक को जाना ), ब्रह्म १.९८.१५ ( पौण्ड्रक वासुदेव के सहायक काशिराज का कृष्ण द्वारा वध, काशिराज - पुत्र द्वारा कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के चक्र द्वारा कृत्या का अनुगमन, काशी दाह का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.१६ ( काशिराज द्वारा °चिकित्सा कौमुदी ° ग्रन्थ की रचना का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.१२२ ( काशीपति : भण्ड दानव द्वारा राजासुर नामक अस्त्र से सृष्ट अनेक नृप दानवों में काशीपति का उल्लेख ), मत्स्य ४५.२६ ( काशिराज की जयन्ती नामक कन्या को वृष्णिवंशीय वृषभ द्वारा पत्नी रूप में ग्रहण करने का उल्लेख ), मार्कण्डेय ४४ ( काशिराज के साहाय्य से सुबाहु का कनिष्ठ भ्राता अलर्क को ज्ञान प्राप्ति हेतु प्रेरित करने का वृत्तान्त ), वायु ९६.१०३ ( काशिराज के राज्य में तीन वर्ष तक अनावृष्टि होने पर राजा श्वफल्क के निवास से वृष्टि होने तथा काशिराज की कन्या गान्दिनी का श्वफल्क की भार्या बनने का उल्लेख ), विष्णु ४.१३.११६ ( काशिराज के राज्य में अनावृष्टि होने पर श्वफल्क के निवास से वृष्टि होना, काशीराज द्वारा स्व - कन्या गान्दिनी को श्वफल्क को अर्पित करने का वृत्तान्त ), ४.२०.३६ (विचित्रवीर्य द्वारा काशीराज की पुत्रियों अम्बा व अम्बालिका से विवाह करने का उल्लेख ), ५.३४.१४ ( श्रीकृष्ण के विरुद्ध पौण्ड्रक की सहायता हेतु प्रस्थित काशी के राजा काशीराज की मृत्यु , काशीराज - पुत्र द्वारा महादेव की स्तुति से कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा कृत्या का अनुगमन तथा काशी नगरी के दाह का वृत्तान्त ), स्कन्द २.२.१२.४५ ( उग्र तपस्या द्वारा काशिराज को शिव से वर प्राप्ति, कृष्ण द्वारा काशिराज के शिर छेदन का उल्लेख ), ५.३.५३+ ( काशिराज चित्रसेन द्वारा मृग रूप धारी ऋष्यशृङ्ग मुनि का वध, ब्रह्महत्या से भयभीत राजा को ऋष्यशृङ्ग द्वारा हत्या से मुक्ति के उपाय का कथन, शूलभेद तीर्थ में अस्थि - प्रक्षेपण से ऋष्यशृङ्ग की सपरिवार मुक्ति की कथा ), ६.८८.७ ( अम्बा व वृद्धा - पति, कालयवनों द्वारा काशिराज के वध का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२०२.१ ( १६ चिकित्सकों में से एक ), १.४८५ ( काशीराज चित्रसेन द्वारा मृगरूपधारी ऋष्यशृङ्ग का वध तथा ऋष्यशृङ्ग की सपरिवार मुक्ति का वृत्तान्त ), १.५०८.६ (काशीराज जयसेन की पत्नी अमा द्वारा पंचपिंडिका गौरी व्रत के प्रभाव से पुत्र सौभाग्य प्राप्ति का वृत्तान्त ), २.२९७.८८ ( कन्या रूप धारी द्यौ द्वारा काशीराज की पुत्रियों के ग्रहों में शृङ्गारनिरत कृष्ण के दर्शन का उल्लेख ) । kaashiraaja/ kashiraja
काशी अग्नि ११२ ( वाराणसी माहात्म्य का कथन ), गणेश २.३९.२७ ( दुरासद असुर द्वारा काशी विजय का अभियान, शिव आदि का काशी से पलायन ), नारद १.६.३५ ( सनक - प्रोक्त काशी माहात्म्य का वर्णन ), १.५६.७४३( काशी देश के कूर्म के पुच्छ मण्डल होने का उल्लेख ), २.२९ ( हस्तिनी रूप धारी राक्षसी द्वारा प्रोक्त काशी माहात्म्य, काशी में शिव की ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा ), २.२९.१ ( काशी के पूर्वकाल में वैष्णव स्थान होने तथा परवर्ती काल में शिव स्थान बनने की कथा ), २.२९.५( काशी के पूर्व में माधव की पुरी होने का कथन ), २.४८.१० ( वसु द्वारा मोहिनी को काशी महिमा का कथन ), २.४९ (काशी के तीर्थ व शिवलिंगों के दर्शन - पूजन आदि की महिमा का कथन ), २.५० ( विभिन्न देवयोनियों द्वारा विभिन्न मासों में काशी की यात्रा, काशी स्थित तीर्थों व लिङ्गों का वर्णन ), पद्म ६.२२२ ( काशी वास से शिंशपा वृक्ष, काक व सर्प की मुक्ति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४१ (मध्य देश के जनपदों में काशी का उल्लेख ), १.२.१८.५१ ( काशी प्रभृति जनपदों के गंगा द्वारा प्लावित होने का उल्लेख ), २.३.७४.२१३ ( संध्या मात्र कलियुग के शेष रहने पर मानवजाति द्वारा त्रस्त होकर प्रिय देशों का त्याग कर काशी प्रभृति प्रान्तों में निवास का उल्लेख ), ३.४.३९.१५ (काशी तथा कांची नामक पुर - द्वय का शिव के नेत्रद्वय के रूप में उल्लेख ), ३.४.४०.१५ ( पार्वती द्वारा शिव के नेत्रपिधान रूप पाप के फलस्वरूप पाप शान्ति हेतु काशी में व्रताचरण का उल्लेख ), ३.४.४०.८० ( कामाक्षी देवी के आदेशानुसार शिव द्वारा सरोवर में निमज्जन कर उठने पर काशी नगरी के दर्शन का उल्लेख ), भागवत १०.३७.२० ( कृष्ण की स्तुति करते हुए नारद का कृष्ण द्वारा काशी नगरी के दहन का पूर्वकथन ), १०.५७.३२ ( काशी नरेश द्वारा अवर्षा की स्थिति में स्वपुत्री गान्दिनी का विवाह श्वफल्क से करने, तत्पश्चात् काशी नगरी में वर्षा होने का उल्लेख ), १०.६६.१२( काशी के राजा के पौण्ड्रक का मित्र होने का उल्लेख ), १०.६६.४० ( माहेश्वरी कृत्या का श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से कुंठित होकर काशी / वाराणसी लौटकर सुदक्षिण तथा ऋत्विज आचार्यों को भस्म करना, कृत्या का अनुगमन करते हुए सुदर्शन चक्र द्वारा काशी नगरी के दाह का कथन ), १०.८२.२५ ( कुरुक्षेत्र में आए हुए काशीनरेश प्रभृति नृपतियों द्वारा श्रीकृष्ण के दर्शन का उल्लेख ), मत्स्य ५०.५४ ( भीमसेन - पत्नी, सर्वग - माता ), वामन ५७.७९ ( काशी नदी द्वारा स्कन्द को अष्टबाहु नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ४५.११० ( मध्य देश के जनपदों में काशी का उल्लेख ), ४७.४८ ( गंगा द्वारा काशि प्रभृति आर्य देशों को प्लावित करने का उल्लेख ), ९९.२४७/२.३७.२४३ ( भीमसेन - पत्नी, सर्ववृक - माता ), ९९.४०२ ( सन्ध्या मात्र कलियुग के शेष रहने पर मानव जाति द्वारा स्व - स्व प्रिय देशों का त्याग कर काशि प्रभृति प्रान्तों में निवास का उल्लेख ), १०४.७५ ( चारों वेदों के प्रादुर्भाव के समय व्यास को भ्रूमध्य में काशी के दर्शन का उल्लेख ), विष्णु ४.२०.४६ ( भीमसेन - पत्नी , सर्वग - माता ), शिव ४.२२.२४ ( काशी की निरुक्ति : कर्म द्वारा कर्षण ; पञ्चक्रोशी अपर नाम वाली काशी नगरी के माहात्म्य का वर्णन ), ४.२३ ( वही), स्कन्द ४.१, ४.२ ( स्कन्द महापुराण के अन्तर्गत काशी खण्ड का आरम्भ ), ४.१.५ ( अगस्त्य द्वारा काशी की महिमा का वर्णन, काशी से प्रयाण करते समय प्रलाप ), ४.१.२२.८१ ( अविमुक्त क्षेत्र की महिमा का वर्णन ), ४.१.२५.५५ ( स्कन्द द्वारा अविमुक्त क्षेत्र की महिमा का कथन ), ४.१.२६ ( काशी उत्पत्ति की कथा ), ४.१.४१( काशी में योग के स्वरूप का वर्णन ), ४.१.४१.१७३ ( षडङ्ग योग से काशी के साम्य का उल्लेख ), ४.१.४४.१ ( दिवोदास - पालित काशी से शिव के वियोग का वर्णन ), ४.२.६४.३० (ब्राह्मण - शिव संवाद में काशी महिमा का वर्णन ), ४.२.८५ ( काशी में तप से फल प्राप्ति न होने पर दुर्वासा द्वारा क्रोधाविष्ट होकर शाप दान की चेष्टा, शिव द्वारा प्रादुर्भूत होकरदुर्वासा को वर प्रदान करने का वृत्तान्त ), ४.२.९६.१२५ ( काशी में भिक्षा प्राप्त न होने पर व्यास द्वारा काशी को शाप प्रदान का उल्लेख ), ५.१.६२.५ ( पंचक्रोशी काशी का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.८१+ ( मन्दर की प्रार्थना पर शिव का काशी छोडकर मन्दर पर्वत पर वास, देवों का भी काशी का परित्याग कर शिव के समीप निवास, दिवोदास द्वारा धर्मपूर्वक काशी का पालन, देवों द्वारा दिवोदास का काशी से निष्कासन हेतु प्रयास, प्रजा तथा दिवोदास का काशी से निष्कासन, संहिता श्रवण तथा काशी विश्वेश्वर की स्थापना द्वारा दिवोदास का प्रजा से साथ वैकुण्ठ लोक गमन, काशी से दिवोदास के निष्कासन के हेतु का वृत्तान्त ), १.२३२.६ ( द्वारका तीर्थ माहात्म्य के अन्तर्गत काशी स्थित मायानन्द यति की मुक्ति की कथा ), १.४७८ ( काशी महिमा का श्रवण कर व्यास का भिक्षार्थ काशी गमन, भिक्षा न मिलने पर व्यास का शाप प्रदान, शिव द्वारा व्यास का काशी से निष्कासन, व्यास के साथ सरस्वती का भी बहिर्गमन, काशी की प्रजा का मूकत्व, व्यास तथा सरस्वती के काशी आगमन से मूकत्व के नाश का वृत्तान्त ) ; द्र. वाराणसी kaashee/ kaashi/ kashi काश्मर ब्रह्माण्ड २.३.११.३७ ( काश्मरी : श्राद्ध में प्रयुक्त बलि पात्रों में काश्मरी पात्र द्वारा रक्षा व यश प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य ९६.६ ( सर्वफलत्याग व्रत विधान में कदली, काश्मर प्रभृति १६ फलों को स्वर्ण से निर्मित कराने का उल्लेख ) ।
काश्मर्य मत्स्य ९६.९ ( सर्वफलत्याग व्रत विधान में पिंडारक , काश्मर्य प्रभृति १६ फलों को ताम्र से निर्मित कराने का निर्देश ) ।
काश्मीर नारद १.५६.७४४( काश्मीर देश के कूर्म का पाणि मण्डल होने का उल्लेख ), पद्म ३.२५.२ ( काश्मीर स्थित वितस्ता तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५१ ( भारतवर्ष के प्राच्य जनपदों में काश्मीर का उल्लेख ), १.२.१८.४७ ( सिन्धु द्वारा काश्मीर प्रभृति जनपदों को प्लावित करने का उल्लेख ), २.३.७४.२१३ ( सन्ध्यामात्र कलियुग के शेष रहने पर त्रस्त प्रजा द्वारा स्वगृहों को त्याग कर काश्मीर प्रभृति स्थानों पर निवास करने का उल्लेख ), भविष्य ३.१.६.६ ( काश्यप मुनि द्वारा काश्मीर मण्डल में सरस्वती को प्रसन्न करके सरस्वती से म्लेच्छों आदि को संस्कृत करने के लिए ज्ञान की प्राप्ति ), भागवत १२.१.३९ (काश्मीर मण्डल पर शूद्रों, म्लेच्छों तथा अब्रह्मवर्चसों के राज्य होने का उल्लेख ), मत्स्य १३.४७ ( काश्मीर मण्डल में सती देवी द्वारा मेधा नाम से निवास करने का उल्लेख ), वराह ६.७ ( काश्मीर देश के राजा वसु का वृत्तान्त : पुष्कर में विष्णु की आराधना, स्तोत्र द्वारा शरीर से व्याध का निर्गम, पूर्व जन्म का वृत्तान्त आदि ), विष्णु ४.२४.६९ ( व्रात्यों तथा म्लेच्छों द्वारा काश्मीर प्रभृति जनपदों पर शासन करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.३( काश्मीर देश में मत्स्य की पूजा का निर्देश ), स्कन्द १.१.८.२४( पवन द्वारा काश्मीर लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख ), १.१.२७.३६( अग्नि द्वारा ह्रस्व रूप में काश्मीर सदृश छवि धारण कर शिव - पार्वती के अन्त:पुर में प्रवेश का उल्लेख ), १.१.३१.१०० ( लिङ्गों में काश्मीर लिङ्ग की श्रेष्ठता का कथन ), २.४.८.२० ( काश्मीर देश निवासी हरिमेध तथा सुमेध ब्राह्मणों के द्वारा तुलसी - महिमा श्रवण से पाप मुक्ति तथा ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख ), २.७.२४.२२ ( काश्मीर देश निवासी देवव्रत द्विज की मालिनी नामक कन्या का पतिवंचना से शुनी बनना, पद्मबन्ध द्विज कृत वैशाख द्वादशी के पुण्य प्रभाव से शुनी के मोक्ष का वृत्तान्त ), ३.३.२०.१६ ( काश्मीर देश के राजा भद्रसेन के पुत्र सुधर्मा तथा मन्त्रि - पुत्र तारक द्वारा रुद्राक्ष धारण में प्रीति होने के हेतु का कथन ), ५.३.१९८.८४ ( काश्मीर में उमा की मेधा नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५२६ ( काश्मीर नरेश वसु के चरित्र का वृत्तान्त :विष्णु भक्ति के प्रभाव से पापमुक्त होकर विष्णु धाम गमन ), २.१०४.२५ ( हिमालय पर स्थित काश्मीर देश में काश्यपी प्रजा होने का उल्लेख ), २.१११.२० ( कारु पर्वतों से सुशोभित, पर्वतभूमि °कश्मेरा° / काश्मीर शब्द की निरुक्ति ), कथासरित् ७.५.३६ (विजय क्षेत्र, नन्दि क्षेत्र, वराह क्षेत्र व उत्तर - मानस प्रभृति पवित्र तीर्थस्थलों तथा वितस्ता नाम धारण करने वाली पवित्र गंगा से युक्त काश्मीर देश की पवित्रता का उल्लेख ), १०.७.५३ ( शिव तथा विष्णु के निवास से युक्त वितस्ता के जल से पवित्र, शूर तथा विद्वान व्यक्तियों से परिपूर्ण काश्मीर देश की हिमालय के दक्षिण में स्थिति का उल्लेख ), १०.९.२१४ ( पृथ्वी के शिरोमणि स्वरूप काश्मीर देश की हिमालय के कुक्षि प्रदेश में स्थिति का उल्लेख ), १२.६.७९ ( पृथ्वी के आभरण स्वरूप काश्मीर मण्डल के स्वर्ग सदृश होने का उल्लेख ), १८.३.४ ( काश्मीर देश के सुनन्दन द्वारा शासित होने का उल्लेख ) । kaashmeera/ kashmir |