पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Kaamanaa - Kumaari) RADHA GUPTA, SUMAN AGARWAL & VIPIN KUMAR
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Puraanic contexts of words like Kaartaveerya, Kaartika, Kaartikeya etc. are given here. कार्त्तवीर्य गणेश १.७२.२५ ( कृतवीर्य की रानी से हस्त - पाद रहित पुत्र कार्त्तवीर्य की उत्पत्ति, गणेश मन्त्र जप से अङ्गों की प्राप्ति ),१.७३.१९ ( कार्त्तवीर्य द्वारा गणेश की आराधना, गणेश द्वारा उदर में प्रवेश करने पर हस्त - पाद आदि की उत्पत्ति ),१.७७.३० ( कार्त्तवीर्य का जमदग्नि द्वारा सत्कार, राजा द्वारा कामधेनु की मांग, जमदग्नि व रेणुका की हत्या ), देवीभागवत ६.१६.८ ( हैहयवंशीय राजा कार्त्तवीर्य के परम धार्मिक तथा दानपरायण होने से भृगुओं के धनाढ~य होने का उल्लेख ), नारद १.७६ ( सुदर्शन चक्र के अवतार कार्त्तवीर्य के मन्त्र, पूजन व दीप दान विधान का वर्णन ), १.७७ ( कार्त्तवीर्य कवच निरूपण ), पद्म १.१२.१०५ ( कृतवीर्य - पुत्र, कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय से वर प्राप्ति , रावण का बन्धन व मुक्ति , वसिष्ठ शापवश परशुराम द्वारा वध, कार्त्तवीर्य वंश का उल्लेख ), ६.१२६ ( कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय से माघ स्नान माहात्म्य श्रवण : कुब्जिका नामक ब्राह्मणी द्वारा माघ स्नान के प्रभाव से तिलोत्तमा नामक अप्सरा बनकर सुन्द - उपसुन्द दैत्यों का विनाश ), ब्रह्म १.११.१५९+ ( कृतवीर्य - पुत्र, कार्त्तवीर्य प्रभाव का वर्णन, कार्त्तवीर्य का वसिष्ठ आश्रम को जलाना, शाप प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२४ ( जमदग्नि ऋषि द्वारा राजा कार्त्तवीर्य का आतिथ्य - सत्कार, कार्त्तवीर्य का ऋषि से गौ ग्रहण हेतु याचना, ऋषि द्वारा गौ देने में असमर्थता व्यक्त करना, क्रुद्ध कपिला गौ द्वारा असंख्य सैनिकों की सृष्टि का वृत्तान्त ), ३.२५ ( राजा कार्त्तवीर्य का जमदग्नि के पास दूत भेजकर गौ प्रदान करने अथवा युद्ध करने का संदेश प्रेषित करना, जमदग्नि - कार्त्तवीर्य युद्ध का वृत्तान्त ), ३.२७ ( कार्त्तवीर्य - जमदग्नि युद्ध में जमदग्नि की मृत्यु, परशुराम द्वारा इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय शून्य करने तथा कार्त्तवीर्य का वध करके उसके रक्त से पितरों का तर्पण रूप प्रतिज्ञा ), ३.३५ ( मनोरमा - पति, कार्तवीर्य द्वारा मनोरमा की मृत्यु पर विलाप, परशुराम से युद्ध के लिए प्रस्थान ), ३.४० ( युद्ध में कार्त्तवीर्य द्वारा शूल से परशुराम को मूर्च्छित करना, कार्त्तवीर्य द्वारा भिक्षु रूप धारी शंकर को कृष्ण कवच भिक्षा में देना, परशुराम द्वारा पाशुपत अस्त्र से कार्त्तवीर्य का वध ), ब्रह्माण्ड २.३.२६ ( राजा कार्त्तवीर्य का जमदग्नि ऋषि के आश्रम में पहुंचना, ऋषि द्वारा कामधेनु की सहायता से राजा के आतिथ्य - सत्कार का वर्णन ), २.३.२८ ( राजा के मन्त्री चन्द्रगुप्त का जमदग्नि से कामधेनु को मांगना, गौ देने में असमर्थता व्यक्त करने पर मन्त्री द्वारा बलपूर्वक गौ को ले जाना ), २.३.३१.५ ( परशुराम द्वारा राजा कार्त्तवीर्य को युद्ध में मारने की प्रतिज्ञा ), २.३.३२.६१(परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य के दुष्कृत्यों का शिव से निवेदन, शिव से प्राप्त अस्त्रों तथा कवचादि की सहायता से परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य का वध ), २.३.३७.२८ ( राजा कार्त्तवीर्य के कृष्ण के चक्र का अवतार होने का उल्लेख ), २.३.३८ ( माहिष्मती नगरी में पहुंचकर परशुराम का कार्त्तवीर्य के पास दूत भेजना, युद्ध हेतु आह्वान, कार्त्तवीर्य का युद्धार्थ आगमन ), २.३.४०.६६ ( परशुराम द्वारा भस्म होने के पश्चात् कार्त्तवीर्य के सुदर्शन चक्र में प्रविष्ट होने का उल्लेख ), २.३.४४.१४ ( परशुराम का घर लौटकर माता - पिता से कार्त्तवीर्य वध के समाचार को निवेदित करने का उल्लेख ), २.३.४७.६६ ( कार्त्तवीर्य के पंचम पुत्र जयध्वज तथा पौत्र तालजंघ आदि का उल्लेख ), २.३.६९.९ ( कृतवीर्य - पुत्र , दत्तात्रेय की आराधना से चार वरों की प्राप्ति, कार्त्तवीर्य के पराक्रम व महिमा का वृत्तान्त ), भविष्य ४.५८.२४ ( माहिष्मती नगरी के राजा कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा अत्रि व अनुसूया के पुत्र दत्त /अनघ की सेवा - शुश्रूषा , प्रसन्न होकर अनघ द्वारा कार्त्तवीर्य को चार वर प्रदान करना , कार्त्तवीर्य द्वारा कार्तिकेय के पराक्रम व गुणों का वर्णन तथा कार्तिकेय द्वारा मर्त्यलोक में अनघाष्टमी व्रत का प्रवर्तन ), भागवत ९.१५.१७ ( हैहय वंश का अधिपति, अपर नाम अर्जुन तथा सहस्रबाहु, दत्तात्रेय की आराधना से कार्त्तवीर्य को वरदान प्राप्ति, रावण को बन्दी बनाकर माहिष्मती नगरी में रसना, जमदग्नि आश्रम से कामधेनु को ले जाने पर क्रुद्ध परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य से युद्ध तथा कार्त्तवीर्य के वध का वृत्तान्त ), मत्स्य ४३.१३ ( कृतवीर्य - पुत्र, कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय की आराधना से चार वरों की प्राप्ति, कर्कोटक नाग के पुत्र को जीतकर माहिष्मती पुरी में बांधकर रखना तथा रावण को बन्दी बनाना, परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य वध में शाप की हेतुता का उल्लेख ), ४४ ( सूर्य की तुष्टि हेतु कार्त्तवीर्य द्वारा वृक्षों, आश्रमों, वनों, उपवनों को दग्ध करना, आपव / वसिष्ठ ऋषि से शाप प्राप्ति का वृत्तान्त ), मार्कण्डेय १८( कृतवीर्य - पुत्र, गर्ग ऋषि द्वारा कार्त्तवीर्य को राज्य करने का उपदेश ), १९.६ ( कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय - आराधना, राज्य स्वीकार करके प्रजा पालन में तत्परता का उल्लेख ), वा.रामायण ७.३२ ( कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा नर्मदा के प्रवाह को अवरुद्ध करने तथा रावण को बन्दी बनाकर अपने नगर में लाने का उल्लेख ), वराह ५०.२५ ( कार्तिक द्वादशी को धरणी व्रत के पालन से राजा कृतवीर्य को कार्त्तवीर्य नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), वायु ९४.९ ( कृतवीर्य - पुत्र, अपर नाम अर्जुन, दत्त की आराधना से कार्त्तवीर्य को चार वरदानों की प्राप्ति , प्रथम वरदान में सहस्र बाहुओं की प्राप्ति, द्वितीय वरदान में अधर्म से नष्ट होते हुए लोक का सदुपदेशों से निवारण, तृतीय वरदान में पृथ्वी का धर्मपूर्वक पालन तथा चतुर्थ वरदान में अधिक बलशाली से मृत्यु की प्राप्ति ; कार्तवीर्य पराक्रम का वर्णन, आपव / वसिष्ठ शापवश परशुराम द्वारा वध का वृत्तान्त ), विष्णु ४.११.११ ( वही), विष्णुधर्मोत्तर १.२३.१२ ( कार्त्तवीर्य के पराक्रम व महिमा का वृत्तान्त ), १.२५.१३ (कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय की शुश्रूषा का उल्लेख ), १.३०.१-३१ ( कार्त्तवीर्य द्वारा सूर्य को भोजन देने हेतु द्रुम दाह तथा वसिष्ठ से बाहुछेदन रूप शाप प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.२०.११ ( दसवें त्रेतायुग में चक्रवर्ती राजा कार्त्तवीर्य के होने का उल्लेख, राजा कार्त्तवीर्य द्वारा योग से चोरों को देखने का उल्लेख ;कार्त्तवीर्य के स्मरण से प्रणष्ट द्रव्यता न होने का उल्लेख ), हरिवंश १.३३.८ ( कृतवीर्य - पुत्र, दत्त की आराधना से चार वरों की प्राप्ति, कर्कोटक नाग के पुत्रों को जीतकर माहिष्मती नगरी में बसाना तथा रावण को पराजित् करके बन्दी बनाना, कार्तवीर्य महिमा का वर्णन ), १.३३.३८ ( कार्त्तवीर्य द्वारा अग्निदेव को भिक्षा प्रदान, अग्निदेव द्वारा वनों , पर्वतों तथा आश्रम आदि के दग्ध होने पर आपव / वसिष्ठ द्वारा शाप, शापवश कार्त्तवीर्य का परशुराम द्वारा वध ) । kaartaveerya/ kartvirya/ kartavirya
कार्तिक देवीभागवत ७.३०.७५ ( कार्तिक नामक देवीपीठ में अतिशांकरी नाम से अम्बिका देवी के वास का उल्लेख ), नारद १.१२४.५६ ( कार्तिक पूर्णिमा में दीपदान तथा क्षीरसागर दान की विधि व महिमा ), २.२२.४१,६६ ( कार्तिक माहात्म्य : रुक्मांगद द्वारा मोहिनी को कार्तिक मास में करणीय एवं वर्जनीय कर्मों का कथन तथा तत्तत् कर्मों के फलों का वर्णन ), पद्म ४.३ ( कार्तिक माहात्म्य वर्णन : कार्तिक मास में दीपदान से वैकुण्ठ प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२० ( कार्तिक मास में राधा - दामोदर की अर्चना से पापों का नाश तथा गोलोक प्राप्ति का उल्लेख ), ६.८९.९ ( कार्तिक मास में व्रत, दान, स्नानादि के माहात्म्य का वर्णन : देवशर्मा - कन्या गुणवती का कार्तिक व्रत के प्रभाव से कृष्ण - भार्या सत्यभामा बनने का उल्लेख ), ६.९०.२३ ( कार्तिक मास में मन्त्र, बीज और यज्ञों से युक्त वेदों के जल में विश्राम करने का उल्लेख ), ६.९३ ( कार्तिक मास में व्रती हेतु स्नान विधि का वर्णन ), ६.९४ ( कार्तिक मास में व्रती द्वारा करणीय नियम ), भविष्य २.२.८.१२८( पुष्कर में महाकार्तिकी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), ३.४.८.८१ ( कार्तिक मास के सूर्य का माहात्म्य( ? ) : व्याकरण के उद्धार हेतु कार्तिक मास के सूर्य का वेदशर्मा - पुत्र कार्यगुण बनना आदि ), ४.१०० ( स्नान, दान हेतु कार्तिक पूर्णिमा की श्रेष्ठता का उल्लेख ), ४.१०१ ( चार युगादि तिथियों में से कार्तिक शुक्ल नवमी को किए गए स्नान, दान, जप आदि पुण्यकर्मों के अक्षय होने का उल्लेख ), ४.१०३ ( कार्त्तिक मास में कृत्तिका - व्रत विधि व माहात्म्य ), मत्स्य १७.४ ( कार्त्तिक शुक्ल नवमी की युगादि तिथि के नाम से प्रसिद्धि तथा इसमें किए श्राद्ध से अक्षय फल प्राप्ति का उल्लेख ), १७.८ ( चौदह मन्वन्तरों की चौदह आदि तिथियों में से एक कार्तिक पूर्णिमा में किए गए श्राद्ध से अक्षय फल प्राप्ति का उल्लेख ), वराह ५०.४ ( कार्तिकी द्वादशी व्रत की विधि व माहात्म्य का वर्णन : धरणी द्वारा सम्पन्न होने से कार्तिकी द्वादशी व्रत का धरणीव्रत नाम धारण ), वामन ६५.१८ ( ऋषियों तथा राजाओं द्वारा कार्तिकी पूर्णिमा के दिन पुष्कर तीर्थ में स्नान का उल्लेख ), शिव २.४.२०.३०( कार्तिक मास में कृत्तिका योग होने पर स्वामी कार्तिकेय के दर्शन से पापों के नाश तथा अभीप्सित फल की प्राप्ति का उल्लेख ; अमावास्या को शिव तथा पूर्णिमा को पार्वती द्वारा कार्त्तिकेय के दर्शन का उल्लेख ), स्कन्द १.१.१७.११३ ( कार्तिक त्रयोदशी को वृत्र जय हेतु बृहस्पति द्वारा इन्द्र को प्रदोष व्रत व उद्यापन विधि का वर्णन ), १.३.२.२०.२६ ( तपस्या से निरत पार्वती को कार्तिक पूर्णिमा की शुभ तिथि में अरुणाद्रि पर्वत पर ज्योति के दर्शन, पार्वती द्वारा अरुणाचलेश्वर की स्तुति का वर्णन ), २.४.१ ( कार्तिक मास माहात्म्य : कार्तिक में स्नान, दान आदि से समस्त पापों से मुक्ति ), ४.१.४.८९ ( कार्तिक मास में विधवा स्त्री के कर्त्तव्यों का कथन ), ४.२.६०.७३ ( कार्त्तिक मास में बिन्दु तीर्थ में स्नान, व्रतादि से पुण्य फल की प्राप्ति का कथन ), ५.२.६९.६१ ( कार्तिक मास में संगमेश्वर लिङ्ग के दर्शन से राजसूय फल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१४९.११( कार्तिक द्वादशी को दामोदर की अर्चना से दुःखों तथा पापों से मुक्ति का उल्लेख ), ५.३.१५६.१८ ( कार्तिक कृष्ण चर्तुदशी को शुक्ल तीर्थ में करणीय कृत्यों का वर्णन ), ५.३.१७४.५ ( कार्तिक शुक्ल नवमी को गोपेश्वर तीर्थ में दीपदान आदि के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१९८.८२ (कार्तिक तीर्थ में उमा देवी की शांकरी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ५.३.२०९.११० ( कार्तिक मास में करणीय स्नान, दानादि कृत्यों को न करने से वर्ष पर्यन्त किए गए पुण्यों के क्षीण होने का उल्लेख ), ५.३.२०९.१७६ ( कार्तिक चर्तुदशी को लिङ्ग का चार प्रकार से पूरण करने के फल का कथन ), ६.१२६.३३ ( कार्तिक मास में सत्यसन्धेश्वर लिङ्ग की पूजा से मुक्ति प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१९.१ ( कार्तिक कृष्ण अष्टमी को बालकृष्ण प्रभु के जन्मोत्सव का उल्लेख ), २.८०.११ ( राजा बलेश वर्मा द्वारा कार्तिक व्रत पालन, कार्तिक व्रत में यथाशक्ति दान का वर्णन, श्री बालकृष्ण प्रभु द्वारा वनेचर का रूप धारण करके कार्तिक व्रत पालन के व्याज से बलेशवर्मा की परीक्षा लेने का वृत्तान्त ), २.९०.२२( कार्तिक कृष्ण चर्तुदशी को महामारी भैरवी द्वारा राक्षसियों को नष्ट करने का वृत्तान्त ) । kaartika/ kartik
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