पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(Kaamanaa - Kumaari)

RADHA GUPTA, SUMAN AGARWAL & VIPIN KUMAR

Index

Kaamanaa - Kaampilya  (Kaamanaa/desire,  Kaamaruupa, Kaamaakshi, Kaamaakhyaa, Kaameshwari, Kaamodaa, Kaampilya etc.)   

Kaampilya - Kaartaveerya (Kaampilya, Kaamboja, Kaayastha, Kaayaavarohana, Kaarana/cause, Kaaru, Kaaruusha, Kaartaveerya etc.)

Kaartaveerya - Kaartikeya  (Kaartaveerya, Kaartika, Kaartikeya etc.)  

Kaartikeya - Kaarshni  ( Kaartikeya, Kaarpaasa/cotton, Kaarya/action etc.)  

Kaala - Kaalaa  (Kaala/time )  

Kaalaa - Kaalanaabha ( Kaalakaa, Kaalakuuta, Kaalakeya, Kaalachakra, Kaalanjara, Kaalanaabha etc.)

Kaalanaabha - Kaalaraatri  (Kaalanemi, Kaalabhairava, Kaalayavana, Kaalaraatri etc. )    

Kaalaraatri - Kaalindi ( Kaalasuutra, Kaalaagni, Kaalikaa, Kaalindi etc.)     

Kaalindi - Kaavya  (kaaliya, Kaali, Kaaleya, Kaaveri, Kaavya etc. )

Kaavya - Kaashmeera  ( Kaavya, Kaasha, Kashiraaja, Kaashi etc. )  

Kaashmeera - Kaasaara  ( Kaashmeera, Kaashya, Kaashyapa, Kaashthaa, Kaashtheelaa etc.)  

Kimdama - Kiraata (Kitava/gamble, Kinnara, Kimpurusa, Kiraata etc.)   

Kirichakra - Keertimati (Kireeta, Kishkindhaa, Keekata, Keeta, Keerti etc.)

Keertimati - Kuksheyu (Keertimaan, Keertimukha, Kukkuta/hen, Kukshi/belly etc.)    

Kukhandikaa - Kutilaaksha   (Kumkuma, Kuja/mars, Kujambha, Kunjara/elephant, Kutilaa etc.)   

Kutilaaksha - Kundala  (Kutumba, Kuthaara, Kunda, Kundala/earring etc.)  

Kundalaa - Kunda  ( Kundalini, Kundina, Kutupa, Kutsa, Kunti, Kuntee etc. )    

Kunda - Kubera  ( Kunda, Kundana/gold, Kubera etc.)   

Kubera - Kumaari (Kubjaa, Kubjaamraka, Kumaara, Kumaari etc. )

 

 

Puraanic contexts of words like Kaampilya, Kaamboja, Kaayastha, Kaayaavarohana, Kaarana/cause, Kaaru, Kaaruusha, Kaartaveerya etc. are given here.

Comments on Kaarana/Cause and effect

काम्पिल्य पद्म ६.१३३.१२ ( कम्पिल : कम्पिल क्षेत्र में कापिल तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), ६.२०६.५ ( काम्पिल्य नगरी में साक्षात् काम रूप द्विज पर स्त्रियों की आसक्ति का वर्णन ), ६.२०६.५३ ( काम्पिल्य नगरी पर कारूष अधिपति के आक्रमण का उल्लेख ), भागवत ९.२१.३२ ( भर्म्याश्व के पंचाल नाम से प्रसिद्ध पांच पुत्रों में से एक ), वराह १३७.६७ ( काम्पिल्य नगर वासी राजा ब्रह्मदत्त के पुत्र सोमदत्त के बाण से हत शृगाली और गृध्र का सौरव तीर्थ के प्रभाव से राजकुल में उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), वायु ९९.१७६( राजा समर की राजधानी ), ९९.१९६ ( भेद के पाञ्चाल संज्ञक पांच पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१९.४० ( राजा समर की राजधानी ), ४.१९.५९ ( हर्यश्व के पांचाल संज्ञक पांच पुत्रों में से एक ), शिव २.१.१७.५ (काम्पिल्य नगर वासी गुणनिधि दीक्षित के चरित्र का वर्णन ), स्कन्द १.२.७.२२ ( राजा इन्द्रद्युम्न के स्वर्ग से काम्पिल्य नगर में आने का उल्लेख ), ४.१.१३.३७ ( काम्पिल्य नगर निवासी गुणनिधि के चरित्र का वृत्तान्त ), ६.२७१.३३+ ( राजा इन्द्रद्युम्न के ब्रह्मलोक से काम्पिल्य नगर में अवतरण का उल्लेख ), हरिवंश १.२०.७४( अर्जुन द्वारा द्रुपद को जीतकर काम्पिल्य नगर द्रोण को समर्पित करना , द्रोण द्वारा काम्पिल्य नगर को पुन: द्रुपद को देने का वृत्तान्त ), १.२३.१६ ( सात हंसों के काम्पिल्य नगर में ब्रह्मदत्त आदि नामों से उत्पन्न होने का उल्लेख ), कथासरित् ५.२.२३ ( कनकपुरी का पता पूछने हेतु शक्तिदेव का मुनि के कहने पर काम्पिल्य नगरी में गमन , काम्पिल्य में उत्तर नामक पर्वत पर स्थित आश्रम में दीर्घतपा ऋषि से कनकपुरी नगरी के सम्बन्ध में पूछने का उल्लेख ) । kaampilya/ kampilya

 

काम्बोज नारद १.५६.७४४( काम्बोज देश के कूर्म का पाणिमण्डल होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४९ ( भारतवर्ष के राज्यों में उत्तर देश के एक राज्य काम्बोज का उल्लेख ), २.३.४१.३९ ( परशुराम द्वारा निहत क्षत्रियों में काम्बोजों का उल्लेख ), २.३.४८.२२, ४४ ( हैहयों को जीतकर राजा सगर का काम्बोजों की ओर प्रस्थान , सगर द्वारा काम्बोजों आदि की विरूपता का उल्लेख ), २.३.६३.१२० ( सगर - पिता बाहु को राज्य - च्युत करने में हैहयों की सहायतार्थ आए पांच गणों में से एक ), २.३.६३.१३४ ( सगर द्वारा हैहयों सहित काम्बोज आदि पांचों गणों को समाप्त प्राय करने की प्रतिज्ञा , वसिष्ठ का सगर को रोकना , वसिष्ठ के कहने से सगर द्वारा काम्बोज आदि पांचों गणों को धर्म से च्युत तथा विरूप करने का उल्लेख ), ३.४.१६.१६ ( भण्ड नामक दैत्य को जीतने हेतु ललिता देवी की विशाल सेना में काम्बोजों का उल्लेख ), वायु ८८.१२२ ( शक, यवन , काम्बोज, पारद तथा पह्लवों की सहायता से हैहयवंशीय तालजंघों द्वारा व्यसनी राजा बाहु को राज्य - च्युत करने का उल्लेख ), विष्णु ४.३.४२ ( राजा सगर का हैहय तालजंघ को मारकर शक, यवन, काम्भोज, पारद तथा प्लवों को मारने के लिए उद्यत होने पर शकादि का वसिष्ठ की शरण में जाना , वसिष्ठ द्वारा जीवन दान के साथ शक, काम्भोज आदि को धर्म - च्युत करने का कथन ), शिव ५.३८.३० ( राक्षसों के पांच गणों में से एक, बाहु राजा के राज्य - हरण का उल्लेख ) । kaamboja/ kamboja

 

काम्यक नारद २.६५.५ ( कुरुक्षेत्र के सात वनों में प्रथम वन ), वामन ४१.३२ ( काम्यकवन का संक्षिप्त माहात्म्य : पापों से मुक्ति का उल्लेख ), स्कन्द २.३.६.५६ ( काम्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : कामी और अकामी की मुक्ति का उल्लेख ), ५.३.२.१४( तीर्थयात्रा प्रसंग में पाण्डवों का मुनियों सहित काम्यक वन में प्रवेश, काम्यक वन की शोभा का वर्णन, काम्यक वन में युधिष्ठिर का मार्कण्डेय से संवाद ); kaamyaka/ kamyaka

 

काम्या ब्रह्माण्ड १.२.११.३२-३४ ( श्रुति व कर्दम की कन्या, प्रियव्रत - भार्या , १० पुत्रों व २ पुत्रियों की माता ), १.२.१४.७ ( काम्या के दस पुत्रों को पिता प्रियव्रत द्वारा विभिन्न द्वीपों का राजा बनाने का उल्लेख ) ।

 

 

 

कायनि मत्स्य १९५.३१ ( भृगु वंश में उत्पन्न एक ऋषि ), लक्ष्मीनारायण २.२१६.९३ ( कायनी : गतैनस राष्ट्र के राजा द्वारा कायनी नगरी के निकट समुद्र तट पर स्थित महोद्यान में श्री हरि के स्वागत का उल्लेख )

 

कायस्थ ब्रह्मवैवर्त्त ४.८५.१३७ ( कायस्थ की निन्दा ), भविष्य ३.४.२३.१०० ( कायस्थ वर्ण द्वारा भूत , प्रेत व पिशाचों की तृप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२६३.७ ( ऊर्जव्रत नामक कायस्थ के सूर्याराधन से कुष्ठ रोग से मुक्त होने का वृत्तान्त ), ४.६५.४२ ( लक्ष्मीनारायण संहिता कथा श्रवणादि से कायस्थों की मुक्ति का वृत्तान्त ) । kaayastha/ kayastha

 

काया गणेश २.११४.१५ ( सिन्धु व गणेश के युद्ध में महाकाय का भूतराज से युद्ध ), पद्म २.६४.५६( आत्मा और काया की मैत्री के सम्बन्ध में मातलि और ययाति का संवाद ), भागवत ९.२१.२२( बृहत्काय : बृहद्धनु - पुत्र, जयद्रथ - पिता ), योगवासिष्ठ १.१८ ( काय जुगुप्सा नामक सर्ग ), ६.१.८१.६१ ( काया को सूक्ष्म छिद्रों में गति करने योग्य बनाने आदि का प्रश्न व उत्तर ), लक्ष्मीनारायण २.१०७.२९( राक्षसों द्वारा पतत्काया पर्वत पर पितृकन्याओं के विमान के रोधन का कथन ), द्र. अतिकाय, हड्डकायिनी ।kaayaa

 

कायावरोहण मत्स्य १३.४८ ( कायावरोहण क्षेत्र में सती देवी की माता नाम से स्थिति का उल्लेख ), २२.३० ( पितरों के परम प्रिय तीर्थों में से एक ), १८१.२६ ( दोनों संध्याओं में शिव के सान्निध्य से कायावरोहण नामक क्षेत्र की पवित्रता का उल्लेख ), वायु २३.२११ ( कायारोहण : २८वें द्वापर में रुद्र के नकुली नाम से अवतार लेने पर रुद्र द्वारा अधिष्ठित स्थान की कायारोहण नामक सिद्ध क्षेत्र के रूप में प्रसिद्धि का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.२६.७ ( महाकालवन क्षेत्र के दक्षिण भाग में कायावरोहण तीर्थ में कायावरोहणेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), ५.१.२६.२४ ( कायावरोहण तीर्थ में गज दान का उल्लेख ), ५.२.८१.३३ ( शिव द्वारा महाकालवन क्षेत्र के दक्षिण भाग में कायावरोहण नामक गण को रक्षक रूप में नियुक्त करने का उल्लेख ), ५.२.८२ ( कायावरोहणेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : दक्ष यज्ञ में भद्रकाली व वीरभद्र द्वारा तुषित देवों का विदेह होना, कायावरोहणेश्वर लिंग पूजा से पुन: देह प्राप्ति का वृत्तान्त ), ५.३.१९८.८५ ( कायावरोहण तीर्थ में देवी की माता नाम से स्थिति का उल्लेख ) । kaayaavarohana/ kayavarohana

 

कारकि मत्स्य १९६.१४ ( एक आंगिरस प्रवर प्रवर्तक ऋषि ) ।

 

कारण अग्नि ८४.३४( निवृत्ति कला में ब्रह्मा के कारण होने का उल्लेख ), ८५.१६( प्रतिष्ठा कला/स्वप्न में गरुडध्वज के कारण होने का उल्लेख ), ८६.१०( विद्या कला/सुषुप्ति में रुद्र के कारण होने का कथन ), ८७.६( शान्ति कला में ईश्वर के कारण होने का उल्लेख ), गरुड १.१५.४८ ( विष्णु सहस्रनामों के अन्तर्गत विष्णु के कारण प्रत्यय वाले ५० से अधिक नामों का कथन ), गर्ग १०.३५.२३( कारण - कार्य के सम्बन्ध में बल्वल - अनिरुद्ध वार्तालाप ), पद्म ५.६९.१०७(परम कारण कृष्ण गोविंद का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३२.७८( काल रूप एक कारण से क्षेत्रज्ञों की उत्पत्ति का कथन ), भागवत ३.२१.१९( जगत के सृष्टि कारण के संदर्भ में भगवान् द्वारा ऊर्णनाभि की भांति स्वयं सृष्टि करने का कथन ), मत्स्य १२३.४९(भूमि, आप:, अग्नि आदि द्वारा एक - दूसरे को धारण करने का कथन ), १२३.६१( महदादि के कारणात्मक होने का उल्लेख ), वराह १७.७०( शरीर माया/दुर्गा के कारणान्त बनने का उल्लेख ), १७.७१( वायु/धनेश के कारण बनने का उल्लेख ), वायु ४९.१५१ ( कोटि - कोटि अण्डों का अव्ययात्मा कारण के ऊपर, नीचे और बीच में स्थित होने तथा प्रत्येक अण्ड के सात - सात प्रकृत कारणों द्वारा आवृत होने का उल्लेख ),१०२.१०१ ( जीव , प्राण , लिंग तथा कारण आदि चारों पर्यायवाची शब्दों द्वारा एक ही अर्थ को द्योतित करने का उल्लेख ), १०३.३६/२.४३.३६(अव्यक्त कारण से प्रधान व पुरुष से महेश्वर के जन्म का कथन), विष्णु १.२.१९ ( अव्यक्त का एक नाम ), शिव १.१७.९०(कारण ब्रह्म, कारण विष्णु, कारण रुद्र का कथन, ब्रह्मा के १४ तथा विष्णु के १४ लोकों के कारण लोकों के पश्चात् रुद्र के २८ लोकों का कथन), ६.१६.५ ( वामदेव द्वारा ब्रह्मादि स्थावरान्त सृष्टि का कारण पूछना ), स्कन्द ३.१.४९.३२(कुमुद द्वारा प्रधान कारण रूप रामेश्वर की स्तुति), योगवासिष्ठ ३.३.८( अज में कारण का अभाव होने का कथन ), ३.५ ( परमात्मा की सत्ता से ही समस्त पदार्थों के सत्तावान् होने से परमात्मा के मूल कारण रूप होने का उल्लेख ), ३.९.७६ ( परब्रह्म परमात्मा का समस्त कारणों के कारण रूप में उल्लेख ), ५.५३.३५ ( अकारण से उत्पन्न होने के कारण जगत के मिथ्यात्व का कथन ), ६.१.९५.१२ ( कार्य - कारण के अभाव का नाम अद्वैत ), ६.१.१०३.२८ ( चित्त स्पन्द के सारे जगत की स्थिति का कारण होने का कथन ), ६.२.१४९ ( सृष्टि तथा तद्गत पदार्थ कारण का विचार ) । kaarana/ karana

Comments on Kaarana/Cause and effect

 

कारण्डव लक्ष्मीनारायण २.२८.२६ (कारण्डव का पातालवासी नागों का राजा होने का उल्लेख ), २.२८.८१ ( नागराज कारण्डव के मन्त्री सुमधु द्वारा स्वस्तिक नामक नाग ब्राह्मण की कन्याओं को बन्दी बनाना , कन्याओं की मुक्ति हेतु कृष्ण का गरुड को नागराज कारण्डव के पास भेजना , गरुड का कारण्डव को कन्या मुक्ति का आदेश, अमुक्ति की स्थिति में गरुड द्वारा युद्ध की चेतावनी, कारण्डव का मन्त्री को बुलाकर युद्धार्थ तत्पर होने का वृत्तान्त ) ।

 

कारयत ब्रह्माण्ड २.३.६३.१८९ ( हिमालय पर्वत के निकट कारयत देश में लक्ष्मण - पुत्र अंगद की अंगदा तथा चन्द्रकेतु की चन्द्रचक्रा नामक राजधानियों का उल्लेख ) ।

 

कारवती ब्रह्माण्ड २.३.१३.९२ ( श्राद्धादि के लिए अतिप्रशस्त कारवती तीर्थ का उल्लेख ) ।

 

कारागार स्कन्द २.२.३९.५( अहंकार के कारण भव रूपी कारागार में बद्ध होने का उल्लेख ),

 

कारांकिक पद्म ५.११०.७५ ( कारांकिक के छलपूर्ण वचनों के कारण राजा द्वारा पतिव्रता वेश्या के शिरोछेदन का वृत्तान्त ) ।

 

कारीष स्कन्द १.२.६.४२ ( कारीष नामक कीटों के भक्षण से बचने के उपाय का कथन ) ।

 

कारु भागवत ११.१७.४९ ( शूद्र के लिए आपत्तिकाल में कारु वृत्ति द्वारा निर्वाह का निर्देश ), वायु ४५.९२ ( भारतवर्ष के पर्वतों में कारु पर्वत का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.१२९.२० ( कारुकान्न भक्षण से प्रजा नाश का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१०९.८४, २.१०९.९५ ( कर्वरी देश के राजा कारुवर्मा का शम्भु से युद्ध, हरि द्वारा सुदर्शन चक्र से कारुवर्मा का वध ), २.११०.७२ ( श्रीकृष्ण द्वारा कारु प्रदेश का राज्य कूर्मि महर्षि को प्रदान करने का उल्लेख ), २.१११.१८ ( कारुकर : श्रीकृष्ण नारायण द्वारा अर्यमा को सिन्धु के पार्श्व में स्थित कारुकर पर्वत भूमि प्रदान करने तथा अर्यमा का श्री सहित पर्वतभूमि पर निवास का उल्लेख ), ४.१०१.९६ ( कारुनाथ : श्रीकृष्ण व कलावती - पुत्र ) ; द्र. जरत्कारु ।  kaaru

 

कारुपथ वायु ८८.१८८( कारपथ : कारपथ में लक्ष्मण के पुत्रों अंगद और चन्द्रकेतु की क्रमश: अंगदीया और चन्द्रवक्त्रा नामक राजधानियों का उल्लेख ; तुलनीय - ब्रह्माण्ड पुराण में कारयत ), वा.रामायण ७.१०२.५ ( कारुपथ देश में लक्ष्मण - पुत्र अंगद तथा चन्द्रकेतु हेतु क्रमश: अंगदीया तथा चन्द्रकान्त नगरियों के निर्माण का उल्लेख ) ।

 

कारूष गर्ग ७.१८.१३ ( कारूष देश के राजा पौण्ड्रक द्वारा प्रद्युम्न की पूजा का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६१.२( मनुपुत्र करूष से कारूष नामक क्षत्रियों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), भविष्य १.८.५८ ( कारूष राजा के पुत्र द्वारा दर्पण रूपी असि से कारूष राजा के वध का उल्लेख ), भागवत ९.२.१६ ( मनु - पुत्र करूष से कारूष नामक क्षत्रियों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), ९.२४.३७ ( श्रुतदेवा के पति तथा दन्तवक्त्र के पिता वृद्धशर्मा का करूष देश का अधिपति होने का उल्लेख ), मत्स्य १२.२४ ( मनु - पुत्र करूष के पुत्रों की भूतल पर कारूष नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ११४.५३ ( करूष : विन्थ्य पर्वत की घाटी में स्थित अनेक जनपदों में से एक ), वा.रामायण १.२४.२० ( देवों तथा ऋषियों द्वारा वृत्रासुर वध के पश्चात् मल तथा कारूष / क्षुधा से मलिन हुए इन्द्र के मल तथा कारूष को छुडाने का उल्लेख ), १.२४.२२ ( इन्द्र के अंगजनित मल तथा कारूष को धारण करने से जनपदों की मलद तथा करूष नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), विष्णु ४.१.१८ ( मनु - पुत्र करूष के क्षत्रिय पुत्रों की कारूष नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ) । kaaruusha/kaaroosha / karusha

 

कारेलिका लक्ष्मीनारायण ४.३६ ( श्रीकरला ग्राम निवासी कारेलिका नामक शूद्री का लक्ष्मीनारायण संहिता कथा श्रवण से निर्मोहत्व को प्राप्त होने का वृत्तान्त ) ।