पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Kaamanaa - Kumaari) RADHA GUPTA, SUMAN AGARWAL & VIPIN KUMAR
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Puraanic contexts of words like Kaartikeya, Kaarpaasa/cotton, Kaarya/action etc. are given here. कार्त्तिकेय अग्नि ३४९ (कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति व्याकरण सार का निरूपण ), ३५० ( कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति सन्धि रूपों का निरूपण ), ३५१ ( कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति सुबृन्त रूपों का निरूपण ), ३५२, ३५३ (कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग शब्दों के सिद्ध रूपों का निरूपण ), ३५४, ३५५ ( कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति कारक तथा समास निरूपण ), ३५६, ३५७ ( कार्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति त्रिविध तद्धित रूपों तथा उणादि शब्द रूपों का दिग्दर्शन ), ३५८,३५९ ( कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति लिङ् विभक्तन्त रूपों तथा कृदन्त शब्द रूपों का निदर्शन ), गर्ग ७.२४.४६ ( कुबेर - सेनानी , अनिरुद्ध एवं साम्ब के साथ कार्तिकेय के युद्ध का उल्लेख ), १०.३७.१८ ( साम्ब को जीतने हेतु शिव द्वारा कार्तिकेय / शिखिवाहन के प्रेषण का उल्लेख ), देवीभागवत ५.८.६९ ( कार्त्तिकेय के तेज से देवी के उत्तरोष्ठ की उत्पत्ति का उल्लेख ), पद्म १.४४.१४५ ( स्कन्द, विशाख तथा षड~वक्त्र आदि नामों से प्रसिद्ध कार्तिकेय का चैत्र कृष्ण अमावस्या में जन्म, चैत्र शुक्ल षष्ठी में देवों द्वारा अभिषेक, इन्द्र द्वारा कार्त्तिकेय को देवसेना नाम वाली स्वपुत्री पत्नी रूप में प्रदान करने का उल्लेख ), १.४४.१५४ ( देवों द्वारा कार्तिकेय की स्तुति, तारकासुर व हिरण्यकशिपु के वध की प्रार्थना, कार्त्तिकेय द्वारा तारक वध का वृत्तान्त ), पद्म १.६३.११ ( देवों द्वारा प्रदत्त महाबुद्धि नामक मोदक को प्राप्त करने हेतु स्कन्द / कार्त्तिकेय द्वारा त्रिभुवन स्थित तीर्थों में गमन ), ६.१०१.३ ( निशुम्भ व कार्तिकेय के युद्ध में निशुम्भ के बाणों से कार्त्तिकेय के वाहन मयूर के मूर्च्छित होने का उल्लेख ), ६.१०१.२४ ( कार्त्तिकेय द्वारा जलन्धर नामक दैत्य को शक्ति से विद्ध करना, पश्चात् जलंधर द्वारा गदा से कार्त्तिकेय को ताडित करने का उल्लेख ), ब्रह्म २.११ ( कार्त्तिकेय तीर्थ माहात्म्य : तीर्थ में स्नान से गुरु - पत्नी अनुगमन जैसे महापातकों से मुक्ति , उत्तम जाति की प्राप्ति तथा कुरूप को सुरूपता की प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१४ ( विष्णु द्वारा देवों से महेश्वर के अमोघ वीर्य के अपहरण के विषय में पूछे जाने पर धर्म, क्षिति, अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र, जल, सन्ध्या, रात्रि तथा दिवस द्वारा कार्त्तिकेय की क्रमश: जन्मोत्पत्ति का वर्णन ), ३.१५ ( कार्त्तिकेय को लाने हेतु शिव पार्षदों के आने पर कृत्तिकाओं के माता होने के सम्बन्ध में नन्दिकेश्वर से कार्त्तिकेय का संवाद ), ३.१६ ( कार्त्तिकेय का शिव - पार्षदों तथा कृत्तिकाओं के साथ शिवालय गमन का वृत्तान्त ), ३.१७ ( कार्त्तिकेय का अभिषेक तथा विभिन्न देवों द्वारा कार्त्तिकेय को उपहार प्रदान ), ब्रह्माण्ड १.२.२५.१६ ( प्रजापति वसिष्ठ का कार्त्तिकेय से शिव के नीलकण्ठत्व का रहस्य पूछना, कार्त्तिकेय द्वारा पूर्व में माता पार्वती की गोद में बैठकर सुने हुए पिता शिव के नीलकंठत्व के रहस्य को निवेदित करना ), २.३.१०.४४ ( कृत्तिकाओं द्वारा पुष्ट होने से कार्त्तिकेय नाम धारण का उल्लेख, उत्पत्ति प्रसंग ), २.३.३२.२३ ( शिवलोक में पहुंचकर परशुराम द्वारा शिव का दर्शन, शिव के वामभाग में कार्त्तिकेय तथा दक्षिण भाग में गणेश, क्रोड / गोद में पार्वती तथा सामने वीरभद्र की स्थिति का उल्लेख ), २.३.४१.३२ ( समस्त क्षत्रियों का संहार करके परशुराम का शिव को प्रणाम करने के लिए शिवलोक के प्रति गमन, शिव द्वार के वाम भाग में कार्तिकेय तथा दक्षिण भाग में स्थित गणेश द्वारा परशुराम को प्रवेश से रोकने का उल्लेख ), २.३.४२.६ ( क्रुद्ध परशुराम द्वारा परशु के प्रक्षेपण से गणेश के दांत का टूटना, कार्तिकेय आदि देवों का हाहाकार, पार्वती के पूछने पर कार्त्तिकेय द्वारा समस्त वृत्तान्त का वर्णन ), २.३.४३.३१ ( शिव - पार्वती की अभिवादन पूर्वक परिक्रमा करके तथा कार्त्तिकेय व गणेश को प्रणाम कर परशुराम द्वारा स्वगृह गमन ), ३.४.१.६२ ( रोहित मन्वन्तर के इन्द्रों में पावकि व पार्वतीय विशेषणों वाले स्कन्द का उल्लेख ), भविष्य १.२२.८ (सामुद्रिक शास्त्र के जनक कार्त्तिकेय द्वारा पुरुष - स्त्री के लक्षण रूप कार्य में गणेश द्वारा विघ्न करने पर क्रुद्ध कार्त्तिकेय द्वारा गणेश के दन्त का उच्छेद ), १.२४.४( कार्त्तिकेय / गुह द्वारा कहे गए स्त्री - पुरुषों के शुभाशुभ लक्षणों का वर्णन ), १.३९ ( कार्तिक मास में कार्त्तिकेय षष्ठी - व्रत की विधि व महिमा ),१.४६ (भाद्रपद मास की षष्ठी तिथि को कार्त्तिकेय पूजन की महिमा का वर्णन ), १.५७.१( कार्तिकेय हेतु फल बलि का उल्लेख ), १.१२४.१७ ( स्कन्द की दण्डनायक रूप से सूर्य के वाम भाग में स्थिति का उल्लेख ), १.१२४.२२ ( राज्ञ नामक द्वारपाल के कार्त्तिकेय का अवतार होने का उल्लेख ), ४.४२ ( मार्गशीर्ष मास की षष्ठी में कार्तिकेय पूजा विधि व महिमा ), भागवत ८.१०.२८ ( देवासुर संग्राम में कार्त्तिकेय / गुह द्वारा तारकासुर से युद्ध का उल्लेख ), १०.६३.७ ( कृष्ण - बाणासुर युद्ध में कार्त्तिकेय के प्रद्युम्न से युद्ध का उल्लेख ), मत्स्य ५.२७ ( कृत्तिकाओं की संतान होने से कार्त्तिकेय नाम प्राप्ति का उल्लेख ), १३.४५ ( कार्त्तिकेय तीर्थ में यशस्करी नाम से सती देवी के निवास का उल्लेख ), ५३.६०( नन्दी पुराण में कार्त्तिकेय द्वारा नन्दा के माहात्म्य कथन का उल्लेख ), १५९.३ ( स्कन्द, विशाख तथा षण्मुख आदि नामों से प्रसिद्ध कार्त्तिकेय का चैत्र कृष्ण अमावस्या को जन्म, चैत्र शुक्ल षष्ठी को देव सेनापति पद पर अभिषेक, देवताओं द्वारा कार्त्तिकेय को उपहार प्रदान, देवकृत स्तुति, कार्त्तिकेय द्वारा देव- कृत तारक वध का निवेदन स्वीकार करने का वृत्तान्त ), १६० ( तारकासुर और कुमार / कार्त्तिकेय का भीषण युद्ध तथा कुमार द्वारा तारक के वध का वृत्तान्त ), २६०.४५ ( कार्त्तिकेय की प्रतिमा के निर्माण में बारह, चार तथा दो भुजाओं से युक्त प्रतिमाओं के रूपों का वर्णन ), वा.रामायण १.३६+ ( कार्त्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग ), १.३७.२५ ( कृत्तिकाओं द्वारा नवजात कुमार को दुग्ध पान कराने पर देवों द्वारा कुमार की कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), वामन ५७ ( शिव - पार्वती , अग्नि , कुटिला देवी , शरवण तथा कृत्तिकाओं द्वारा कार्तिकेय की उत्पत्ति का वृत्तान्त, गुह नाम से शिव के, स्कन्द नाम से पार्वती के, महासेन नाम से अग्नि के, कुमार नाम से कुटिला के, शारद्वत नाम से शरवण के तथा कार्त्तिकेय नाम से कृत्तिकाओं के पुत्र होने का उल्लेख, देवों द्वारा कार्त्तिकेय का सेनापति पद पर अभिषेक, देवों द्वारा कार्त्तिकेय को प्रदत्त गणों के नाम ), ९०.१६ ( बर्हण तीर्थ में विष्णु का कार्तिकेय नाम से वास ), वराह २५ ( पुरुष रूप शिव तथा अव्यक्त रूप उमा के संयोग से अहंकार रूप कार्त्तिकेय की उत्पत्ति का कथन ; कार्त्तिकेय को सेनापति बनाने के लिए शिव द्वारा स्वदेह से शक्ति का सृजन करके कार्त्तिकेय को देना तथा खिलौने के रूप में कुक्कुट आदि देने का वर्णन ), १५१.६३ ( कार्त्तिकेय कुण्ड में स्नान व प्राण त्याग से ब्रह्म लोक में स्थिति का उल्लेख ), वायु ४१.३८ ( कार्त्तिकेय के षडानन, स्कन्द, गुह तथा कुमार आदि विभिन्न नामों के उल्लेख के साथ शरवण नामक उत्पत्ति स्थल, ध्वजापताका युक्त सिंहरथ स्थल, शक्ति मुंचन स्थल, अभिषेक स्थल तथा पाण्डुशिला नामक क्रीडास्थल का उल्लेख ), ७२.४३ ( कुमार उत्पत्ति प्रसंग में कृत्तिकाओं द्वारा पुष्ट होने के कारण कुमार की कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), १०९.१९ ( गया में स्थित कार्त्तिकेय लिङ्ग के रूप में स्वयं आदि गदाधर भगवान के विराजित होने का उल्लेख ), १११.५४ ( कार्त्तिकेय के चरणों में श्राद्ध सम्पन्न करने पर श्राद्धकर्त्ता द्वारा स्वपितरों को शिवलोक में पहुंचाने का उल्लेख ), विष्णु १.१५.११६ ( कृत्तिकाओं के पुत्र का कार्त्तिकेय नाम से उल्लेख ), ५.३३.२१ ( शौरी के साथ कार्त्तिकेय के युद्ध का उल्लेख ), ५.३३.२६ ( कृष्ण की हुंकार से अभिशप्त शक्ति वाले कार्त्तिकेय / गुह की अपक्रान्तता का उल्लेख ), शिव २.४.२ ( शिव रेतस को क्रमश: अग्नि, ६ मुनि - पत्नियों, हिमालय तथा गंगा द्वारा धारण करने पर अन्त में शरवण में कार्त्तिकेय की उत्पत्ति ), २.४.३ ( कार्त्तिकेय लीला वर्णन : बालक कुमार द्वारा विश्वामित्र से स्व - संस्कार सम्पन्न कराना, कृत्तिकाओं द्वारा बालक की पुष्टि हेतु स्तनपान कराने पर कुमार का षण्मुख बनकर कृत्तिकाओं को तुष्ट करना ), २.४.४ ( शिवा द्वारा शिव से भूमि पर स्खलित वीर्य के विषय में पूछने पर पृथ्वी, अग्नि, पर्वत, गंगा, वायु, सूर्य, चन्द्र, जल, सन्ध्या, रात्रि तथा दिन आदि देवों द्वारा कृत्तिकाओं के गृह में कार्त्तिकेय नाम से बालक के पुष्ट होने के वृत्तान्त का वर्णन, कार्त्तिकेय को लाने हेतु नन्दीश्वर को शिव पार्षदों के साथ कृत्तिकाओं के घर भेजना, कार्त्तिकेय - नन्दीश्वर संवाद, कार्त्तिकेय के शिवालय गमन का वृत्तान्त ), २.४.५ ( शिवालय पहुंचने पर कार्तिकेय के प्रति शिव - शिवा के वात्सल्य का वर्णन, विभिन्न देवों द्वारा कार्त्तिकेय को उपहार प्रदान, तारक वध हेतु शिव द्वारा कार्त्तिकेय का प्रेषण, देवों द्वारा सेनापति पद पर कार्त्तिकेय के अभिषेक का वृत्तान्त ), २.४.१० ( कार्त्तिकेय द्वारा तारकासुर के वध का वृत्तान्त ), २.४.११ ( क्रौञ्च नामक गिरि की प्रार्थना पर कुमार / कार्त्तिकेय द्वारा बाणासुर वध तथा नग - पुत्र कुमुद की प्रार्थना पर प्रलम्बासुर का वध, स्कन्द द्वारा तीन शिवलिंगों की स्थापना का उल्लेख ), २.४.२०.२२ ( गणेश के विवाह के संदर्भ में नारद द्वारा उकसाए जाने पर कार्त्तिकेय का क्रुद्ध होकर क्रौञ्च पर्वत पर गमन ; कार्तिक अमावास्या को पार्वती तथा पूर्णिमा को शिव का कार्त्तिकेय दर्शन हेतु गमन का उल्लेख ), स्कन्द ६.७० ( कार्त्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग ), ६.७१ ( ब्रह्मा द्वारा कार्त्तिकेय को शक्ति प्रदान, शक्ति से तारकासुर का वध, शक्ति मुञ्चन से पर्वत तथा नगर का कम्पित होना , कंपन द्वारा मृत द्विजों को स्कन्द द्वारा जीवन प्रदान तथा पर्वत को स्थायित्व प्रदान करना, नगर का स्कन्दपुर नाम धारण, स्कन्द का उसी नगर में वास तथा चैत्र शुक्ल षष्ठी को स्कन्द तथा शक्ति पूजन से रोगमुक्ति रूप फल का कथन ), ६.२६१.३४ ( कृत्तिकाओं के कहने से पार्वती द्वारा पुत्र ग्रहण ), ७.४.१७.१२ ( द्वारका के पूर्व द्वार पर कार्त्तिकेय की स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश २.१२६.२५ ( कार्त्तिकेय और कृष्ण के युद्ध में कार्त्तिकेय की पराजय, महादेव - प्रेषित कोटवी देवी द्वारा कार्त्तिकेय की रक्षा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.९७ ( शंकर - पार्वती, अग्नि, गंगा, शरस्तम्ब तथा कृत्तिकाओं द्वारा कार्त्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग ), १.९८ ( कार्त्तिकेय को सेनापतित्व पद प्राप्ति तथा देवों द्वारा आयुध प्रदान करने का वृत्तान्त ), १.९९ ( कार्त्तिकेय द्वारा तारकासुर वध का वृत्तान्त ), १.१०७ ( कार्त्तिकेय व गणेश विवाह हेतु शिव - पार्वती द्वारा पृथ्वी प्रदक्षिणा रूप शर्त के निर्धारण का वृत्तान्त ), १.१०८.३२ ( कार्तिकेय का क्रौंच पर्वत पर गमन व वास, कार्तिक स्वामी नाम से पूजित होने का उल्लेख ), १.४४१.९३ ( कार्त्तिकेय का चम्पक वृक्ष के रूप में अवतरण का उल्लेख ), कथासरित् ८.६.२३७ ( अग्निदत्त - प्रदत्त कार्तिक मन्त्र से गुणशर्मा द्वारा कार्त्तिकेय की आराधना करने का उल्लेख ) । kaartikeya/ kartikeya
कार्त्तिक्य मत्स्य १९९.५ ( कश्यप कुल के एक गोत्रकार ऋषि ) ।
कार्तिवीर्य वायु ९४.८ ( यदुवंशी राजा कनक के चार पुत्रों में से एक ) ।
कार्दमायनि मत्स्य १९५.३४,४३ ( भृगु वंशोत्पन्न एक ऋषि ) ।
कार्पट ब्रह्माण्ड २३.१४.३९ ( धर्म का अनुवर्तन न करने वाले नग्न संज्ञक लोगों में वृद्ध, श्रावकि, निर्ग्रन्थ, शाक्य, जीवक तथा कार्पटों का उल्लेख तथा श्राद्धकर्म में उपर्युक्त लोगों के अदर्शन का विधान ), कथासरित् ९.३ ( राजा लक्षदत्त व लब्धदत्त नामक कार्पटिक की कथा : पापों का क्षय होने पर ही लब्धदत्त कार्पटिक का लक्षदत्त - प्रदत्त रत्नों को पहचानना ) ।
कार्पास गरुड २.३०.१५(कार्पास दान से भूतों से भय न होने का उल्लेख), नारद १.११६.३० ( श्रावण शुक्ल सप्तमी में अव्यंग व्रत में कार्पास दान से कल्याण प्राप्ति का उल्लेख ), भविष्य ४.२०० ( पाप समूह के विनाश हेतु कार्पासाचल दान विधि का वर्णन ), मत्स्य ८८ ( कार्पासाचल दान की विधि व माहात्म्य का कथन ), विष्णु धर्मोत्तर ३.३४१.१७६ ( कार्पास निर्मित वस्त्रों के दान से स्वर्गलोक प्राप्ति का कथन ), शिव १.१६.४९ ( कार्तिक मास में रविवार के दिन कार्पास दान से कुष्ठ आदि के क्षय का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.२६.१४७ ( मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया को कार्पास दान का उल्लेख ), ५.३.९२.२३ ( महिषी दान प्रसंग में याम्य भाग में कार्पास पर्वत बनाने का उल्लेख ), ६.२७१.४३७( पालक द्विज/बक द्वारा कार्पास निर्मित हिमवान् दान से बकत्व से मुक्ति का कथन ), कथासरित् १८.५.२१२ ( मूलदेव के पुत्र द्वारा मूलदेव को सुप्तावस्था में ही खट्वा से उठाकर कार्पास के ढेर पर रख कर खट्वा चुराने का उल्लेख ) । kaarpaasa/ karpasa
कार्य ब्रह्माण्ड ३.४.१५.८ ( पितामह ब्रह्मा द्वारा ललिता देवी को कार्य कारणरूपिणी रूप से अभिहित करने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.८५ ( कार्यगुण : व्याकरण के उद्धार के हेतु कार्तिक मास के सूर्य का वेदशर्मा - पुत्र कार्यगुण बनना आदि ), योगवासिष्ठ ६.१.९५.१२ ( कार्य - कारण के अभाव का नाम अद्वैत ), ६.२.१०६ ( वसिष्ठ द्वारा दृश्य रूप कार्य तथा दृष्टा रूप कारण के अभिन्नत्व का निरूपण ), वायु ५.२१( कार्य - कारण से संसिद्ध ब्रह्मा के प्रादुर्भाव का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.४९.३४(कार्य की कारण रूप में कल्पना), लक्ष्मीनारायण ३.१५३ ( नक्षत्र, योगिनी, तिथि, योग, दशा, शकुन, स्थान, लग्न, घटिका आदि में कार्याकार्य फल - अफल का निरूपण ) । kaarya/ karya
कार्ष्णायन मत्स्य २०१.३५ ( गौर पराशर, नील पराशर, कृष्ण पराशर, श्वेत पराशर, श्याम पराशर तथा धूम्र पराशर रूप ६ प्रकार के पाराशरों में से कृष्ण पराशरों के वर्ग के एक ऋषि ) ।
कार्ष्णि गर्ग ७.१८ ( श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का नाम ), भागवत १०.७६.२८ ( श्रीकृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न का अपर नाम ), वायु ६९.१७२ (कार्ष्णेय : खशा की सात पुत्रियों में से तृतीय पुत्री कृष्णा से उत्पन्न राक्षसगण ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१११ ( श्रीकृष्ण - पत्नी कार्ष्ण्या के कृशोदर तथा शुभा नामक पुत्र - पुत्री युगल का उल्लेख ) । |