पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Kaamanaa - Kumaari) RADHA GUPTA, SUMAN AGARWAL & VIPIN KUMAR
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Puraanic contexts of words like Kaalakaa, Kaalakuuta, Kaalakeya, Kaalachakra, Kaalanjara, Kaalanaabha etc. are given here. कालक ब्रह्माण्ड २.३.६.३३ ( दनुवंशीय विजर के दो पुत्रों में से एक ), वामन ५७.६६ ( पूषा द्वारा स्कन्द को प्रदत्त कालक नामक महाबलशाली गण का उल्लेख ), वायु ६८.३३ ( विरक्ष के दो पुत्रों में से एक, दनु वंश ) ।
कालकर्ण लक्ष्मीनारायण २.५७.७५ ( कालकर्ण नामक यमदूत द्वारा तुष्क दैत्य के वध का उल्लेख ) ।
कालकल्प पद्म ७.७.२० ( रत्नाकर वैश्य के महापापी भृत्य कालकल्प द्वारा दण्ड से वृषभ को ताडित करना, ताडन से क्रुद्ध हुए वृषभ द्वारा विषाणों / शृङ्गों से कालकल्प को विदारित करना, मृतप्राय कालकल्प को देखकर धर्मस्व नामक धार्मिक द्वारा कालकल्प के ऊपर गंगाजल का सिंचन, गंगाजल सिंचन से महापापी कालकल्प के पापों का नष्ट होना, विष्णुदूतों द्वारा कालकल्प को विष्णुलोक ले जाने का वृत्तान्त ) ।
कालका पद्म १.६.५५ ( वैश्वानर की दो पुत्रियों में से एक, कालका व मारीच से कालखञ्जों की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ६.६.३३ ( दनु - पुत्र वैश्वानर की चार कन्याओं में से चतुर्थ कन्या कालका का कश्यप प्रजापति की पत्नी तथा कालकेयों की माता होने का उल्लेख ), मत्स्य ६.२२ ( वैश्वानर - पुत्री, मारीच - पत्नी, कालकेय - माता ), वा.रामायण ३.१४.११, १६ ( दक्ष प्रजापति - कन्या, कश्यप - पत्नी, नरक तथा कालक नामक पुत्रों की माता ), विष्णु १.२१.८ ( वैश्वानर - पुत्री, मरीचि - पुत्र कश्यप - पत्नी, कालकेय - माता ) । kaalakaa
कालकाक्ष गरुड १.८७.४० ( नवम दक्षसावर्णि मन्वन्तर में पद्मनाभ द्वारा कालकाक्ष असुर के वध का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१८४.६ ( वही), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.५५,६० ( कालकाक्षक : नवम दक्षसावर्णि मन्वन्तर में कालकाक्षक दैत्य के वध हेतु श्रीहरि द्वारा पद्मनाभ अवतार ग्रहण का उल्लेख ) ।
कालकाम मत्स्य २०३.१३ ( विश्वा के दस विश्वेदेव पुत्रों में से एक, धर्म देव वंश ) ।
कालकूट गणेश १.४३.२ ( त्रिपुर - शिव युद्ध में भ्रूशुण्डि का कालकूट से युद्ध ), ब्रह्माण्ड १.२.२५.६० ( समुद्र मन्थन से उत्पन्न विष की कालानल और कालकूट नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), २.३.२५.९ ( कालकूट विपाशी : परशुराम - कृत शिवस्तुति में शिव का एक नाम ), ३.४.२३.३० ( तक्षक, कर्कोटक आदि नानाविध सर्पों द्वारा स्वमुखों से छोडे गए दारद, वत्सनाभ आदि नानाविध विषों में कालकूट विष का उल्लेख ), मत्स्य २५०.२१ ( विष्णु के पूछने पर कालकूट विष द्वारा समुद्रमन्थन से स्व उत्पत्ति प्रयोजन को निवेदित करने का वृत्तान्त ), वायु ५४.६३ ( ब्रह्मा द्वारा समुद्र - मन्थन से उत्पन्न कालकूट विष के वेग को सहन करने में अपनी व विष्णु की असमर्थता तथा शिव के सामर्थ्य का उल्लेख ), वायु ६९.२९९/२.८.२९१(परिवृत्ता-सन्तान) । kaalakuta/ kaalakuuta/ kalkuta
कालकेतु देवीभागवत ६.२२.५ ( कालकेतु दानव द्वारा रैभ्य - पुत्री एकावली का हरण, हैहयराज एकवीर द्वारा कालकेतु का वध ) ।
कालकेय देवीभागवत ९.२२.५ (शंखचूड - सेनानी कालकेय के साथ कुबेर के युद्ध का उल्लेख ), पद्म १.१९.६१ ( कालेय प्रभृति दानवगणों द्वारा देवों को त्रास , इन्द्र द्वारा वृत्रासुर के वधोपरान्त कालेयों का समुद्र में छिपना , देवों की प्रार्थना पर अगस्त्य द्वारा समुद्र पान, कालकेयों के वध का वृत्तान्त ), १.६५.९९ ( चित्ररथ द्वारा हिरण्याक्ष - सेनानी कालकेय के वध का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.६.२७ ( कालका के पुत्रों की कालकेय नाम से प्रसिद्धि तथा सव्यसाची द्वारा कालेयों के वध का उल्लेख ), २.३.७.२५५ ( रावण द्वारा कालकेयों को परास्त करने का उल्लेख ), मत्स्य १७१.५९ ( काला से कालकेय नामक असुरों और राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख ), वा.रामायण ७.१२.२ (रावण द्वारा कालकेय विद्युज्जिह्व से स्वभगिनी शूर्पणखा का विवाह करने का उल्लेख ), ७.२३.१७ ( रावण द्वारा कालकेय दानवोंके संहार का उल्लेख ), वायु ४०.१५ ( मर्यादा पर्वत पर कालकेय नामक असुरों के सुनास नामक नगर की स्थिति का उल्लेख ), विष्णु १.२१.९ ( मारीच व कालका - पुत्र, दनु वंश ), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.१ ( दैत्यरूपी सागर में कालकेय दैत्य की महाजल से समता का उल्लेख ), शिव २.५.३६.९ ( शंखचूड - सेनानी, देव - दानव युद्ध में कालकेय दानव के कुबेर से युद्ध का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.३४७ ( व्याघ्र रूप धारी विष्णु द्वारा कालकेय दैत्यों का भक्षण, भक्षण से अवशिष्ट तथा समुद्र में प्रविष्ट दैत्यों के वधार्थ अगस्त्य ऋषि द्वारा समुद्र के शोषण का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४०( शङ्खचूड - सेनानी, यक्षराज से युद्ध ) । kaalakeya/ kalkeya
कालकेली स्कन्द ५.२.४८.५ ( ब्रह्मा के दक्षिण नयन के अश्रुओं से कालकेलि दानव की उत्पत्ति , अभयेश्वर लिङ्ग द्वारा ब्रह्मा व विष्णु को कालकेलि से अभय प्रदान ) ।
कालकोप कथासरित् ८.५.७० ( दामोदर की पत्नी में शनैश्चर से उत्पन्न कालकोप नामक विद्याधरराज के प्रभास के साथ युद्ध का उल्लेख ) ।
कालकम्पन स्कन्द ४.२.७४.५४ ( कालकम्पन गण द्वारा पूर्व दिशा से अविमुक्त क्षेत्र की रक्षा करने का उल्लेख ), कथासरित् ८.४.७८ ( विद्याधरराज कालकम्पन द्वारा प्रकम्पन आदि अनेक योद्धाओं के वध का उल्लेख ), ८.५.२० ( राजा सूर्यप्रभ के १५ महारथियों में से एक, सूर्यप्रभ तथा श्रुतशर्मा के १५ - १५ महारथियों के द्वन्द्व युद्ध में दानव कालकम्पन के तेज:प्रभ के साथ युद्ध का उल्लेख ) । kaalakampana/ kalkampana
कालखञ्ज विष्णुधर्मोत्तर १.२२३.२ (पाताल में प्रवेश कर रावण का कालखञ्ज, कालकेय तथा निवातकवच दैत्यों से युद्ध ), शिव ५.३२.३२ ( कश्यप के दानव पुत्र गणों में पौलोम व कालखञ्ज का उल्लेख ) ।
कालचक्षु ब्रह्माण्ड २.३.७४.१३ ( ययाति व शर्मिष्ठा - पुत्र अनु के तीन पुत्रों में से एक ) ।
कालचक्र ब्रह्माण्ड २.३.७.२३५ (राजा बालि के सात द्वीपों में स्थित प्रधान वानरों में से एक ), ३.४.३२.७, २० ( कालचक्र रूपी आसन पर महाकाल की स्थिति का उल्लेख ), भागवत ५.२२.२ ( नक्षत्र तथा राशियों से उपलक्षित कालचक्र में सूर्य की गति का उल्लेख ), ५.२३.३ ( कालचक्र पर स्थित ग्रहों तथा नक्षत्रों के कल्प पर्यन्त भ्रमण का उल्लेख ), मत्स्य १६२.१९ ( हिरण्यकशिपु द्वारा कालचक्र आदि दिव्यास्त्रों का नृसिंहरूपधारी विष्णु पर प्रक्षेपण का उल्लेख ), कथासरित् ८.५.२३ (सूर्यप्रभ और श्रुतशर्मा के १५ -१५ महारथियों के द्वन्द्व युद्ध में कालचक्र नामक असुर के सुरोषण के साथ युद्ध का उल्लेख ) । kaalachakra/ kalchakra
कालजंघिका मत्स्य १७९.२३ (अन्धकासुर युद्ध में महादेव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में कालजंघिका का उल्लेख ) ।
कालजित् पद्म ५.१०.१६ ( लक्ष्मण की आज्ञा से सेनानी कालजित् द्वारा अश्वमेध यज्ञ हेतु अश्व की सज्जा का उल्लेख ), ५.६०.६ ( शत्रुघ्न की आज्ञा से सेनानी कालजित् का सेना सहित प्रस्थान, कालजित् का लव को समझाना, लव से युद्ध व कालजित की मृत्यु का वृत्तान्त ) ।
कालजिह्व ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७६ ( कालजिह्वा : ५१ वर्णों की शक्तियों में से एक शक्ति का नाम ), कथासरित् १२.५.३५ ( वासुकि के शापवश नागराज गन्धमाली का कालजिह्व नामक यक्ष से पराजित होने तथा दास बनने का उल्लेख ), १२.५.५९ ( विनीतमति के भय से कालजिह्व यक्ष के शरणागत होने तथा गन्धमाली को दासत्व से मुक्त करने का उल्लेख ), १५.२.३४ ( कलावती - पिता ) । kaalajihva
कालञ्ज विष्णु २.२.३० ( मेरु के उत्तर में कालञ्ज प्रभृति केसर पर्वतों की स्थिति का उल्लेख ) ।
कालञ्जर कूर्म २.३६.११ ( कालञ्जर तीर्थ माहात्म्य : रुद्र द्वारा राजा श्वेत को पाशबद्ध करने वाले काल के वध व पुनर्जीवित करने का वर्णन ), पद्म २.९१.४० ( विदुर, चन्द्रशर्मा, वेदशर्मा, वंजुल नामक चार पापियों के कालञ्जर पर्वत पर जाने का उल्लेख - सामर्थ्यं नास्ति तीर्थानां महापातकनाशने । विदुराद्यास्ततस्ते तु गताः कालंजरं गिरिम् । ), २.९२ ( कालंजर पर्वत पर दुःखपूर्वक वास करते हुए पापियों को किसी सिद्ध द्वारा मुक्ति उपाय का कथन - अमासोमसमायोगे प्रयागः पुष्करश्च यः । अर्घतीर्थं तृतीयं तु वाराणसी चतुर्थका ।। ), ब्रह्म १.१६.३६( मेरु के उत्तर में स्थित केसराचलों में से एक ), २.७६ ( ययाति - पुत्र पुरु द्वारा गौतमी के दक्षिण तट पर तप, तप से प्रसन्न शिव द्वारा पुरु को जरा से मुक्ति व भ्राताओं की शाप से मुक्ति का वरदान, उपरोक्त स्थल की यायात तीर्थ के रूप में प्रसिद्धि, कालंजर शिव का वास होने से यायात तीर्थ की ही कालंजर तीर्थ के नाम से ख्याति ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.१०० ( योगेश्वर की नित्य स्थिति से कालञ्जर तीर्थ में प्रदत्त श्राद्ध के अक्षय होने का उल्लेख - कालञ्जरे दशार्णायां नैमिषे कुरुजाङ्गले ॥..तत्र योगेश्वरो नित्यं तस्यां दत्तमथाक्षयम् ॥), भागवत ५.८.३० ( कालञ्जर पर्वत पर मृगरूप में उत्पन्न भरत के शालग्राम तीर्थ में आने का उल्लेख - इत्येवं निगूढनिर्वेदो विसृज्य मृगीं मातरं पुनर्भगवत्क्षेत्रमुपशमशीलमुनिगणदयितं शालग्रामं पुलस्त्यपुलहाश्रमं कालञ्जरात्प्रत्याजगाम।.. ), ५.१६.२६ ( मेरु के मूलदेश के चारों ओर कालंजर प्रभृति बीस पर्वतों की स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १३.३२ ( सती देवी की कालञ्जर पर्वत पर काली रूप से स्थिति का उल्लेख - रुद्रकोट्याञ्च रुद्राणी काली कालञ्जरे गिरौ॥ ), २०.१५, २१.९ -२८ ( कौशिक - पुत्रों का कालञ्जर पर्वत पर मृग योनि में उत्पन्न होने तथा जातिस्मर बने रहने का उल्लेख - ये विप्रमुख्याः कुरुजाङ्गलेषु दासास्तथा दासपुरे मृगाश्च। कालञ्जरे सप्त च चक्रवाका ये मानसे ते वयमत्र सिद्धाः।। ), महाभारत वन ८५.५३(मेधाविक तीर्थ का लोकविख्यात पर्वत, जहां देवह्रद में स्नान से सहस्र गोदान का फल मिलता है - अत्र कालञ्जरं गत्वा पर्वतं लोकविश्रुतम्। तत्र देवह्रदे स्नात्वा गोसहस्रफलं लभेत् ।।), अनु २५.३५(गङ्गायमुनयोस्तीर्थे तथा कालञ्जरे गिरौ। दशाश्वमेधानाप्नोति तत्र मासं कृतोदकः।।), वराह १७५.७ ( कालञ्जर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : दर्शन मात्र से कृष्ण गंगा के फल की प्राप्ति - कालञ्जरे महादेवं तत्र तीर्थपतिं शिवम्।। यस्य सन्दर्शनादेव कृष्णगंगाफलं भवेत् ।। ), वामन ६.५५ ( कुबेर - पुत्र पाञ्चालिक नामक यक्ष के कालञ्जर के उत्तर में परम पवित्र स्थान पर स्थित होने का उल्लेख - इत्येवमुक्तो विभुना स यक्षो जगाम देशान् सहसैव सर्वान्। कालञ्जरस्योत्तरतः सुपुण्यो देशो हिमाद्रेरपि दक्षिणस्थः।। ), ७६.२५ ( इन्द्र के कहने से पुलिन्दों का हिमालय तथा कालिञ्जर पर्वतों के बीच की भूमि में निवास करने का उल्लेख - प्रोवाच तान् भीषणकर्मकारान् नाम्ना पुलिन्दान् मम पापसंभवाः। वसध्वमेवान्तरमद्रिमुख्ययोर्हिमाद्रिकालिञ्जरयोः पुलिन्दाः।। ), ९०.२७ ( कालञ्जर में विष्णु का नीलकण्ठ नाम - कालिञ्जरे नीलकण्ठं सरय्वां शंभुमुत्तमम्। ), वायु २३.२०४(२३.१९१) ( २३वें द्वापर में भगवान् विष्णु के श्वेत नामक मुनि - पुत्र के रूप में अवतार लेकर पर्वतश्रेष्ठ पर कालयापन करने से उस पर्वत की कालञ्जर नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख - श्वेतो नाम महाकायो मुनिपुत्रः सुधार्मिकः ।। तत्र कालञ्जरिष्यामि तदा गिरिवरोत्तमे। ), शिव ३.५.३३ ( २३वें द्वापर में कालञ्जर पर्वत पर शिव द्वारा श्वेत नाम से अवतार ग्रहण का उल्लेख - परिवर्ते त्रयोविंशे तृणबिन्दुर्यदा मुनिः ।। श्वेतो नाम तदाहं वै गिरौ कालंजरे शुभे ।। ), स्कन्द ५.३.१९८.७० ( कालञ्जर तीर्थ में उमा की काली नाम से स्थिति का उल्लेख - रुद्रकोट्यां तु कल्याणी काली कालञ्जरे तथा । ), ७.१.१०.५(कालिञ्जर तीर्थ का वर्गीकरण – पृथिवी - कालिंजरं वनं चैव शंकुकर्णं स्थलेश्वरम् ॥ शूलेश्वरं च विख्यातं पृथ्वीतत्त्वे च संस्थितम् ॥), हरिवंश १.२१.२४ ( कौशिक - पुत्रों का अन्य जन्म में मृग योनि में उत्पन्न होकर कालंजर पर्वत पर वास का उल्लेख - शुभेन कर्मणा तेन जाता जातिस्मरा मृगाः । त्रासानुत्पाद्य संविग्ना रम्ये कालञ्जरे गिरौ ।।), कथासरित् ८.५.४२ ( कालंजर पर्वताधिपति विद्युत्प्रभ के प्रभास से युद्ध का उल्लेख - ततो विद्युत्प्रभो नाम कालञ्जरगिरीश्वरः । प्रभासमभ्यधावत्तं क्रुधा विद्याधराधिपः ।। ), १६.१.७० ( शाश्वत पद की प्राप्ति हेतु वत्सराज उदयन के कालञ्जर पर्वत पर गमन का उल्लेख - तस्मात्कालंजरगिरौ गत्वा देहमशाश्वतम् । त्यक्त्वेमं साधयाम्यत्र यथोक्तं शाश्वतं पदम् ।। ) । kaalanjara/ kalanjara
कालतोयक ब्रह्माण्ड १.२.१६.४६ ( भारत के उत्तर का एक देश ), २.३.७४.१९६ ( मणिधान्यज वंश के राजाओं द्वारा कालतोयक आदि जनपदों में राज्य करने का उल्लेख ), मत्स्य ११४.४० ( कालतोयक नामक स्थान का भारतवर्ष के उत्तरापथ के क्षत्रिय उपनिवेश के रूप में उल्लेख ), वायु ९१.७४ ( कालतोपक : मणिधान्यज राजाओं द्वारा उपभुक्त अनेक जनपदों में कालतोपक का उल्लेख ) ।
कालदंष्ट्र मत्स्य ६१.४ ( अग्नि द्वारा सहस्रों दानवों को भस्म कर दिए जाने पर कालदंष्ट्र प्रभृति प्रधान दानवों का रणभूमि से पलायन कर समुद्र में छिपकर रहने का उल्लेख ) ।
कालनर भागवत ९.२३.१ ( सभानर - पुत्र, सृंजय - पिता ), वायु ९९.१३ (कालानल :सभानर - पुत्र,सृंजय - पिता ) ।
कालनाभ गर्ग ७.३२.११ ( हिण्याक्ष दैत्य के नौ पुत्रों में से एक ), ७.३५ ( हिरण्याक्ष - पुत्र, शूकर वाहन, साम्ब द्वारा वध ), ब्रह्माण्ड २.३.५.३० ( हिरण्याक्ष के पांच महाबली पुत्रों में से एक ), २.३.६.२० ( विप्रचित्ति व सिंहिका के १४ पुत्रों में से एक, सैंहिकेय नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), भागवत ७.२.१८ ( हिरण्याक्ष की मृत्यु हो जाने पर हिरण्यकशिपु द्वारा कालनाभ, महानाभ आदि भ्रातृ - पुत्रों को सान्त्वना देने का उल्लेख ), ८.१०.२९ ( देवासुर संग्राम में कालनाभ के यमराज के साथ द्वन्द्व युद्ध का उल्लेख ), वायु ६७.६७ ( हिरण्याक्ष के पांच पुत्रों में से एक ), ६८.१९ ( सिंहिका व विप्रचित्ति के सैंहिकेय संज्ञक १४ पुत्रों में से एक ), विष्णु १.२१.३ ( हिरण्याक्ष - पुत्र, दनु वंश ), १.२१.१२ ( सिंहिका व विप्रचित्ति - पुत्र, दनु वंश ), शिव ५.३२.२५ ( हिरण्याक्ष के ५ पुत्रों में से एक, दिति वंश ), ५.३२.३६ ( सिंहिका व विप्रचित्ति के १३ पुत्रों में से एक, दनु वंश ), स्कन्द १.२.६०.४८ ( गुह्यकाधिपति कालनाभ के घटोत्कच रूप में अवतरण का उल्लेख ) । kaalanaabha/ kalnabha |