पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Gangaa - Goritambharaa) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Gaja, Gaja-Graaha/elephant-crocodile, Gajaanana, Gajaasura, Gajendra, Gana etc. are given here. Esoteric aspect of story of Gaja - Graaha(elephant - crocodile) Festival associated with story of Gaja - Graaha There is the Konhara Ghat in Sonepur where the temple of Hariharnath is located. Konhara comes from 'Kaun Hara ?" ( Who lost ?) referring to the battle of Gaj & Graah. - Yashendra गजकर्ण गणेश १.९२.१९ ( गुह्यकादि द्वारा गजकर्ण नाम से गणेश की आराधना ), २.८५.२९ ( गजकर्ण गणेश से वायव्य दिशा में रक्षा की प्रार्थना ), मत्स्य २२.३८ ( गजकर्ण नामक पितृतीर्थ में किए गए श्राद्ध की प्रशस्तता का उल्लेख ), वायु ५०.३१ ( चतुर्थ रसातल में गजकर्ण नामक दैत्य के नगर का उल्लेख ), ११५.५५ (गयान्तर्गत गजकर्ण तीर्थ में तर्पण से पितरों के ब्रह्मलोक गमन का उल्लेख ) । gajakarna
गज - ग्राह गर्ग ६.११ ( कुबेर - मन्त्रियों पार्श्वमौलि व घण्टानाद को विप्र शाप से गज व ग्राह योनि की प्राप्ति, गोमती नदी में गज व ग्राह का युद्ध, विष्णु द्वारा उद्धार से स्व - स्वरूप की प्राप्ति का वृत्तान्त ), भागवत ८२+ ( ग्राह द्वारा गजेन्द्र का बन्धन, गजेन्द्र द्वारा भगवद् - स्तुति, श्रीहरि द्वारा ग्राह का वध , गज और ग्राह के पूर्व चरित्र तथा उद्धार का वर्णन ), वराह १४४.१४१ ( कर्दम - पुत्रों जय तथा विजय का परस्पर शापवश गज व ग्राह बनना, गज व ग्राह का परस्पर युद्ध, विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से ग्राह मुख को फाडना, त्रिवेणी क्षेत्र की महिमा का प्रसंग ), वामन ८४.१९ ( त्रिकूट गिरि पर स्थित सरोवर में ग्राह द्वारा गजेन्द्र का बन्धन, गजेन्द्र द्वारा विष्णु की स्तुति, गज - ग्राह के उद्धार का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९३ ( देवल मुनि के शाप से हाहा, हूहू गन्धर्वों को गज व नक्री योनि की प्राप्ति तथा शाप मोचन ), १.१९४ ( ग्राह द्वारा गज का बन्धन, गज द्वारा विष्णु की स्तुति, प्रसन्न विष्णु द्वारा गज का मोक्षण, ग्राह तथा गज द्वारा शाप मुक्त होकर गन्धर्व रूप की प्राप्ति करने का वर्णन ), स्कन्द २.४.२८.१२ ( जय - विजय का परस्पर शापवश गज - ग्राह बनना, गण्डकी में स्नान करते हुए गज का ग्राह द्वारा बन्धन, विष्णु चक्र से गज - ग्राह का उद्धार ), लक्ष्मीनारायण १.३४०.७७ ( श्रीहरि द्वारा गज - ग्राह की मुक्ति का उल्लेख ), १.३४१.२९ ( जय व विजय का परस्पर शापवश गज व ग्राह बनना, श्रीहरि द्वारा गज - ग्राह के मोक्ष की कथा ), १.३७३.१४२( जय - विजय का क्रमश: तृणबिन्दु - सुत व गज - ग्राह बनने का उल्लेख ) । gaja - graaha Esoteric aspect of story of Gaja - Graaha(elephant - crocodile) Festival associated with story of Gaja - Graaha There is the Konhara Ghat in Sonepur where the temple of Hariharnath is located. Konhara comes from 'Kaun Hara ?" ( Who lost ?) referring to the battle of Gaj & Graah.
गजच्छाया मत्स्य १७.३ ( गजच्छाया नामक योग में श्राद्ध के अक्षय फलदायक होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.८५.८६ (गजच्छाया आदि काल में सङ्गम में स्नान की महिमा ), ५.३.९०.११५ (गजच्छाया / कुञ्जरछाया आदि काल में तिलधेनु दान का माहात्म्य ) ।
गजतुण्ड मत्स्य १८३.६३ ( अविमुक्त क्षेत्र में गजतुण्ड प्रभृति गणों के विराजमान होने का उल्लेख ) ।
गर्जन्त अग्नि ३४१.१८ ( संयुत कर के १३ प्रकारों में से एक ) ।
गजपति भविष्य ३.३.३२.९३ ( पृथ्वीराज - सेनापति गजपति का नेत्रसिंह से युद्ध ), कथासरित् ७.४.४ (पाटलिपुत्रस्थ विक्रमादित्य राजा के दो परमप्रिय मित्रों में से एक ) ।
गजमुक्ता भविष्य ३.३.१६४ ( अग्निदेव की कृपा से गजसेन विप्र को गजमुक्ता नामक कन्या की प्राप्ति, गजमुक्ता व बलखानि के विवाह का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.४८८.३९( गजमुक्ता के नाक का दुर्लभ आभूषण होने का उल्लेख ) ।
गजवक्त्र नारद १.६६.१२६( गजवक्त्र की शक्ति कामिनी का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६६ ( ५१ वर्णों के गणेश नामों में से एक ), वराह १७.६८ ( पृथिवी आदि गुणों के गजवक्त्र होने का उल्लेख ), २३.१८ ( रुद्र हास्य से गणपति की उत्पत्ति, गणपति के शोभन, मोहन रूप को देखकर गजवक्त्र होने का शाप प्रदान ) ।
गजशैल वायु ३९.४७ ( गजशैल पर्वत पर रुद्रों के निवास स्थान का उल्लेख ) ।
गजसा वा.रामायण ४.१४.८ ( बाली - सुग्रीव युद्ध से पूर्व लक्ष्मण द्वारा गजसा नामक लता को सुग्रीव के कण्ठ में डालने का उल्लेख ) ।
गजसाह्वय भागवत १.४.६ ( हस्तिनापुर का एक नाम ), मत्स्य ४९.४२ (बृहत्क्षत्र - पुत्र हस्ती द्वारा गजसाह्वय / हस्तिनापुर नगर को बसाने का उल्लेख ) ।
गजसेन भविष्य ३.३.१६.२ ( गजसेन द्वारा अग्नि की आराधना से गजमुक्ता कन्या की प्राप्ति, कन्या के बलखानि से विवाह का वृत्तान्त ) ।
गजाग्नि भविष्य २.१.१७.१४ ( गजाग्नि के मन्दर नाम का उल्लेख ) ।
गजानन गणेश २.१.२० ( द्वापर में गणेश का नाम, आखु वाहन ), २.१७.८ ( भ्रूशुण्डि मुनि द्वारा गजानन नामक गणेश की भक्ति का वृत्तान्त ), २.१७.२५ ( गजानन के स्वरूप का वर्णन ), २.७८.४२ ( द्वापर में आखु - आरूढ चतुर्बाहु गणेश का नाम ), २.८५.२० ( गजानन गणेश से ओष्ठ - द्वय की रक्षा की प्रार्थना ), २.१२९.१२ ( देवों द्वारा सिन्दूर दैत्य से उद्धार के लिए गजानन से जन्म लेने की प्रार्थना, गजानन का जन्म ), २.१३३.११ ( वरेण्य द्वारा बालक गजानन का जङ्गल में त्याग, पराशर मुनि द्वारा ग्रहण करना ), २.१३४.२७ ( गजानन द्वारा मूषक को पाशबद्ध करके वाहन बनाना ), २.१३७.२२ ( गजानन द्वारा सिन्दूर दैत्य का मर्दन द्वारा वध ), ब्रह्माण्ड २.३.४१.५४ ( शिव मन्दिर में प्रवेश से रोकने पर परशुराम द्वारा परशु क्षेपण, गजानन द्वारा ग्रहण करने का कथन ), २.३.४२.३५ ( गज - शिर से संयोजित होने पर गणेश के गजानन नाम धारण का उल्लेख ), २.३.४२.४४ ( गजानन की अग्रपूज्यता से सर्वकार्य सिद्धि का उल्लेख ), ३.४.२७.७२ ( ललिता द्वारा सृष्ट गजानन द्वारा भण्डासुर -निर्मित जयविघ्न महायन्त्र के नाश का कथन ), मत्स्य १५४.५०५( पार्वती के शरीर मल से उत्पत्ति, पितामह द्वारा विनायकाधिपत्य प्रदान करना ), वामन ५४.५८ ( शैल - पुत्री पार्वती द्वारा स्वेद - मल से गजानन को बनाने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.२७.५ ( पार्वती के उद्वर्तन मल से गजानन की उत्पत्ति, देवों की सहायता हेतु शिव द्वारा विघ्नकर्त्ता गजानन को देवों को प्रदान करना ), १.३.२२.४३ ( पाटल फल प्राप्ति हेतु गजानन द्वारा शोणाद्रि रूपी पिता की प्रदक्षिणा तथा स्कन्द द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा का उल्लेख ) । gajaanana/ gajanana
गजानना स्कन्द ४.१.४५.३४ ( ६४ योगिनियों में से एक ) ।
गजासुर ब्रह्माण्ड ३.४.२७.९८ ( गणेश द्वारा भण्डासुर - सेनानी गजासुर का वध ), मत्स्य (गजासुर विनाशक रूप में शिव का उल्लेख ),१५३.३५ ( गजासुर दानव द्वारा देव सेना का संहार, रुद्रों द्वारा गजासुर पर प्रहार, गजासुर के वध का वर्णन ), शिव २.५.५७ ( महिषासुर - पुत्र गजासुर द्वारा दारुण तप, ब्रह्मा द्वारा अवध्यता रूप वर प्रदान करना, शिव द्वारा कृत्ति ग्रहण तथा कृत्तिवासेश्वर नाम धारण का वर्णन ), स्कन्द ४.२.६८ ( महिषासुर - पुत्र, शिव से युद्ध, शिव द्वारा गजासुर के चर्म को धारण कर कृत्तिवासेश्वर बनने का वृत्तान्त ) । gajaasura
गजेन्द्र नारद १.६६.१२८( गजेन्द्र की शक्ति कामरूपिणी का उल्लेख ), मत्स्य २५१.३ ( समुद्र मन्थन से गजेन्द्र का प्राकट्य, सहस्राक्ष द्वारा ग्रहण का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६७ ( गजेन्द्रास्य : ५१ वर्णों के गणेश नामों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.९( अङ्ग देशों में गजेन्द्रमोक्ष देव की पूजा का निर्देश ) । gajendra
गण गणेश १.३८.१८ ( गृत्समद द्वारा स्वपुत्र को गणानां त्वा इत्यादि मन्त्र की दीक्षा, पुत्र द्वारा त्रिपुर संज्ञा प्राप्ति - त्रिपुरेति च ते नाम ख्यातिं लोके गमिष्यति ।। ), १.९२.२३ ( पक्षियों द्वारा गणाधिप नाम से गणेश की पूजा - सर्वैः पक्षिगणैर्मूर्तिः स्थापिता रत्नकांचनी। गणाधिपेति नाम्ना तैः पूजिता च नमस्कृता ॥ ), १.९२.२५ ( जलाशयों द्वारा गणाध्यक्ष नाम से गणेश की पूजा - सर्वैर्जलाशयैरेका प्रतिमा स्थापिता शुभा। गणाध्यक्षेति नाम्ना सा पूजिता परमोत्सवैः ॥ ), २.८५.२३ ( गणनाथ गणेश से हृदय की रक्षा की प्रार्थना - हृदयं गणनाथस्तु हेरम्बो जठरं महान् । ), २.८५.२९ ( गणेश्वर गण से नैर्ऋत् दिशा में रक्षा की प्रार्थना - दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैर्ऋत्यां तु गणेश्वरः ।), २.१०६.४२ ( शिव गणों द्वारा गणेश को पकडने में असफलता, गणेश को गणपति पद की प्राप्ति ), पद्म ६.१३८ ( बकुला सङ्गम तथा चंदना तट पर गण तीर्थ के माहात्म्य का कथन - गणतीर्थे नरः स्नात्वा कृष्णाष्टम्यामुपोषितः । बकुलासंगमे स्नात्वा स्वर्गं गच्छति मानवः । ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१२७ ( हैहयों द्वारा यवन, पारद, काम्बोज, पह्लव तथा शक नामक पांच गणों के साथ बाहु राजा के राज्य के हरण का उल्लेख - हैहयैस्तालजङ्घैश्च शकैः सार्द्धं समागतैः ॥ यवनाः पारदाश्चैव कांबोजाः पह्लवास्तथा । ), २.३.७.२० ( अप्सराओं के १४ गणों का उल्लेख ), भागवत १२.१०.१४ ( पार्वती व शिव - गणों के साथ शिव की पूजा का उल्लेख - नेत्रे उन्मील्य ददृशे सगणं सोमयाऽऽगतम् । रुद्रं त्रिलोकैकगुरुं ननाम शिरसा मुनिः ॥ ), मत्स्य ६.४४ ( कश्यप व सुरभि से रुर गण की उत्पत्ति, कश्यप व मुनि से मुनि गण तथा अप्सरा गण की उत्पत्ति का उल्लेख ), २२.७३ ( पितरों के श्राद्धार्थ प्रशस्त तीर्थों में से एक - तथा च बदरी तीर्थं गणतीर्थं तथैव च। ), ५२.२१ ( वासुदेव की विभूतियों में ११ गणाधिपों/रुद्रों का उल्लेख - अष्टौ च वसवस्तद्वदेकादशगणाधिपाः।), शिव २.४.१३+ ( शिवा द्वारा स्व - पुत्र गणेश की द्वारपाल रूप में नियुक्ति, गणेश के शिव गणों से विवाद का वर्णन ), २.५.९.४२ ( त्रिपुर वध हेतु स्व गणों के साथ शिव यात्रा का वर्णन ), स्कन्द १.२.१३.१६३( शतरुद्रिय प्रसंग में गणों द्वारा रुद्र नाम से मूर्तिमय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख - गणा मूर्तिमयं लिंगं नाम रुद्रेति चाब्रुवन्॥), ४.२.९७.२३१ ( गणेश्वरेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - गणेश्वरेश्वरं लिंगं सर्वसिद्धिकरं परम् ।। हत्वा लंकेश्वरं विप्र रघुणाथ प्रतिष्ठितम् ।। ), योगवासिष्ठ ६.१.६४ ( जीवट ब्राह्मणादि को गणत्व प्राप्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.८५.३( दिवोदास के राज्य में छिद्रान्वेषण हेतु शिव द्वारा गणों का प्रेषण ; गणों के नाम ), ३.४५.२३ (गणिकाओं द्वारा गण लोक प्राप्ति का उल्लेख - गणिका गणलोकाँश्च प्रयान्ति कर्मवेदिनाम् ।) ; द्र. शिवगण । gana गण आधुनिक ठोस अवस्था भौतिक विज्ञान के संदर्भ में, परमाणुओं के परित: इलेक्ट्रान कईं चक्र विशेषों में गति करते रहते हैं। इन चक्रों में सबसे बाहरी चक्र के इलेक्ट्रानों पर परमाणु की नाभि में स्थित कणों का आकर्षण सबसे कम होता है और यदि एक ठोस पदार्थ का निर्माण करने के लिए परमाणुओं को परस्पर निकट लाया जाए तो उनके सबसे बाहरी चक्र परस्पर अतिव्यापन करते हैं। इस अतिव्यापन का परिणाम यह होता है कि इस चक्र में स्थित इलेक्ट्रानों की कोई एक ऊर्जा विशेष नहीं होती, अपितु इनकी ऊर्जाओं का एक पट्ट या बैण्ड बन जाता है । इस पट्ट की तुलना चेतना के विज्ञान में गणों से की जा सकती है । वैदिक साहित्य में मरुद्गण प्रसिद्ध हैं जिनका जन्म दिति या खण्डित चेतना से होता है । जब व्यक्ति की चेतना समाहित होना आरम्भ करेगी, उस समय यह स्थिति उत्पन्न हो सकती है । Remarks by Dr. Fatah Singh
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