पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Gangaa - Goritambharaa) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Gaargya, Gaarhapatya, Gaalava, Giri/mountain etc. are given here. गायन अग्नि ३४८.६ ( गायन हेतु गं प्रयोग का उल्लेख ) ।
गार्गी वायु ६६.५१ ( श्रवण, धनिष्ठा व शतभिषा की गार्गी वीथी का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१३.६३ ( यज्ञ में याज्ञवल्क्य द्वारा गार्गी को दुग्ध की नकुल से रक्षा करने का निर्देश ) ।
गार्ग्य गणेश २.१०८.४ ( गार्ग्य द्वारा रत्नमय मन्दिर में गणेश की अर्चना के समय व्याघ्र दैत्य के विघ्न का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.६७.७७ ( वेणहोत्र - पुत्र, गर्गभूमि - पिता, काश्यप वंश ), २.३.६८.२१( गार्ग्य द्वारा जनमेजय को शाप प्रदान का उल्लेख ), भागवत ९.२१.१९ ( शिनि -पुत्र गार्ग्य के क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण वंशारम्भ का उल्लेख ), मत्स्य १९६.४८ ( एक आङ्गिरस ऋषि ), वायु २३.१४४ ( ९वें द्वापर के शिव के अवतार ऋषभ के चार पुत्रों में से एक ), २३.२२३ (२८वें द्वापर के शिव के अवतार नकुली के चार पुत्रों में से एक ), ५९.९८ (३३ आङ्गिरसों में से एक मन्त्रकृत ऋषि ), ९९.२७३ ( वेणुहोत्र - पुत्र, गर्गभूमि - पिता ), विष्णु ३.४.२५ ( संहिताकर्त्ता बाष्कल के ३ शिष्यों में से एक ), ५.२३.१ ( नि:सन्तान होने के कारण श्याल द्वारा गार्ग्य द्विज का उपहास, गार्ग्य द्वारा तप, तप से तुष्ट महादेव के वरदानस्वरूप कालयवन नामक पुत्र की प्राप्ति का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२०९.६८ ( भरत व युधाजित् की स्वपुरोहित गार्ग्य से मन्त्रणा, गार्ग्य का दूत बनकर गन्धर्वों के समीप गमन तथा संदेश कथन ), शिव ५.३४.२४ ( चतुर्थ मन्वन्तर में सप्त ऋषियों में से एक ), स्कन्द ३.२.९.४० ( गार्ग्य गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवर व उनके गुण ), हरिवंश १.२१.६ ( विश्वामित्र के पुत्रों का गार्ग्य के शिष्य बनना, पितर श्राद्ध हेतु गुरु की कपिला गौ के वध का कथन ), १.३०.९ ( इन्द्रोत जनमेजय द्वारा गार्ग्य के पुत्र का वध, गार्ग्य के शाप से जनमेजय के रथ के अदृश्य हो जाने का उल्लेख ), १.३५.१३ ( गार्ग्य शैशिरायण द्वारा मनुष्य वेषधारी गोपाली नामक अप्सरा से कालयवन की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.५७.७ ( वृष्णि व अन्धकवंशी यादवों के गुरु, साले द्वारा गार्ग्य पर नपुंसकता का मिथ्या कलङ्क, शिवाराधन से पुत्र प्राप्ति रूप वर की प्राप्ति, गोपाली नामक अप्सरा से कालयवन नामक पुत्र के जन्म का वर्णन ), वा.रामायण ७.१००.२ ( केकयराज युधाजित् के स्वगुरु महर्षि गार्ग्य द्वारा राम के समीप संदेश प्रेषण का वर्णन ) । gaargya/ gargya
गार्ग्यायन मत्स्य १९५.२३ ( एक भार्गव गोत्रकार ऋषि ) ।
गारुड मत्स्य ५३.५२ ( गरुड पुराण के नाम हेतु का कथन ), २९०.६ ( १४वें कल्प का नाम ), वायु ३९.४० ( वैकङ्क नामक पर्वत शिखर पर सुग्रीव नामक गारुडि के निवास का उल्लेख ) ।
गार्हपत्य ब्रह्म २.९१.५७( विष्णु के आहवनीय पर श्वेत, दक्षिणाग्नि पर श्याम व गार्हपत्य पर पीत वर्ण होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.११ ( पवमान अग्नि का रूप, शंस्य व शुक - पिता ), भविष्य ४.६९.३६ ( गौ के जठर में गार्हपत्य, हृदय में दक्षिणाग्नि, कण्ठ में आहवनीय अग्नि तथा तालु में सभ्य अग्नि के वास का कथन ), वायु २९.१० ( छह प्रकार की अग्नियों में से एक, शंस्य व शुक्र - पिता ), १०४.८५ ( गार्हपत्य का मुखान्तर में न्यास ), १०६.४१ ( ब्रह्मा द्वारा यज्ञ हेतु सृष्ट मानस पुरोहितों में से एक अग्निशर्मा द्वारा स्वमुख से गार्हपत्य प्रभृति पांचों अग्नियों के निर्माण का उल्लेख ), १११.५० /२.४९.६०(गया के अन्तर्गत गार्हपत्यपद में श्राद्ध करने से वाजपेय फल प्राप्ति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.३७.५६( पिता के गार्हपत्य व माता के दक्षिणाग्नि होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.३.५९ ( वर्तुलाकार गार्हपत्य में ब्रह्मा की पूजा का निर्देश ), महाभारत शान्ति १०८.७( पिता के गार्हपत्य अग्नि होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक २१.८( शरीरभृत्/जीव के गार्हपत्य व मन के आहवनीय होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.११ ( निर्मथ्य - पुत्र, शंस्य व शुक - पिता ) । gaarhapatya
गाल स्कन्द २.२.२६ ( विष्णु भक्त गाल नामक राजा के इन्द्रद्युम्न से वार्तालाप का वर्णन ) ।
गालव नारद १.२३.३६ ( एकादशी व्रत के माहात्म्य के प्रसंग में गालव नामक मुनि तथा उनके भद्रशील नामक पुत्र का वृत्तान्त : पूर्वजन्म में एकादशी व्रत के प्रभाव से भद्रशील के समस्त पाप कर्मों का क्षय ), पद्म ४.१२ ( दीननाथ राजा द्वारा गालव मुनि से पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछने पर गालव द्वारा नरमेध यज्ञ का कथन ), ब्रह्म १.५.१०९ ( महर्षि विश्वामित्र के मध्यम पुत्र का गले में रस्सी रूप बन्धन पडने के कारण गालव नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), २.२२ ( गालव मुनि के परामर्श से ब्राह्मण पुत्र सनाज्जात तथा ब्राह्मण - पत्नी मही के गौतमी गङ्गा में स्नान करने पर पाप प्रक्षालन का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.८९ ( सत्यव्रत द्वारा गालव नाम प्राप्ति की कथा ), भागवत ८.१३.१५ ( आठवें सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), मत्स्य ९.३२ ( सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), १९५.२२, १९६.३१ ( भार्गव गोत्रकार तथा प्रवर प्रवर्तक ऋषि ), मार्कण्डेय १८/२०.४३ ( गालव मुनि द्वारा शत्रुजित् - पुत्र ऋतध्वज को आकाश से पतित कुवलय नामक अश्व प्रदान करने का उल्लेख ), १९/२१ ( ऋतध्वज का गालवाश्रम में रक्षा करते हुए वराह रूप धारी पातालकेतु दैत्य को देखना, वराह का अनुसरण करते हुए पाताल में प्रवेश, दैत्य - वध का वृत्तान्त ), वामन ५८.३७ ( पातालकेतु राक्षस का सूकर रूप में गालव ऋषि के आश्रम को नष्ट करने का उद्योग, बाण से विद्ध होकर वापस जाने का कथन ), ५९.६ ( पातालकेतु के विघ्न का प्रसंग ), ६५.२२ ( यक्ष व असुर कन्याओं के साथ पुष्कर तीर्थ में स्नान करते हुए गालव ऋषि द्वारा मत्स्यों के वार्तालाप श्रवण का उल्लेख ), वायु ८८.९० ( परिवार के भरण पोषणार्थ माता द्वारा गौ के क्रय हेतु गालव का विक्रय, गालव नाम धारण के हेतु का कथन ), १००.१०( ८वें सावर्णि मन्वन्तर के एक ऋषि ), विष्णु ३.२.१७( आठवें सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), स्कन्द १.१.१८.७९( गालव द्वारा बलि से दान में कल्पतरु की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१.३.११ ( गालव मुनि द्वारा तप, विष्णु - स्तुति, विष्णु - प्रेषित सुदर्शन चक्र द्वारा राक्षस से गालव मुनि की रक्षा, गालव द्वारा सुदर्शन - स्तुति का वर्णन ), ३.१.८.८ ( सुदर्शन व सुकर्ण नामक विद्याधर कुमारों द्वारा गालव - पुत्री कान्तिमती को बलात् ग्रहण करने की चेष्टा पर गालव द्वारा विद्याधर - कुमारों को मनुष्य व वेताल होने का शाप ), ३.१.४९.६५ ( गालव द्वारा रामेश्वर - स्तुति ), ५.२.२१.१६ (रानी विशालाक्षी द्वारा गालव ऋषि से पति से सङ्गम न होने का कारण पूछना, गालव द्वारा कुक्कुट योनि वाले कौशिक राजा के पूर्वजन्म का कथन ), ५.२.८४.३९ ( आयु राजा द्वारा गालव मुनि के उपहास से दर्दुर / मण्डूक योनि की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ६.५.७ ( गालव द्वारा त्रिशङ्कु - यज्ञ में उन्नेता बनने का उल्लेख ), ६.५६ ( साम्बादित्य पूजा से गालव को वटेश्वर नामक पुत्र प्राप्ति ), ६.१८०.३३ ( ब्रह्मा के यज्ञ में गालव के ग्रावस्तुत बनने का उल्लेख ), ६.२४३.१७ ( गालव मुनि द्वारा पैजवन शूद्र को शालिग्राम शिला पूजन के माहात्म्य का वर्णन ), ६.२७१.९८ ( गालव मुनि द्वारा स्वशिष्य को बकत्व रूप शाप - प्रदान का वृत्तान्त ), ७.१.२३ ( गालव का चन्द्रमा के यज्ञ में प्रतिहर्ता बनने का उल्लेख ), ७.१.७४.८ ( शाकल्येश्वर लिङ्ग का द्वापर में गालव द्वारा पूजित होने से गालवेश्वर नाम से उल्लेख ), हरिवंश १.१२.२४ ( विश्वामित्र - पुत्र, गले में बंधन पडने के कारण गालव नाम प्राप्ति का उल्लेख ), १.२०.१३ ( योगाचार्य गालव का ब्रह्मदत्त - सखा रूप में उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१ ( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.३९२.२१ ( गालव ऋषि के आश्रम में दैत्य द्वारा उत्पात, दैत्य - विनाश हेतु गालव द्वारा शत्रुजित् राजा के समीप गमन, कुवलयाश्व प्रदान, शत्रुजित् - पुत्र ऋतध्वज द्वारा तुरगारूढ होकर दैत्य के विनाश का वृत्तान्त ), १.४३५.२ ( गालव ऋषि की कन्या कान्तिमती के सुदर्शन नामक विद्याधर द्वारा अपहरण का प्रयास, गालव द्वारा विद्याधर को मनुष्य जन्म तथा वेतालत्व प्राप्ति रूप शाप ), १.४४१.३९ ( गालव मुनि का हरि भक्ति परायण पैजवन के गृह में गमन, हरि भक्ति से मोक्ष की सुलभता का प्रतिपादन ), १.५०९.२३( ब्रह्मा के सोमयाग में अथर्वाक ), १.५६४.९४ ( गालव द्विज द्वारा अश्व दक्षिणा स्वीकार करने से वाजिता / अश्व योनि की प्राप्ति, रेवा जल के स्पर्श से वाजिता से मुक्ति, दिव्य लोक गमन ), २.८.५७ ( गालव ऋषि के आश्रम में स्थित विप्रों को दुष्कर्म फलस्वरूप राक्षस योनि की प्राप्ति, गालव ऋषि द्वारा मोक्षोपाय का कथन ), ४.५९.५१ ( त्रिगालव कुटुम्ब के अन्तर्गत भवायन नामक ऋषि द्वारा नाट्य प्रदर्शन, नाट्य से प्रसन्न सन्तों द्वारा भवायन को वरदान प्रदान का वर्णन ), कथासरित् ५.२.२८२ ( अशोकदत्त का पूर्वजन्म में विद्याधर होना, विद्याधर द्वारा गालवाश्रम में मुनि कन्याओं का दर्शन, बन्धुओं द्वारा मनुष्य योनि में जन्म होने का शाप तथा विद्याधर गुरु से विद्या प्राप्त करके शाप से मुक्ति ) । gaalava गाव: ब्रह्माण्ड १.२.२४.२९ ( सूर्य की उष्णता सर्जक रश्मियों का एक समूह ), वायु ५३.२२ ( सूर्य की ताप - प्रदायक किरणों का एक समूह ) ।
गावल्गणि भागवत १.१३.३१ ( धृतराष्ट्र के मन्त्री व सारथी संजय का एक नाम ) ।
गिर वायु ९६.१६५ ( बलराम - भ्राता सारण के कईं पुत्रों में से एक ) ।
गिरा स्कन्द ५.१.४३.५७ (प्रियार्थी के गिरा में निवास का निर्देश ) । गिरि गर्ग ६.२.४५(जरासन्ध द्वारा प्रवर्षण गिरि को जलाने की कथा), ब्रह्माण्ड १.२.७.१२( गिरि की निरुक्ति : निगीर्ण करने वाले ), १.२.१९.१३७ ( गिरियों के अपर्वा तथा पर्वतों के पर्ववान् होने का उल्लेख ), २.३.७१.१६७ ( बलराम - भ्राता सारण के कईं पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२४.१६ ( श्वफल्क व गान्दिनी के १२ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १०.२५ ( पर्वतों द्वारा पृथ्वी दोहन का कथन ), ११४.४४( प्राच्य जनपदों के रूप में अन्तर्गिरि व बहिर्गिरि का उल्लेख ), वायु ४९.१३२ ( पर्व रहित पर्वत की गिरि संज्ञा का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४२.५३( शरीर की गिरि से तुलना - स्रोतांसि यस्य सततं प्रस्रवंति गिरेरिव ), १.२.४२.१६० ( तेज, अभयदान, अद्रोह, कौशल, अचापल्य, अक्रोध, तथा प्रियवाद नामक आध्यात्मिक ७ गिरियों का उल्लेख ), ५.३.१९४.३३ ( नारायण गिरि के सन्दर्भ में गिरि की निरुक्ति का कथन – दुरितों का गिरण ) ; द्र. जठरगिरि, नडागिरि । giri गिरि गृ - विज्ञाने । विज्ञानमय कोश में जो आत्मा की शक्ति है , वह गिरा है । अत: विज्ञानमय कोश गिरि है । इस कोश में रहने वाले इन्द्र को गिरिशन्त या गिरीश कहा जाता है । इसी गृ धातु से गुरु बना है । विज्ञानमय कोश का आत्मा ही मनुष्य का वास्तविक गुरु है । - फतहसिंह Remarks by Dr. Fatah Singh
गिरिक ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६७ ( बलराम - भ्राता सारण के कईं पुत्रों में से एक ), वायु ९६.१६५ ( बलराम - भ्राता सारण के कईं पुत्रों में से एक ) ।
गिरिकर्णिका मत्स्य २२.३९ ( पितर श्राद्ध हेतु गिरिकर्णिका तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ) ।
गिरिका देवीभागवत २.१.१२ ( उपरिचरवसु - भार्या ), मत्स्य ५०.२६ ( चैद्योपरिचर वसु व गिरिका से बृहद्रथ आदि सात पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), वायु ९९.२२१ ( विद्योपरिचर वसु - पत्नी, बृहद्रथ आदि की माता ) । girikaa
गिरिकेतु पद्म ६.१२.१७ ( जालन्धर - सेनानी, पुष्पदन्त से युद्ध का उल्लेख ) ।
गिरिक्ष वायु ९६.११० ( श्वफल्क व गान्दिनी के १२ पुत्रों में से एक ) ।
गिरिक्षित लक्ष्मीनारायण १.३१३.१३ ( गिरिक्षित व उसकी पत्नी अद्रिद्युति का देवद्रव्य की चोरी से सर्वस्व नाश, अधिकमास के द्वितीय पक्ष की षष्ठी व्रत के प्रभाव से जयन्त – जयन्ती पद प्राप्ति का निरूपण ) ।
गिरिग्राम योगवासिष्ठ ३.२८ ( गिरिग्राम की शोभा का वर्णन ) ।
गिर्यङ्गुष्ठ लक्ष्मीनारायण २.५.३५ ( गिर्यङ्गुष्ठ प्रभृति दैत्यों द्वारा छद्मरूप धारण कर बालप्रभु को मारने के उद्योग का वृत्तान्त ) । |