पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Gangaa - Goritambharaa) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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| Puraanic contexts of words like Grihapati, Grihastha/householder etc. are given here. गृहगोधा नारद २.१४.५ ( ब्राह्मणी का पतिद्रोह के कारण गृहगोधा /छिपकली बनना, रुक्माङ्गद राजा द्वारा एकादशी के पुण्य दान से गृहगोधा की मुक्ति की कथा ), मार्कण्डेय १५.२४ ( हविष्यान्न चुराने से गृहगोधा योनि प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३७८ ( पति वशीकरण दुष्प्रभाव से गृहगोधा योनि प्राप्ति का कथन ), ४.७०.१ ( कथा श्रवण, प्रसाद, भोजन, जल प्रोक्षण आदि से गृहगोधा की मुक्ति का वृत्तान्त ) । grihagodhaa
गृहपति वायु २.६/१.२.६( सत्र यज्ञ में तप के गृहपति होने का उल्लेख ), १.२३ (यज्ञ के ऋषियों तथा गृहपति द्वारा लोमहर्षण से पुराण सुनाने का अनुरोध ), २९.२४( अहिर्बुध्न अग्नि की गृहपति संज्ञा का उल्लेख ), शिव ३.१३+ ( विश्वानर व शुचिष्मती - पुत्र, शिव का अंश, गृहपति अवतार का वर्णन ), ३.१५ (गृहपति द्वारा आयु वर्धनार्थ तप, अग्नि पद प्राप्ति का वर्णन ), स्कन्द ४.१.१०.१३९, ४.१.११.२७ ( विश्वानर व शुचिष्मती द्वारा शिवकृपा से गृहपति पुत्र की प्राप्ति, नारद द्वारा गृहपति के सामुद्रिक लक्षणों का कथन, गृहपति द्वारा तप से अग्नि पद प्राप्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४५९.३० ( विश्वानर व शुचिष्मती - पुत्र, साक्षात् बाल रूप शिव का गृहपति रूप में जन्म, तप से चिरजीविता का कथन ) । grihapati
गृहबलि मार्कण्डेय २६/२९.१८ ( गृहबलि प्रदान विधि का कथन ) ।
गृहस्थ अग्नि १५२ ( गृहस्थ वृत्ति का कथन ), कूर्म २.१५ ( गृहस्थ धर्म का निरूपण ), २.१६ ( निषिद्ध कर्मों का कथन ), गरुड १.९६.७ ( गृहस्थ के कर्त्तव्यों - अकर्त्तव्यों का कथन ), देवीभागवत १.१४+ ( व्यास द्वारा शुक से गृहस्थाश्रम महिमा का कथन, शुक द्वारा वैराग्य का प्रतिपादन ), नारद १.४३.१०७ ( गृहस्थ धर्म का निरूपण ), १.२६.१९ ( गृहस्थोचित शिष्टाचार का वर्णन ), १.२७ ( गृहस्थ सम्बन्धी शौचाचार, स्नान, सन्ध्योपासनादि का वर्णन ), पद्म ३.५४ ( गृहस्थ धर्म का कथन ), ६.७४.८ ( गृहस्थाश्रम की श्रेष्ठता का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२४ ( ब्रह्मा का नारद को वेदोक्त गृहस्थ धर्म का कथन ), ४.८४ ( गृहस्थों के धर्म व अधर्म का कथन ), भविष्य १.६ ( गृहस्थ के लिए अर्थोपार्जन की अनिवार्यता का कथन ), ३.२.३०.२९ ( पितृशर्मा ब्राह्मण द्वारा कलियुग में गृहस्थ आश्रम की श्रेष्ठता का उल्लेख ), भागवत ५.१४.४ ( गृहस्थाश्रम में जीव की दुर्दशा का कथन ), ७.१४ ( गृहस्थ सम्बन्धी सदाचार का वर्णन ), ७.१५ ( गृहस्थ के लिए मोक्षधर्म का वर्णन ), ११.७.७४ ( कपोत के उपाख्यान द्वारा गृहस्थ में आसक्त व्यक्ति की आरूढच्युत संज्ञा का उल्लेख ), ११.१७.१४ (विराट पुरुष के ऊरुस्थल से गृहस्थाश्रम की उत्पत्ति का उल्लेख ), ११.१८.४२ ( गृहस्थ के मुख्य धर्म के रूप में प्राणियों की रक्षा तथा यज्ञ - याग का उल्लेख ), मत्स्य ४०.३ ( गृहस्थ धर्म के स्वरूप का कथन ), महाभारत शान्ति ११, १२, १९१, २४३, मार्कण्डेय २६/२९.१ ( मदालसा द्वारा अलर्क को गृहस्थ अनुशासन का कथन ), विष्णु ३.९.७ (गृहस्थ धर्म का निरूपण ), विष्णुधर्मोत्तर २.९५, ३.२२९ ( गृहस्थ धर्म का निरूपण ), स्कन्द ३.२.६( गृहस्थाश्रम हेतु सदाचार लक्षण का वर्णन : अतिथि सेवा आदि ), ४.१.४० ( गृहस्थ आश्रमियों के लिए विहित आचार निरूपण ), ६.२४२.२१( गृहस्थ के शूद्र? होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१०४.१ ( गृहस्थ धर्म का निरूपण ), ४.८८.१ ( गृहस्थाश्रम के माहात्म्य तथा गृहस्थ हेतु मोक्षोपाय का कथन ) । grihastha
गृहिणी ब्रह्मवैवर्त्त ४.८४.१४ ( गृहिणी स्त्रियों के सदाचार का कथन ) ।
गृहेषु वायु १००.८४ ( सावर्णि मनु के ८ पुत्रों में से एक ) ।
गृह्याग्नि भविष्य २.१.१७.१६ ( गृह्य अग्नि के धरणीपति नाम का उल्लेख ) ।
गेयिक कथासरित् ८.४.८५ ( विद्याधर - राज कालकंथन द्वारा युद्ध में मारे गए महारथियों में से एक ) ।
गो गरुड २.२.७९(गोहारक के सर्प बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३५.२( गोखल : शाकल्य देवमित्र के ५ शिष्यों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३( गोत्रय के अशुभत्व का उल्लेख ), द्र. गौ
गोऋतम्भरा लक्ष्मीनारायण १.३०९.३१ ( सर्वहुत राज - पत्नी, पुरुषोत्तम मास में द्वितीया व्रत के प्रभाव से सर्वहुत व गोऋतम्भरा को पारमेष्ठ्य पद की प्राप्ति, सर्वहुत के ब्रह्मा तथा गोऋतम्भरा के गायत्री बनने का वर्णन ) । |