पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Gangaa - Goritambharaa)

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

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Gangaa - Gangaa ( words like Grihapati, Grihastha/householder etc. )

Gangaa - Gaja (Gangaa, Gaja/elephant etc.)

Gaja - Gajendra (Gaja, Gaja-Graaha/elephant-crocodile, Gajaanana, Gajaasura, Gajendra, Gana etc.)

Gana - Ganesha (Ganapati, Ganesha etc.)

Ganesha - Gadaa (Ganesha, Gandaki, Gati/velocity, Gada, Gadaa/mace etc. )

Gadaa - Gandhamaali  ( Gadaa, Gandha/scent, Gandhamaadana etc. )

Gandharva - Gandharvavivaaha ( Gandharva )

Gandharvasenaa - Gayaa ( Gabhasti/ray, Gaya, Gayaa etc. )

Gayaakuupa - Garudadhwaja ( Garuda/hawk, Garudadhwaja etc.)

Garudapuraana - Garbha ( Garga, Garta/pit, Gardabha/donkey, Garbha/womb etc.)

Garbha - Gaanabandhu ( Gavaaksha/window, Gaveshana/research, Gavyuuti etc. )

Gaanabandhu - Gaayatri ( Gaandini, Gaandharva, Gaandhaara, Gaayatri etc.)

Gaayana - Giryangushtha ( Gaargya, Gaarhapatya, Gaalava, Giri/mountain etc.)

Girijaa - Gunaakara  ( Geeta/song, Geetaa, Guda, Gudaakesha, Guna/traits, Gunaakara etc.)

Gunaakara - Guhaa ( Gunaadhya, Guru/heavy/teacher, Guha, Guhaa/cave etc. )

Guhaa - Griha ( Guhyaka, Gritsamada, Gridhra/vulture,  Griha/home etc.)

Griha - Goritambharaa ( Grihapati, Grihastha/householder etc.)

 

 

 

 

 

 

 

Puraanic contexts of word Gandharva are given here.

Veda study on Gandharva

गन्धर्व अग्नि ८४.३२( ८ अमानुषी योनियों में चतुर्थ -पैशाचं राक्षसं याक्षं गान्धर्व्वं चैन्द्रमेव च ।।सौम्यं प्राणेश्वरं ब्राह्ममष्टमं परिकीर्त्तितं।), २१९.३४ ( राजा के अभिषेक के समय चित्राङ्गद, चित्ररथ प्रभृति प्रधान गन्धर्वों से अभिषेक कार्य सम्पन्न करने की प्रार्थना - .. हाहा हूहूर्नारदश्च विश्वावसुश्च तुम्बुरुः ॥ एते त्वामभिषिञ्चन्तु गन्धर्वा विजयाय ते ।), गणेश २.६८.२९ ( गणेश द्वारा प्रयुक्त खगास्त्र से गन्धर्वास्त्र के निवारण का कथन ), २.८.२८ ( गन्धर्वराज का भृगु शाप से नक्र बनना - वैवाहिकानि कार्याणि कुर्वता कुपितो मुनिः ॥ शशाप मां नक्रवरो भविष्यसि सरोगतः । ), गरुड १.९५.१८( गन्धर्व द्वारा व्यभिचारिणी को शुभ गिरा दान का उल्लेख -सोमः शौचं ददौ तासां गन्धर्वश्च शुभां गिरम् ॥पावकः सर्वमेध्यत्वं मेध्या वै योषितो यतः ॥ ), ३.२२.३०(देव गन्धर्वों के ६ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख - षड्भिश्च देवगन्धर्वाः पञ्चभिस्तदनन्तराः ।), ३.२२.६६(मानुषात्मक गन्धर्वों के ७ लक्षणों और २५ दोषों से युक्त होने का उल्लेख - सप्तलक्षणसंयुक्ता गन्धर्वा मानुषात्मकाः । यैस्तु पञ्चविंशतिभिर्दोषैः संयुक्ताः प्रकीर्तिताः ॥), गर्ग ७.४६ ( प्रद्युम्न - सेना का गन्धर्वों से युद्ध, गन्धर्वराज पतङ्ग से भेंट प्राप्ति का वर्णन -शतयोजनविस्तीर्णां गंधर्वाणां महापुरीम् ॥वसंतमालतीं सर्वामुद्विदार्य हलेन वै ॥ ), देवीभागवत १.२०.२२ ( चित्राङ्गद नामक गन्धर्व तथा शन्तनु - पुत्र चित्राङ्गद का परस्पर युद्ध, गन्धर्व द्वारा शन्तनु - पुत्र के वध का उल्लेख ), ४.२२.१६ ( हिरण्यकशिपु के ६ पुत्रों द्वारा ब्रह्मा की आराधना, वर प्राप्ति के रूप में देवों, मानवों, गन्धर्वों आदि से अवध्यता का उल्लेख ), ४.२२.३५ (देवकस्तु समाख्यातो गन्धर्वपतिरागमे ॥), ९.२०.३ ( शिव द्वारा चित्ररथ नामक गन्धर्वेश्वर को दूत बनाकर शङ्खचूड के पास प्रेषित करने का उल्लेख- दूतं कृत्वा चित्ररथं गन्धर्वेश्वरमीप्सितम् । ), नारद १.५०.५८ ( गन्धर्व की तीन वर्णों के आधार पर निरुक्ति : ग - गेय, ध - कारु प्रवादन, व - वाद्य - गेति गेयं विदुः प्राज्ञा धेति कारुप्रवादनम् ।।वेति वाद्यस्य संज्ञेयं गंधर्वस्य प्ररोचनम् ।।  ), पद्म २.३०.५३ (सुनीथा द्वारा तपस्या - निरत गन्धर्व - पुत्र सुशङ्ख का ताडन, सुशङ्ख द्वारा सुनीथा को पापयुक्त पुत्र की प्राप्ति रूप शाप - प्रदान का कथन -तत्रापश्यन्महाभागं गंधर्वतनयं वरम् ।गीतकोलाहलस्यापि सुशंखं नाम सा तदा । ), २.४६.१६ ( गीतनिपुण गन्धर्व द्वारा वराह रूप धारणकर पुलस्त्य मुनि के तप में विघ्न, मुनि द्वारा वराह योनि प्राप्ति का शाप, इक्ष्वाकु द्वारा वध होने पर पुन: वराह योनि से गन्धर्व योनि प्राप्ति रूप शाप - मोचन का वर्णन ), ब्रह्म २.३५ ( गन्धर्वों द्वारा सोम पर अधिकार, देवों द्वारा सरस्वती के मूल्य पर स्त्री - कामुक गन्धर्वों से सोम क्रयण का कथन - सोमो राजाऽमृतमयो गन्धर्वाणां पुराऽभवत्। न देवानां तदा देवा मामभ्येत्येदमब्रुवन्।।  ), २.३७.२२ ( राजा ऋतध्वज द्वारा गन्धर्वराज - कन्या सुश्यामा के दर्शन, मोहन तथा रतिक्रीडा का उल्लेख- गन्धर्वराजस्य सुता सुश्यामा इति विश्रुता।तां दृष्ट्वा चकमे राजा राजानं चकमे च सा।।), ब्रह्माण्ड १.२.७.१६७ (  गन्धर्वलोक : सत्शूद्रों का स्थान- वैश्यानां मारुतं स्थानं स्वस्वकर्मोपजीविनाम् गांधर्वं शूद्र जातीनां परिचर्ये च तिष्ठताम्), १.२.८.४० ( गन्धर्व शब्द की निरुक्ति - धयेति धातुः कविभिः पानार्थे परिपठ्यते । पिबतो जज्ञिरे वाचं गन्धर्वास्तेन ते स्मृताः ॥ ), १.२.१७.३३( हेमकूट में गन्धर्वों - अप्सराओं के वास का उल्लेख - रक्षःपिशाचयक्षाश्च सर्वे हैमवतः स्मृताः ।।हेमकूटे तु गंधर्वा विज्ञेयाः साप्सरोगणाः ।।), १.२.२३.१ ( भिन्न - भिन्न गन्धर्वों के दो - दो मास तक सूर्य - रथ पर अधिष्ठान का कथन - तुंबुरुर्नारदश्चैव सुस्थला पुंजिकस्थला ।।...एते वसंति वै सूर्य्ये मधुमाधवयोः सदा ।। ), २.३.३.७६ ( गान्धर्वी : गान्धर्वी से उच्चैःश्रवा आदि अश्व पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख -विश्रुतास्तु महाभागा गान्धर्व्या वाजिनः सुताः ।उच्चैःश्रवादयो जाताः खेचरास्ते मनोजवाः ॥ ), २.३.७.४ (१६ देव गन्धर्वों की  मौनेय संज्ञा का उल्लेख -कलिः पञ्चदशस्तेषां नारदश्चैव षोडशः । इत्येते देवगन्धर्वा मौनेयाः परिकीर्त्तिताः ॥  ), २.३.७.३६ ( एक काद्रवेय नाग का नाम - प्रह्रादस्तु ब्रह्मणश्च गन्धर्वोऽथ मणिस्थकः ॥ ..काद्रवेयाः समाख्याताः खशायास्तु निबोधत ॥), २.३.७.१६७ ( गन्धर्वों के देवों से तीन पाद हीन ऐश्वर्य होने का उल्लेख - हीना देवैस्त्रिभिः पादैर्गन्धर्वाप्सरसः स्मृताः ।गन्धर्वेभ्यस्त्रिभिः पादैर्हीना गुह्यकराक्षसाः ॥ ), २.३.८.१० ( ब्रह्मा द्वारा गन्धर्वों के अधिपति पद पर  चित्ररथ की नियुक्ति का उल्लेख - गन्धर्वाणामधिपतिं चक्रे चित्ररथं तथा । उच्चैःश्रवसमश्वानां राजानं चाभ्यषेचयत् ॥ ), २.३.४०.५६( कार्त्तवीर्य अर्जुन के गान्धर्व अस्त्र का परशुराम द्वारा वायव्य अस्त्र से खण्डन का उल्लेख - गान्धर्वं विदधे राजा वायव्येनाहनद्विभुम् ॥), ३.४.१५.५ ( गन्धर्व विवाह : विवाह के ८ प्रकारों में से एक, गन्धर्व विवाह से विवाहित भार्या के पितृदत्तका होने का उल्लेख - गन्धर्वोद्वाहिता युक्ता भार्या स्यात्पितृदत्तका ), ३.४.१६.१७ ( ललितादेवी के अश्वप्राय सैन्य दल में गान्धर्व अश्वों के होने का उल्लेख - वाल्मीकयावनोद्भूता गान्धर्वाश्चाथ ये हयाः ॥ ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१२.८ ( सन्तानहीन गन्धर्वराज द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु शिवाराधना, शिव कृपा से गन्धर्वराज को उपबर्हण नामक पुत्र की प्राप्ति की कथा - गन्धर्वराजः सर्वेषां गन्धर्वाणां वरो महान् ।।परमैश्वर्य्यसंयुक्तः पुत्रहीनो हि कर्मणा ।।), १.१३.४(पञ्चाशत्ता बभूवुश्च कन्याश्चित्ररथस्य च ।।उपबर्हणगन्धर्वं ताश्च तं वव्रिरे पतिम् ।।), १.१३ ( उपबर्हण गन्धर्व का ब्रह्मा की सभा में सम्मिलित होना, रम्भा नामक अप्सरा को देखकर गन्धर्व का वीर्यपात, ब्रह्मा के शाप से गन्धर्व द्वारा शरीर त्याग, गन्धर्व- पत्नी मालावती के शोक का वर्णन ), १.१८.३७ ( श्रीहरि द्वारा उपबर्हण गन्धर्व को जीवन प्रदान करने का उल्लेख - गन्धर्वो देवपुरतो ननर्त्त च जगौ क्षणम् ।। जीवितं पुरतः प्राप देवानां च वरेण च ।।), ४.१६.३५ ( गन्धर्वेश गन्धवाह के सुहोत्र, सुदर्शन तथा सुपार्श्वक नामक तीन वैष्णव -पुत्रों का कमल - ग्रहण के अपराध पर शिव शाप से क्रमश: बक, प्रलम्ब तथा केशी नामक असुर बनना, कृष्ण द्वारा वध पर तीनों के कृष्ण - पार्षद बनने का वर्णन ), भविष्य १.५७.१८( गन्धर्वों हेतु आरग्वध बलि का उल्लेख - गंधर्वेभ्यस्त्वारग्वधं दद्यात्त्रिपुरसूदन । ), ३.३.३१.८४ (सुकल नामक गन्धर्व की केकयतनया मदनावती पर आसक्ति, विवाह हेतु युद्ध, पराजय का कथन - गंधर्वस्सुकलो नाम मत्कन्यां च शुभाननाम् ।। ज्योत्स्नायां निशि संहृत्य तया सार्द्धं हि दीव्यति ।। ), ४.१५६.१७ ( गौ के ककुद में गन्धर्वों तथा अप्सराओं की स्थिति का उल्लेख - गंधर्वाप्सरसश्चैव ककुद्देशं प्रतिष्ठिताः ।।कुक्षौ समुद्राश्चत्वारो योनौ त्रिपथगामिनी ।। ), भागवत २.३.६ ( रूपकामी को गन्धर्वों की उपासना का निर्देश - रूपाभिकामो गन्धर्वान् स्त्रीकामोऽप्सर उर्वशीम् ।), ३.३.३ ( कृष्ण व रुक्मिणी के गन्धर्व विवाह का उल्लेख - गान्धर्ववृत्त्या मिषतां स्वभागं     जह्रे पदं मूर्ध्नि दधत्सुपर्णः ॥ ), ३.१२.३८ ( ब्रह्मा द्वारा पश्चिम मुख से गन्धर्ववेद को उत्पन्न करने का उल्लेख -आयुर्वेदं धनुर्वेदं गान्धर्वं वेदमात्मनः ।स्थापत्यं चासृजद् वेदं क्रमात् पूर्वादिभिर्मुखैः ॥  ), ४.७.४३ ( दक्ष यज्ञ के अवसर पर उपस्थित श्रीहरि की गन्धर्वों द्वारा स्तुति - अंशांशास्ते देव मरीच्यादय एते     ब्रह्मेन्द्राद्या देवगणा रुद्रपुरोगाः ।क्रीडाभाण्डं विश्वमिदं यस्य विभूमन्     तस्मै नित्यं नाथ नमस्ते करवाम ॥ ), ७.८.५० ( गन्धर्वों द्वारा नृसिंह भगवान् की स्तुति - वयं विभो ते नटनाट्यगायका येनात्मसाद्वीर्यबलौजसा कृताः। स एष नीतो भवता दशामिमां किमुत्पथस्थः कुशलाय कल्पते ), ९.११.१३ ( भरत द्वारा दिग्विजय में कोटि गन्धर्वों के संहार का उल्लेख -  गन्धर्वान् कोटिशो जघ्ने भरतो विजये दिशाम् ॥ तदीयं धनमानीय सर्वं राज्ञे न्यवेदयत् । ), ९.२०.१६ ( दुष्यन्त व शकुन्तला के गन्धर्व विवाह का उल्लेख - ओमित्युक्ते यथाधर्मं उपयेमे शकुन्तलाम् । गान्धर्वविधिना राजा देशकालविधानवित् ॥ ), ११.१६.३३ ( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के गन्धर्वाप्सरसों में विश्वावसु-पूर्वचित्ति होने का उल्लेख - विश्वावसुः पूर्वचित्तिर्गन्धर्वाप्सरसामहम्।), मत्स्य ६.४५ ( कश्यप व अरिष्टा से गन्धर्वों की उत्पत्ति का उल्लेख - तथा किन्नरगन्धर्व्वानरिष्टाऽजनयदत् बहून्।।), ८.६ (पृथु के राज्याभिषिक्त होने पर ब्रह्मा द्वारा चित्ररथ को गन्धर्वों, विद्याधरों तथा किन्नरों का अधिनायक नियुक्त करने का उल्लेख - गन्धर्वविद्याधरकिन्नराणामीशं पुनश्चित्ररथं चकार।।), १०.२४ ( गन्धर्वों द्वारा पृथ्वी से पद्मपत्र में गन्धों के दोहन का उल्लेख -  गन्धर्वैश्च पुरा दुग्धा वसुधा साप्सरोगणैः। वत्सं चैत्ररथं कृत्वा गन्धान् पद्म दले तथा।। ), ११४.८ ( गन्धर्वद्वीप : बृहत्तर भारतवर्ष के ९ भेदों में से एक ), १२१.४८ ( गङ्गा द्वारा पवित्र किए जाने वाले देशों में गन्धर्वों के देश का उल्लेख ), १७१.६० ( दक्ष की १२ कन्याओं में से एक मुनि के गन्धर्व - जननी होने का उल्लेख - सिंहिका ग्रहमाता वै गन्धर्वजननी मुनिः। ताम्रा त्वप्सरसां माता पुण्यानां भारतोद्भव! ।।  ), मार्कण्डेय १९/२१.२८ ( विश्वावसु नामक गन्धर्व की कन्या मदालसा के पातालकेतु दैत्य द्वारा हरण का उल्लेख - विश्वावसुरिति ख्यातो दिवि गन्धर्वराट् प्रभो ।तस्येयमात्मजा सुभ्रूर्नाम्ना ख्याता मदालसा॥), ५८/६१.२१ ( हिमालय के प्रान्त भाग में सिद्धों, गन्धर्वों, किन्नरों के विहार का उल्लेख ), वराह १४५.७२ ( शालग्राम क्षेत्र के अन्तर्गत गन्धर्व क्षेत्र का संक्षिप्त माहात्म्य -गन्धर्वेति च विख्यातं तस्मिन् क्षेत्रं परं मम ।। एकधारा पतत्यत्र पश्चिमां दिशमाश्रिता ।। )वामन ८४.६४ ( हू हू नामक गन्धर्व का देवल के शाप से ग्राह बनना, विष्णु चक्र से विदीर्ण होकर स्वर्ग गमन, गज - ग्राह का वृत्तान्त - स हि देवलशापेन हूहूर्गन्धर्वसत्तमः। ग्राहत्वमगमत् कृष्णाद् वधं प्राप्य दिवं गतः।। ), वायु १.९.३६ ( ब्रह्मा के तेज का पान करने के कारण गन्धर्वों की उत्पत्ति, गन्धर्व शब्द की निरुक्ति - ध्यायतीत्येष धातुर्वै यात्रार्थे परिपठ्यते। पिबतो जज्ञिरे गास्तु गंधर्वास्तेन ते स्मृताः । ), २१.३२ ( १४ वें गन्धर्व कल्प में गान्धार स्वर की उत्पत्ति का उल्लेख - चतुर्द्दशस्तु गन्धर्वो गन्धर्वो यत्र वै स्वरः। उत्पन्नस्तु यथा नादो गन्धर्वा यत्र चोत्थिताः ।। ), ४५.७९ ( भारतवर्ष के ९ भागों में से एक ), ६१.७९ ( १८ विद्याओं में गन्धर्ववेद का उल्लेख - आयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्चैव ते त्रयः। अर्थशास्त्रं चतुर्थन्तु विद्यास्त्वष्टादशैव तु ।। ) ६२.१८४ ( गन्धर्वों द्वारा पृथ्वी रूपा गौ के दोहन का उल्लेख - पद्मपात्रे पुनर्दुग्धा गन्धर्वैरप्सरोगणैः । वत्सं चित्ररथं कृत्वा शुचीन् गन्धास्तथैव च ॥..), ६९.१ ( १६  मौनेय गन्धर्वों का नामोल्लेख - गन्धर्वाप्सरसः पुण्या मौनेयाः परिकीर्त्तिताः।चित्रसेनोग्रसेनश्च ऊर्णायुरनघस्तथा ॥.. ), ६९.७३ ( कद्रू द्वारा उत्पन्न प्रधान नागों में गन्धर्व नामक नाग का उल्लेख ), १००.१५९ ( प्रलयकाल में संवर्तक अग्नि द्वारा गन्धर्वादि के भस्मीभूत होने का उल्लेख - गन्धर्वांश्च पिशाचांश्च समहोरगराक्षसान् । तदा दहति सन्दीप्तो गोलकं चैव सर्व्वशः ।।), १०१.३ ( १४ मनुओं का ऋषियों , देवों, गन्धर्वों, राक्षसों के साथ प्रत्येक मन्वन्तर में जन्म ग्रहण का उल्लेख - ऋषिभि र्दैवतैश्चैव सह गन्धर्वराक्षसैः ।।सर्व्वे ह्यपि क्रमातीता महर्लोकं समाश्रिताः।), १०१.२८ ( गन्धर्वों के स्वर्लोक में निवास का उल्लेख - गन्धर्वाप्सरसो यक्षा गुह्यकास्तु सराक्षसाः।सर्वभूतपिशाचाश्च नागाश्च सह मानुषैः।स्वर्लोकवासिनः सर्वे देवा भुविनिवासिनः ।। ), १०६.५९ ( गयासुर के ऊपर स्थित शिलाखण्ड पर देवों के साथ - साथ गन्धर्वों की स्थिति का उल्लेख - विश्वेदेवाश्चाश्विनेयौ मारुतो विश्वनायकः। सयक्षोरगगन्धर्व्वास्तस्थुर्देवाः स्वशाक्तिभिः ।।), विष्णु १.५.४६ ( गन्धर्व पद की निरुक्ति - ध्यायतोंगात्समुत्पन्ना गन्धर्वास्तस्य तत्क्षणात् । पिबन्तो जज्ञिरे वाचं गन्धर्वास्तेन ते द्विज ), १.२१.२५ ( कश्यप व अरिष्टा से गन्धर्वों की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.३.७ ( भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), ४.३.४ (  मौनेय नामक गन्धर्वों द्वारा रसातल के नागों को परास्त कर रत्नादि का हरण, नागों द्वारा शेषशायी विष्णु से रक्षा की प्रार्थना, विष्णु के कथनानुसार मान्धाता - पुत्र पुरुकुत्स द्वारा गन्धर्वों के संहार का वर्णन ), ४.४.१०० ( गन्धर्वविषय /देश को जीतने हेतु भरत द्वारा संग्राम में तीन कोटि गन्धर्वों को मारने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.३७ ( ग्रह  अनुसार गन्धर्वों के नाम - आदित्येन सहानन्तो नागो भवति भूमिप ।।चित्राङ्गदश्च गन्धर्वो दीर्घभद्रो निशाचरः ।।..), १.१२८.५ ( दिव्य गन्धर्वों - अप्सराओं चित्रसेन, उग्रसेन आदि  के नाम ), १.१३५.१ ( उग्रसेन नामक गन्धर्व द्वारा माया से उर्वशी के मेष - हरण का उल्लेख ), १.१९३ ( देवल मुनि के शाप से हा हा, हू हू गन्धर्वों के गज, ग्राह बनने का कथन ), १.२०१ ( शैलूष - पुत्र गन्धर्वों की अनुशासन हीनता से चित्ररथ नामक गन्धर्वराज द्वारा शैलूष - पुत्रों के वध का शाप ), १.२०२ ( शैलूष - पुत्र गन्धर्वों का भरत द्वारा वध का कथन ), १.२५८+( शैलूष - पुत्र गन्धर्वों की सेना तथा भरत - सेना के युद्ध का वर्णन, शैलूष गन्धर्वों का वध, सिन्धु - तट पर भरत द्वारा नगर निर्माण ), .३४१.१७३ ( गन्ध प्रदान से गन्धर्वत्व प्राप्ति का उल्लेख ), ३.४२.४ ( गन्धर्वों के रूप निर्माण में उन्हें मुकुट रहित दिखाने का निर्देश - देवताश्चापि गन्धर्वा मुकुटेन विवर्जिताः ।। कर्तव्यास्ते महाराज शिखरैरुपशोभिताः ।।), शिव ५.१८.४ ( भारत के ९ खण्डों में से एक ), स्कन्द १.२.१३.१५५ ( गन्धर्वों द्वारा दारुज लिङ्ग की सर्वश्रेष्ठ नाम से पूजा का उल्लेख, शतरुद्रिय प्रसंग - गंधर्वा दारुजं लिंगं सर्वश्रेष्ठेति नाम च॥  ), २.१.२४ ( सुन्दर नामक गन्धर्व को राक्षसत्व प्राप्ति, वसिष्ठोक्त उपाय से राक्षसत्व से निवृत्ति तथा स्व - स्वरूप प्राप्ति का वर्णन ), २.७.१९.१८ ( भूतों से मनुष्य तथा गन्धर्वों के १०० गुणा श्रेष्ठ होने का उल्लेख-भूतान्मनुष्यगंधर्वान्विद्याच्छतगुणाधिकान् ।। ), ३.१.४९.७५ ( गन्धर्वों द्वारा रामेश्वर - स्तुति का कथन - रामनाथ त्वमस्माकं भजतां भवसागरे ।। अपारे दुःखकल्लोले न त्वत्तोन्या गतिर्हि नः ।। ), ३.२.१०.२० ( कामधेनु के क्षुरपृष्ठ में गन्धर्वों तथा चारों वेदों की स्थिति का उल्लेख -क्षुरपृष्ठे च गन्धर्वा वेदाश्चत्वार एव च ।।), ३.१.२८.५५ ( उर्वशी की प्राप्ति हेतु पुरूरवा द्वारा गन्धर्वों से प्रार्थना, सन्तुष्ट गन्धर्वों द्वारा पुरूरवा को अग्नि स्थाली प्रदान करना, अग्नि - त्रय से यज्ञों का सम्पादन तथा गन्धर्वलोक प्राप्ति का कथन ), ३.२.१०.२६ ( विश्वावसु नामक गन्धर्व की ३० सहस्र कन्याओं का ३० सहस्र गोजा/गोभुज मनुष्य अनुचरों से विवाह , गान्धर्व विवाह का प्रचलन आरम्भ होना ), ३.३.७ ( प्रदोषव्रत शिव पूजा माहात्म्य प्रसंग में धर्मगुप्त नामक राजकुमार तथा द्रविक नामक गन्धर्व की कन्या अंशुमती का परस्पर प्रणय, विवाह तथा सुखपूर्वक राज्य करने का वर्णन ), ४.१.८.२१ ( गन्धर्वलोक वासी गन्धर्वों के आचार का वर्णन ), ४.२.६६.२१ ( गन्धर्वेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - गंधर्वकुण्डं तत्प्राच्यां तत्र स्नात्वा नरोत्तमः ।।गंधर्वेश्वरमभ्यर्च्य दत्त्वा दानानि शक्तितः ।।), ५.३.२८.१२ ( बाण के त्रिपुर नाश हेतु शिव रथ के चक्र के अरों में गन्धर्वों के स्थित होने का उल्लेख- आदित्यचन्द्रौ चक्रे तु गन्धर्वानारकादिषु ॥  ), ५.३.८३.११० ( गौ के खुराग्रों में गन्धर्वों आदि की स्थिति का उल्लेख - गन्धर्वाप्सरसो नागाः खुराग्रेषु व्यवस्थिताः ।), ५.३.२२५ ( अलिका नामक गन्धर्व - कन्या द्वारा स्वनाम से शिवलिङ्ग की स्थापना, अलिकेश्वर तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन - अलिका नाम गान्धर्वी कुशीला कुटिलाशया ॥ चित्रसेनस्य दौहित्री विद्यानन्दमृषिं गता ।), ६.१४४.१७ ( रम्भा व जाबालि - कन्या फलवती का चित्रसेन गन्धर्व द्वारा हरण, देवमन्दिर में स्वकन्या व गन्धर्व को देखकर जाबालि द्वारा शाप प्रदानादि का वर्णन - एतस्मिन्नंतरे तत्र विमानवरमाश्रितः ॥ प्राप्तश्चित्रांगदोनाम गन्धर्वस्त्रिदिवौकसाम् ॥), ६.२५२.२१( चातुर्मास में गन्धर्वों की मलय वृक्ष में स्थिति का उल्लेख - गन्धर्वा मलयं वृक्षमगुरुं गणनायकः ॥), ७.१.२४.१४५ ( घनवाह नामक गन्धर्व की पुत्री गन्धर्वसेना को शिखण्डि गण के शाप से कुष्ठ प्राप्ति, सोमवार व्रतादि द्वारा शिवपूजन से कुष्ठ से मुक्ति का वर्णन ), ७.१.२६ ( घनवाह नामक गन्धर्व द्वारा स्थापित गन्धर्वसेनेश्वर लिङ्ग क माहात्म्य  - स्थापयामास लिंगं स गन्धर्वो घनवाहनः॥ सोमेशादुत्तरे भागे दण्डपाणिसमीपतः॥), ७.१.५४ ( घनवाह गन्धर्व द्वारा स्थापित गन्धर्वेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन - तस्य गंधर्वसेनेति ख्याता पुत्री महाप्रभा॥ शिखंडिना गणेनैव सा शप्ता रूपगर्विता॥), ७.१.१२२ ( गन्धर्वपति चित्राङ्गद द्वारा स्थापित चित्राङ्गदेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का कथन - चित्रांगदेन देवेशि गंधर्वपतिना प्रिये ॥ क्षेत्रं पवित्रं ज्ञात्वा वै लिंगं तत्र प्रतिष्ठितम् ॥ ), ७.१.३०२ ( गन्धर्वेश्वर लिङ्ग क माहात्म्य   - गंधर्वैः स्थापितं लिंगं स्नात्वा संपूजयेत्सकृत् ॥ सर्वान्कामानवाप्नोति रक्तकण्ठश्च जायते ॥), हरिवंश ३.७१.५२ ( वामन के विराट रूप में गन्धर्वों की उदर में स्थिति का उल्लेख - उदरे चास्य गन्धर्वा भुजगाश्च महाबलाः ।।), महाभारत अनुशासन ९८.२९( गन्धर्वों हेतु उपयुक्त जलज पुष्प ), वा.रामायण ४.४१.४२ ( ऋषभ पर्वत पर स्थित चन्दन वन की रोहित नामक गन्धर्वों द्वारा रक्षा, शैलूष, ग्रामणी, शिक्ष, शुक व बभ्रु नामक पांच गन्धर्वराजों के ऋषभ पर्वत पर निवास का उल्लेख - रोहिता नाम गन्धर्वा घोरं रक्षन्ति तद्वनम्।तत्र गन्धर्वपतयः पञ्च सूर्यसमप्रभाः॥  ), ७.१००.११ ( सिन्धु नदी के दोनों पार्श्वों पर स्थित गन्धर्व देश के गन्धर्वराज शैलूष की सन्तानों द्वारा रक्षित होने का कथन - सिन्धोरुभयतः पार्श्वे देशः परमशोभनः ।। तं च रक्षन्ति गन्धर्वाः सायुधा युद्धकोविदाः ।), ७.१०१ ( भरत का गन्धर्वों पर आक्रमण, संहार तथा गन्धर्व देश में तक्षशिला व पुष्कलावत नगर बसाने का कथन ) लक्ष्मीनारायण १.२००.४९ ( ब्रह्मा के मानस - पुत्र नारद द्वारा सृष्टि कर्म का निषेध, क्रुद्ध ब्रह्मा द्वारा नारद को गन्धर्व होने का शाप, गन्धर्वराज के गृह में उपबर्हण नामक गन्धर्व के रूप में नारद का जन्म, चित्ररथ गन्धर्व की ५० कन्याओं से उपबर्हण का विवाह, ब्रह्मसभा में उपबर्हण गन्धर्व की रम्भा अप्सरा में आसक्ति, ब्रह्मा के शाप से उपबर्हण के शूद्र योनि में जन्म का वर्णन ), १.३९०.२७ ( कृष्ण जयन्ती उत्सव में सलिलद्यु नामक गन्धर्व तथा सात्वत - कन्या सुकन्या का परस्पर शाप प्रदान, शापवश सलिलद्यु का च्यवन रूप में तथा सुकन्या का शर्याति नृप की कन्या के रूप में जन्म, दोनों का विवाह तथा गार्हस्थ्यादि का वर्णन ), १.४४१.८३ ( मलय वृक्ष रूप में गन्धर्वों के अवतरण का उल्लेख - गन्धर्वा मलयवृक्षा अगुरुश्च गणाधिपः । समुद्रा वैतसवृक्षा यक्षाः पुन्नागभूरुहाः ।। ), १.४७१.५ ( शिव प्रसाद भक्षण से मण्डूकी के गान्धर्वी रूप में जन्म का कथन ), २.१५.२८ ( गौ के खुरमध्य में गन्धर्वों की स्थिति का उल्लेख - खुरमध्ये च गान्धर्वाः खुराग्रेषु तु पन्नगाः ।सर्वसन्धिषु साध्याश्च चन्द्रादित्यौ तु लोचने ।।), २.३४.१८ ( कृष्ण के पंचम जन्मोत्सव पर देवगन्धर्वों, मानवगन्धर्वों तथा दैत्य गन्धर्वों द्वारा गायन, देव, मानव, दैत्य गन्धर्वों के नामों का कथन ), २.१०४.२६ ( हिमालय पर्वतस्थ गान्धर्व देश में चारण प्रजा होने का उल्लेख ), २.१२४.८१( गन्धर्वों, किन्नरों आदि के लिए यज्ञ में श्रौषट् व्याहृति के प्रयोग का उल्लेख - गन्धर्वेभ्यः किन्नरेभ्यः श्रौषट् किंपुरुषाय च ।। ), २.१५७.२४ ( मूर्ति में ओष्ठों में गन्धर्वों के न्यास का उल्लेख - गन्धर्वेभ्यश्चौष्ठयोश्च स्कन्दाय कटिपार्श्वके ।), ३.७५.७९ ( उपवास, व्रतों से गन्धर्व लोक प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१०१.७१ ( रत्नाढ्या गौ के दान से गन्धर्वलोक प्राप्ति का उल्लेख ), ४.४४.६२ ( विविध प्रकार के बन्धनों में नाट्य के गान्धर्व बन्धन होने तथा उसके त्याग से श्रीहरि के तुष्ट होने का उल्लेख - गान्धर्वं बन्धन नाट्यं माहेन्द्रं मन्दिराणि वै । सौम्यं तु बन्धनं कीर्तिस्तत्त्यागे तुष्यति प्रभुः ।। ), ४.७६.५२ ( श्री हरिकथा श्रवण से चित्रबर्ह प्रभृति गन्धर्वों की मुक्ति का कथन - शुक्लपक्षे हि गन्धर्वा गान्धर्व्यश्च हरेः कथाम् । संहितां शुश्रुवुः सायं नीराजनोत्तरं ततः ।। ), कथासरित् १२.१०.८९ ( कथा समाप्ति पर शुक का शाप मुक्त होकर चित्ररथ नामक गन्धर्व बनकर स्वर्ग - गमन का उल्लेख - इति उक्तवान् एव शुकः भूत्वा चित्ररथाभिधः।क्षीणैन्द्रशापः गन्धर्वः दिव्यरूपः दिवम् ययौ॥), १४.२.१ ( वीणादत्त नामक गन्धर्व द्वारा कूप स्थित नरवाहनदत्त के उद्धार का कथन - ततः कूपस्थितं तत्र गन्धर्वः कोऽप्यवैक्षत । नरवाहनदत्तं तं वीणादत्त इति श्रुतः ।।), भरतनाट्य १३.२४(हेमकूट पर गन्धर्व-अप्सराओं के वास का उल्लेख - हेमकूटे च गन्धर्वा विज्ञेयाः साप्सरोगणाः ॥), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२५टीका (गन्धर्वों द्वारा देवनन्दार्थ नृत्य करने का उल्लेख -  यक्षा गायन्ति गाथाः । गन्धर्वा  देवानन्दार्थं नृत्यन्ति ।) ; द्र. गान्धर्व gandharva

Veda study on Gandharva

 

गन्धर्वविवाह विष्णु ३.१०.२४ ( ८ प्रकार के विवाहों में से एक ), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.५ (  विवाह के ८ प्रकारों में से एक, गन्धर्व विवाह से विवाहित भार्या के पितृदत्तका होने का उल्लेख ), भागवत ३.३.३ (कृष्ण व रुक्मिणी के गन्धर्व विवाह का उल्लेख ), ९.२०.१६ ( दुष्यन्त व शकुन्तला के गन्धर्व विवाह का उल्लेख )  ।