पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Gangaa - Goritambharaa)

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

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Gangaa - Gangaa ( words like Grihapati, Grihastha/householder etc. )

Gangaa - Gaja (Gangaa, Gaja/elephant etc.)

Gaja - Gajendra (Gaja, Gaja-Graaha/elephant-crocodile, Gajaanana, Gajaasura, Gajendra, Gana etc.)

Gana - Ganesha (Ganapati, Ganesha etc.)

Ganesha - Gadaa (Ganesha, Gandaki, Gati/velocity, Gada, Gadaa/mace etc. )

Gadaa - Gandhamaali  ( Gadaa, Gandha/scent, Gandhamaadana etc. )

Gandharva - Gandharvavivaaha ( Gandharva )

Gandharvasenaa - Gayaa ( Gabhasti/ray, Gaya, Gayaa etc. )

Gayaakuupa - Garudadhwaja ( Garuda/hawk, Garudadhwaja etc.)

Garudapuraana - Garbha ( Garga, Garta/pit, Gardabha/donkey, Garbha/womb etc.)

Garbha - Gaanabandhu ( Gavaaksha/window, Gaveshana/research, Gavyuuti etc. )

Gaanabandhu - Gaayatri ( Gaandini, Gaandharva, Gaandhaara, Gaayatri etc.)

Gaayana - Giryangushtha ( Gaargya, Gaarhapatya, Gaalava, Giri/mountain etc.)

Girijaa - Gunaakara  ( Geeta/song, Geetaa, Guda, Gudaakesha, Guna/traits, Gunaakara etc.)

Gunaakara - Guhaa ( Gunaadhya, Guru/heavy/teacher, Guha, Guhaa/cave etc. )

Guhaa - Griha ( Guhyaka, Gritsamada, Gridhra/vulture,  Griha/home etc.)

Griha - Goritambharaa ( Grihapati, Grihastha/householder etc.)

 

 

 

 

 

 

 

Puraanic contexts of words like Ganesha, Gandaki, Gati/velocity, Gada, Gadaa/mace etc. are given here.

गणेश्वर ब्रह्माण्ड २.३.३२.२३ ( शिव के वाम भाग में कार्तिकेय तथा दक्षिण भाग में गणेश्वर / गणेश की स्थिति का उल्लेख ), ३.४.२७.९९ ( भण्डासुर - सेनानी गजासुर के साथ युद्ध का उल्लेख ), ३.४.४४.७० ( ५१ वर्णों के गणेशों में से एक नाम ) ।

 

गण्ड ब्रह्म २.९५.२९ ( सूर्य - पुत्री विष्टि व विश्वरूप के ७ पुत्रों में से एक ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३७ ( पुण्यक व्रत में गण्ड सौन्दर्य हेतु लक्ष रत्नगेन्दुक दान का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण २.१९०.९० ( श्रीहरि का गण्ड नामक नृप की लीशवन नामक नगरी में गमन व सत्कार का कथन), ४.४९ ( यास्कवाद नामक चक्री की पत्नी गण्डवाता की हरिकथा श्रवण से मोक्ष की कथा ) । ganda

 

गण्डक पद्म ७.६.४ ( भीमनाद नामक गण्डक द्वारा प्रजा का क्षोभन, वीरवर द्वारा गण्डक का हनन, पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४७ ( कृतघ्न के गण्डक बनने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१६७.३१( गण्डक नामक नृप के ऋषि, कुटुम्ब व प्रजा के साथ यज्ञभूमि में आगमन का उल्लेख ) ।

 

गण्डकी गणेश २.७३.५ ( गण्डकी नगर में राजा चक्रपाणि का वृत्तान्त ), २.७७.११ ( सिन्धु द्वारा विष्णु से गण्डकी नगर में वास करने के वर की प्राप्ति ), २.११२.१० ( सिन्धु की गण्डकी पुरी में शिव गणों का युद्ध हेतु आगमन ), पद्म ५.२०.१२ ( गण्डकी नदी में उत्पन्न चक्र चिह्न से अङ्कित शिला / शालग्राम के माहात्म्य का वर्णन : पुल्कस जातीय शबर की शालग्राम स्पर्श से मुक्ति ), ६.७५ ( गण्डकी नदी के माहात्म्य का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१३.३ ( गण्डकी नदी के तीर पर गन्धर्व - पत्नियों द्वारा उपबर्हण गन्धर्व के दर्शन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२६ ( हिमवत्पाद से नि:सृत नदियों में से एक ), भागवत १०.७९.११ ( बलराम का तीर्थयात्रा प्रसंग में गण्डकी में स्नान का उल्लेख ), मत्स्य ११४.२२ ( गण्डकी नदी के हिमालय - पाद से नि:सृत होने का उल्लेख ), १३३.२३ (गङ्गा, सिन्धु प्रभृति नदियों के साथ गण्डकी नदी का त्रिपुरारि - रथ के वेणु स्थान पर नियुक्त होने का उल्लेख ), वराह १४४.३९ ( गण्डकी द्वारा तप, विष्णु द्वारा वर प्रदान, शालग्राम शिला रूप में विष्णु का गण्डकी के गर्भ में वास, गण्डकी के माहात्म्य का वर्णन ), १४४.१२२ ( गण्ड स्वेद से गण्डकी नदी की उत्पत्ति का उल्लेख ), वामन ५७.५९ ( गण्डकी नदी द्वारा स्कन्द को सुबाहु नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ४५.९६ ( हिमवत्पाद से नि:सृत नदियों में से एक ), १०८.७९ ( लोमश ऋषि द्वारा आवाहित नदियों में से एक, गण्डकी में स्नान कर पिण्ड दान से पितरों के स्वर्ग पहुंचाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४७( गण्डकी नदी द्वारा पुरुष नामक वाहन से विष्णु के अनुगमन का उल्लेख ), शिव २.५.४१.४४ ( विष्णुप्रिया तुलसी के गण्डकी नदी रूप में परिणत होने का उल्लेख ), स्कन्द २.४.२८.१८ ( जय - विजय का परस्पर शापवश गण्डकी तट पर गज - ग्राह बनना, कार्तिक में गण्डकी में स्नान हेतु जाने पर गज का ग्राह द्वारा बन्धन, विष्णु द्वारा चक्र से गज - ग्राह के उद्धार का वर्णन ), ६.२५१.२५ ( गण्डकी नदी के विमल जल में शालग्राम रूप विष्णु के निवास का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३३७.१०८ ( तुलसी के शाप से विष्णु के शालग्राम पाषाण होने तथा विष्णु के शाप से तुलसी के गण्डकी नदी होने का उल्लेख ), १.३३८.८५ ( शालग्राम युक्त गण्डकी के विष्णु - प्रिया होने का उल्लेख ), १.३४०.३६ ( तपोरत विष्णु के गण्डस्थल से प्रवाहित स्वेद जल से गण्डकी की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का वर्णन ), २.१०० ( गण्डकी तीर पर चक्रवाकी के स्वमाता से मिलन का कथन ) । gandaki/gandakee

 

गण्डगल्ल ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८२ ( भण्ड का एक पुत्र तथा सेनापति ) ।

 

गण्डान्तरति मार्कण्डेय ४८.३/ ५१.३, १८ ( दुःसह व निर्मार्ष्टि के आठ पुत्रों में से एक, गण्डान्तरति के कर्म व दोषशमन के उपाय का कथन ) ।

 

गण्डिका पद्म ६.७५ ( गण्डिका तीर्थ का माहात्म्य ), मत्स्य ११३.४८ ( अमरगण्डिक व पूर्वगण्डिक पर्वत का वर्णन ), वायु ४३.१ ( गन्धमादन पर्वत के पार्श्व में स्थित गण्डिका क्षेत्र की महिमा का वर्णन ) ।

 

गण्डूष ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५० ( शूर के दस पुत्रों में से एक ), २.३.७१.१९१ ( शूर - पुत्र गण्डूष के नि:सन्तान होने के कारण श्रीकृष्ण द्वारा स्वपुत्रों चारुदेष्ण व साम्ब को प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ९६.१४८, १८८ ( शूर के दस पुत्रों में से एक, वसुदेव - भ्राता, कृष्ण द्वारा चारुदेष्ण व साम्ब नामक  पुत्रों को नि:सन्तान गण्डूष को प्रदान करने का उल्लेख ), विष्णु ४.१४.३० ( शूर व मारिषा के वसुदेव प्रमुख दस पुत्रों में से एक ) । ganduusha/ gandoosha/ gandusha

 

गतायु वायु ९१.५२ ( पुरूरवा के ६ पुत्रों में से एक ) ।

 

गति गणेश २.१४४.१ ( शुक्ल व कृष्ण गतियों का वर्णन ), गर्ग ५.११.१२(बलि - पुत्र मन्दगति का त्रित मुनि के शाप से कुवलयपीड हाथी बनना), देवीभागवत ८.१५(सूर्य रथ के मार्ग व गति का वर्णन), पद्म १.२०.१०८( सुगति व्रत की संक्षिप्त विधि व फल ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५५ ( पुण्यक व्रत में गति सौन्दर्य हेतु सहस्र स्वर्णनिर्मित खञ्जन पक्षियों के दान का निर्देश ), ३.४.५६( गति हेतु राजहंस व गज दान का निर्देश ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१७२( पाताल से द्युलोक तक पञ्चविध गति का उल्लेख ), १.२.३४.६५( याज्ञवल्क्य - शाकल्य वाद - विवाद में अध्यात्म की मुख्य गति के रूप में सांख्य, योग अथवा ध्यान मार्ग का प्रश्न ), भागवत ३.२४.२३, ४.१.३८ ( कर्दम - कन्या, पुलह -पत्नी, कर्मश्रेष्ठ वरीयान् व सहिष्णु - माता ), ७.१२.२६( पदों व गति को वयों/पक्षियों में लीन करने का निर्देश ), मत्स्य १००.२( राजा पुष्पवाहन द्वारा दिव्य स्वर्ण कमल रूपी यान से यथेष्ट विचरण का कथन ), १८२.२४( मणिकर्णिका में देह त्याग से इष्ट गति प्राप्त करने का उल्लेख ), वामन ७८.६० ( गतिभास : धुन्धु दैत्य को जीतने के लिए विष्णु का वामन रूपधारी ब्राह्मणकुमार बनना, ऋत्विजों के पूछने पर स्वयं को वरुणगोत्रीय प्रभास का पुत्र बतलाते हुए अपना नाम गतिभास बतलाना ), वायु ५७.७८( चक्रवर्ती की गजेन्द्र गतियों का उल्लेख ), ५७.११७( यज्ञ, तप, कर्म संन्यास आदि ५ गतियों का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२९ ( अभिनय में गतिप्रचार का वर्णन ), शिव २.५.८.१५(श्रद्धा : शिव रथ में गति का रूप), स्कन्द ५.२.४५.३२ ( कपोत द्वारा प्रडीन आदि ८ गतियों के नामों का उल्लेख ), ५.३.१०३.१४( पौत्र से परम गति के जय का उल्लेख ), ७.१.१२३.४( प्रभास में शिव क्षेत्र में रावण के पुष्पक विमान का निश्चल होना ), लक्ष्मीनारायण १.४७२.२९( पारावत - कथित प्रडीन आदि १६ गतियों के नाम  ), १.४९८.४१( दमयन्ती द्वारा विप्र पत्नियों को आभूषण दान करने पर विप्रों का गति भ्रष्ट होना ),२.२५२.५५ ( पैत्री, आर्षी, शाम्भवी आदि गतियों का वर्णन ), ३.१०.९( तुङ्गभद्रिका द्वारा ग्रहों की गति को रोकना, ग्रहों द्वारा गति प्रदान हेतु प्रार्थना, तुङ्गभद्रिका द्वारा स्व - पुत्री के कृष्ण के साथ विवाहोपरान्त ग्रहों को गति प्रदान करना ), ३.११३.६३( नास्तिक वैवर्त राजा के प्रेत की गति रुद्ध होना ), ४.७२.१( देवगतीश्वर नामक अर्धज्योतिषी द्वारा रोगों से दुःख प्राप्ति तथा श्रीहरि की कृपा से स्वर्ग प्राप्ति का वृत्तान्त ), महाभारत वन १८१.८( स्वर्ग की ओर गति के संदर्भ में ३ गतियों का कथन ), शान्ति २१४.२४( शुक्र गति को जानने का निर्देश, भूतसंकरकारिका होने का उल्लेख ), २९८.२८( मर्त्य अर्णव में जन्तु की कर्म व विज्ञान द्वारा गति होने का कथन ), आश्वमेधिक १७.१६( मृत्युकाल में जन्तु की गति का वर्णन ) ; द्र. सुगति । gati

 

गद अग्नि ११४.२६ ( गद नामक असुर का विष्णु द्वारा वध तथा गद की अस्थियों से विश्वकर्मा द्वारा गदा निर्माण का उल्लेख ), गर्ग १.५.२५ ( राजा प्राचीनबर्हि के गद के रूप में प्रकट होने का उल्लेख ), ६.६.३० ( बलदेव - अनुज, कृष्ण व रुक्मिणी विवाह में गद के शाल्व आदि से युद्ध का कथन ), ७.१०.१( प्रद्युम्न की कोंकण विजय में गद द्वारा कोङ्कण - अधिपति मेधावी को पराजित करने का कथन ), ७.२०.३४ ( प्रद्युम्न - सेनानी गद के विदुर से युद्ध का उल्लेख ), ७.२४.३८ ( गद द्वारा कुबेर - सेनानी वीरभद्र को पराजित करने का कथन ), ७.२६.५७ ( गद द्वारा शृङ्गारतिलक राजा को पराजित करने का उल्लेख ), ७.४६.११ ( गद का गन्धर्वों तथा गन्धर्वराज पतङ्ग से युद्ध ), १०.२४.४८ ( अनिरुद्ध - सेनानी गद का अनुशाल्व दैत्य से युद्ध ), १०.३०.१७ ( गद का नद दैत्य से युद्ध व नद के वध का कथन ), १०.३७.१८ ( गद को जीतने के लिए शिव द्वारा वीरभद्र गण के प्रेषण का उल्लेख ), भागवत १.१४.२८ ( यादव वीरों में से एक ), २.३.१९, ४.२३.१२(तावन्न योगगतिभिर्यतिरप्रमत्तो      यावद्‍गदाग्रजकथासु रतिं न कुर्यात् ॥), १०.४१.३२( रजकं कञ्चिदायान्तं रङ्‌गकारं गदाग्रजः । दृष्ट्वायाचत वासांसि धौतान्यत्युत्तमानि च ॥), १०.४७.४०(कच्चिद्गदाग्रजः सौम्य करोति पुरयोषिताम्।), १०.५२.४० ( श्रीकृष्ण का गद के अग्रज रूप में उल्लेख - आराधितो यदि गदाग्रज एत्य पाणिं। गृह्णातु मे न दमघोषसुतादयोऽन्ये। ), ९.२४.४६ ( वसुदेव व रोहिणी के अनेक पुत्रों में से एक ), ९.२४.५२ (वसुदेव व देवरक्षिता के ९ पुत्रों में से एक ), वामन ९०.३१( गोमती में विष्णु की छादितगद नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), विष्णु ४.१५.२४ ( वसुदेव व भद्रा - पुत्र ), हरिवंश २.३६.३ (गद के साथ शिशुपाल के युद्ध का उल्लेख - गदेन चेदिराजस्य दन्तवक्त्रस्य शङ्कुना । ), २.९४.५० ( यदुवीर गद के असुर - कन्या चन्द्रवती से विवाह का उल्लेख - चन्द्रवत्या गदः साम्बो गुणवत्या च कैशविः ।।), लक्ष्मीनारायण २.१७६.४६ ( ज्योतिष में एक योग ) । gada

 

गदवर्मा ब्रह्माण्ड २.३.७१.१३८ ( विदूरथ - सुत शूर के बारह पुत्रों में से एक ), वायु ९६.१३७ ( विदूरथ - सुत शूर के १२ पुत्रों में से एक ) ।

 

गदा अग्नि २५.१३ ( गदा पूजा हेतु बीज मन्त्र का उल्लेख - कं टं पं शं वैनतेयः खं ठं फं षं गदामनुः । ), ११४.२७ ( गद नामक असुर की अस्थियों से विश्वकर्मा द्वारा गदा का निर्माण, विष्णु द्वारा गदा से हेति आदि राक्षसों के वध का कथन - गदो नामासुरो दैत्यः स हतो विष्णुना पुरा ॥ तदस्थिनिर्मिता चाद्या गदा या विश्वकर्मणा । ), २५२.११ (आहत, विहृत, प्रभूत आदि गदा के कर्मों का कथन - आहतं विप्र गोमूत्रप्रभूतङ्कमलासनं । ततोर्द्धगात्रं नमितं वामदक्षिणमेव च ।।), २५२.१९( संत्याग, अवदंश आदि गदा युद्ध के कर्मों का कथन - सन्त्यागमवदंशश्च वराहोद्धूतकं तथा । हस्तावहस्तमालीनमेकहस्तावहस्तके ।। ), गरुड ३.१२.७९(वायु के अस्त्र गदा का उल्लेख),  गर्ग ७.१६.१२ ( प्रद्युम्न द्वारा मिथिलापुरी के गृहों की दीवारों पर गदा, पद्म, शंख आदि का चित्राङ्कन तथा ललाटों पर ऊर्ध्वपुण्ड्र व गदा की मुद्राओं के चित्राङ्कन का दर्शन - गदां मुद्रां ललाटे च ऊर्ध्वं वा हरिनामतः ॥ चक्रं शङ्खं च कमलं कूर्मं मत्स्यं भुजद्वये ॥ ), देवीभागवत ५.९.२०( त्वष्टा द्वारा देवी को कौमोदकी गदा भेंट करने का उल्लेख ), नारद १.६६.९०( मातृका न्यास के संदर्भ में गदी विष्णु  की शक्ति दुर्गा का उल्लेख ), २.४७.१ ( गदालोल तीर्थ : गया में स्थिति, हेति वध के पश्चात् विष्णु द्वारा गदा के प्रक्षालन स्थान की गदालोल तीर्थ रूप में प्रसिद्धि - इत्युक्तास्ते ततो देवा विष्णवे तां गदां ददुः ।। उपेंद्र त्वं जहीत्येव हेतिं प्रोचुरजादयः ।। ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.८४ ( दुर्योधन का बलभद्र से गदा सीखने का उल्लेख ), भागवत .८.२०( केशव से प्रात:काल गदा द्वारा रक्षा की प्रार्थना - मां केशवो गदया प्रातरव्याद्गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः। ), ६.८.२४ ( नारायण कवच के अन्तर्गत कौमोदकी गदा से अशनिस्पर्शन आदि से रक्षा की प्रार्थना ), १०.५७.२६ ( दुर्योधन द्वारा बलराम से गदायुद्ध की शिक्षा ग्रहण का उल्लेख ), १०.५९.४ ( कृष्ण द्वारा गदा प्रहार से मुर दैत्य - निर्मित पाशों, अद्रियों का ध्वंस तथा दैत्य के वध का कथन ), १२.११.१४(ओज,  सह, बल युक्त मुख्य तत्त्व के गदा होने का उल्लेख- ओजःसहोबलयुतं मुख्यतत्त्वं गदां दधत् अपां तत्त्वं दरवरं तेजस्तत्त्वं सुदर्शनम्),  महाभारत द्रोण १४.१७(रणनदी की उपमा में चक्रों की कूर्मों व गदाओं की नक्रों से तुलना आदि), १५( भीम व शल्य का गदायुद्ध), ९५.५०, शल्य १२.३(भीम व शल्य में गदायुद्ध का वर्णन), २९.४४ (दुर्योधन द्वारा माया से ह्रद जल का स्तंभन करके जल में प्रवेश), ५८.४४.७(भीम द्वारा गदा से दुर्योधन की ऊरु का भेदन - प्रतिज्ञातं च भीमेन द्यूतकाले धनञ्जय। ऊरू भेत्स्यामि ते सङ्ख्ये गदयेति सुयोधनम्।।    ), वराह ३१.१६(अधर्मगज घातार्थ गदा का उल्लेख), १४३.५० ( परम गुह्य मन्दार पर्वत के दक्षिण स्थान में चक्र तथा वाम स्थान में गदा की स्थिति का उल्लेख - दक्षिणे संस्थितं चक्रं वामे स्थाने च वै गदा ।। ), १४५.५३ ( गदा कुण्ड क्षेत्र का संक्षिप्त माहात्म्य :गदाकुण्ड में प्राणत्याग से विष्णुलोक की प्राप्ति - गदाकुण्डमिति ख्यातं तस्मिन्क्षेत्रे परं मम ।। यत्र वै कम्पते स्रोतो दक्षिणां दिशामाश्रि तम् ।। ), वायु १०९.१ /२.४७.११( गद असुर की अस्थियों से गदा का निर्माण, विष्णु द्वारा गदा से हेति असुर का वध - दधार तां गदामादौ देवैरुक्तो गदाधरः । गदया हेतिमाहत्य देवैः स त्रिदिवं ययौ ।। ), विष्णु ४.१३.१०६ ( दुर्योधन का बलराम से गदा सीखने का उल्लेख - यावच्च जनकराजगृहे बलभद्रो ऽवतस्थे तावद्धार्त्तराष्ट्रो दुर्योधनस्तत्सकाशाद्गदाशिक्षामशिक्षयत्। ), ५.३४.२० (वासुदेव द्वारा गदा तथा चक्र निपात आदि से वासुदेव रूप धारी पौण्ड्रक का वध ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०६.६६ ( गदा आवाहन मन्त्र - गायत्रीं देवजननीं कालरात्रीं भयङ्करीम् ।। एहि कौमोदकि गदे समस्तासुरनाशिनि ।। ), स्कन्द २.१.६.६४( भक्त हेतु ललाट में गदा धारण का निर्देश - भुजद्वये शंखचक्रे मूर्ध्नि शार्ङ्गशरौ तथा ।। ललाटे तु गदा धार्या हृदये खड्गमेव च ।।  ),३.१.३६.९९(कौमोदकी गदा का कार्य – अपस्मारादि भूतों का नाश - गदा कौमोदकी नाम नारायणकरस्थिता ।। अपस्मारादिभूतानि नाशयत्येव सर्वदा ।।), ४.२.८४.१० ( गदा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य – संसारगदनाशन - गदातीर्थं तदग्रे तु संसारगदनाशनम् ।। तत्र श्राद्धादिकरणात्पश्येद्देवं गदाधरम् ।।), हरिवंश २.९०.१३ ( निकुम्भ द्वारा गदा से युद्ध का उल्लेख ), ३.५४.१६(युद्ध में प्रस्तारों की गदाओं से उपमा - इध्माः परिधयस्तत्र प्रस्तारा विपुला गदाः ।), लक्ष्मीनारायण २.५.८४ (संकर्षण की गदा द्वारा हिरण्यकूर्च असुर के वध पर उत्पन्न असुरों के नाम - ववल्गुर्ब्रह्मकूर्चं तं तदा संकर्षणाद्धि सः । गदया मृत्युमापन्नस्तस्य देहमलानि तु ।।) २.१५७.४० ( गदा हेतु जानु जङ्घा में नमस्कार का उल्लेख - शंखाय लिंगे वृषणे गदायै जानुजंघयोः ।। ), ३.६०.७८( श्रीहरि द्वारा स्वभक्ता चिदम्बरा को गदा प्रदान करने का कथन - चिदम्बरोक्तं श्रुत्वैव मया लक्ष्मि गदा मम । सर्वसंहारतेजोभिर्युक्ता तस्यै समर्पिता ।। ), ३.६१.१२ ( गोदल नगरी वासी चिदम्बरा नामक रानी की भगवद् गदा द्वारा राक्षसों से रक्षा का वर्णन - सस्मार तां गदां कौमुदकीं गदा द्रुतं पुरः । आगता च ततो राज्ञ्या त्वाज्ञप्ता रक्षणाय वै ।। ), कृष्णोपनिषद १.२३( गदा के कालिका होने का उल्लेख -  गदा च काळिका साक्षात्सर्वशत्रुनिबर्हिणी । ), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद २.२.२६( गदा के आद्या विद्या होने का उल्लेख - आद्या माया भवेच्छार्ङ्गं पद्मं विश्वं करे स्थितम् । आद्या विद्या गदा वेद्या सर्वदा मे करे स्थिता ॥ ) । gadaa

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