पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Gangaa - Goritambharaa)

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

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Gangaa - Gangaa ( words like Grihapati, Grihastha/householder etc. )

Gangaa - Gaja (Gangaa, Gaja/elephant etc.)

Gaja - Gajendra (Gaja, Gaja-Graaha/elephant-crocodile, Gajaanana, Gajaasura, Gajendra, Gana etc.)

Gana - Ganesha (Ganapati, Ganesha etc.)

Ganesha - Gadaa (Ganesha, Gandaki, Gati/velocity, Gada, Gadaa/mace etc. )

Gadaa - Gandhamaali  ( Gadaa, Gandha/scent, Gandhamaadana etc. )

Gandharva - Gandharvavivaaha ( Gandharva )

Gandharvasenaa - Gayaa ( Gabhasti/ray, Gaya, Gayaa etc. )

Gayaakuupa - Garudadhwaja ( Garuda/hawk, Garudadhwaja etc.)

Garudapuraana - Garbha ( Garga, Garta/pit, Gardabha/donkey, Garbha/womb etc.)

Garbha - Gaanabandhu ( Gavaaksha/window, Gaveshana/research, Gavyuuti etc. )

Gaanabandhu - Gaayatri ( Gaandini, Gaandharva, Gaandhaara, Gaayatri etc.)

Gaayana - Giryangushtha ( Gaargya, Gaarhapatya, Gaalava, Giri/mountain etc.)

Girijaa - Gunaakara  ( Geeta/song, Geetaa, Guda, Gudaakesha, Guna/traits, Gunaakara etc.)

Gunaakara - Guhaa ( Gunaadhya, Guru/heavy/teacher, Guha, Guhaa/cave etc. )

Guhaa - Griha ( Guhyaka, Gritsamada, Gridhra/vulture,  Griha/home etc.)

Griha - Goritambharaa ( Grihapati, Grihastha/householder etc.)

 

 

 

 

 

 

 

Puraanic contexts of words like Garga, Garta/pit, Gardabha/donkey, Garbha/womb etc. are given here.

गरुडपुराण विष्णु ३.६.२३ ( गारुड : १८ महापुराणों में से एक ) ।

 

गरुत्मत्हृदया मत्स्य १७९.७१ ( विष्णु के अङ्गों से सृष्ट ३२ मातृकाओं में से एक, नृसिंह विग्रहधारी विष्णु के गुह्यप्रदेश से प्रकट भवमलिनी नामक मातृका की आठ अनुचरियों में से एक ) ।

 

गर्ग गर्ग ०.१+ ( नारद का गर्ग मुनि को संहिता - निर्माण हेतु प्रेरित करना, गर्ग द्वारा गर्ग संहिता की रचना, संहिता का माहात्म्य तथा श्रवण - विधि ), १.५.१८ ( वसुदेव - प्रेषित गर्गाचार्य का नन्द भवन में आगमन, नन्द के कहने पर गर्गाचार्य द्वारा कृष्ण व बलराम का नामकरण संस्कार ), १.५.४० ( गर्ग का वृषभानु - पुरी में गमन, वृषभानु - पुत्री राधिका का कृष्ण के साथ पाणिग्रहण का कथन ), ७.२.२० ( प्रद्युम्न के विजयाभिषेक पर गर्ग मुनि द्वारा प्रद्युम्न को कृष्ण कवच तथा यन्त्र प्रदान करने का उल्लेख ), ८.१३ ( गर्ग द्वारा बलभद्र सहस्रनाम का कथन ), ९.१०.२३ ( गर्ग मुनि - प्रणीत गर्ग संहिता की फलश्रुति का वर्णन ), देवीभागवत ०.२.४७ ( वसुदेव व देवकी द्वारा यादवों के गुरु गर्ग से पुत्र हेतु प्रार्थना, गर्ग द्वारा देवी आराधना रूप उपाय का कथन ), नारद १.९.११३ ( कलिङ्ग देशोत्पन्न गर्ग नामक विप्र द्वारा गङ्गाजल से कल्माषपाद आदि राक्षसों के उद्धार का कथन ), पद्म १.३४.१९ ( ब्रह्मा के यज्ञ में अध्वर्यु बनने का उल्लेख ), ब्रह्म १.७६.१ ( गर्ग मुनि द्वारा गोकुल में प्रच्छन्न रूप में किए गए राम व कृष्ण के नामकरण संस्कार का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१३ ( कृष्ण के नामकरण व अन्नप्राशन संस्कार हेतु वसुदेव द्वारा महामुनि  गर्ग को नन्द के गृह में भेजना, गर्ग द्वारा नन्द से स्व - आगमन का प्रयोजन कथन, बालक का कृष्ण नामकरण , गर्ग द्वारा बालरूप कृष्ण की स्तुति का वर्णन ), ४.९९ ( गर्ग का वसुदेव के पास गमन तथा उन्हें कृष्ण व बलभद्र के उपनयन संस्कार हेतु परामर्श ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०७ ( ३३ आङ्गिरस मन्त्रकर्त्ता ऋषियों में से एक ), २.३.२८.३९ ( हैहय - पुरोहित गर्ग द्वारा हैहयराज को जमदग्नि की गौ के हरण रूप कर्म की गर्हितता का निरूपण ), २.३.६७.६९ ( दिवोदास - सुत प्रतर्दन के दो पुत्रों में से एक ), भविष्य ३.४.२१.१४ ( कलियुग में कण्व - पौत्र के रूप में जन्म ), ४.१४५ ( गर्ग द्वारा नक्षत्र - व्याधि से मुक्ति का उपाय पूछने पर कौशिक द्वारा नक्षत्र - होम विधि का वर्णन ), भागवत १०.८ ( यदुवंशियों के कुल पुरोहित गर्ग द्वारा कृष्ण व बलराम के नामकरण संस्कार का वर्णन ), १०.४५.२९ ( गर्ग द्वारा कराए गए यज्ञोपवीत संस्कार से कृष्ण व बलराम को द्विजत्व प्राप्ति का कथन ), १०.७४.८ ( युधिष्ठिर द्वारा राजसूय यज्ञ में आमन्त्रित वेदवादी ब्राह्मणों में गर्ग का उल्लेख ), मत्स्य २०.३ ( कौशिक ऋषि के स्वसृप, क्रोधन आदि सात पुत्रों के गर्ग महर्षि के शिष्य होने का उल्लेख ), ४९.३६ ( भुवमन्यु के ४ पुत्रों में से एक, शिबि - पिता ), १४५.१०१ ( अङ्गिरा गोत्रीय ३३ मन्त्रकर्त्ता ऋषियों में से एक ), १९१.८२ (गर्गेश्वर तीर्थ में स्नान से स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), २५२.३ ( वास्तुशास्त्र के १८ उपदेशकों में से एक ), मार्कण्डेय १६/१८.१३० ( गर्ग मुनि द्वारा राज्य - विमुख कार्त्तवीर्य अर्जुन को राज्य करने के उपदेश का वर्णन ), ७२/७५.१३ ( पुत्र के कुव्यवहार से दग्ध - हृदय ऋतवाक् मुनि का गर्ग मुनि से पुत्र के दुर्व्यवहार का कारण पूछना, गर्ग द्वारा रेवती नक्षत्र में जन्म से पुत्र की दुर्व्यवहारता का कारण निरूपित करना ), वायु ९२.६५ ( दिवोदास - सुत प्रतर्दन के दो पुत्रों में से एक),१०६.३५ ( ब्रह्मा द्वारा गया में यज्ञ सम्पादन हेतु मानस - सृष्ट ऋत्विजों में से एक ), विष्णु २.५.२६ ( गर्ग ऋषि का शेषनाग से ज्योतिष शास्त्र सीखने का उल्लेख ), ४.१९.२१ ( मन्यु -पुत्र, शिनि - पिता ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३५+ ( गर्ग मुनि द्वारा नानाविध उत्पात तथा उत्पात - शान्ति का कथन ), शिव ३.४.३६ ( नवम द्वापर में ऋषभ नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर शिव के चार शिष्यों में से एक ), ३.५.४९ ( २८वें द्वापर में लकुली नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार शिष्यों में से एक ), स्कन्द १.१.११.३४ ( समुद्र मन्थन से चन्द्रमा के प्राकट्य पर गर्ग द्वारा मुहूर्त ज्योतिष का कथन ), १.१.२४.१ ( शिव विवाह में पुरोहित बनने का उल्लेख ), ३.३.१.५५ ( गर्ग द्वारा दाशार्हराज को शिव पञ्चाक्षरीमन्त्र की दीक्षा देने का कथन ), स्कन्द ४.२.७४.१२( गर्ग द्वारा दमन विप्र को काशी के माहात्म्य का वर्णन ), ५.१.२५.३ ( गर्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ६.५७ ( गर्ग मुनि के त्रिशङ्कु के यज्ञ में होता बनने का उल्लेख ), ६.१८०.३४ ( ब्रह्मा के यज्ञ में गर्ग के ब्राह्मणाच्छंसी बनने का उल्लेख ), ७.१.८.११ ( प्रभास में सोमेश्वर द्वारा रुद्र, विप्र, दान, चन्द्र, मन्थ, अवलोकक तथा सूर्यावलोकक नामक सात गार्गेयों की सिद्धि का कथन  ), ७.१.२३.९६ ( चन्द्रमा के यज्ञ में सुब्रह्मण्य बनने का उल्लेख ), ७.१.१७३ ( गर्गेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), वा.रामायण ०.२.४९ ( कलिङ्ग देशोत्पन्न गर्ग मुनि द्वारा रामायण कथा वाचन से सोमदत्त / सुदास की राक्षसत्व से मुक्ति की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१ ( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.४४७.६५( दाशार्हराज द्वारा गर्ग से गुरुमन्त्र ग्रहण कर पापमुक्त होना ), १.५०९.२५( ब्रह्मा के सोमयाग में सत्रवीक्षक ) । garga

गर्ग गृ - विज्ञाने । गर्ग विज्ञानमय कोश के ऋषि हैं। यह ज्योतिष के ज्ञाता हैं। विज्ञानमय कोश की विशेषता यही है कि उसमें ज्योतिष स्वयं प्रस्फुúटित हो जाती है । विज्ञानमय कोश तक जिसका ध्यान पुष्ट हो गया हो वह गर्ग है । - फतहसिंह

Remarks by Dr. Fatah Singh

 

गर्जन पद्म ३.१७.३ ( नर्मदा कूल पर गर्जन तीर्थ की स्थिति, गर्जन तीर्थ के प्रभाव से मेघ को इन्द्रजित् नाम प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य १९०.३ ( गर्जन तीर्थ के प्रभाव से मेघनाद को इन्द्रजित् नाम प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.५.८७ ( ब्रह्मकूर्च नामक महासुर के करुण आक्रन्दन से गर्जन नामक पुत्र की उत्पत्ति का उल्लेख ) । garjana

 

गर्त्त पद्म २.२२.२५ ( संसार रूपी गर्त्त, उपमा ), ब्रह्माण्ड १.२.११.४१ ( वसिष्ठ व ऊर्जा के सात सप्तर्षि प्रथित पुत्रों में से एक ), मार्कण्डेय १९/२१.९ ( वराह रूप धारी दैत्य का पीछा करते हुए दैत्य के साथ ऋतध्वज का भी पृथ्वी में बने महागर्त्त में पतन, पाताल में प्रवेश, मदालसा के दर्शन, दैत्य वध का वृत्तान्त ), ११३/११६.११ ( विदूरथ द्वारा पृथ्वी में महान् गर्त्त का दर्शन, सुव्रत नामक तपस्वी द्वारा कुजृम्भ दैत्य निर्मित रसातल के द्वार रूप में गर्त्त के रहस्य का कथन ), स्कन्द ६.५३.९ ( भ्रूणगर्त तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन, शिवलिङ्ग पतन से गर्त्त बनने के रहस्य का कथन ), ७.३.१+ ( उत्तङ्क द्वारा कुण्डल - चोर तक्षक के अन्वेषणार्थ भूमि के खनन से गर्त की उत्पत्ति, नन्दिनी गौ का गर्त्त में पतन, सरस्वती जल से गर्त्त पूरण पर गौ का बहि: निस्सरण, पुन: अर्बुदाचल द्वारा पूरण करने का वृत्तान्त ), योगवासिष्ठ ६.१.९१.२१ ( खात की तप से उपमा ),वा. रामायण ७.५४(नृग द्वारा पुत्र वसु को राज्य देकर विशेष प्रकार से निर्मित गर्त्त में शाप भोगने का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.५३.४० ( रैवत द्वारा सौराष्ट्र नामक भूखण्ड से पृथिवी के विवर को पूरित करने का वर्णन ), १.२२२.५१ ( कृकलास योनि को प्राप्त राजा नृग का गर्त्त में वास, कृष्ण दर्शन से कृकलास योनि से मुक्ति, गर्त्त की नृगकूप तीर्थ नाम से प्रसिद्धि ), ४.८४.१६ ( नागविक्रम राजा के सेनापति कुवर द्वारा गर्त्तमन्त्र शस्त्र से शैलवज्र सेनापति के वध का कथन ), कथासरित् १२.६.१०७(कश्मीर में मय द्वारा निर्मित भूविवर का महत्त्व ) । garta

 

गर्दभ गर्ग २.११.३८ ( दुर्वासा के शाप से धेनुकासुर को गर्दभ रूप की प्राप्ति, बलराम द्वारा वध ), ७.३०.५ ( कलङ्क राक्षस के गर्दभ / खर वाहन का उल्लेख ), ७.३४.२२ ( वृक दैत्य का गर्दभ / खर पर आरूढ होकर अनिरुद्ध से युद्ध का कथन ), १०.३१.१ ( सिंह दैत्य का वाहन ), देवीभागवत ४.१४.५१ ( बलि द्वारा छिपने के लिए गर्दभ रूप धारण का उल्लेख ), ११.६.२१( गर्दभ द्वारा रुद्राक्षों का भार वहन करने के कारण शिव लोक जाने की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२२ ( तालवन की रक्षार्थ धेनुकासुर की गर्दभ / खर रूप में स्थिति, बलि - पुत्र साहसिक का दुर्वासा शाप से गर्दभ बनना, कृष्ण द्वारा धेनुक गर्दभ के वध का वर्णन ), ४.८५.११६ ( क्रोधयुक्त मनुष्य के गर्दभ बनने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१८.१८ ( गर्दभ नामक असुर का सविता से युद्ध, संज्ञा विवाह का प्रसंग ) ४.८२.१५ ( गर्दभेय : प्रेत योनि को प्राप्त हुए सीरभद्र नामक वैश्य के उद्धार हेतु विपीत नामक गर्दभेय ऋषि द्वारा सुकृत द्वादशी व्रत का कथन ), ४.९४.५३ ( अनन्त भगवान् की खोज करते हुए कौण्डिन्य मुनि द्वारा वृक्ष, गौ, वृष, गर्दभ आदि से प्रश्न, अनन्त भगवान् द्वारा गर्दभ के क्रोध रूप होने का कथन ), मार्कण्डेय १५.३ ( माता - पिता का अपमान करने से गर्दभ योनि प्राप्ति का उल्लेख ), वामन ९०.८३ ( वृषाकपि व माला के पुत्र का जन्मान्तर में गर्दभ योनि में उत्पन्न होने का उल्लेख ), वायु ६७.८३ ( गर्दभाक्ष : बलि के प्रधान ४ पुत्रों में से एक ), स्कन्द ५.२.६०.३ ( मतङ्ग - पुत्र द्वारा गर्दभ के ताडन पर गर्दभी द्वारा मतङ्ग - पुत्र को जन्म के रहस्य का कथन ), ५.३.१५९.२७ ( दैवज्ञ द्वारा गर्दभ योनि प्राप्त करने का उल्लेख ), कथासरित् १०.६.१८ ( धोबी के गधे का बाघ की खाल ओढकर बाघ बनकर चरने का आख्यान ), १०.७.१८७ ( गर्दभ से गौ की भांति दुग्ध प्राप्त न होने की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.४२४.५६ ( भिक्षु - पत्नी कलहा का पति ताडन दोष से मृत्यु पश्चात् गर्दभी बनने का उल्लेख ), १.५३९.७३( द्विगर्दभ के अशुभत्व का उल्लेख ), १.५६०.७० ( आत्रेय - पुत्र हरिकेश व अग्नि - पुत्री सुतेजा के हविर्धान ऋषि के शाप से गर्दभ - गर्दभी बनने का वृत्तान्त ), १.५६१.२५ ( हिरण्यबाहु राजा का ब्राह्मणों के शाप से खर बनने का वृत्तान्त ), ३.२२५ ( गर्दभ - पालक रत्नप्रभ की साधु - सेवा से मुक्ति प्राप्ति की कथा ), कथासरित् ८.५.५४ ( गर्दभरथ : विद्याधरों के ८ महारथियों में कुमुद पर्वत के राजा गर्दभरथ वराहस्वामी का उल्लेख ), १२.३.८९, १०८(धर्म - अधर्म रूपी वृष - गर्दभ का कथन), gardabha

Comments on story of Raasabha and shrigaala in Panchatantra 

गर्दभी मत्स्य १७९.१८ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट अनेक मानस मातृकाओं में से एक ), १९९.१६ ( गर्दभीमुख : कश्यप वंशज एक गोत्रकार ऋषि ), लक्ष्मीनारायण ३.१३१.९ ( महाकल्पलता नामक दान विधि के अन्तर्गत याम्य दिशा में गर्दभी - स्थित नैर्ऋतिकी स्थापना का उल्लेख ) ।

 

गर्भ अग्नि ८२.९ ( समय दीक्षा के अन्तर्गत गर्भाधान, गर्भ स्थिति प्रभृति संस्कारों के अर्थ का कथन ), १४२.२ ( प्रश्न ज्योतिष द्वारा गर्भस्थ जातक के लिङ्ग व शरीर अवस्था के निर्णय का कथन - प्रश्ने ये विषमा वर्णास्ते गर्भे पुत्रजन्मदाः ॥ ), १५३ ( गर्भाधान आदि संस्कारों का कथन ), १६५.२० ( असवर्ण द्वारा स्थापित गर्भ से स्त्री के अशुद्धा होने का उल्लेख - असवर्णेन यो गर्भः स्त्रीणां योनौ निषिच्यते । अशुद्धा तु भवेन्नारी यावत्छल्यं न मुञ्चति ॥), १६६.१० ( ४८ संस्कारों में से प्रथम संस्कार के रूप में गर्भाधान का उल्लेख - स्यादष्टचत्वारिंशद्भिः संस्कारैर्ब्रह्मलोकगः  ॥ गर्भाधानं पुंसवनं सीमन्तोन्नयनः ततः  । ), ३६९.१९ (गर्भ की उत्पत्ति तथा गर्भस्थ जीव का वर्णन - जीवः प्रविष्टो गर्भन्तु कललेऽप्यत्र तिष्ठति ।घनीभूतं द्वितीये तु तृतीयेऽवयवास्ततः ।।), गरुड २.३२.११ ( गर्भ धारण विधि, गर्भ विकास का वर्णन - निषेकसमये यादृङ्नरचित्तविकल्पना  । तादृक्स्वभावसम्भूतिर्जन्तुर्विशति कुक्षिगः  ॥), नारद १.५५.४१ ( गर्भ काल में ग्रहों की स्थिति के स्त्री पर प्रभाव का कथन - कुजेंदुहेतुकं स्त्रीणां प्रतिमासमिहार्तवम् ।।), १.५५.५० ( गर्भकाल में ग्रहों की स्थिति के जातक पर प्रभाव का कथन - लग्नेंदुगैः शुभैः खेटैस्त्रिकोणार्थास्तभूखगैः ।।पापैस्त्रिषष्टलाभस्थैः सुखी गर्भो रवीक्षितः ।।  ), १.५६.३१८ ( गर्भाधान हेतु ज्योतिष काल विचार, अन्य गर्भाधानादि संस्कार विचार ), १.६३.८८( सब नाडियों में वियत् के गर्भ रूप में विद्यमान होने का उल्लेख - वियत्सर्वासु नाडीषु गर्भवृत्यनुषंगतः ।। ), पद्म २.८.१४ ( गर्भ का २५ अङ्गुल विकास होने पर माता को प्रसव पीडा होने का उल्लेख - योनिर्विकासमायाति चतुर्विंशांगुलं तदा ।पंचविंशांगुलो गर्भस्तेन पीडा विजायते ।), पद्म २.६६.२८ ( गर्भ में जीव के विकास तथा चेष्टादि का वर्णन ), ब्रह्म २.५४ (दिति - पुत्रों के क्षय होने पर दिति का पुन: गर्भ धारण, इन्द्र का दिति गर्भ में प्रवेश, गर्भ के टुकडे करने से ४९ मरुद्गणों की उत्पत्ति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.७२.४५ (रस, शोणित आदि उत्पत्ति क्रम में शुक्र से गर्भ की उत्पत्ति का उल्लेख ), भविष्य १.३ ( गर्भाधानादि संस्कारों का वर्णन - गर्भाधानं पुंसवनं सीमन्तोन्नयनं तथा ।..बैजिकं गार्भिकं चैनो द्विजानामपमृज्यते । ), २.१.१७.१० ( गर्भाधान में अग्नि के मरुत् नाम का उल्लेख - गर्भाधाने च मरुतः सीमंते पिंगलः स्मृतः ।।पुंसवे त्विंद्र आख्यातः प्रशस्तो यागकर्मणि ।।), ४.४ ( गर्भ का क्रमिक विकास, गर्भस्थ जीव की पुष्टि, गर्भवास - दुःख का वर्णन -विसर्गकाले शुक्रस्य जीवः करणसंयुतः ।।भृत्यः प्रविशते योनिं कर्मभिः स्वैर्न्नियोजितः । ), भागवत १.८.१४ ( उत्तरा के गर्भ में परीक्षित् की कृष्ण द्वारा रक्षा का उल्लेख - अन्तःस्थः सर्वभूतानां आत्मा योगेश्वरो हरिः ।स्वमाययाऽऽवृणोद्‍गर्भं वैराट्याः कुरुतन्तवे ॥ ), ३.३१ ( गर्भ में जीव की अवस्था, गति का वर्णन - कललं त्वेकरात्रेण पञ्चरात्रेण बुद्‍बुदम् ।दशाहेन तु कर्कन्धूः पेश्यण्डं वा ततः परम् ॥ ), १०.२.१३(देवकी के सातवें गर्भ का कर्षण -गर्भसङ्कर्षणात्तं वै प्राहुः सङ्कर्षणं भुवि। ), १०.२.२५ ( भगवान् का देवकी गर्भ में प्रवेश, देवताओं द्वारा गर्भ की स्तुति का वर्णन - गर्भगतिविष्णोर्ब्रह्मादिकृतस्तुति ),  १०.८५.४७(षड्गर्भ : मरीचि व ऊर्णा - पुत्र, ब्रह्मा के शाप से हिरण्यकशिपु- पुत्र बनना, जन्मान्तर में देवकी - पुत्र, कंस द्वारा वध, कृष्ण द्वारा सुतल लोक से लाना - स्मरोद्गीथः परिष्वङ्गः पतङ्गः क्षुद्रभृद्घृणी ), मत्स्य ७.३७ ( गर्भिणी स्त्री हेतु नियमों का कथन ), ३९.९ ( गर्भ धारण प्रक्रिया का कथन, ययति - अष्टक संवाद ), ४८.१ ( तुर्वसु - पुत्र, गोभानु - पिता, तुर्वसु वंश ), २६३.८( प्रासाद में लिङ्ग स्थापना के संदर्भ में गर्भ के नवधा विभाजन का कथन - अधस्ताद् ब्रह्मभागस्तु चतुरस्रो विधीयते।अष्टास्रो वैष्णवो भागो मध्यस्तस्य उदाहृतः ।। ), २६९.१५ ( मन्दिर में गर्भगृह आदि निर्माण की विधि का कथन - विभज्य नवधा गर्भं मध्ये स्याल्लिङ्ग पीठिका ।।पादाष्टकं तु रुचिरं पार्श्वतः परिकल्पयेत्।), २७५ ( हिरण्यगर्भ दान विधि का वर्णन ), महाभारत स्त्री (जीवस्य गर्भवासप्रकारकथनम् - ततः स पञ्चमेऽतीते मासे मांसमकल्पयत्।ततः सर्वाङ्गसम्पूर्णो गर्भो मासे तु जायते।।) मार्कण्डेय ११.९ ( गर्भ में जीव के क्रमिक विकास तथा स्थिति का वर्णन - तले तु जानु-पार्श्वाभ्यां करौ न्यस्य स वर्धते ।अङ्गुष्ठो चोपरि न्यस्तौ जान्वोरग्रे तथाङ्गुली॥), लिङ्ग १.८८.४७ (जीव की गर्भवासादि गति का वर्णन - मृत्पिंडस्तु यथा चक्रे चक्रावर्तेन पीडितः।।हस्ताभ्यां क्रियमाणस्तु बिंबत्वमनुगच्छति।।), १.८८.५४ (रक्तभागास्त्रयस्त्रिंशद्रेतोभागाश्चतुर्दश।।भागतोर्धफलं कृत्वा ततो गर्भो निषिच्यते।।), वराह १२१.२३ ( गर्भ अप्रापक कर्मों का कथन - जितेन्द्रिया जितक्रोधा लोभमोहविवर्जिताः ।।आत्मोपकारका नित्यं देवातिथिगुरुप्रियाः ।।), वायु १४.१८ ( गर्भ पोषण का वर्णन ), ९७.४६ ( गर्भ विकास का कथन ), विष्णु ४.४.६९ ( उत्पन्न न होने के कारण मदयन्ती द्वारा अश्म से गर्भ का ताडन, गर्भोत्पत्ति, अश्म ताडन से अश्मक नाम धारण, मूलक - पिता ), विष्णुधर्मोत्तर २.५२.३७ ( गर्भ धारण से पूर्व तथा पश्चात् सेवनीय औषधि का कथन ), २.८५ ( गर्भाधानादि संस्कार का वर्णन ), २.११२ ( गर्भ संक्रान्ति का कथन - धारयन्ति यथा विश्वमण्डस्याभ्यन्तरे स्थिताः ।। वाय्वग्निसोमाः सततं तथा देहं शरीरिणाम् ।।), २.११३.२( मृत्यु - पश्चात् प्रेत बनने से पूर्व आतिवाहिक गर्भ रूप होने का कथन- आतिवाहिका गर्भस्य देहो भवति भार्गव ।। ), २.११४ ( गर्भ में जीव के क्रमिक विकास तथा स्थिति का कथन ), शिव १.१६.९५ ( गर्भ व भर्ग में सम्बन्ध का कथन - भर्गः पुरुषरूपो हि भर्गा प्रकृतिरुच्यते ।अव्यक्तांतरधिष्ठानं गर्भः पुरुष उच्यते ।सुव्यक्तांतरधिष्ठानं गर्भः प्रकृतिरुच्यते ।), ५.२२.१ ( गर्भ पाक का वर्णन : गर्भ पाक की अन्न पाक से तुलना - अग्नेरूर्ध्वं जलं स्थाप्यं तदन्नं च जलोपरि।। जलस्याधस्स चाग्निर्हि स्थितोऽग्निं धमते शनैः ।।), स्कन्द १.२.४० ( माण्टि - पत्नी चटिका के गर्भ का संसार - भय से बाहर न निकलना, माण्टि द्वारा शिव प्रसादन से गर्भस्थ बालक के बहि:निष्क्रमण का कथन ), १.२.४९.४७ (उदर में गर्भ के विकास का कथन ), १.२.५६.१७ ( गर्भेश्वर लिङ्ग की महिमा का उल्लेख - जयादित्यकूपवरे नरः स्नात्वा प्रयत्नतः ।।गर्भेश्वरं नमस्कृत्य न स गर्भेषु मज्जति ।।), ५.३.१५९.३१ ( गर्भ के निर्माण की क्रमिक अवस्थाओं का वर्णन ), हरिवंश १.४०.१३ ( जनमेजय द्वारा स्वयं श्रीगर्भ कृष्ण के गर्भ में आने का रहस्य पूछना - महाभूतानि भूतात्मा यो दधार चकार च । श्रीगर्भः स कथं गर्भे स्त्रिया भूचरया धृतः ।।   ), १.४०.२५ ( अदिति द्वारा वामन रूपी गर्भ का धारण तथा गर्भावसान पर वामन द्वारा इन्द्र को दैत्यों से मुक्त करने का उल्लेख -सुरारणिर्गर्भमधत्त दिव्यं तपःप्रकर्षाददितिः पुराणम् । ), लक्ष्मीनारायण १.३६.५६ ( गर्भ धारण हेतु काल का विचार - रजोदिनानि चत्वारि विहायाऽऽषोडशाऽवधिम् ।गर्भाऽऽधानस्य योग्यत्वं भवतीत्यवधार्य च ।। ), १.७४.१४ ( गर्भ - धारण काल तथा गर्भ विकास का वर्णन - सप्तरात्रिमध्यगतो गर्भस्तु मलिनो भवेत् ।पूर्वसप्तकमुत्सृज्य ततो युग्मेषु संविशेत् ।। ), १.५०४.१८ ( जाबालि - सुता, व्यास - भार्या चेटिका शुकी का गर्भ धारण, गर्भस्थ शिशु का बारह वर्षों तक बाहर न आना , व्यास द्वारा गर्भ से निष्क्रमण हेतु प्रार्थना, कृष्ण नारायण के साक्ष्य में गर्भ का बाहर आना, व्यास द्वारा बालक को शुक नाम प्रदान, शुक के व्यास के साथ वार्तालाप का वर्णन ), १.५७०.६२( भगवान् के प्रात: गर्भ रूप, सायं सृष्टि रूप तथा रात्रि में प्रलय रूप होने का उल्लेख - प्रातर्गर्भस्वरूपोऽहं माययैव भवामि च ।।), कथासरित् ५.३.१८७ ( शक्तिदेव की द्वितीय भार्या बिन्दुरेखा द्वारा गर्भ धारण, पहली भार्या विन्दुमती द्वारा पति को प्रतिज्ञा अनुसार गर्भ फाडने का निर्देश ), ५.३.२२५ ( देवदत्त - भार्या विद्युत्प्रभा द्वारा पेट फाडकर गर्भ को देवदत्त को अर्पित करके शाप मुक्त होने का वर्णन ), ५.३.३५९ ( शक्तिदेव द्वारा बिन्दुरेखा के पेट को फाडकर गर्भ शिशु को कण्ठ से पकडना , आकाशवाणी के अनुसार शिशु का खङ्ग बनना तथा बिन्दुरेखा के अदृश्य होने का वर्णन ), १४.४.७४ ( विद्याधरी द्वारा गर्भ का प्रसव, विद्याधरी के कथनानुसार तापस द्वारा गर्भ को चावल के साथ पकाकर खाना, तत्प्रभाव से तापस का आकाश में उडकर विद्याधरी का अनुसरण करने का कथन ) ; द्र. प्राचीनगर्भ, मरीचिगर्भ, श्रीगर्भ, षड्गर्भ, हिरण्यगर्भ, हेमगर्भ । garbha

References on Garbha