पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Gangaa - Goritambharaa) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Gabhasti/ray, Gaya, Gayaa etc. are given here. गन्धर्वसेना स्कन्द ७.१.२४, ७.१.५४ ( घनवाह गन्धर्व - पुत्री, शिखण्डि गण से कुष्ठ प्राप्ति, सोमवार व्रतादि द्वारा शिवपूजन से मुक्ति का वर्णन ) ।
गन्धर्वी/गान्धर्वी वायु २०.३ (गन्धर्वी : ओंकार में गान्धार स्वर से उत्पन्न गन्धर्वी मात्रा के भी लक्षित होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.११( गान्धर्वी शान्ति के प्रवाल वर्ण का उल्लेख ) ।
गन्धवती वायु ३४.८९ ( मेरु के छठे अन्तरतट पर वायु की गन्धवती नामक सभा की स्थिति का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.१३ ( वायु द्वारा अधिष्ठित गन्धवती पुरी में पूतात्मा द्वारा तप, पवमानेश्वर लिङ्ग की स्थापनादि का वर्णन ), ४.१.२९.४९ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.१.१६ ( कपाल जल से निर्मित गन्धवती नदी के माहात्म्य का वर्णन ) । gandhavati
गन्धवाह ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६.३५ ( गन्धर्वेश गन्धवाह के तीन परम वैष्णव पुत्रों का बक, प्रलम्ब तथा केशी नामक असुर बनना, कृष्ण द्वारा वध से तीनों को गोलोक प्राप्ति का वृत्तान्त ) ।
गभस्तल वायु ५०.१२ ( पृथ्वी के सात तलों में से चतुर्थ तल ) ।
गभस्ति ब्रह्माण्ड १.२.१९.९६ ( शाकद्वीप की सात नदियों में से एक ), मत्स्य १२२.३३ ( शाकद्वीप की सप्तमी गङ्गा के सुकृता व गभस्ती नामों का उल्लेख ), विष्णु २.४.६५ (शाकद्वीप की सात महानदियों में से एक ), शिव ५.१८.५५ ( शाक द्वीप की सात प्रमुख नदियों में से एक ), स्कन्द २.४.६.४४ ( कार्तिक मास में गभस्तीश्वर सन्निधि में शतरुद्रीय जप से मन्त्र सिद्धि का उल्लेख ), ४.१.३३.१५४ ( मार्कण्डेय द्वारा स्थापित गभस्तीश लिङ्ग का उल्लेख ), ४.१.४९.७७ ( सूर्य द्वारा स्थापित गभस्तीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.९७.१८३ ( गभस्तीश के उत्तर में दधिकल्पेश्वर तथा दक्षिण में मंगलादेवी के आलय का उल्लेख ), ५.३.१९१.१३ ( प्रलय काल में गभस्तिपति के याम्य दिशा में तपने का उल्लेख ) । gabhasti
गभस्तिनी ब्रह्म २.४०.३६( लोपामुद्रा - स्वसा, दधीचि - पत्नी, पिप्पलाद - माता, दधीचि द्वारा अस्थिदान पर गभस्तिनी द्वारा प्राण त्याग, अन्य नाम वडवा, प्रातिथेयी, अन्य कथाओं में सुवर्चा आदि ) । gabhastini
गभस्तिमान् ब्रह्माण्ड १.२.१६.९ ( भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), मत्स्य ११४.८ ( बृहत्तर भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), शिव ५.१८.४ ( भारत के ९ खण्डों में से एक ), विष्णु २.३.६ ( भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), २.५.२ ( गभस्तिमान् नामक चतुर्थ पाताल के पीली मिट्टी से युक्त तथा प्रासाद - मण्डित होने का उल्लेख ) । gabhastimaan
गभीर ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८६ ( विन्ध्यशक्ति - सुत प्रवीर के चार पुत्रों में से एक ) ।
गम्भीर गणेश १.१.२६ ( गम्भीरता में महोदधि की उच्चता का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.११४ ( भौत्य मनु के नौ पुत्रों में से एक ), विष्ण्णढ ३.२.४५ ( गम्भीर बुद्धि :१४वें भौम नामक मनु का एक पुत्र ), ब्रह्म २.७७.१२ ( गम्भीरातिगम्भीर नामक अप्सरा - द्वय द्वारा विश्वामित्र के तप में विघ्न, शाप से नदी बनना, गङ्गा सङ्गम से मुक्ति का कथन ) ।
गय अग्नि ११४ ( गय नामक असुर की तपस्या के फलस्वरूप उसे विष्णु द्वारा तीर्थों में पवित्रतम होने के वर की प्राप्ति, पृथ्वी तथा स्वर्ग की रिक्तता, ब्रह्मा द्वारा यज्ञ हेतु गयासुर से देह की याचना, गयासुर की देह पर शिला धारण तथा यज्ञ कर्म सम्पन्न होने की कथा ), गर्ग ७.६.२ ( मरुधन्व देश का राजा, कृष्ण - तनय दीप्तिमान् से युद्ध व पराजय, गय द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान का वर्णन ), गरुड १.८२ ( कीकट देश में गय असुर के शयन पर विष्णु द्वारा गदा से प्रहार का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६८ ( नक्त - पुत्र, नर - पिता ), २.३.६०.१८ ( सुद्युम्न के ३ पुत्रों में से एक, गय को गयापुरी का अधिपति बनाने का उल्लेख ), भागवत २.७.४४( परम पुरुष की योगमाया के ज्ञाता भगवद्भक्त राजर्षियों में गय का उल्लेख), ४.१३.१७ ( उल्मुक व पुष्करिणी के ६ पुत्रों में से एक ), ५.१५.६ (नक्त व द्रुति - पुत्र, विष्णु के अंश, गयन्ती से चित्ररथ, सुगति व अवरोधन नामक पुत्रों की प्राप्ति, गय महिमा का वर्णन ), ८.१९.२३ ( गय नामक नृपति के सप्त द्वीपाधिपति होने पर भी असन्तुष्ट रहने का उल्लेख ), ९.१.४१ ( सुद्युम्न के ३ पुत्रों में से एक गय के दक्षिणापथ के अधिपति होने का उल्लेख ), १०.६०.४१( विष्णु को पाने की इच्छा से राज्य का त्याग कर वन जाने वाले राजर्षियों में से एक ), मत्स्य ४.४३ ( ऊरु व आग्नेयी के ६ पुत्रों में से एक ), १२.१७ ( सुद्युम्न के तीन पुत्रों में से एक, गय को गया प्रदेश प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ३३.५७ (नक्त - पुत्र, नर - पिता, स्वायम्भुव वंश ), ८३.१४ ( सुद्युम्न के तीन पुत्रों में से एक), ९१.६०/२.२९.५८(बलाकाश्व – पुत्र, कुश-पिता, शील गुण का उल्लेख), १०६ ( गय असुर के स्वरूप, तप, ब्रह्मा द्वारा यज्ञ हेतु गय की देह की प्राप्ति की कथा, गय के ऊपर शिला स्थापन, देव अवस्थान आदि का वर्णन ), विष्णु २.१.३८ ( नक्त - पुत्र, नर - पिता ) । gaya गय गय प्राण मनोमय से ऊपर विज्ञानमय कोश के हैं। गायत्री इन्हीं गय प्राणों का त्राण करती है । - फतहसिंह
गयत्राड स्कन्द १.२.६५.११८ ( गय असुर के निग्रह स्थान गयत्राड में गयत्राडा नामक देवी की अर्चना से सर्व उपद्रव शान्ति का उल्लेख ) ।
गया अग्नि ११४ ( गया माहात्म्य के अन्तर्गत गय असुर की कथा, गय के नाम से गयापुरी की प्रसिद्धि का कथन ), ११५ ( गया के अन्तर्गत विभिन्न तीर्थ स्थानों की यात्रा विधि तथा माहात्म्य का वर्णन ), गरुड १.८२.१७ ( गया माहात्म्य का आरम्भ, गया में श्राद्ध से पाप नाश का कथन ), १.८३ ( गया तीर्थ का माहात्म्य, तदन्तर्वर्ती तीर्थों का वर्णन ), देवीभागवत ७.३८.२४ ( गया क्षेत्र में मङ्गला देवी के वास का उल्लेख ), नारद २.४४ ( गया तीर्थ की महिमा : पिण्ड दान प्रसंग में पुत्रार्थी राजा विशाल द्वारा तथा प्रेतत्व से मुक्ति हेतु वणिक् द्वारा पिण्ड देने की कथा, गया के अन्तर्वर्ती तीर्थों की महिमा तथा फल का कथन ), २.४४.९० ( गया में मङ्गला नामक देवी के विराजित होने का उल्लेख ), २.४५ ( गया में प्रथम व द्वितीय दिवसों के कृत्य : प्रेतशिला आदि तीर्थों में पिण्डदान विधि का वर्णन ), २.४६ ( गया में तृतीय व चतुर्थ दिवसों के कृत्य : ब्रह्मयूप की परिक्रमा, गयाशीर्ष में पिण्डदान आदि का कथन ), २.४७ ( गया में पञ्चम दिवस के कृत्य : अक्षय वट के निकट पिण्डदान, गया के अन्तर्वर्ती तीर्थों में स्नान, पिण्डदान आदि के फल का कथन ), पद्म ३.३८ ( गया तीर्थ का माहात्म्य, गया के अन्तर्वर्ती तीर्थ ), ६.२२.४४ ( गया स्थित गदाधर स्तोत्र का कथन ), ६.३२.२१ ( गया गमन की प्रशंसा ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.१०४ ( गया में किए गए श्राद्ध के महाफलदायी होने का उल्लेख ), २.३.४७.१७ ( जामदग्नि / परशुराम द्वारा गया में श्राद्ध तथा पिण्डदानादि का कथन ), २.३.६०.१९ ( सुद्युम्न द्वारा गय नामक पुत्र को गया पुरी का राज्य प्रदान करने का उल्लेख ), भागवत १०.७९.११ ( बलराम द्वारा तीर्थयात्रा प्रसंग में गया में पितृपूजन का उल्लेख ), मत्स्य १२.१७ ( सुद्युम्न द्वारा स्वपुत्र गय को गया प्रदेश प्रदान करने का उल्लेख ), वराह ७ ( रैभ्य मुनि द्वारा गया में पिण्डदान तथा तप से सनकादि लोक की प्राप्ति का वर्णन ), ७.१४ ( विशाल राजा द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु गया में पितरों को तृप्त किए जाने का कथन ), ७.२१( गया में पिण्ड प्रदान से नरकाश्रित पितरों का संयोजित होना ), वामन २२.१९ ( ब्रह्मा की पांच वेदियों में से एक गयाशिर का पूर्ववेदी रूप में उल्लेख ), ७९.६४ ( प्रेतत्व से मुक्ति हेतु प्रेत द्वारा वणिक् को गया तीर्थ में पिण्डदान करने का कथन ), ९०.९ ( गया में विष्णु का गोपति व गदाधर नाम से वास ), वायु ७७.९७ ( गया में श्राद्ध के महान् फल का कथन ), ८०.४५ ( गया में हस्ती दान करने से श्राद्ध में शोक रहितता का उल्लेख ), ८५.१९( राजर्षि गय की पुरी के रूप में गया का उल्लेख ), वायु १०४.७७/२.४२.७७( मध्य में सरस्वती तथा आनन में गया क्षेत्र का न्यास आदि ), १०५+ ( गया माहात्म्य का वर्णन ), ११२ ( गय द्वारा गया में यज्ञ सम्पादन, गया में पिण्ड दानादि के माहात्म्य का वर्णन ), स्कन्द २.३.७ ( पापियों के पापदोषों से मलिनरूप प्रभास, पुष्कर, गया आदि पांच धाराओं का बदरिकाश्रम गमन से पापमुक्त होकर निर्मल रूप होने का कथन ), २.८.९ ( गया कूप तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ३.१.२६.३४ ( रैक्व महर्षि के आह्वान पर गङ्गा यमुना तथा गया नामक तीर्थ त्रय की गन्धमादन पर्वत पर उपस्थिति तथा सदा सन्निधान का कथन ), ३.१.२७.१(गङ्गा, यमुना व गया में स्नान का निर्देश, गया का सरस्वती से साम्य?), ५.१.५७ ( गया तीर्थ माहात्म्य के अन्तर्गत तुहुण्ड राक्षस से पीडित देवों का विष्णु की आज्ञा से महाकालवन में स्थित गया तीर्थ में गमन ), ५.१.५९ ( गया के अन्तर्वर्ती तीर्थों का वर्णन, गया तीर्थ की पहले अवन्ती में परन्तु बाद में कीकट में स्थिति ), ५.२.६०.२३(मतङ्ग द्वारा गया में अङ्गुष्ठ पर स्थित होकर तप), ५.३.४४.१७ ( नाभि में गया के पुण्या होने का उल्लेख, चक्रतीर्थ से साम्य ), ५.३.१९८.७२ ( गया में उमा की विमला नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.२०५ ( हाटकेश्वर क्षेत्र स्थित गया में किए गए श्राद्ध का माहात्म्य ), ७.१.१०.९(गया तीर्थ का वर्गीकरण – वायु), लक्ष्मीनारायण १.५२७.१ ( गया में पिण्डदान से रैभ्य व विशाल राजा के पितरों की तृप्ति तथा उद्धार का कथन ), २.३०.८१( प्राची वेदी के रूप में गया का उल्लेख ) । gayaa |