पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Gangaa - Goritambharaa) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
Puraanic contexts of words like Gavaaksha/window, Gaveshana/research, Gavyuuti etc. are given here. गर्भहा मार्कण्डेय ४८/५१.३ ( दुःसह व निर्मार्ष्टि के ८ पुत्रों में से एक, गर्भहा के गर्भनाश रूप कर्म तथा कर्म दोष शमन के उपाय का कथन ) ।
गर्व स्कन्द ५.३.१८१.१६ ( गर्व से स्त्री के नष्ट होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.४४.६७( गर्व के भौत नामक बन्धन होने का उल्लेख ), कृष्णोपनिषद १४( गर्व के बकासुर होने का उल्लेख ) ।garva
गर्वि ब्रह्माण्ड ३.४.१.६० ( बारह सुधर्मा देवों में से एक ) ।
गवय ब्रह्माण्ड २.३.७.२३२ ( प्रधान वानरों में से एक ), स्कन्द ३.१.४९.३७ ( गवय वानर द्वारा रामेश्वर - स्तुति का कथन ), ५.२.४४.१५ (गवय नामक मेघ द्वारा दक्षिण दिशा में आधिपत्य प्राप्ति का उल्लेख ), वा.रामायण ४.६५.५ (गवय का ऋषभ से तादात्म्य?), ६.२६.४५ ( वानर यूथपतियों के परिचय प्रसंग में सारण द्वारा रावण को गवय वानर का परिचय देना ), ६.३०.२६ ( शार्दूल नामक गुप्तचर द्वारा रावण को देवोत्पन्न वीर वानरों का परिचय देते हुए गवय का वैवस्वत / यम - पुत्र रूप में उल्लेख ), ६.४१.४० ( अङ्गद की सहायतार्थ लङ्का के दक्षिण द्वार पर गवय की स्थिति का उल्लेख ), ६.१२८.५५ ( राम अभिषेक हेतु गवय द्वारा पश्चिम समुद्र से जल लाने का उल्लेख ) । gavaya
गवल योगवासिष्ठ ५.४५.४८+ ( हस्ती द्वारा वरण करने पर श्वपच का गवल नामक राजा होना, प्रजा को गवल के श्वपच होने का ज्ञान होने पर गवल द्वारा प्राण त्याग आदि )
गवाक्ष ब्रह्माण्ड २.३.६.१६ ( दनु - पुत्र वंशजों में से एक गवाक्ष के मनुष्यों से अवध्य होने का उल्लेख ), २.३.७.२४३ ( प्रधान वानरों में से एक ), वायु ६७.८१ ( विरोचन - पुत्र शम्भु के ६ पुत्रों में से एक ), ६८.१६ ( दनु - पुत्र गवाक्ष के मनुष्यधर्मा होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.४९.३६ ( गवाक्ष वानर द्वारा रामेश्वर - स्तुति ), वा.रामायण ६.२७.३३ ( वानर यूथपतियों के परिचय प्रसंग में सारण द्वारा रावण को गवाक्ष वानर का परिचय देना ), ६.३०.२६ ( गुप्तचर द्वारा रावण को देवोत्पन्न वीर वानरों का परिचय देते हुए गवाक्ष का वैवस्वत - पुत्र रूप में उल्लेख ), ६.४१.४० ( अङ्गद की सहायतार्थ लङ्का के दक्षिण द्वार पर गवाक्ष की स्थिति का उल्लेख ) ; द्र. उरुगवाक्ष । gavaaksha
गवामयन महाभारत अनुशासन १०६.४६( उपवास द्वारा गवामयन फल प्राप्ति का कथन ), द्र. यज्ञ
गवांव्रत मत्स्य ५८.३६ ( सरोवर निर्माण के समय पश्चिम द्वार पर स्थित सामवेदी ब्राह्मण द्वारा गाए जाने वाले सूक्तों में गवां व्रत का उल्लेख ) ।
गविजात देवीभागवत २.८.२४ ( पिता के गले में सर्प डालने पर मुनि - पुत्र गविजात द्वारा परीक्षित् को शाप प्रदान का कथन ) ।
गविष्ठ ब्रह्माण्ड २.३.६.४ ( हिरण्यकशिपु की सभा के प्रमुख दानवों में से एक ), मत्स्य १६१.७९ (हिरण्यकशिपु की सभा का एक दैत्य ), १९६.२ ( सुरूपा व अङ्गिरा के दस पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.३९ ( सिंहिका - पुत्र साल्व का परिचर, गविष्ठ द्वारा साल्व से दु:स्वप्न का कथन ) ।
गविष्ठिर ब्रह्माण्ड १.२.३२.११३ ( आत्रेय, मन्त्रकृत ऋषियों में से एक ), मत्स्य १४५.१०७ ( अत्रि वंशोत्पन्न ६ मन्त्रकर्त्ता ऋषियों में से एक ), १९७.८ ( आत्रेय वंशोत्पन्न एक ऋषि - प्रवर ) ।
गविष्णु ब्रह्माण्ड १.२.२३.५७ ( चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक ) ।
गवेषण ब्रह्माण्ड २.३.७१.११४ ( चित्रक के १२ पुत्रों में से एक ), २.३.७१.१८४ ( वसुदेव व श्रद्धा देवी - पुत्र ), मत्स्य ४५.३२ ( अक्रूर व अश्विनी के १३ पुत्रों में से एक, अनमित्र वंश ), ४६.१९ ( वसुदेव व देवकी - पुत्र, वृष्णि वंश ), ४७.२२( भूरि व भूरीन्द्रसेन - पिता ), वायु ९६.११३ ( चित्रक के अनेक पुत्रों में से एक ), ९६.१८१ ( वसुदेव व देवकी - पुत्र ) ।
गवेष्ठि वायु ६७.७६ ( विरोचन के पांच पुत्रों में से एक, शुम्भ, निशुम्भ, विष्वक्सेन - पिता ), ६८.१६ ( दनु - पुत्र गवेष्ठि के मनुष्यधर्मा होने का उल्लेख ) ।
गव्यूति ब्रह्माण्ड ३.४.२.१२६(गव्यूति मान का कथन : धनु-सहस्र*२), मार्कण्डेय ४६ / ४९.४० ( परिमाण निरूपण हेतु नियत किए गए प्रमाणों में से एक, दो सहस्र धनु में एक गव्यूति तथा चार गव्यूति में एक योजन होने का उल्लेख ), वायु १०१.२६/२.३९.१२६( २ सहस्र धनुषों की दीर्घता का गव्यूति मान ), स्कन्द ५.३.१४६.५६ ( गया में ब्रह्मशिला तीर्थ की गव्यूति मात्र स्थिति का उल्लेख ), ७.१.३१४.१ ( गव्यूति से संस्थित ? ऋषि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३७१.५ ( नरक के कुण्डों के गव्यूति मानों का कथन ) । gavyuuti /gavyooti/ gavyuti
गहन ब्रह्माण्ड २.३.७.२३५ ( प्रधान वानरों में से एक ) ।
गह्वर कथासरित् १०.५.३९ ( गह्वर नामक मूर्ख द्वारा लवण - भक्षण की कथा ) ।
गाग्र वायु ९९.१५९ ( वितथ - पुत्र भुवमन्यु के चार पुत्रों में से एक ) ।
गाङ्ग वायु ६९.२६ ( एक गन्धर्व का नाम ) ।
गाङ्गेय स्कन्द ६.५७ ( शन्तनु - पुत्र, शन्तनु के निर्देशानुसार शर्मिष्ठा तीर्थ में स्नान, श्राद्धादि से गाङ्गेय भीष्म की पाप से मुक्ति, गाङ्गेय द्वारा देवचतुष्टय की स्थापना का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१६५+ ( गाङ्गेयों के उद्भव, नाम, केतुमाल में वास, श्रीहरि के केतुमाल में यज्ञ हेतु आगमन से हर्ष प्राप्ति का वर्णन ), २.१९९.४४ ( गाङ्गेय पुत्रियों द्वारा श्रीहरि से तीर्थरूपता प्राप्ति की प्रार्थना, श्रीहरि द्वारा एक साथ सभी नदियों के साथ जल में स्नान, तीर्थरूपता प्राप्ति ) । gangeya
गाणपत्य ब्रह्माण्ड १.२.२७.१२३ ( त्रिकाल भस्म स्नान से गाणपत्य लोक प्राप्ति का उल्लेख ), वायु १०१.३५४ ( भवभक्त, जितेन्द्रिय तथा अमद्यपी शूद्र को गाणपत्य स्थान की प्राप्ति का उल्लेख ) ।
गाण्डीव विष्णु ५.३८.२१ ( कृष्ण के स्वर्गारोहण के पश्चात् गाण्डीव धनुष के शिथिल होने का उल्लेख ) ।
गात्र गरुड २.३०.५३/२.४०.५३( मृतक के गात्र में मन:शिला देने का उल्लेख ), विष्णु ५.३२.४ ( गात्रवान् : कृष्ण व माद्री - पुत्र ), शिव ७.१.१७.३४( ऊर्जा व वसिष्ठ के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ७.१.२२३ ( गात्रोत्सर्ग तीर्थ का माहात्म्य : बलभद्र द्वारा गात्र प्रमोचन ) ।
गाथा महाभारत वन ८५.३०(गोकर्णतीर्थ में योनिसंकर द्वारा गायत्रीपाठ से गायत्री के गाथा रूप में सिद्ध होने का कथन), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२५टीका(यक्षों द्वारा गाथा गान का उल्लेख) gatha गाधि गरुड ३.२८.२३(मन्त्रद्युम्न का अवतार, निरुक्ति), ३.२८.५५(काशिका - पति), ब्रह्म १.८.२७ ( कुशिक की तपस्या से देवेन्द्र का ही कुशिक - पुत्र रूप में जन्म लेकर गाधि नाम से प्रसिद्ध होना, सत्यवती - पिता ), ब्रह्माण्ड २.३.६६.३५ ( कुशिक - पुत्र, पौरुकुत्सी - पति, विश्वामित्र व सत्यवती - पिता, चरु विपर्यास का प्रसंग ), भागवत ९.१५.४ ( कुशाम्बु - पुत्र, सत्यवती - पिता, गाधि पत्नी द्वारा चरु - विपर्यास का प्रसंग ), ९.१६.२८ ( गाधि - पुत्र विश्वामित्र द्वारा तपोबल से क्षत्रियत्व का त्याग कर ब्रह्मतेज प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य १४५.१११ ( गाधेय : गाधेय विश्वामित्र के कौशिक वंशोत्पन्न होने का उल्लेख ), वायु ९१.६६ ( चरु विपर्यास प्रसंग, विश्वामित्र व जमदग्नि की उत्पत्ति ), वायु ९६.८०( गाधि – पुत्र राजा द्वारा बभ्रु के क्रतु की रक्षा का उल्लेख ) विष्णु ४.७.११ ( सत्यवती - पिता, चरु विपर्यास प्रसंग, चरु भक्षण से विश्वामित्र का जन्म ), स्कन्द ६.१६५.१२ ( ऋचीक मुनि का तीर्थयात्रा प्रसंग से गाधि नामक राजा के भोजकट नामक नगर में आगमन, गाधि- सुता के दर्शन, आसक्ति तथा गाधि राजा से गाधि - सुता की याचना का वृत्तान्त ), हरिवंश १.२७.१६ ( कुशिक व पौरुकुत्सी - पुत्र, इन्द्र का अंश, सत्यवती - पिता, चरु विपर्यास का प्रसंग ), १.२७.४२ ( ऋचीक - प्रदत्त चरु के उपयोग से गाधि को विश्वामित्र नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ५.४४+ ( गाधि नामक ब्राह्मण की श्रीहरि से संसारमाया दर्शन की इच्छा, श्रीहरि द्वारा गाधि को संसार माया का दर्शन, गाधि को ज्ञान प्राप्ति का वृत्तान्त ), वा.रामायण १.३४.५ ( कुशनाभ - पुत्र, विश्वामित्र - पिता ), लक्ष्मीनारायण १.५०६.५ (श्यामकर्ण अश्वों के विनिमय से गाधि - सुता का ऋचीक से विवाह, ऋचीक द्वारा पुत्रार्थ प्रदत्त चरु विपर्यास से गाधि को विश्वामित्र तथा ऋचीक को जमदग्नि नामक पुत्रों की प्राप्ति का वृत्तान्त ) । gaadhi/gadhi
गान नारद १.५०.४३ ( गान की रक्त , पूर्ण , अलंकृत आदि १० गुण वृत्तियों का वर्णन ), १.९०.७१( मधूक द्वारा देवी पूजा से गान सिद्धि का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६१.२८ ( ७ स्वर, ३ ग्राम, २१ मूर्च्छनाओं आदि का वर्णन ), हरिवंश २.८९.६७ ( कृष्ण व यादवों के समक्ष छालिक्य गान्धर्व गान का आयोजन ), २.८९.७६ ( छालिक्य गान्धर्व गान की श्रेष्ठता, महनीयता का निरूपण ), लक्ष्मीनारायण ३.५९.८ ( नारद का गानबन्धु नामक उलूक से गान - शिक्षण का वर्णन ) । gaana
गानबन्धु लिङ्ग २.३.७ ( आकाशवाणी के अनुसार नारद मुनि का गान शिक्षा हेतु गानबन्धु नामक उलूक के पास जाना, गानबन्धु उलूक द्वारा नारद को अपना पूर्वजन्म का वृत्तान्त बतलाना, गानबन्धु से नारद का गानशिक्षा ग्रहण करने का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण ३.५९.६ ( गानबन्धु नामक उलूक से नारद द्वारा गान- शिक्षण प्राप्त करने का वर्णन ) । gaanabandhu |