पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Gangaa - Goritambharaa)

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

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Gangaa - Gangaa ( words like Grihapati, Grihastha/householder etc. )

Gangaa - Gaja (Gangaa, Gaja/elephant etc.)

Gaja - Gajendra (Gaja, Gaja-Graaha/elephant-crocodile, Gajaanana, Gajaasura, Gajendra, Gana etc.)

Gana - Ganesha (Ganapati, Ganesha etc.)

Ganesha - Gadaa (Ganesha, Gandaki, Gati/velocity, Gada, Gadaa/mace etc. )

Gadaa - Gandhamaali  ( Gadaa, Gandha/scent, Gandhamaadana etc. )

Gandharva - Gandharvavivaaha ( Gandharva )

Gandharvasenaa - Gayaa ( Gabhasti/ray, Gaya, Gayaa etc. )

Gayaakuupa - Garudadhwaja ( Garuda/hawk, Garudadhwaja etc.)

Garudapuraana - Garbha ( Garga, Garta/pit, Gardabha/donkey, Garbha/womb etc.)

Garbha - Gaanabandhu ( Gavaaksha/window, Gaveshana/research, Gavyuuti etc. )

Gaanabandhu - Gaayatri ( Gaandini, Gaandharva, Gaandhaara, Gaayatri etc.)

Gaayana - Giryangushtha ( Gaargya, Gaarhapatya, Gaalava, Giri/mountain etc.)

Girijaa - Gunaakara  ( Geeta/song, Geetaa, Guda, Gudaakesha, Guna/traits, Gunaakara etc.)

Gunaakara - Guhaa ( Gunaadhya, Guru/heavy/teacher, Guha, Guhaa/cave etc. )

Guhaa - Griha ( Guhyaka, Gritsamada, Gridhra/vulture,  Griha/home etc.)

Griha - Goritambharaa ( Grihapati, Grihastha/householder etc.)

 

 

 

 

 

 

 

 

गालव

टिप्पणी – पृथिवी को गौ इसलिए कहा जाता है कि वह सूर्य की गौ नामक किरणों का अवशोषण करने में समर्थ है। इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि गालव वह है जो सूर्य की गौ या किरणों को आत्मसात् कर सके, अंग्रेजी भाषा के अनुसार गौ से लव, प्रेम सम्बन्ध स्थापित कर सके। लेकिन गालव की   प्रकृति केवल यहीं तक सीमित नहीं है। वह गालव से गावल भी बन सकता है। यदि वल का अर्थ वाल, बिखरी हुई ऊर्जा लिया जाता है तो गालव बनने का अर्थ होगा अपने परितः बिखरी हुई ऊर्जा को केन्द्रीभूत करने वाला। यदि वल का अर्थ वलय लिया जाए तो गावल का अर्थ होगा केन्द्रीभूत ऊर्जा का उपयोग अपनी रक्षा के लिए करने वाला। पुराणों में कथा आती है कि गालव आश्रम में पातालकेतु असुर उपद्रव कर रहा था जिसको शांत करने के लिए गालव ने राजा ऋतध्वज को कुवलय अश्व प्रदान किया। कु पृथिवी को कहते हैं तथा वलय चक्कर लगाने को। अतः जो अश्व पृथिवी का चक्कर लगा सकता हो, वह कुवलय है। महाभारत वन पर्व में गालव विशेष प्रकार के अश्वों की प्राप्ति के लिए गरुड पर आरूढ होकर चारों दिशाओं में भ्रमण करता है। स्कन्द पुराण ब्रह्मखण्ड सेतु माहात्म्य में गालव सुदर्शन चक्र द्वारा दुर्दम असुर का नाश कराता है।

वैदिक साहित्य में शतपथ ब्राह्मण आदि में यद्यपि गालव शब्द प्रकट हुआ है, लेकिन यह उल्लेख गालव शब्द की निरुक्ति में सहायता नहीं करते। ब्राह्मण ग्रन्थों में ग्लाव शब्द प्रकट हुआ है जो गालव शब्द के निकटतम प्रतीत होता है। ग्लाव शब्द तुरंत ग्रावस्तुत ऋत्विज की ओर संकेत करता है। अतः गालव को समझने के लिए ग्रावस्तुत शब्द को समझना होगा। ग्रावा सोमलता के शोधन हेतु जिस पत्थर का उपयोग किया जाता है, उसे कहते हैं। डा. फतहसिंह ग्रावा की निरुक्ति ग्री – विज्ञाने के आधार पर करते हैं, अर्थात् जिस पत्थर में, जड चेतना में विज्ञानमय कोश की शक्ति का प्रादुर्भाव हो गया हो, वह ग्रावा है। ब्राह्मण ग्रन्थों में कहा गया है कि ग्रावाणः विशः हैं। इसका अर्थ हुआ कि हमारे जो प्राण, मन आदि विभिन्न प्रकार से बिखरे हुए हैं, उन्हीं का उपयोग जड चेतना को, पत्थर को सक्रिय बनाने में करना है। साधारण रूप में, हमारा व्यक्तित्व वही पत्थर है जो विभिन्न प्राणों के संयोग से एक चेतन व्यक्तित्व बन गया है। लेकिन यह व्यक्तित्व सोम रूपी अन्न का शोधन करने में समर्थ नहीं है। यह व्यक्तित्व जो अन्न ग्रहण करता है, वह अन्न ही व्यक्तित्व का नाश करने वाला बन जाता है, पेट में दर्द उत्पन्न करने वाला, मारक बन जाता है। अतः पत्थर में, जड चेतना में प्राणों का समावेश उस स्तर तक करना है जहां सोम का शोधन करने में किसी अप्रिय वाक् का जन्म न हो, अपितु प्रिय, मन्त्र उत्पन्न करने वाली वाक् का जन्म हो। शब्दकल्पद्रुम में ग्रावा की निरुक्ति ग्र – ग्रसने व वा की निरुक्ति शब्द उत्पन्न करने के रूप में की गई है।

     महाभारत वन पर्व में गालव ऋषि गुरु विश्वामित्र से दक्षिणा के लिए आग्रह करता है और विश्वामित्र उससे 800 श्यामकर्ण अश्वों की मांग करते हैं। अश्वों को देने में असमर्थ होने पर गालव ऋषि गरुड की पीठ पर आरूढ होकर चारों दिशाओं में भ्रमण करता है। अन्त में उस ययाति से माधवी कन्या की प्राप्ति होती है। माधवी कन्या के माध्यम से वह तीन राजाओं से 600 अश्व तथा स्वयं विश्वामित्र से 200 अश्व प्राप्त करने में समर्थ  हो जाता है।

प्रथम लेखन – 15-11-2014ई.(  मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी, विक्रम संवत् 2071)