PURAANIC SUBJECT INDEX

(From vowel U to Uu)

Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar

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Udaana - Udgeetha  (Udaana, Udumbara, Udgaataa, Udgeetha etc.)

Uddaalaka - Udvartana (Uddaalaka, Uddhava, Udyaana/grove, Udyaapana/finish etc. )

Unnata - Upavarsha ( Unnetaa, Upanayana, Upanishat, Upbarhana, Upamanyu, Uparichara Vasu, Upala etc.)

Upavaasa - Ura (Upavaasa/fast, Upaanaha/shoo, Upendra, Umaa, Ura etc. )

Ura - Urveesha (Ura, Urmilaa, Urvashi etc.)

Uluuka - Ushaa (Uluuka/owl, Uluukhala/pounder, Ulmuka, Usheenara, Usheera, Ushaa etc.)

Ushaa - Uurja (Ushaa/dawn, Ushtra/camel, Ushna/hot, Uuru/thigh, Uurja etc.)

Uurja - Uurdhvakesha (Uurja, Uurjaa/energy, Uurna/wool ) 

Uurdhvakesha - Uuha (Uushmaa/heat, Riksha/constellation etc.)

 

 

 

Puraanic contexts of words like Upavaasa/fast, Upaanaha/shoo, Upendra, Umaa, Ura etc. are given here.

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Vedic contexts on Upaanaha

Comments on Umaa

उपवर्ष कथासरित् ..१७ ( उपकोशा कन्या के पिता , वर्ष उपाध्याय के भ्राता , वेदान्त के आचार्य , स्वकन्या उपकोशा का विवाह वररुचि से करना ) ‹  

उपवास पद्म .११९ ( मास उपवास व्रत माहात्म्य ) , .१२३ ( मास उपवास व्रत माहात्म्य ), भविष्य .१६.४५ + ( विभिन्न तिथियों में उपवास विधि , अर्चनीय देवता फल ) , .६४.( उपवास की निरुक्ति : पाप से उपावृत्त होकर गुणों के साथ वास ), .६४+ (सप्तमी तिथि को उपवास , सूर्य आराधना विधि फल ) , .९६ ( नक्त उपवास व्रत विधि ), विष्णुधर्मोत्तर .५९+ ( वार , नक्षत्र तिथि अनुसार उपवास हरि पूजा से प्राप्त काम्य फल वर्णन ) , .२२२.१२८+ ( कुबेर द्वारा अष्टावक्र को रुचि अनुसार मास के ३० रोचों में अर्चनीय देवता फल कथन ) , .२७४ ( उपवास महिमा कथन) , .३२० ( विभिन्न कृच्छ| उपवासों का फल ), स्कन्द ..१६८.४० ( अङ्कूरेश्वर तीर्थ में उपवास के आपेक्षिक फल का कथन ) , महाभारत अनुशासन १०६( उपवास की महिमा, वर्णों के लिए उपवास के नियम ),१०७, लक्ष्मीनारायण .७५.७९ ( उपवास से गन्धर्व लोक की प्राप्ति का उल्लेख )द्र. प्रतिपदा , द्वितीया , तृतीया आदि विभिन्न तिथियां तिथि , व्रतUpavaasa 

उपवीत लक्ष्मीनारायण .९१.११९( उपवीत से द्विजन्मा बनने का उल्लेख ) 

उपसद विष्णुधर्मोत्तर .१३६.३१( चतुर्व्यूह के अन्तर्गत वासुदेव आदि तीन अग्नियों के रूपों का कथन ; उपसद अनिरुद्ध का रूप ; पुरूरवा द्वारा त्रेताग्नि यजन प्रसंग ) Upasada 

Vedic contexts on Upasada

उपसर्ग वायु १२.( उपसर्गों/दोषों के लक्षण तथा योगी द्वारा उनसे मुक्ति के उपाय ) 

उपस्कर अग्नि ३७१.३७( उपस्कर हरण पर गृह - काक योनि प्राप्ति कथन ) , मत्स्य २३६ ( उपस्कर / घरेलू वस्तुओं रथ ,वाद्य यन्त्रों आदि में विकृति लक्षण शान्ति उपाय ) , शिव ..४८ ( उपानह , छत्र आदि गृह उपस्करों के हरण पर नरक प्राप्ति का कथन ) Upaskara 

उपस्थ अग्नि १११. ( गङ्गा - यमुना के मध्य में पृथिवी की जघन में प्रयाग तीर्थ का उपस्थ रूप ) , पद्म .३९.७२ ( वही), वायु २९.१७( शंस्य अग्नि नदियों से उत्पन्न उपस्थेय अग्नियों के नाम ), योगवासिष्ठ ..१२८.१०( उपस्थ में कश्यप का न्यास ) Upastha 

उपहार द्र. भेंट ‹ 

उपहूत ब्रह्माण्ड २.३.१०.८९(अङ्गिरस-पुत्र, क्षत्रियों द्वारा पूजित उपहूत पितरों की कन्या यशोदा का कथन)

 

उपांशु वा.रामायण ४.५५.९(उपांशुदण्डेन हि मां बन्धनेनोपपादयेत्।शठः क्रूरो नृशंसश्च सुग्रीवो राज्यकारणात्॥ ), महाभारत वन ३१४.२१(स्यात्तु दुर्योधनेनेदमुपांशु परिकल्पितम्।
गान्धारराजरचितं सततं जिह्मबुद्धिना ॥)
Vedic contexts on Upamshu

 

उपाकर्म स्कन्द ..३५३.२३( यज्ञ वराह के संदर्भ में उपाकर्म के ओष्ठ रुचक होने का उल्लेख ), महाभारत ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ ७८४( यज्ञवराह में उपाकर्म ओष्ठरुचक होने का उल्लेख ) 

उपादान विष्णुधर्मोत्तर .६१.( अखण्डकारी बनने हेतु कालों में से एक ), .६२( उपादान काल में करणीय कृत्यों का वर्णन ) ‹ 

उपाध्याय १.९४.२०(गुरु, आचार्य, उपाध्याय आदि की परिभाषाएं), गरुड १.२१७.१३ ( उपाध्याय का अप्रिय करने पर श्वान योनि प्राप्ति कथन  ), महाभारत अनुशासन २१४.४०(प्रमोदश्च स्रुवस्तस्य उपाध्यायो हि सारथिः।। ), मार्कण्डेय १४.७७ ( उपाध्याय को नीचे रख कर अध्ययन करने पर यमलोक यातना वर्णन ) , १५.२ ( उपाध्याय की निन्दा करने पर श्वान योनि प्राप्ति ) , स्कन्द ६.१३९ ( उपाध्याय ब्राह्मण द्वारा पुत्र मरण पर यम को अपूज्यत्व व अपुत्रत्व का शाप , यम द्वारा ब्राह्मण - पुत्र का पुन: संजीवन ) , कथासरित् १.४.४ ( व्याकरण के विद्वान भ्राताद्वय वर्ष व उपवर्ष उपाध्यायों का वृत्तान्त )  Upaadhyaaya/ upadhyaya

 

उपानह गरुड २.८.१८ / २.४.९ ( आतुर के लिए देय छत्र , उपानह , वस्त्र आदि ८ पदों का उल्लेख - छत्रोपानहवस्त्राणि मुद्रिका च कमण्डलुः । आसनं भाजनं पदं चाष्टविधं स्मृतम् ॥ ), २.४.२१(उपानह दान से अश्वारूढ होकर जाने का उल्लेख - अश्वारूढश्च व्रजति ददते यद्युपानहौ ॥ ) २.८.१६ / २.१८.१६ ( मृतक के त्रयोदशाह में छत्र , उपानह आदि ७ पदों के दान का निर्देश ; उपानह दान से अश्वारूढ होकर यमलोक की यात्रा करने का उल्लेख - छत्त्रोपानहवस्त्राणि मुद्रिका च कमण्डलुः ।आसनं भाजनं चैव पदं सप्तविधं स्मृतम् ॥  ) , २.३१.२(अश्वारूढाश्च ते यान्ति ददते ये ह्युपानहौ ॥), पद्म १.१९.५५ ( उपानह द्वारा गूढित पाद की चर्म से आवृत्त भूमि से तुलना : संस्कृत साहित्य का सार्वत्रिक श्लोक - उपानद्गूढपादस्य तस्य चर्मावृतेव भूः। ) , १.३४.३०८ (आदित्य की मूर्ति में छत्र , पादुका , उपानह आदि का विधान ) , २.४०.४५ (उपानह दान से विपुल सुख प्राप्ति का उल्लेख ) , २.६७.१०० ( उपानह आदि के हरण पर नरक प्राप्ति का उल्लेख ) , ४.२४.२४ ( ब्राह्मण को उपानह दान से मृत्यु पश्चात् इन्द्रलोक की प्राप्ति का उल्लेख - उपानहौ वातपत्रं यो ददाति द्विजातये । प्रेत्य चेंद्रपुरं गत्वा वसेत्कल्पचतुष्टयम् ),  ५.९६.१०० (एकादशी समं किंचित्पादत्राणं न विद्यते), ६.११८.३३ ( कार्तिक मास में उपानह, छत्र आदि दान का निर्देश ) , ६.१२५.१२ ( आखेट हेतु गमन के समय राजा दिलीप के उपानह द्वारा गूढ पाद होने का उल्लेख ) , ७.९.१५ ( गंगा यात्रा में आतपत्र / छत्र तथा उपानह का निषेध ) , ब्रह्म १.१०७.१२ ( उपानह , छत्र आदि दान से अश्व ,रथ , कुंजर आदि से अलंकृत होकर यमपुरी की यात्रा करने का उल्लेख ) , भविष्य १.१९१.१७ ( उपानह आदि हरण पर नरक प्राप्ति का उल्लेख ), ४.५.७२ ( वही) , ४.१००.७ ( माघ मास में मघा नक्षत्र में उपानह दान से सर्व कामनाओं की प्राप्ति का उल्लेख - माघ्यां मघासु च तथा संतर्प्य पितृदेवताः ।।..उपानद्दानमत्रैव कथितं सर्वकामदम् ।। ) , ४.१२१.१४४ ( माघ मास में एकादशी आदि तिथि पर उपानह आदि दान से अश्वमेध फल प्राप्ति का उल्लेख ) , वराह २०७.४६ (उपानह युगल प्रदान से रथ प्राप्ति का उल्लेख - छत्रप्रदानेन गृहं वरिष्ठं रथं ह्युपानद्युग सम्प्रदानात् ।। ) , २०८.८० (राजा मिथि व उनकी पत्नी रूपवती द्वारा क्षेत्र का शोधन , सूर्य के ताप से रानी के पतन पर राजा द्वारा कोप से सूर्य का पतन , सूर्य द्वारा राजा को जल पात्र , उपानह - द्वय तथा छत्र आदि प्रदान करना - उपानहौ च छत्रं च दिव्यालंकार भूषितम् ।। ददौ च राज्ञे सविता प्रीत्या परमया युतः ।। ) , वामन १६.५८( ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी को रुद्र /सूर्य हेतु उपानह , छत्र आदि दान करने का उल्लेख - उपानद्युगलं छत्रं दानं दद्याच्च भक्तिमान्।। ) , ७९.५२ ( वणिक् - प्रेत संवाद में प्रेतराज द्वारा पूर्वजन्म में एकादशी को उपानह दान करने से प्रेत जन्म में प्रेत वाहन प्राप्त करने का वर्णन ), ८९.४७( भृगु द्वारा वामन को उपानह प्रदान का उल्लेख - छत्रं ददौ द्युराजश्च उपानद्युगलं भृगुः।), विष्णुधर्मोत्तर १.३५.१७ ( धनुर्वेद अभ्यास में रत जमदग्नि ऋषि की पत्नी रेणुका के पद सूर्य के ताप से जलने पर सूर्य द्वारा छत्र और उपानह भेंट करने का वर्णन ), १.२५०.१५ ( सूर्य के अभिषेक के समय विरूपाक्ष द्वारा उपानह देने का उल्लेख - उपानहौ ददौ तस्य विरूपाक्षस्तथानघ ।।), २.११६.४९ ( उपानह दान से अश्वतरी युक्त यान द्वारा यम मार्ग की यात्रा पूरी करने का उल्लेख ) , ३.१३४.९ ( त्रैविक्रम व्रत के अन्तर्गत उपानह - युगल व छत्र दान का उल्लेख ), ३.२३३.४७ ( अन्य द्वारा धारित उपानह - द्वय व वस्त्र को धारण न करने का निर्देश ) , ३.३४१.१२४ ( उपानह दान से विमान में यात्रा करने का उल्लेख ),शिव ५.११.४ ( उपानह / काष्ठपादुका दान से अश्वारूढ होकरयमलोक जाने का उल्लेख ), ६.२२.४३ ( एकादशाह श्राद्ध कृत्य विधि के अन्तर्गत ब्राह्मणों को उपानह , छत्र आदि देने का निर्देश ) , स्कन्द १.२.४.८० ( दान के उत्तम, मध्यम व कनिष्ठ प्रकारों के अन्तर्गत उपानह , छत्र आदि के कनिष्ठ प्रकार के दान होने का उल्लेख - उपानच्छत्रपात्रादिदधिमध्वासनानि च॥ ...इति कानीयसान्याहुर्दाननाशत्रयं श्रृणु॥ ), १.२.५०.७६ ( उपानह दान से यान द्वारा यमलोक की यात्रा करने का उल्लेख ), २.७.१७.१२ ( व्याध द्वारा शंख ब्राह्मण के उपानह आदि का लुंठन , सूर्य के ताप से पादों के संतप्त होने पर व्याध द्वारा ब्राह्मण को उपानह देने से वैशाख / माधव मास का पुण्य अर्जित करने का वर्णन ), ५.३.२६.१२५ ( चर्तुदशी को धर्म हेतु उपानह दान का माहात्म्य कथन - तथाप्येवं चतुर्दश्यां दद्यात्पात्रमुपानहौ ॥ ब्रह्मणे धर्ममुद्दिश्य तस्या लोका ह्यनामयाः ।) , ५.३.५०.१९ ( शूलभेद तीर्थ में उपानह दान के फल का उल्लेख : हयारूढ होकर स्वर्ग प्राप्ति ) , ७.१.२८.२५ ( छत्र व उपानह से हीन भिक्षु द्विज द्वारा तीर्थयात्रा करने से महान फल प्राप्ति का कथन ) , ७.४.४.२६ ( द्वारका की यात्रा को प्रस्थित यात्रियों के लिए उपानह दान पर गजस्कन्ध पर यात्रा करने का उल्लेख ) , ७.४.११.१० ( द्विजों को उपानह आदि दान का निर्देश ) , ७.४.४०.२५ ( कार्तिक में द्वादशी को श्राद्ध में उपानह , छत्र आदि दान से प्राप्त फल का ), महाभारत अनु ६६.२ ( ब्राह्मणों को उपानह दान का फल कथन : कण्टकों का मर्दन , अश्वतरी युक्त यान की प्राप्ति आदि - उपतिष्ठति कौन्तेय रौप्यकाञ्चनभूषितम्। शकटं दम्यसंयुक्तं दत्तं भवति चैव हि।।), लक्ष्मीनारायण २.१८.१६( अप्सरा - कन्याओं द्वारा कृष्ण को समर्पित उपनहों के स्वरूप का कथन - आक्षरं दिव्यमेवाऽऽभ्यां तेजः प्रकटितं बहु ।। यदव्याप्नोद् दिगन्तांश्च कोटिचन्द्रनिभं तदा ।.), ३.१११.११ ( उपानह दान से कण्टकों के नाश का उल्लेख - उपानत्संप्रदातुश्च नश्यन्ति कण्टकाः सदा ।। शकटं दम्यसंयुक्तं दत्तं भवति तस्य वै ।) दृ. पादुका  Upaanaha/ upanaha

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Vedic contexts on Upaanaha 

उपासङ्गधर मत्स्य ४६.१६ ( वसुदेव देवरक्षिता - पुत्र )‹ 

उपासना वराह ११५ ( चतुर्वर्ण उपासना विधि ), लक्ष्मीनारायण .२५७.१६ (
उपासना बल का वर्णन : विभिन्न देवों की उपासना से आत्मा द्वारा देह से निष्क्रमण पर विभिन्न लोकों की प्राप्ति )द्र. अर्चना , आराधना , पूजा Upaasanaa 

उपेन्द्र अग्नि ४८.११( उपेन्द्र मूर्ति के आयुध ), ब्रह्मवैवर्त्त ..२१( उपेन्द्र के वीर्य से  मङ्गल ग्रह के जन्म का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ..७३.८४ ( बलि यज्ञ प्रसंग में उपेन्द्र के विराट रूप का दर्शन करने पर देव , दानव मानवों का मोहित होना ) , भागवत ..४५ (उपेन्द्रदत्त :शुकदेव का उपनाम ), १०..४२ ( अदिति कश्यप - पुत्र , वामन उरुक्रम उपनाम ), १०..२३ ( बाल कृष्ण पर प्रयुक्त विष्णु कवच में उपेन्द्र द्वारा ऊपर की रक्षा ), मत्स्य २४४.२६ ( वामन के प्राकट्य पर अदिति माता द्वारा वामन की स्तुति में उपेन्द्र से माया जाल भङ्ग करने , अविद्या से पार होने , तम रूप असुर का नाश करने , अज्ञान का नाश करने , शुभाशुभ कर्मों को देखने के लिए चक्षु प्राप्त करना कथन ), वामन ९०.३४( सिंहल द्वीप में विष्णु का उपेन्द्र नाम ), वायु ९८.८४ ( बलि यज्ञ प्रसंग में उपेन्द्र के विराट रूप का दर्शन करने पर देव , दानव मानवों का मोहित होना ) , स्कन्द ..६१.२३१ ( उपेन्द्र मूर्ति के लक्षण ) , लक्ष्मीनारायण .२५८. ( आश्विन् शुक्ल एकादशी को उपेन्द्र की पूजा ), .२६५.१४( उपेन्द्र की शक्ति सुभगा का उल्लेख ), कथासरित् ..२१ ( उपेन्द्रबल : श्रीदत्त ब्राह्मण का एक मित्र ) , १२..३२५ ( उपेन्द्रशक्ति वणिक् द्वारा रत्नविनायक की प्राप्ति उसे राजपुत्र श्रीदर्शन को देना ) , १२..३८० ( उपेन्द्रशक्ति के विक्षिप्त पुत्र महेन्द्रशक्ति का तपस्वी ब्रह्मसोम द्वारा पाणि से ताडन से स्वास्थ्य लाभ ) Upendra 

उमा कूर्म .४१.५७ ( उमाहक तीर्थ : जल मध्य में गज रूपी शिला का स्थान ) , देवीभाग .३०.७१( विनायक क्षेत्र में विराजमान देवी का उमा नाम ) , नारद .६६.११४( मुनीश्वर की शक्ति उमा का उल्लेख ), .६६.१२८( शूर्पकर्ण की शक्ति उमा का उल्लेख ), .११८. ( ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को उमा व्रत की संक्षिप्त विधि माहात्म्य ) , पद्म .१३३.१९ (विनायक पर्वत पर उमा तीर्थ की स्थिति ) , ब्रह्म .३२.८५ ( हिमवान मेना की ज्येष्ठ पुत्री अपर्णा द्वारा उमा नाम प्राप्ति कारण कथन , उमा द्वारा तप से शिव को पति रूप में प्राप्त करना ) , ब्रह्मवैवर्त्त ..१७ ( बाल गणेश रूप धारी कृष्ण द्वारा उमा शब्द करने का उल्लेख ), भविष्य .१३८.३९( उमा देवी की गोधा ध्वज का उल्लेख ), मत्स्य १३.४१( विनायक तीर्थ में सती देवी की उमा नाम से स्थिति ) , १५४.२९४( पार्वती द्वारा उमा नाम प्राप्ति का कारण ) , लिङ्ग .८५.४५ ( शिव के प्रणव में , तथा उमा के प्रणव में , ),  .१९.२४(उमा सोम का रूप, शिव सूर्य का रूप ), वराह २५.( उमा के अव्यक्त होने का उल्लेख, अव्यक्त पुरुष से अहंकार की उत्पत्ति ), वामन ५१.२१ ( मेना की तृतीय तपोरत कन्या द्वारा उमा नाम प्राप्ति का कारण , वटु रूप धारी शिव का दर्शन और अन्ततः शिव से विवाह ) , वायु ४१.३६ (उमा वन में शिव द्वारा अर्धनारी रूप धारण का उल्लेख ) , १०६.३९/ .४४.३९ (उमाव्रत : ब्रह्मा के यज्ञ के एक ऋत्विज का नाम ) , विष्णुधर्मोत्तर .१६४.२३ ( उमा का वितस्ता नदी के रूप में अवतरण ) , शिव ... ( हिमालय - पत्नी मेना द्वारा उमा की आराधना, उमा द्वारा मेना - पुत्री बनने का वरदान ) , ...१७ ( मेना - पुत्री के तप से निषेध किए जाने पर उमा नाम प्राप्ति , शिव से विवाह प्रसंग वर्णन ) , .+ ( शिव पुराण की उमा संहिता का आरंभ ) , ..३३ (पार्वती द्वारा श्रीकृष्ण को प्रदत्त वरों का कथन ), .१९.३६ (ब्रह्मलोक , वैकुण्ठ आदि से ऊपर उमा लोक का उल्लेख ) , .४९ ( दानवों पर विजय से गर्वोन्मत्त देवों के समक्ष महातेज का प्रकट होकर देवों के गर्व का खण्डन करना , चैत्र शुक्ल नवमी को उमा देवी का प्रादुर्भाव , उमा द्वारा स्व महिमा कथन ) , .५१. ( उमा देवी के क्रिया योग का वर्णन : देवी आराधना विधि वर्णन ) , स्कन्द .. ( विप्र - पत्नी उमा द्वारा निराश्रित नृप - पुत्र का पालन , शाण्डिल्य से नृप - पुत्र के जन्म का वृत्तांत श्रवण ) , ..८४.८४ ( उमा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : औमेय लोक प्राप्ति ) , ..५७. (सोम की कला अमा से तादात्म्य ; इच्छा शक्ति की प्रतीक ) , ..६१ ( वैष्णवी देवी का रूप, ललिता ,विशालाक्षी उपनाम ) , हरिवंश .७८+ ( उमा द्वारा अरुन्धती को पतिव्रता स्त्री माहात्म्य, पुण्यक व्रत विधि तथा स्त्री योग्य अन्य कृत्यों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण .१९७ ( उमा पुरी में स्तोकहोम राजा द्वारा श्रीकृष्ण का स्वागत , कृष्ण  द्वारा उपदेश ) Umaa

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उमा - महेश्वर नारद .१२४.३३ ( उमा - महेश्वर पूर्णिमा  व्रत की विधि ), भविष्य .२३ ( उमा - महेश्वर व्रत विधि ), लिङ्ग .८४ ( वही), स्कन्द .४८ ( हरिश्चन्द्र द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु स्थापित उमा - महेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ..२७६.११ ( देविका तट पर स्थित उमापति का माहात्म्य ), ..५८  (धुन्धुमार द्वारा स्थापित उमा - महेश्वर तीर्थ का माहात्म्य )Umaa maheshwara

उर अग्नि २४२.४२, २४२.४५ ( सप्ताङ्ग युद्ध व्यूह वर्णन के अन्तर्गत उर स्थान में नागों की स्थापना करने का निर्देश ), २४३.१३ ( पुरुष के अङ्गों की उत्कृष्टता के वर्णन में उर, ललाट व मुख इन तीनों के विस्तीर्ण होने पर प्रशस्त होने का उल्लेख ), २५२.२० (उरोललाटघात : क्षेपणी नामक अस्त्र के कर्मों में से एक ), २५२.२७ ( उरोललाटघात : गदा अस्त्र के कर्मों में से एक ), गरुड १.१०७.३५ ( शव दाह में शव के अङ्गों में यज्ञ पात्रों की स्थापना के वर्णन के अन्तर्गत उर में दृषद रखने का निर्देश ), पद्म १.३४.१२५ ( सावित्री शाप से दग्ध रुद्र द्वारा ब्रह्मा की स्तुति के प्रसंग में विश्वसृक् से उर की रक्षा करने की प्रार्थना ), १.४१.२८८ ( गरुड द्वारा उर से ताडन करके कालनेमि के वध का उल्लेख ), ५.१०८.५८ ( उर आदि अङ्गों में अघोर आदि शिव नामों से भस्म लगाने का निर्देश ), भविष्य ४.८३.९२ ( ज्येष्ठ मास की द्वादशी को विष्णु की आराधना में उर में संवर्त, कण्ठ में संवत्सर नाम आदि से विष्णु के न्यास का निर्देश आदि ), ४.८३.१२३ ( आश्वयुज मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को उर में पुष्कराक्ष के न्यास का निर्देश ), भागवत २.१.२८ ( भगवान के अङ्गों की लोकों से तादात्म्यता के वर्णन में उर के ज्योतिरनीक / स्वर्ग लोक होने का उल्लेख ), वा.रामायण ३.५.१७ ( राम द्वारा देवताओं के उर देशों में अग्नि के समान तेजस्वी हार देखने का उल्लेख ), ३.१४.३० ( कश्यप - पत्नी मनु के उर से क्षत्रियों व मुख आदि से ब्राह्मण आदि वर्णों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), ४.३.३१ ( सुग्रीव - दूत हनुमान के उर से निकलने वाली मध्यमा वाक् आदि के मध्यम स्वर वाली होने का उल्लेख ), ५.१.४ ( समुद्र लङ्घन से पूर्व हनुमान की स्थिति के वर्णन में उर द्वारा पादपों के हरण का उल्लेख ), ५.१.६९ ( हनुमान द्वारा समुद्र लङ्घन काल में सागर की शैल समान ऊर्मियों / लहरों का उर से हनन करने का उल्लेख ), ५.१.१०८ ( समुद्र लङ्घन काल में हनुमान द्वारा उर से मैनाक पर्वत को गिरा देने की वायु द्वारा मेघ को छिन्न करने से उपमा ), ५.४४.१४ ( जम्बुमाली राक्षस द्वारा हनुमान के उर में एक बाण से ताडन करना तथा हनुमान द्वारा जम्बुमाली के उर में परिघ मार कर उसका वध करना ), ६.७७.१२ (निकुम्भ राक्षस द्वारा हनुमान के उर में परिघ से प्रहार करने पर परिघ का शतधा विभक्त होना, हनुमान द्वारा निकुम्भ के उर में मुष्टि प्रहार करके उसके वध का वर्णन ) ७.६९.३५ ( शत्रुघ्न द्वारा लवण के उर में दिव्य महाबाण मार कर उसके वध का वर्णन ), लिङ्ग १.२६.३८ ( प्रातःकाल पञ्चयज्ञ वर्णन के अन्तर्गत अघोर आदि मन्त्रों से उर आदि अङ्गों के अभिषेक का निर्देश ), वराह ४५.३ ( ज्येष्ठ मास में रामद्वादशी व्रत में उर आदि में संवत्सर आदि के न्यास का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर २.८.१२ ( त्रिगम्भीर लक्षणों वाले पुरुष के उर, नाभि व सक्थि गम्भीर होने का उल्लेख ), २.११५.८३ ( पुरुष के उर में १७ अस्थियां होने का उल्लेख ), २.१२४.७१ (उरोष्ट इति सूक्त (ऋ.५.३८.१ ) द्वारा वित्त प्राप्त होने का उल्लेख ), २.१८२.२४ (उरोललाटघात : गदा कर्म के विशिष्ट नामों में से एक ), शिव २.१.४.६९ ( उर में शिव के चरणकमलों को धारण कर शिव तीर्थों में विचरने का निर्देश ), ३.१०.२९ (नृसिंह द्वारा प्रह्लाद का उर से आलिङ्गन करने पर हृदय के शीतल होने का उल्लेख ), स्कन्द १.१.३४.४८ (शिव का उर विशाल होने का उल्लेख ), ५.३.८.१०५ ( गौ के अङ्गों में देवप्रतिष्ठा वर्णन के अन्तर्गत उर में स्कन्द की स्थिति का उल्लेख ), ६.२६२.४० ( मूर्त - अमूर्त देव के लिए पृथिवी लोक के उर होने का उल्लेख ), हरिवंश २.२४.३५ ( केशी असुर द्वारा उर से कृष्ण के उर पर प्रहार करने की चेष्टा का उल्लेख ) द्र. न्यास, पुरुष , महाभारत वन २७९.२९ ( कबन्ध राक्षस की विशाल आंखें उर में तथा मुख उदर में होने का उल्लेख ), उद्योग १८०.१४ ( परशुराम द्वारा युद्ध में भीष्म के उर का बाण द्वारा वेधन करने पर भीष्म के मूर्च्छित होने का उल्लेख ), भीष्म ७५.१९ ( भीष्म द्वारा निर्मित क्रौञ्च व्यूह के उर में प्राग्ज्योतिष राजा भगदत्त व पृष्ठ में अवन्तिराज  की स्थिति का उल्लेख ), १११.४६ ( भूरिश्रवा द्वारा भीमसेन के उर के नाराचों द्वारा वेधन की स्कन्द शक्ति द्वारा क्रौञ्चपर्वत के  वेधन से उपमा ), द्रोण २९.१८ ( भगदत्त द्वारा अर्जुन के उर पर दिव्य अङ्कुश द्वारा प्रहार, कृष्ण द्वारा दिव्य अस्त्र को अपने उर पर ग्रहण करने पर अस्त्र के वैजयन्ती माला में परिवर्तित हो जाने का वर्णन ), ११३.१९ ( युद्ध में अश्वों के उरश्छदों द्वारा सुशोभित होने का उल्लेख ), १२९.२८ ( भीमसेन द्वारा कर्ण के उर पर तीन शरों से प्रहार, शरों के कर्ण के उर में त्रिशृङ्ग पर्वत के समान शोभा पाने का उल्लेख ), १७५.९ ( घटोत्कच के उर में धारित निष्क की अग्निमाला धारण किए हुए पर्वत से तुलना ), शल्य १७.५० ( युधिष्ठिर द्वारा उर में दिव्य शक्ति का प्रहार करके शल्य का वध ), शान्ति ३१७.४ ( अङ्गों से प्राणों के निष्क्रमण के संदर्भ में उर से प्राणों के निष्क्रमण पर रुद्रलोक की प्राप्ति का उल्लेख ) द्र. न्यास, पुरुष   Ura

Vedic references on Ura