PURAANIC SUBJECT INDEX

(From vowel U to Uu)

Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar

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Udaana - Udgeetha  (Udaana, Udumbara, Udgaataa, Udgeetha etc.)

Uddaalaka - Udvartana (Uddaalaka, Uddhava, Udyaana/grove, Udyaapana/finish etc. )

Unnata - Upavarsha ( Unnetaa, Upanayana, Upanishat, Upbarhana, Upamanyu, Uparichara Vasu, Upala etc.)

Upavaasa - Ura (Upavaasa/fast, Upaanaha/shoo, Upendra, Umaa, Ura etc. )

Ura - Urveesha (Ura, Urmilaa, Urvashi etc.)

Uluuka - Ushaa (Uluuka/owl, Uluukhala/pounder, Ulmuka, Usheenara, Usheera, Ushaa etc.)

Ushaa - Uurja (Ushaa/dawn, Ushtra/camel, Ushna/hot, Uuru/thigh, Uurja etc.)

Uurja - Uurdhvakesha (Uurja, Uurjaa/energy, Uurna/wool ) 

Uurdhvakesha - Uuha (Uushmaa/heat, Riksha/constellation etc.)

 

 

 

Puraanic contexts of words like Uddaalaka, Uddhava, Udyaana/grove, Udyaapana/finish etc. are given here.

Comments on Uddaalaka

Comments on Uddhava

Vedic contexts on Uddhava

उद्दालक पद्म ४.१०.१३ ( विष्णु द्वारा लक्ष्मी से विवाह हेतु लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी ज्येष्ठा का उद्दालक से विवाह करना - इति श्रुत्वा ततो विष्णुर्ददौ चोद्दालकाय च ।
वेदवाक्यानुरूपेण ह्यलक्ष्मीं निर्जरैः सह। ) , ६.११६ ( वेद ध्वनि आदि सुनने पर ज्येष्ठा के व्यथित होने के कारण उद्दालक द्वारा ज्येष्ठा को अश्वत्थ मूल में स्थापित करके ज्येष्ठा के निवास योग्य स्थान के अन्वेषण के लिए जाना ) , ब्रह्म १.५.६१ ( उत्तंक - धुन्धु - कुवलाश्व कथा में समुद्र का उद्दालक नाम , अन्य पुराणों में उज्जानक नाम ) , योगवासिष्ठ ५.५१+ ( उद्दालक ऋषि की चित्त के विकारों से मुक्ति पाकर आत्मबोध की अभीप्सा , प्रणव द्वारा निर्विकल्प समाधि की प्राप्ति , खिंखिनी देवी द्वारा उद्दालक की देह को मुकुट का भूषण बनाने का उल्लेख - केन क्रमेण भगवन्मुनिनोद्दालकेन तत् । भूतपञ्चकमालूनं कृत्वान्तः प्रविचारितम् ।।) , लिङ्ग २.६ (उद्दालक के स्थान पर दुःसह नाम , मार्कण्डेय ऋषि द्वारा ज्येष्ठा - पति दुःसह को ज्येष्ठा सहित निवास योग्य स्थानों का वर्णन ) , वराह १९३.१२+ ( पिता उद्दालक के वचन से नचिकेता का यम के पास गमन , प्रत्यागमन पर ऋषियों को यमलोक स्थित पापियों व धर्मराजपुरी आदि का विस्तृत वर्णन ) , वामन ३७.३२ (उद्दालक द्वारा उत्तरकोसल तीर्थ में मनोहरा नाम से सरस्वती का आह्वान ) , वायु ४१.४४ ( उद्दालक आदि ऋषियों का कलाप ग्राम में वास कथन) , स्कन्द १.१.७.५४ ( उद्दालक द्वारा काशिराज - पुत्री सुन्दरी से शिव मन्दिर में सम्मार्जन के महत्व के विषय में पृच्छा ) , २.४.३टीका ( उद्दालक - भार्या ज्येष्ठा की अश्वत्थ के नीचे स्थिति की कथा ) , ४.२.७०.७८ ( उद्दालक तीर्थ में यमदंष्ट्रा देवी का वास ) , ४.२.८४.२९ ( उद्दालक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य :अघनाशक व ऋद्धिदायक ), ४.२.९७.८३ ( उद्दालकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य :सिद्धि प्राप्ति ), ७.२.७ ( उद्दालक वीर्य से मृगानना कन्या के जन्म का वृत्तान्त ), ७.३.४२ ( उद्दालकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : रोग व पाप से मुक्ति , गार्हस्थ्य प्राप्ति ) , ७.४.१.१८ ( कलियुग में विष्णु का परम रूप जानने के लिए उद्दालक सहित ऋषियों का ब्रह्मा के निकट गमन , ब्रह्मा के कथनानुसार बलि के निकट गमन ), महाभारत आदि ३.२९( केदारखण्ड विदारण के कारण आरुणि की उद्दालक नामक से ख्याति -  यस्माद्भवान्केदारखण्डं विदार्योत्थितस्तस्मादुद्दालक एव नाम्ना भवान्भविष्यति ), शान्ति २२०.२०( जापक ब्राह्मण के तालु देश का उद्दालन करके ज्योति ज्वाला के स्वर्ग की ओर जाने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), २.६३.१० ( उद्दालक -पुत्र शतानन्द का वृत्तान्त ) ; दृ. अलक्ष्मी , आरुणि, दुःसह  Uddaalaka

 

Comments on Uddaalaka

 

उद्धव गरुड ३.२८.४८(बृहस्पति का पवनावेश युक्त अवतार, निरुक्ति), गर्ग १.५.२४ ( वसु का अंश ) , ५.१३ ( श्रीकृष्ण के निर्देश पर कृष्ण वेश में व्रज में जाना तथा गोपों को कृष्ण का सन्देश देना ) , ५.१४ ( नन्द व यशोदा के कृष्ण प्रेम को जानकर उद्धव के ज्ञान अभिमान का गलना , उद्धव द्वारा यशोदा को कृष्ण चरित्र का वर्णन ) , ५.१५ ( प्रात: काल व्रज में गोपियों द्वारा उद्धव व उनके रथ के दर्शन , उद्धव का कदली वन में राधा के दर्शन करके उनकी स्तुति करना व उन्हें कृष्ण का सन्देश देना ) , ५.१६ ( राधा द्वारा उद्धव के समक्ष अपनी विरह व्यथा प्रस्तुत करना , उद्धव द्वारा गोपियों से भेंट प्राप्ति तथा गोपियों को कृष्ण का  मौखिक सन्देश देना : मन के कषाय का त्याग व वियोग द्वारा भी प्रभु की प्राप्ति ) , ५.१७+ ( कृष्ण का सन्देश सुनकर गोपियों के ४४ प्रकार के गणों द्वारा स्व - उद्गार प्रकट करना तथा उद्धव का मथुरा गमन ), ५.१९ ( उद्धव का कृष्ण को लेकर मथुरा से व्रज में आगमन आदि ) , ५.२४.६८ ( बलराम द्वारा माण्डूकदेव को उद्धव चरित्र की महिमा का वर्णन ) , ७.२.१९ ( उद्धव द्वारा प्रद्युम्न को किंजल्किनी माला भेंट करने का उल्लेख ),पद्म ५.७४.१ ( उद्धव द्वारा सनत्कुमार से गोपी - कृष्ण क्रीडा रहस्य सम्बन्धी पृच्छा , सनत्कुमार द्वारा अर्जुन के अर्जुनी गोपी बनकर रहस्य दर्शन करने की घटना का वर्णन ) , ब्रह्मवैवर्त ४.९२ ( कृष्ण के निर्देश पर उद्धव का गोकुल गमन , रासमण्डल के अन्तर्गत विभिन्न वनों का दर्शन , वृन्दावन वन के अन्तर्गत विभिन्न द्वारों को पार करके षष्ठम द्वार के पश्चात् विरहातुर राधा के दर्शन करना , राधा की स्तुति करना ) , ४.९३.१ ( उद्धव द्वारा राधा को स्वयं का परिचय देना , राधा का कृष्ण विरह में मूर्च्छित होना , उद्धव द्वारा राधा की परिचारक सखियों के दर्शन करना ) , ४.९३.५२  ( राधा द्वारा उद्धव को दिव्य अंगुलीयक , मणिकुण्डलद्वय , हीरक हार आदि प्रदान करना , राधा का कृष्ण के विरह में पुनः मूर्च्छित होना ) , ४.९४.१ ( उद्धव तथा राधा की सखियों द्वारा कृष्ण को उपालम्भ पूर्वक राधा के प्रबोधन की चेष्टा ) , ४.९६.६ ( उद्धव द्वारा राधा से काल की शुद्ध गति का ज्ञान प्रदान करने की प्रार्थना ) , ४.९७.१ ( राधा द्वारा उद्धव को विदा करना ) , भागवत ३.१.२४ ( यमुना तट पर विदुर की उद्धव से भेंट , विदुर द्वारा उद्धव से यादवों व पाण्डवों की कुशल - क्षेम पूछना ), ३.२.२ ( उद्धव की कृष्ण - भक्ति की पराकाष्ठा का कथन , उद्धव द्वारा विदुर को कृष्ण की लीलाओं का वर्णन ) , ३.४.१ ( उद्धव द्वारा प्रभास क्षेत्र में यादवों के नाश का वर्णन ) , ३.४.११ ( उद्धव के पूर्व जन्म में वसु होने का उल्लेख ; कृष्ण द्वारा उद्धव को भागवत ज्ञान प्रदान करना ) , ३.४.२५ ( विदुर का उद्धव से कृष्ण से प्राप्त ज्ञान प्रदान करने का अनुरोध , उद्धव द्वारा विदुर को गङ्गा तट पर मैत्रेय ऋषि से ज्ञान प्राप्ति का निर्देश ) , ३.४.३२ ( कृष्ण के निर्देश पर उद्धव द्वारा मर्त्य लोक में अस्तित्व बनाए रखने व बदरिकाश्रम में जाकर हरि की आराधना करने का उल्लेख ) , १०.४६.१ ( कृष्ण के निर्देश पर उद्धव की व्रज यात्रा , नन्द व उद्धव द्वारा परस्पर कृष्ण लीलाओं का गुणगान करना ) , १०.४७.११ ( गोपियों द्वारा कृष्ण - दूत उद्धव की तुलना षट्पद /भ्रमर से करना , भागवत का प्रसिद्ध भ्रमर गीत वर्णन ), १०.४७.२८ ( उद्धव द्वारा गोपियों को कृष्ण का सन्देश अथवा योगमार्ग का उपदेश देना ) , १०.४७.६१ ( उद्धव की वृन्दावन में गुल्म , लता , ओषधि बनकर गोपियों की चरणधूलि सेवन की इच्छा  का उल्लेख ) , ११.६.४० ( उद्धव का कृष्ण के साथ प्रभास क्षेत्र जाने का आग्रह ) , ११.७.१+ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को आत्मा - इन्द्रिय योग का उपदेश , योग ज्ञान के विस्तार के रूप में यदु - दत्तात्रेय उपाख्यान के अन्तर्गत २४ गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करने का वृत्तान्त ) , ११.१०.३५ ( देही / आत्मा के देह के गुणों से बद्ध अथवा मुक्त होने के सम्बन्ध में उद्धव द्वारा कृष्ण से पृच्छा , कृष्ण द्वारा द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया इत्यादि द्वारा उत्तर ) , ११.११.२६ ( उद्धव द्वारा कृष्ण से साधु पुरुष के लक्षण तथा कृष्ण भक्ति की विधि की पृच्छा  ), ११.१२.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को सत्संग की महिमा का वर्णन ) , ११.१२.१७ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को अव्यक्त ब्रह्म के संसार में व्यक्त रूप की भक्ति / सेवन हंस रूप होकर करने का निर्देश ) , ११.१३.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को सत्त्व गुण की वृद्धि करने का निर्देश ) , ११.१३.८ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में कृष्ण द्वारा मर्त्त्य जीव द्वारा दुःख प्राप्ति के कारण के रूप में अहंकार तथा रजोगुण की वृद्धि को कारण बताना ) , ११.१३.१७ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को त्रिगुणों से पार होने के लिए जाग्रत , स्वप्न आदि से परे तुरीय / समाधि अवस्था को जानने का निर्देश ) , ११.१४.१ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा भक्तियोग को ही सर्वश्रेष्ठ बताना ) ,११.१४.३१ ( उद्व के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा हृदय कमल में अपने स्वरूप के ध्यान की विधि का वर्णन ) , ११.१५.२ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा किस धारणा से कौन सी सिद्धि प्राप्त होती है , इसका वर्णन ; कृष्ण की धारणा से सभी सिद्धियों की प्राप्ति का कथन ) , ११.१६.५ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा अपनी विभूतियों का वर्णन ) , ११.१७.१+ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा चार वर्णों और चार आश्रमों की विराट् पुरुष / स्वयं से उत्पत्ति तथा उनके स्वभाव व कर्तव्यों का वर्णन ) , ११.१९.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को तप आदि से भी ऊपर ज्ञान व विज्ञान के महत्व तथा उनकी शुद्ध रूप में प्राप्ति के उपाय का वर्णन ) , ११.१९.१९ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को भक्तियोग के स्वरूप का वर्णन ) , ११.१९.२८ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में कृष्ण द्वारा यम, नियम, शम , दम आदि को परिभाषित करना ) , ११.२०.५ ( उद्धव द्वारा गुण - दोष में भेद दृष्टि रखने या न रखने का प्रश्न , कृष्ण द्वारा निरपेक्षता की परम स्थिति प्राप्त करने का उपदेश , अनन्य भक्ति में गुण - दोषों के समाप्त होने का कथन ) , ११.२१.१० ( कृष्ण द्वारा उद्धव को द्रव्यों के शोधन की भांति स्नान , दान , तप आदि से आत्मा की शुद्धि करने का वर्णन ; गुणों और दोषों का अतिक्रमण करने का निर्देश ) , ११.२१.३६ ( शब्द ब्रह्म / ओंकार वाक् का वर्णन ) , ११.२२.१ ( उद्धव द्वारा कृष्ण से तत्त्वों की संख्या के विषय में पृच्छा ) , ११.२२.२६ ( उद्धव द्वारा पुरुष और प्रकृति में भेद अथवा अभेद के विषय में पृच्छा ), ११.२२.३४ ( उद्धव द्वारा कृष्ण से भक्ति रहित जीव द्वारा अपने कर्मों के फलस्वरूप देह ग्रहण करने के विषय में पृच्छा , कृष्ण द्वारा निरपेक्ष स्थिति / साक्षी भाव में जाकर जन्म - मृत्यु आदि की  सापेक्ष स्थिति को देखने का निर्देश ) , ११.२३.६ ( दुष्ट पुरुषों के मर्मवेधी बाण रूपी वचनों की पीडा से बचने के संदर्भ में कृष्ण द्वारा उद्धव को तितिक्षु ब्राह्मण का वृत्तान्त कथन : दुःख प्राप्ति में मन के ही कारण होने का वर्णन ) , ११.२४.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु सांख्य योग का कथन : भूतों को क्रमश: एक दूसरे में लीन करने तथा उनकी क्रमिक सृष्टि करने का वर्णन ) , ११.२५.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु सत्त्व आदि गुणों के अन्तर्गत वर्गीकृत शम ,दम आदि वृत्तियों का निरूपण और अन्त में निरपेक्ष स्थिति प्राप्त करके ब्रह्म की अनुभूति करने का निर्देश ) ,११.२६.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु पुरूरवा - उर्वशी आख्यान का संक्षेप में कथन ) , ११.२७.१ ( उद्धव के अनुरोध पर कृष्ण द्वारा क्रियायोग / देवार्चन विधि का वर्णन ) , ११.२८.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को प्रकृति व पुरुष में द्वैत के स्थान पर अद्वैत दृष्टि विकसित करने का निर्देश ) , ११.२८.१० ( उद्धव द्वारा आत्मा को अव्यय , स्वयंज्योति युक्त दृष्टा तथा देह को जड दृश्य कहकर इनसे संसार के उत्पन्न होने / संसृति के पीछे कारण की पृच्छा , कृष्ण द्वारा देह में स्थित आत्मा के अहंकार से युक्त हो जाने पर उसे जीव की संज्ञा देना और स्वयंज्योति ब्रह्म को जानने का निर्देश ) ११.२९.१ ( उद्धव द्वारा कृष्ण से मन का निग्रह करने वाली कठिन योगसाधना के बदले सरल व सुगम साधन बताने का अनुरोध , कृष्ण द्वारा समस्त भूतों में परमेश्वर के दर्शन का निर्देश ) , ११.२९.४१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को अलकनन्दा तट पर बदरिकाश्रम में तप करके शुद्ध होने का निर्देश ) , १३.२.२७(उद्धव का सविता विशेषण), मत्स्य ४६.२३ ( वसुदेव - भ्राता देवभाग के पुत्र ) , विष्णु ५.३७.३१ ( यादवों के विनाश के समय कृष्ण की आज्ञा से बदरिकाश्रम क्षेत्र में जाना ) , स्कन्द २.६.२ ( कृष्ण के परमधाम गमन के पश्चात् साधना हेतु बदरिकाश्रम में निवास , अन्य रूप में व्रज की लताओं के रूप में वास ), २.६.२.२७(उद्धव का सविता से साम्य), २.६.३ ( उद्धव की श्रीकृष्ण से एकात्मता , उद्धव द्वारा कृष्ण - पत्नियों को कृष्ण - व भागवत - माहात्म्य कथन ) , ७.४.१७.२६ ( उद्धवार्क : द्वारका के पश्चिम द्वार पर स्थित सूर्य का नाम ) , हरिवंश १.३४.३१( देवभाग - पुत्र ) , लक्ष्मीनारायण १.२२४.३ ( द्वारका स्थित कृष्ण द्वारा गोकुल में गोपियों की कुशल - क्षेम जानने के लिए उद्धव का प्रेषण ) , १.४२९.४८ ( गोवर्धन की लताओं में व्याप्त उद्धव द्वारा गोपियों का कृष्ण से विरहाभास नष्ट करना ) , कृष्णोपनिषद १६(दम का रूप ) Uddhava

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Vedic contexts on Uddhava

उद्भिद् ब्रह्माण्ड १.२.१४.२७ ( उद्भिज्ज : कुशद्वीप के अधिपति ज्योतिष्मान के सात पुत्रों में से एक व कुशद्वीप का एक वर्ष ), १.२.१९.५( विद्रुम पर्वत के उद्भिद् वर्ष का उल्लेख - उद्भिदं प्रथमं वर्षं द्वितीयं वेणुमण्डलम् ।। तृतीयं वै रथाकारं चतुर्थं लवणं स्मृतम् ।। ), भागवत २.६.४(विराट पुरुष के रोमों से उद्भिजों की उत्पत्ति का उल्लेख- त्वगस्य स्पर्शवायोश्च सर्व मेधस्य चैव हि । रोमाणि उद्‌भिज्ज जातीनां यैर्वा यज्ञस्तु सम्भृतः ॥ ), वायु ३३.२४ ( उद्भिद् : कुशद्वीप के अधिपति ज्योतिष्मान के सात पुत्रों में से एक व कुशद्वीप का एक वर्ष ) , विष्णु २.४.३६ ( वही) , स्कन्द १.२.५.८३(उपध्मानीय वर्णों की उद्भिद् संज्ञा), ७.१.३५.२९(पुनः प्रवृत्ता सा तस्मादुद्भेदात्पश्चिमामुखी ॥भूतीश्वरं समायाता सिद्धो यत्र महामुनिः ॥),  महाभारत वनपर्व १९७.२८ ( शिबि द्वारा कपोतरोमा नामक उद्भिद पुत्र प्राप्त करने क कथा - कपोतरोमाणं शिबिनौद्भिदं पुत्रं प्राप्स्यसि नृपवृषसंहननं यशोदीप्यमानं Udbhida

Vedic contexts on Udbhida

उद्भ्रम मत्स्य १८०.९९( हरिकेश गण को शिव द्वारा प्रदत्त परिचारकों में से एक ) 

उद्यमश्री लक्ष्मीनारायण .२२३ ( पशुपालक उद्यमश्री द्वारा कृष्ण भक्तों से कृष्ण नाम ग्रहण , कृष्ण के दर्शन ) ‹ 

उद्यान कूर्म .१३.४० ( उद्यान में मल - मूत्र त्याग का निषेध ) , मत्स्य १८०.२३( शिव द्वारा पार्वती हेतु उद्यान की शोभा का वर्णन ), शिव ..१३ ( संकल्प का प्रतीक ), स्कन्द ..२०९.८७ ( उद्यान छेदन का पाप कथन ), ..२०७.५१( बिना अनुमति पराये उद्यान का उपयोग करने पर पाप कथन ), लक्ष्मीनारायण .२३९.६६ ( रोल राजा की सेना द्वारा उद्यान नष्ट करने पर नृसिंह प्रतिमा का अदृश्य होना ) , कथासरित् ..७५ ( गोदावरी तट पर देवीकृति नामक उद्यान की निर्माण कथा  : ब्राह्मण द्वारा देवी की कृपा से निर्माण ) , ..५८ ( सोमप्रभा - सखी कलिङ्गसेना द्वारा स्वयंप्रभा के दिव्य उद्यान का दर्शन ) , ..१४१ ( सोमप्रभा द्वारा कलिङ्गसेना की कन्या के लिए दिव्य उद्यान का निर्माण )Udyaana

उद्यापन नारद .२२.६७ ( चातुर्मास्य व्रत उद्यापन विधि ) , पद्म .९५ ( कार्तिक व्रत उद्यापन ) , भविष्य .१२८.१६ ( वृक्ष उद्यापन विधि : अपुत्रा पार्वती द्वारा अशोक वृक्ष की पुत्र रूप में कल्पना करके जातकर्म आदि संस्कार करना ) , मत्स्य ९८ ( सङ्क्रान्ति व्रत उद्यापन विधि ) , स्कन्द ..३४ ( कार्तिक व्रत उद्यापन विधि माहात्म्य ) , ..१२.३४ ( एकादशी व्रत उद्यापन विधि ) , ...५५ (चन्द्रहरि चन्द्रसहस्र व्रत उद्यापन ) , ..२६.१५१ ( शुक्ल तृतीया संवत्सर व्रत की उद्यापन विधि का वर्णन ) , लक्ष्मीनारायण .२६३.६० , .२६५ ( एकादशी व्रत उद्यापन विधि ), .३२२( पुरुषोत्तम मास के उद्यापन का वर्णन ) Udyaapana

उद्वर्तन अग्नि २६५. ( उद्वर्तन / उबटन हेतु ओषधियां ) , पद्म .४३.४३३ ( पार्वती के उद्वर्तन मल से गणेश के प्रादुर्भाव का उल्लेख ), ..२८( बल असुर के अङ्गों के उद्वर्तन से पित्तल की उत्पत्ति का उल्लेख ),स्कन्द ..२७. , ..१२.१० , .२१४.४७ ( वही) Udvartana

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