PURAANIC SUBJECT INDEX

(From vowel U to Uu)

Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar

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Udaana - Udgeetha  (Udaana, Udumbara, Udgaataa, Udgeetha etc.)

Uddaalaka - Udvartana (Uddaalaka, Uddhava, Udyaana/grove, Udyaapana/finish etc. )

Unnata - Upavarsha ( Unnetaa, Upanayana, Upanishat, Upbarhana, Upamanyu, Uparichara Vasu, Upala etc.)

Upavaasa - Ura (Upavaasa/fast, Upaanaha/shoo, Upendra, Umaa, Ura etc. )

Ura - Urveesha (Ura, Urmilaa, Urvashi etc.)

Uluuka - Ushaa (Uluuka/owl, Uluukhala/pounder, Ulmuka, Usheenara, Usheera, Ushaa etc.)

Ushaa - Uurja (Ushaa/dawn, Ushtra/camel, Ushna/hot, Uuru/thigh, Uurja etc.)

Uurja - Uurdhvakesha (Uurja, Uurjaa/energy, Uurna/wool ) 

Uurdhvakesha - Uuha (Uushmaa/heat, Riksha/constellation etc.)

 

 

 

Puraanic contexts of words like Uurja, Uurjaa/energy, Uurna/wool etc. are given here.

Veda study on Uurja

Vedic contexts on Uurja

ऊर्ज कूर्म १.५१.८ ( स्वारोचिष मन्वन्तर के ऊर्ज, स्तम्भ, प्राण आदि सप्तर्षियों का उल्लेख ), गरुड १.१३८.५३ ( शुचि - पुत्र, सनद्वाज - पिता , सूर्य वंश ), नारद १.११२.५४ ( ऊर्ज शुक्ल तृतीया को विष्णु - गौरी व्रत की विधि ), १.१२०.५१ ( ऊर्ज शुक्ल एकादशी को केशव के प्रबोधन व्रत की विधि ), १.१२२.४६ ( ऊर्ज कृष्ण त्रयोदशी को प्रात:काल यम प्रीत्यर्थ गृह के बाहर तैल दीप रखने का निर्देश ), १.१२२.४८ ( ऊर्ज शुक्ल त्रयोदशी को शिव की १०० नामों से अर्चना आदि करने का वर्णन ), १.१२३.४६ ( ऊर्ज कृष्ण चर्तुदशी को नरक से अभय तथा यम प्रीत्यर्थ तैल अभ्यङ्ग करके स्नान करने व चतुष्पथ पर तैल दीप रखने आदि का निर्देश ), १.१२३.४८ ( कार्तिक शुक्ल चर्तुदशी को विश्वेश तोषण हेतु करणीय पाशुपत व्रत, ब्रह्मकूर्च व्रत, पाषाण व्रत आदि का निर्देश तथा विधि ), पद्म ४.२०.२४ ( ऊर्ज मास में स्नान व राधा - दामोदर अर्चन से कलिप्रिया जारासक्ता के उद्धार की संक्षिप्त कथा ), ४.२१.१ ( कार्तिक मास में स्नान की सम्यक् विधि का वर्णन ), ४.२२.१ ( कार्तिक मास के संदर्भ में तुलसी माहात्म्य का वर्णन ), ४.२३.१ ( कार्तिक प्रबोधिनी एकादशी से पूर्णिमा तक के पांच दिवसों के कृत्यों, विष्णु पंचक व्रत का वर्णन ),६.८८ ( कृष्ण द्वारा सत्यभामा के आंगन में कल्पवृक्ष की स्थापना के साथ कार्तिक माहात्म्य का आरम्भ ), ६.८९.२४ ( सत्यभामा द्वारा पूर्वजन्म में तुलसी वाटिका की स्थापना से इस जन्म में कल्पवृक्ष की प्राप्ति करने का उल्लेख ), ६.९०.२३ ( कार्तिक मास में वेदों के जल में विश्राम करने के कारण की कथा ), ६.९०.२५ ( कार्तिक मास में प्रात: स्नान से यज्ञ में अवभृथ स्नान की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.९६.४ ( तुलसी माहात्म्य के अन्तर्गत जालन्धर - वृन्दा की विस्तृत कथा व वृन्दा की भस्म से तुलसी आदि के उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), ६.१०६.३ ( कार्तिक व्रती धर्मदत्त के समक्ष कलहा स्त्री के प्रेत का प्रकट होना व धर्मदत्त द्वारा कार्तिक के पुण्य दान से प्रेत का उद्धार ), ६.१०८.५ ( चोल नृप व विष्णुदास विप्र की विष्णु भक्ति में स्पर्धा का वृत्तान्त ), ६.११३.१ ( पापी धनेश्वर विप्र द्वारा कार्तिक व्रतियों के दर्शन आदि से नरक से उद्धार की कथा ), ६.११८.३ ( ऊर्ज मास में ब्राह्मणों के लिए विभिन्न भोजन, दान तथा कन्या दान के माहात्म्य का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१० ( इष व ऊर्ज मासों की स्वधावान् संज्ञा - इषश्चैव तथोर्जश्च स्वधावंतावुदाहृतौ ।। ), १.२.३६.२८ ( सुधामा नामक देवगण के १२ देवों में से एक ), २.३.१३.५३ ( ऊर्ज्जन्त पर्वत पर योगेश्वर का वास स्थान व वसिष्ठ का आश्रम ), २.३.६४.२० ( ऊर्जवह : मुनि - पुत्र, वाज / सनद्वाज - पिता, निमि वंश ), ३.४.१.११५ ( ऊर्जस्वी : भौत्य मनु के पुत्रों में से एक ), ३.४.३२.३४ (ऊर्जश्री : मन्दार वाटिका के रक्षक की दो रानियों में से एक, ललिता देवी की सेविका ), भविष्य ४.१०३.१ ( दिलीप - भार्या कलिङ्गभद्रा का कार्तिक व्रत से मत्यु पश्चात् अजा बनना, अत्रि द्वारा अजा को योग की शिक्षा, जन्मान्तर में अजा के गौतम व अहल्या - पुत्री तथा शाण्डिल्य - पत्नी योगलक्ष्मी बनने की कथा ), ४.१०३.३३ ( कार्तिक पूर्णिमा को ६ कृत्तिकाओं के स्वर्ण , रौप्य आदि से निर्मित बिम्बों के निर्माण का विधान ), ४.१६०.१६ ( ऊर्जस्वी आदि गुणों से युक्त वृषभ के दान के फल का कथन ), भागवत ३.२०.४२ ( ब्रह्मा द्वारा स्वयं को ऊर्जस्वान् मानकर साध्य व पितृगणों की सृष्टि करने तथा पितरों द्वारा उस काया को ग्रहण करने का उल्लेख ), ४.१३.१२ ( वत्सर व स्वर्वीथि के ६ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश ), ५.१.२४, ५.१.३४ ( ऊर्जस्वती : प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्री, शुक्राचार्य - पत्नी, देवयानी -माता  ), ६.६.१२ ( ऊर्जस्वती : दक्ष - कन्या, प्राण वसु की पत्नी, सह आदि तीन पुत्रों की माता ), ८.१.२० ( ऊर्जस्तम्भ : स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ९.२३.२७ ( ऊर्जित : कार्त्तवीर्य अर्जुन के ७ पुत्रों में से एक ), १२.११.४४ ( ऊर्ज / कार्तिक मास में विष्णु नामक सूर्य के रथ में युक्त अश्वतर नाग, रम्भा अप्सरा आदि के नाम ), मत्स्य ९.११ ( तृतीय उत्तम मन्वन्तर में उत्तम मनु के १० पुत्रों में से एक ), वायु ३०.९ ( इष व ऊर्ज मासों की सुधावान संज्ञा ), ५२.४ (मधु व माधव मास में सूर्य रथ व्यूह में उपस्थित एक ग्रामणी ), ६२.१५/२.१.१५ ( वसिष्ठ - पुत्र ऊर्ज सहित सप्तर्षियों के नाम ),८९.१९/ २.२८.१९(ऊर्जवह : मुनि - पुत्र, वाज / सनद्वाज - पिता, निमि वंश ), ९९.२२५/ २.३७.२२० ( सुधन्वा - पुत्र, नभस - पिता, जरासन्ध - पितामह, ऋक्ष वंश ), विष्णु ४.५.३० ( ऊर्ज : शुचि - पुत्र, शतध्वज - पिता, निमि वंश ),विष्णुधर्मोत्तर १.१०९.३६ ( सविता द्वारा पृथिवी रूपी गौ से ऊर्ज के दोहन का उल्लेख - ऊर्जं देवगणैर्दुग्धा रुक्मपात्रे वसुन्धरा ।। वत्सस्तु मघवानासीद्दोग्धा च सविता तथा ।। ), १.१७७.३ (स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), २.२१.२६ ( राज्याभिषेक के संदर्भ में राजा को सित सूत्र द्वारा ऊर्जित करने का निर्देश ), शिव ५.३४.१४ ( द्वितीय मन्वन्तर में ऊर्जस्तम्भ, परस्तम्भ आदि ७ सप्तर्षियों के नाम ), ५.३४.२१ ( उत्तम मनु के १० पुत्रों में से एक ), स्कन्द १.२.४८ (ऊर्जयन्त व प्रालेय विप्रों के समीप सोमनाथ लिङ्ग - द्वय के प्रकट होने का वृत्तान्त ), २.४.१ (  कार्तिक मास के माहात्म्य का आरम्भ : कार्तिक माहात्म्य के वक्ता - श्रोताओं के नाम ; विष्णु नाम कीर्तन का निर्देश आदि ), २.४.२ ( कार्तिक में करणीय दानों, विष्णु अर्चना आदि धर्मों का निरूपण ), २.४.३ ( कार्तिक वैभव वर्णन के अन्तर्गत राधा - दामोदर अर्चना, विभिन्न देवों के प्रीत्यर्थ मासावधि स्नान आदि का वर्णन ), २.४.४ ( कार्तिक स्नान विधि निरूपण : स्नान के वायव्य, वारुण, दिव्य व ब्राह्म नामक चार प्रकारों का उल्लेख ), २.४.५ ( कार्तिक में नित्य कर्म विधि का कथन ), २.४.६ ( कार्तिक व्रत निरूपण के अन्तर्गत वर्ज्य - अवर्ज्य कृत्यों व द्रव्यों का कथन ), २.४.७ ( कार्तिक में दीपदान माहात्म्य के अन्तर्गत आकाशदीप दान की महिमा में मुख्य रूप से गृध्र व मार्जार की कथा आदि ), २.४.८ ( तुलसी माहात्म्य के अन्तर्गत विष्णु के आनन्दाश्रुओं के सोमकलश में पतन से तुलसी के जन्म आदि का वर्णन ), २.४.९ ( वत्स द्वादशी के दिन वत्स सहित गौ की पूजा तथा दीपों के नीराजन से शुभाशुभ का ज्ञान ; यम त्रयोदशी को द्वार पर दीपदान की महिमा ; नरक चर्तुदशी को तैलाभ्यङ्ग पूर्वक स्नान विधि, यम व भीष्म के तर्पण की विधि ; अमावास्या के दिन पार्वण श्राद्ध, बलि के कारागृह से लक्ष्मी का मोचन तथा लक्ष्मी का सुखपूर्वक शयन, दीपदान, बलि के राज्य में आनन्दोत्सव आदि का वर्णन ), २.४.१०( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को बलि राज्य दिवस के माहात्म्य के अन्तर्गत तिल तैल से स्नान, गोवर्धन पूजा, राजा द्वारा प्रजा का सम्मान, मार्गपाली बन्धन विधान, रात्रि में बलि पूजा विधान, कौमुदी उत्सव का महत्त्व, गोक्रीडा, नीराजन , यष्टिका कर्षण आदि ), २.४.११ ( कार्तिक शुक्ल द्वितीया को उदुम्बर तरु पर अष्टदल पद्म मण्डल विधान, सवत्सा गौ दान, भ्राता द्वारा भगिनी के गृह में भोजन का विधान तथा महत्त्व, यम - यमुना आख्यान, बन्दियों का मोचन ), २.४.१२ ( ऊर्ज शुक्ल चर्तुदशी को धात्री का माहात्म्य : ब्रह्मा के आनन्दाश्रुओं के भूमि पर पतन से धात्री वृक्ष की उत्पत्ति आदि ), २.४.१३ ( ऊर्ज शुक्ल एकादशी माहात्म्य के अन्तर्गत सत्यभामा के पूर्व जन्म की कथा : सत्यभामा द्वारा पूर्वजन्म में तुलसी वाटिका लगाने से वर्तमान जन्म में कल्पवृक्ष की प्राप्ति, एकादशी को विष्णु द्वारा मत्स्य रूप धारण कर शङ्ख असुर द्वारा अपहृत वेदों की रक्षा, प्रयाग महिमा आदि ), २.४.१४ ( इन्द्र द्वारा भीषण रूप धारी शिव के दर्शन व जलन्धर की उत्पत्ति की कथा ), २.४.१५ ( जलन्धर द्वारा देवों पर विजय प्राप्ति हेतु दिव्य ओषधि - दाता द्रोणगिरि को समुद्र में डुबाना ), २.४.१६ ( विष्णु द्वारा जलन्धर से युद्ध तथा रमा सहित जलन्धर के गृह में वास ), २.४.१७ ( जलन्धर द्वारा राहु को दूत बनाकर शिव से गौरी को मांगना, शिव द्वारा कीर्तिमुख की सृष्टि, कीर्तिमुख  द्वारा स्वहस्त - पाद का भक्षण कर क्षुधा शान्त करना ), २.४.१८ ( जलन्धर वध के लिए देवों के तेज से सुदर्शन चक्र व वज्र का निर्माण, शिव - सेना व जलन्धर - सेना में युद्ध ), २.४.१९ ( शिव - सेना व जलन्धर - सेना में युद्ध ), २.४.२० ( शिव व जलन्धर का युद्ध, जलन्धर द्वारा गान्धर्वी माया से रुद्र को विमोहित कर रुद्र का रूप धारण कर पार्वती के समीप जाना तथा जडाङ्ग होना आदि ), २.४.२१ ( दु:स्वप्न दर्शन कर वृन्दा का मुनि के समक्ष गमन, मुनि द्वारा माया से मृत जलन्धर को जीवित करना, वास्तविकता ज्ञात होने पर वृन्दा द्वारा विष्णु आदि को शाप, वृन्दा का अग्नि में प्रवेश कर भस्म होना ), २.४.२२ ( जलन्धर द्वारा युद्ध में माया से गौरी को महाकष्ट पाते हुए दिखाना, रुद्र द्वारा सुदर्शन चक्र से जलन्धर का शिर काटना, वृन्दा के तेज का गौरी में तथा जलन्धर के तेज का शिव में लीन होना, विष्णु का वृन्दा के लावण्य से मोहित होकर संभ्रान्त होना , देवों द्वारा वृन्दा के भस्म होने के स्थल पर गौरी , लक्ष्मी व स्वरा देवियों से प्राप्त बीजों का वपन करना ), २.४.२३ ( क्षिप्त बीजों से तुलसी, धात्री व बर्बरी वनस्पति - त्रय का उत्पन्न होना, तुलसी व धात्री की महिमा ), २.४.२४ ( धर्मदत्त विप्र द्वारा प्रेत योनि में स्थित कलहा राक्षसी के दर्शन , भिक्षु - पत्नी कलहा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), २.४.२५ ( धर्मदत्त द्वारा कार्तिक व्रत के पुण्य दान से कलहा का स्वर्गगमन, जन्मांतर में कलहा का दशरथ - भार्या कैकेयी बनना ), २.४.२६ ( विष्णु भक्ति में स्पर्धा के संदर्भ में राजा चोल व विप्र विष्णुदास की  कथा ), २.४.२७ ( विष्णुदास द्वारा पाक किए भोजन का हरण होना, विष्णुदास द्वारा चाण्डाल का सत्कार, चाण्डाल का विष्णु रूप में प्रकट होना , चोल नृप का यज्ञाग्नि में भस्म होना तथा विष्णुदास व चोल का क्रमश: पुण्यशील व सुशील नामक विष्णु - पार्षद बनना ), २.४.२८ ( विष्णु - पार्षदों जय - विजय के संदर्भ में कर्दम व देवहूति - पुत्रों जय - विजय के गज - ग्राह बनने की कथा ), २.४.२९ ( पापी धनेश्वर विप्र द्वारा कार्तिक व्रतियों आदि के दर्शन करने से नरक से मुक्त होकर कुबेर - अनुचर धनयक्ष बनने की कथा ), २.४.३० ( दूसरों के पाप - पुण्य में भागी होने के कारणों का कथन , मासोपवास विधि का कथन ), २.४.३१ ( कार्तिक शुक्ल नवमी को कूष्माण्ड दान के कारण का कथन, तुलसी व विष्णु के विवाह की विधि का वर्णन ), २.४.३२ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी को आरम्भ होने वाले भीष्म पञ्चक व्रत के माहात्म्य का वर्णन ), २.४.३३ ( प्रबोधिनी एकादशी तथा द्वादशी माहात्म्य ), २.४.३४ ( कार्तिक मास में व्रतोद्यापन विधि ), २.४.३५ ( वैकुण्ठ चर्तुदशी माहात्म्य के अन्तर्गत विष्णु के एक पद्म का लोप होने पर विष्णु द्वारा स्व नेत्र पद्म से शिव की पूजा, शिव द्वारा विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान करना, त्रिपुरी पूर्णिमा व्रत विधान व माहात्म्य ), २.४.३६ ( ऊर्ज मास में करणीय कृत्य तथा माहात्म्य ),४.१.४.८८ ( ऊर्ज / कार्तिक मास में विधवा के कर्त्तव्यों का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.१५३.५०( ऐरावत के कारण ऊर्जयन्त पर्वत से जल स्राव का कथन - ऐरावतं समारुह्य यदाऽऽयातो महेश्वरः ।ऊर्जयन्तगिरेर्मूर्ध्नि गजराजः स्म तिष्ठति ॥.. ),१.३११.३४ ( ऊर्जाहुति :समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण को पौरट? मुकुट देने का उल्लेख, २७ नक्षत्रों में से एक बनना ), २.२६३.१४ (ऊर्जव्रत कायस्थ द्वारा अर्क वृक्ष के नीचे सूर्य मन्त्र जप से कुष्ठ रोग से मुक्त होना - ऊर्जव्रतो हि नाम्ना स कायस्थो हस्तरोगवान् ।लेखकार्यं ततस्त्यक्त्वा तीर्थार्थं गोपनाथकम् ।। ),२.४०.२३ (ऊर्जव्रत ऋषि द्वारा लक्ष्मीनारायण संहिता कथा वाचन में श्रीहरि द्वारा दर्शन देना - विश्रामं परमं चक्रुः सायं कथामवाचयत् ।लक्ष्मीनारायणसंहिताया ऊर्जव्रतो मुनिः ।। ), ४.१०१.८३ ( ऊर्जबल : कृष्ण व सुधामा - पुत्र )  Uurja

 

Veda study on Uurja

Vedic contexts on Uurja

ऊर्जा ब्रह्म .११०.१० ( चन्द्रमा की कला ऊर्जा / स्वधा द्वारा पितरों का वरण, चन्द्रमा के शाप से कोका नदी बनने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ...५२, ..११.३९ ( दक्ष - कन्या, वसिष्ठ - पत्नी, पुत्रों कन्या की माता ), ..३६.१७ ( स्वारोचिष मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक, वसिष्ठ - पुत्र ), ...१९ ( अप्सराओं के १४ गणों में से एक गण, अग्नि से उत्पत्ति ), ...८५ ( रुद्र सावर्णि मन्वन्तर में हरित नामक गण के १० देवों में से एक, अन्य नाम स्वाहा , स्वधा आदि ), भागवत ..४० ( दक्ष - कन्या, वसिष्ठ - पत्नी, चित्रकेतु आदि पुत्रों एक कन्या की माता ), १०.३९.५५ ( भगवान कृष्ण की १० शक्तियों में से एक ), लिङ्ग .११.१८ ( ऊर्जा का वृद्धा उमा वसिष्ठ का महेश्वर से साम्य ), वायु १०.२८, २८.३४ ( दक्ष - कन्या, वसिष्ठ - पत्नी, सात पुत्रों की माता ), ६९.५४/..५४ ( अप्सराओं के १४ गणों में से एक गण का नाम, अग्नि नामक गण की माता ), १००.८९/.३८.८९  ( १२वें मन्वन्तर में हरितगण के १० देवों में से एक ), विष्णु  .१०.१२ ( ऊर्जा वसिष्ठ के पुत्रों के नाम ), शिव .३४.१९ ( तृतीय मन्वन्तर में हिरण्यगर्भ? वसिष्ठ के पुत्रों के गण का नाम ), ..१७.३३ ( ऊर्जा वसिष्ठ के पुत्रों एक कन्या के नाम ) Uurjaa 

ऊर्ण अग्नि १६९.३३ ( ऊर्ण / ऊन हरण पर प्रायश्चित्त विधान का कथन ), पद्म .६७.१०१ (ऊर्ण हरण पर नरक में गमन का कथन ), भविष्य ..७४ ( वही), भागवत १२.११.४२ ( पौष मास में सूर्य रथ व्यूह में स्थित एक यक्ष ), मत्स्य ११४.५६ ( विन्ध्य पर्वत पर स्थित देशों में से एक ), २२७.४८ ( ऊर्ण /ऊन हरण पर प्रायश्चित्त विधान का कथन ) Uurna

ऊर्णनाभि अग्नि ३४१.१६ ( असंयुत कर के २४ प्रकारों में से एक ), भागवत ११..२१ ( योगी त्तात्रेय द्वारा ऊर्णनाभि / मकडी से परमेश्वर द्वारा सृष्ट जगत सूत्र विषयक शिक्षा का ग्रहण ), ११.२१.३८ ( ऊर्णनाभि द्वारा हृदय से ऊर्णा निकालने की तुलना घोषवान प्राण द्वारा मन से छन्दोमयी वाक् निकालने से करना ), मत्स्य १९७. ( ऊर्णुनाभि :अत्रि वंश के एक प्रवर ऋषि ), वायु ६८. ( ऊर्णनाभ : दनु कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक ), योगवासिष्ठ .१८.२९ (
ऊर्णनाभि : नखों से उपमा )Uurnanaabhi/ urnanabhi 

ऊर्णा देवीभागवत .२२. ( चित्ररथ - पत्नी, सम्राट - माता, गय वंश ), १०.८५.४७ ( मरीचि ऋषि की पत्नी ऊर्णा के पुत्रों के षड~गर्भ बनने की कथा ), भागवत .१५.१४ ( वही), लक्ष्मीनारायण .१९२. ( लीनोर्ण राष्ट्र के नृप द्वारा श्रीहरि का स्वागत )द्र धूमोर्णा Uurnaa 

ऊर्णायु ब्रह्माण्ड १.२.२३.१७ ( ऊर्णायु गन्धर्व की हेमन्त ऋतु में सूर्य रथ व्यूह में स्थिति- हैमन्तिकौ तु द्वौ मासौ वसंति च दिवाकरे ।।..चित्रसेनश्च गंधर्व ऊर्णायुश्चैव तावुभौ ।।  ), वायु ५२.१७ ( वही - हैमन्तिकौ तु द्वौ मासौ वसन्ति तु दिवाकरे।..चित्रसेनश्च गन्धर्व ऊर्णायुश्चैव तावुभौ ।।), ६९.१ ( १६  मौनेय गन्धर्वों में से एक - गन्धर्वाप्सरसः पुण्या मौनेयाः परिकीर्त्तिताः। चित्रसेनोग्रसेनश्च ऊर्णायुरनघस्तथा ॥), विष्णु २.१०.१४ ( ऊर्णायु गन्धर्व की पौष मास में सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.४३(ऊर्णायु का शनि ग्रह से सम्बन्ध - सौरेण नागः शङ्खस्तु महाकर्णो निशाचरः ।। ऊर्णायुश्चैव गन्धर्वः समास्वाम्यभिषिच्यते ।।)  Uurnaayu

 

ऊर्ध्व मत्स्य १२८.६९( ग्रहों की आपेक्षिक ऊर्ध्वता का कथन ) 

ऊर्ध्वकेतु भागवत .१३.२२ ( सनद्वाज - पुत्र, अज - पिता, निमि/जनक वंश ), वायु ६६.६९ (सुरभि कश्यप - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक )

ऊर्ध्वकेश गर्ग १०.२८.४४+ ( बल्वल - मन्त्री, अनिरुद्ध से युद्ध मृत्यु ), देवीभागवत १२.११.१० ( ६४ कलाओं में से एक ), नारद .६६.१०९( ऊर्ध्वकेशी : झिण्टीश की शक्ति ऊर्ध्वकेशी का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ..२३ ( ११ रुद्रों में से एक ), ब्रह्माण्ड ..२६.४७ ( भण्डासुर के पुत्रों में से एक, ललिता - सहचरी बालाम्बा देवी द्वारा वध ), ..४४.५६ ( ऊर्ध्वकेशा ; लिपि न्यास के सन्दर्भ में एक स्वर की शक्ति ), ..४४.८५ ( ऊर्ध्वकेशी : नाभि चक्र के कमल दलों पर स्थित १६ शक्तियों में से एक ), स्कन्द ..६२.२५( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ) Uurdhvakesha

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