PURAANIC SUBJECT INDEX (From vowel U to Uu) Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar Udaana - Udgeetha (Udaana, Udumbara, Udgaataa, Udgeetha etc.) Uddaalaka - Udvartana (Uddaalaka, Uddhava, Udyaana/grove, Udyaapana/finish etc. ) Unnata - Upavarsha ( Unnetaa, Upanayana, Upanishat, Upbarhana, Upamanyu, Uparichara Vasu, Upala etc.) Upavaasa - Ura (Upavaasa/fast, Upaanaha/shoo, Upendra, Umaa, Ura etc. ) Ura - Urveesha (Ura, Urmilaa, Urvashi etc.) Uluuka - Ushaa (Uluuka/owl, Uluukhala/pounder, Ulmuka, Usheenara, Usheera, Ushaa etc.) Ushaa - Uurja (Ushaa/dawn, Ushtra/camel, Ushna/hot, Uuru/thigh, Uurja etc.) Uurja - Uurdhvakesha (Uurja, Uurjaa/energy, Uurna/wool ) Uurdhvakesha - Uuha (Uushmaa/heat, Riksha/constellation etc.)
|
|
First published : 1999 AD; published on internet : 14-1-2008 AD( Pausha shukla shashthee, Vikramee Samvat 2064) उमा टिप्पणी : उमा के संदर्भ में वैदिक साहित्य से प्रत्यक्ष मार्गदर्शन के अभाव में , उमा को समझने के सूत्र पुराणों से ही प्राप्त करने होंगे । पुराणों में ओंकार में तीन अक्षरों की स्थिति का उल्लेख आता है - अ, उ तथा म । इनमें से अकार बीज है , उकार योनि है तथा म बीजी है । उकार के योनि होने के तथ्य को वामन पुराण में इस प्रकार स्पष्ट किया गया है कि मेना व हिमालय की केवल तीसरी पुत्री ही ( अकार रूपी ) शिव वीर्य को धारण करने में समर्थ हो सकती है , अन्य दो नहीं । इस हेतु , अर्थात् शिव की पति रूप में प्राप्ति हेतु पार्वती को तप करना पडता है । पार्वती की माता मेना उ मा कह कर पार्वती का तप से निषेध करती है, अतः पार्वती की उमा नाम से प्रसिद्धि होती है । पुराणों के इस सार्वत्रिक कथन का तात्पर्य क्या हो सकता है , यह आगे की कथा से स्पष्ट होता है । ब्रह्मवैवर्त पुराण के गणेश खण्ड आदि के अनुसार कार्तिकेय और गणेश , दोनों के जन्म के समय देवगण शिव - पार्वती की रति में विघ्न डालते हैं जिससे शिव का वीर्य पार्वती को प्राप्त होने के बदले भूमि पर बिखर जाता है और वहीं से कार्तिकेय आदि का जन्म होता है । यह कथा संकेत करती है कि उमा के देवी रूप के लिए उ अर्थात् योनि , शिव वीर्य को धारण करने वाली योनि का विकास न हो । उमा का दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि मा अर्थात् माया रूपी प्रकृति या भूमि ही शिव के वीर्य को धारण करने वाली योनि बने । पुराणों में सार्वत्रिक रूप से विनायक क्षेत्र में उमा देवी की स्थिति का उल्लेख आता है । विनायक शब्द को विनय उत्पन्न करने वाले व्यक्तित्व के रूप में समझ सकते हैं । अभिधान राजेन्द्र कोश में विनय की व्याख्या विस्तार से की गई है । वहां ज्ञान विनय , दर्शन विनय , चरित्र विनय , मन विनय , वय विनय , काय विनय, लोकोपचार विनय आदि का उल्लेख है । विनय अर्थात् जो सब क्लेशों का विनयन करे, उनका नाश करे । विनय में नय शब्द नीति के , नेता के , मार्गदर्शन करने वाले के अर्थोंमें आता है । ऐसा प्रतीत होता है कि हरिवंश पुराण व ब्रह्मवैवर्त पुराण में उमा - प्रोक्त पुण्यक व्रत के वर्णन के रूप में इसी विनय प्राप्ति का वर्णन है । यही नहीं , शिव पुराण की पूरी उमा संहिता भी विनय प्राप्ति का वर्णन हो सकती है । पार्वती - माता मेना द्वारा पार्वती का तप से निषेध किए जाने का तात्पर्य यह हो सकता है कि विनय की प्रतिष्ठा स्वाभाविक रूप से होनी चाहिए , उसके लिए किसी प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए । ऐसी स्थिति विघ्न नाशक विनायक के जन्म के पश्चात् ही हो सकती है । शतपथ ब्राह्मण ६.६.१.२४ में उमा को मुञ्ज से निर्मित योनि में स्थित गर्भ का उल्ब ( आवरण ) कहा गया है । उणादि कोश २.२.२४५ की भोज वृत्ति आदि में उमा की व्युत्पत्ति अव - रक्षणे धातु से की गई है । उ अर्थात् योनि भी गर्भ का रक्षण करती है । वैदिक पदानुक्रम कोश में ऋग्वेद की ऋचाओं में प्रकट हुए ऊमा शब्द का अव धातु के अन्तर्गत वर्गीकरण किया गया है । यह अन्वेषणीय है कि क्या ऊमा और उमा में कोई सम्बन्ध हो सकता है ? |