PURAANIC SUBJECT INDEX

पुराण विषय अनुक्रमणिका

(From vowel i to Udara)

Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar

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I - Indu ( words like Ikshu/sugarcane, Ikshwaaku, Idaa, Indiraa, Indu etc.)

Indra - Indra ( Indra)

Indrakeela - Indradhwaja ( words like Indra, Indrajaala, Indrajit, Indradyumna, Indradhanusha/rainbow, Indradhwaja etc.)

Indradhwaja - Indriya (Indradhwaja, Indraprastha, Indrasena, Indraagni, Indraani, Indriya etc. )

Indriya - Isha  (Indriya/senses, Iraa, Iraavati, Ila, Ilaa, Ilvala etc.)

Isha - Ishu (Isha, Isheekaa, Ishu/arrow etc.)

Ishu - Eeshaana (Ishtakaa/brick, Ishtaapuurta, Eesha, Eeshaana etc. )

Eeshaana - Ugra ( Eeshaana, Eeshwara, U, Uktha, Ukhaa , Ugra etc. )

Ugra - Uchchhishta  (Ugra, Ugrashravaa, Ugrasena, Uchchaihshrava, Uchchhista etc. )

Uchchhishta - Utkala (Uchchhishta/left-over, Ujjayini, Utathya, Utkacha, Utkala etc.)

Utkala - Uttara (Utkala, Uttanka, Uttama, Uttara etc.)

Uttara - Utthaana (Uttara, Uttarakuru, Uttaraayana, Uttaana, Uttaanapaada, Utthaana etc.)

Utthaana - Utpaata (Utthaana/stand-up, Utpala/lotus, Utpaata etc.)

Utpaata - Udaya ( Utsava/festival, Udaka/fluid, Udaya/rise etc.)

Udaya - Udara (Udaya/rise, Udayana, Udayasingha, Udara/stomach etc.)

 

 

 

Puraanic contexts of words like Eeshaana, Eeshwara, U, Uktha, Ukhaa , Ugra etc. are given here.

Comments on Eeshwara

 

Preliminary remarks on U

Comments on Uktha

 

Comments on Ugra

ईशावास्यम् भागवत ८.१.१०( स्वायम्भुव मनु द्वारा व्याहृत मन्त्रोपनिषद)

 

ईशिता गणेश २.६३.३८( ईशिता सिद्धि से निर्गत कृत्या द्वारा शुक्र के बन्धन व मोचन का वृत्तान्त )

 

ईश्वर अग्नि १३९.४ (६० अब्दों में से ईश्वर नामक अब्द के फल का उल्लेख : क्षेम , आरोग्य , बहुधान्य आदि ) , कूर्म २.१.१+ ( ईश्वर गीता का आरम्भ ) , देवीभागवत ७.३३.८ ( जीव - ईश्वर विभाजन तथा ईश्वर बहुत्व के पीछे माया कारण होने का कथन ) , ८.२.३२ ( ईशान के सब रुद्रों में ईश्वर होने का उल्लेख ) , नारद १.५६.११६ ( ६० अब्दों / वत्सरों के नामों में से एक ) , १.६३.३३ ( दृक् /ज्ञान शक्ति के तिरोभाव और क्रिया शक्ति की विशेषता वाले तत्त्व का ईश्वर नाम होने का कथन ) , पद्म ४.११.३७ ( ईश्वरी : लक्ष्मी के लिए सम्बोधन ) , ६.८०.९४ ( विष्णु के लिए ईश्वर सम्बोधन ) , ६.२२३.१६ ( लक्ष्मी देवी के लिए ईश्वरी सम्बोधन ), ६.२२६.५९ , ६.२२६.७० (विष्णु के लिए ईश्वर सम्बोधन के औचित्य का वर्णन ), ६.२३२.४६ ( महालक्ष्मी के सर्वभूतों की ईश्वरी होने का उल्लेख ) , ७.११.३२ (कृष्ण के लिए ईश्वर सम्बोधन ) , ब्रह्म २.६९.११ (ईश्वर /ईशान की आराधना से ज्ञान प्राप्त करने का निर्देश ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३९.१६ ( ईश्वरी दुर्गा द्वारा ईशान दिशा की रक्षा ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.९७ ( ब्रह्मा के मानस व औरस पुत्रों भृगु , मरीचि , अत्रि आदि सप्तर्षियों की ईश्वर संज्ञा ; ईश्वरी से ऋषियों की उत्पत्ति का उल्लेख ) , ३.४.२.२१७ ( ईश्वर में ज्ञान , वैराग्य , ऐश्वर्य आदि १० गुणों का अधिष्ठान ) , ३.४.२.२३० ( ईश्वर से बृहत् स्वर्णिम अण्ड की उत्पत्ति तथा ईश्वर से प्राप्त बीज के प्रकृति रूपी योनि में विकसित होने का उल्लेख ) , ३.४.२.२३४ ( ब्रह्मलोक तथा ब्रह्मा के अण्ड के बीच दिव्य मनोमय पुर में ईश्वर का स्थान होने का उल्लेख ) , ३.४.३५.९७ ( ईश्वर नामक शिव की ४ कलाओं के नाम ) , ३.४.३९.१२० ( ब्रह्मादि त्रिदेवों के अधिपति ) , भविष्य १.१२२.१५ ( ईश्वर से परे विद्या , विद्या से परे शिव और शिव से परे परमेश्वर के होने का उल्लेख ) , १.१३८.४३ ( ईश्वर / शिव के ध्वज का दण्ड रजतमय तथा पताका शुक्ल होने का उल्लेख ) , ३.४.७.३४ ( धातृशर्मा द्विज का सूर्य आराधना से मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् ईश्वर नाम से जन्म ) , ४.४६.१९ ( ईश्वरी : राजा पृथ्वीनाथ की पत्नी , ईश्वरी द्वारा ईर्ष्या से भूषणा सखी के पुत्रों  का वध, पूर्व जन्म वृत्तान्त , सप्तमी व्रत फल प्राप्ति से पुत्रवान होना ) , भागवत १.७.२३ ( प्रकृति से परे स्थित ईश्वर का चित्शक्ति द्वारा माया को दूर करके कैवल्य में स्थित होने आदि का उल्लेख ) , १.८.१८ ( प्रकृति से परे ईश्वर का सब भूतों के अन्दर व बाहर स्थित होते हुए भी अलक्षित रहने का उल्लेख ) , ३.१०.१२ ( काल रूपी ईश्वर द्वारा ब्रह्मतन्मात्र विश्व को परिच्छिन्न करके ९ प्रकार की प्राकृत और वैकृत सृष्टियां करने का वर्णन ) , ३.२९.३४ ( सर्वभूतों में ईश्वर का जीवकला के द्वारा प्रवेश होने का उल्लेख ) , ९.१९.४४(गुणों में आसक्त धी के ईश्वर होने का प्रश्न-उत्तर), १०.८५.२९ ( देवकी द्वारा कृष्ण व बलराम को ईश्वर - द्वय कहना ) , १२.१०.८ ( शिव के सब विद्याओं में ईशान और सब देहधारियों में ईश्वर होने का उल्लेख ) , मत्स्य ९३.१३ ( सूर्य के अधिदेवता ) , १११.५ ( सब भूतों में ईश्वर का दर्शन करने वाले ही वास्तविक दर्शक होने का उल्लेख ) , १४५.९० ( भृगु , मरीचि, अत्रि आदि ब्रह्मा के १० मानस पुत्रों की ईश्वर संज्ञा ; ईश्वर शब्द के परत्व से ऋषि शब्द की निरुक्ति  ? ), २१८.२७ ( ईश्वरी : महा ओषधियों में से एक का नाम ) , महाभारत शान्ति ३०६.४१(अव्यक्त क्षेत्र का नाम), वायु ४.४० ( ईश्वर निरुक्ति : लोकों का सर्वेशत्व ) , ५.१८ ( ब्रह्मा , विष्णु व महेश के रज , सत्त्व व तमोगुणों से सम्बन्धित होने के संदर्भ में ईश्वर के पर:देव तथा विष्णु के महत: पर: देव होने का कथन ) , ५९.८१ ( ब्रह्मा के मानस पुत्रों / ऋषियों की ईश्वर संज्ञा ) , ५९.८९ ( ईश्वरों के ऋषि पुत्रों काव्य , बृहस्पति, कश्यप आदि के नाम ) , १०१.२१६ ( ईश्वर में १० गुणों की स्थिति ) , शिव १.१७.१०७ ( पांच चक्रों वाले कालचक्र के वर्णन के अन्तर्गत ईश्वर चक्र की भ्रमण प्रकृति का उल्लेख ) , ६.१५.४ ( ईश्वर के ईश , विश्वेश्वर , परमेश व सर्वेश्वर नामक चार रूप कथन ) , ७.३०.५२ ( कर्म के पीछे कारण के ईश्वरकारित होने का कथन ), ७.२.५.१५( ईश्वर के जाति - व्यक्ति स्वरूप का कथन ), स्कन्द १.१.३.८१ ( दक्ष यज्ञ प्रसंग में विष्णु के यज्ञ कर्मों के पालक होने तथा ईश्वर / शिव द्वारा कर्मों में सामर्थ्य प्रदान करने का कथन ; ईश्वर रहित कर्म से नरक प्राप्त होने का कथन ) ,१.२.२५.११९ ( ईश्वर के सब भूतों के पति होने का उल्लेख ) , ४.२.८७.८९ ( दक्ष यज्ञ में दधीचि ऋषि द्वारा दक्ष को ईश्वर महिमा का कथन : कर्म की सिद्धि में ईश्वर अनुग्रह की अनिवार्यता ) , ५.१.७०.३१ ,५.१.७०.५३  ( महाकालवन में प्रतिष्ठित अगस्त्येश्वर आदि ८४ ईश्वरों के नाम ) , ५.३.४१.१० ( ईश्वरी : कुबेर - भार्या ईश्वरी का उल्लेख ) , ६.२४८.११ ( पलाश वृक्ष के विभिन्न अंगों में शिव की विभिन्न नामों से प्रतिष्ठा : प्रशाखाओं में ईश्वर नामक शिव की प्रतिष्ठा ) , ७.१.३.११६++ ( ईश्वर द्वारा पार्वती को प्रभास क्षेत्र माहात्म्य का वर्णन ) , ७.२.९.८१ ( दधीचि ऋषि द्वारा दक्ष यज्ञ में दक्ष को ईश्वर महिमा का कथन ) , ७.४.१७.११( द्वारका के पूर्व आदि विभिन्न द्वारों पर स्थित ईश्वरों के नाम : दुर्वासा , भूषण आदि ) , लक्ष्मीनारायण २.२५२.३० ( ब्रह्मलोक मूर्द्धा , ईश्वर लोक हृदयादि, जीवलोक चरणद्वय ), कथासरित् १०.१.५५ ( ईश्वरवर्मा : रत्नवर्मा - पुत्र , वेश्या कर्म में धन नष्ट होने पर आल नामक वानर की सहायता से धन की पुन: प्राप्ति कथा )  Eeshwara/ ishwara

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ईषादण्ड स्कन्द ४.२.८८.६० ( पार्वती रथ में नर्मदा व अलकनन्दा का ईषादण्ड बनना )

उ अग्नि १२४.६ ( मूल ब्रह्म संज्ञक अ इ उ ए ओ तथा कला की व्याख्या : उकार का हृदय में नाद संज्ञक होना ) , ३४८.२ ( शिव के अर्थ में उ का प्रयोग ), नारद १.३३.१५५ ( अ, उ तथा म के क्रमश: ब्रह्मा , विष्णु और रुद्र रूप होने का उल्लेख ), २.५०.३९ ( अकार के विष्णुलोक गति - प्रद होने , उकार के स्थान पर बृहस्पति द्वारा सिद्धि प्राप्त करने और विष्णु संज्ञक मकार लिङ्ग में कपिल ऋषि द्वारा सिद्धि प्राप्त करने का उल्लेख ) , पद्म ६.२२६.२३ ( ॐ नमो नारायणाय मन्त्र के संदर्भ में अकार के विष्णु , उकार के श्री तथा मकार के पञ्चविंश जीव होने का उल्लेख ) , लिङ्ग १.९१.५४ ( अकार, उकार व मकार का क्रमश: भू , भुव: व स्व: लोकों से तादात्म्य ) , वायु २०.८ ( अकार के अक्षर , उकार के स्वरित और मकार के प्लुत होने का उल्लेख : अकार से भूलोक, उकार से भुव: और मकार से स्वर्लोक का निर्देश ) , शिव १.१०.१८ ( ओंकार की अ मात्रा की शिव के उत्तर मुख से , उकार की पश्चिम व मकार की दक्षिण मुख आदि से उत्पत्ति का उल्लेख ) , १.१६.११४ ( लिङ्गों की प्रकृति के संदर्भ में उकार के चर लिङ्ग तथा अकार के गुरु विग्रह से सम्बन्ध आदि का उल्लेख ) , १.२४.९१( त्रिपुण्ड्र की तीन रेखाओं के संदर्भ में अकार के गार्हपत्य अग्नि आदि , उकार के दक्षिणाग्नि , यजुर्वेद , नभस्तत्त्व , माध्यंदिन सवन , इच्छाशक्ति आदि से सम्बन्ध का उल्लेख ) , २.१.८.१९ ( अकार की सर्गकर्ता , उकार की मोहक व मकार की अनुग्रह कारक प्रकृति का उल्लेख ; अकार के बीज , उकार के हरि योनि तथा मकार के बीजी होने का उल्लेख ) , २.१.८.३३ ( वर्णों के न्यास के संदर्भ में उकार का दक्षिण श्रोत्र में न्यास ) , ६.३.२१ ( अकार के महद्बीज , रजोगुण , ब्रह्मा द्वारा सृष्ट , उकार के प्रकृति योनि, सत्त्वगुणात्मक, हरि द्वारा पालित तथा मकार के बीजी , तमोगुणात्मक ,संहारक हर आदि से सम्बन्धित होने आदि का उल्लेख ) , ६.३.२७ (अकार की ८ कलाओं व सद्योजात शिव से सम्बन्ध होने, उकार की १३ कलाओं तथा वामदेव शिव से सम्बन्ध होने आदि का उल्लेख ) , ६.६.६२ ( अकार के बीज , उकार के शक्ति तथा मकार के कीलक होने का उल्लेख ) , ६.६.६६ ( ब्रह्मा रूपी अकार का हृदय में , उकार का विष्णु सहित शिरोदेश में तथा रुद्र सहित मकार का शिखा में न्यास करने का उल्लेख ) , ७.१.७.२८ ( अकार , उकार , मकार आदि की बीज , योनि , बीजी आदि प्रकृतियों का उल्लेख ) , ७.१.२२.२४ ( वर्णमाला न्यास के संदर्भ में उकार का श्रवण में न्यास करने का निर्देश ) , ७.२.६.२८ ( ओंकार में उ के प्रकृति योनि , सत्त्व गुण व पालक हरि होने का कथन ) , स्कन्द १.२.५.६८ ( अकार , उकार व मकार की क्रमश: ब्रह्मा , विष्णु व रुद्र संज्ञा ; अकार से लेकर अ: कार तक १४ स्वरों का स्वायंभुव आदि १४ मनुओं से तादात्म्य ), ३.३.१६.४५ ( त्रिपुण्ड्र की तीन रेखाओं के संदर्भ में प्रत्येक रेखा के ९ देवताओं का कथन ; , उ तथा म का तीन रेखाओं के तीन देवताओं के रूप में उल्लेख ) , ४.२.७३.८३ ( शब्द सुनकर समाधि से जागने पर ब्रह्मा द्वारा सत्त्वगुणी अकार , रजोगुणी उकार तथा तमोगुणी मकार का दर्शन करना ) , ५.३.४.३४ ( ब्रह्मा से उत्पन्न उकार अग्नि का गुरु ध्यान में आश्रय लेना , ब्रह्मा द्वारा उकार को चक्षु व वाक् में स्थान देना आदि ) , ५.१.४.४९ ( उकार अग्नि का सूर्य से एकाकार होना ; ब्रह्मा के पंचम शिर का रूप  ) U

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उक्ति अग्नि ३४२.२७ ( उक्ति शब्द की व्याख्या )

 

उक्थ अग्नि २७१.७ ( उक्था : वेद , आरण्यक , उक्था व ऊह नामक सामगान के ४ प्रकारों में से एक - गानान्यपि च चत्वारि वेद आरण्यकन्तथा ॥ उक्था ऊहचतुर्थञ्च मन्त्रा नवसहस्रकाः । ) , ब्रह्म १.६.९२ ( उक्थ / उक्य? : शल - पुत्र , वज्रनाभ - पिता, राम वंश ) , ब्रह्माण्ड १.२.८.५१ ( उक्त/उक्थ ? आदि की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत १.१५.६ ( उक्थ प्राण से रहित होने पर मृत कहलाने का उल्लेख - उक्थेन रहितो ह्येष मृतकः प्रोच्यते यथा ॥ ) , ३.१२.४० ( उक्थ , षोडशी आदि यागों की ब्रह्मा के पूर्व मुख से उत्पत्ति का उल्लेख ) , ११.२१.२८ ( उक्थ शस्त्रों से असु की तृप्ति कर लेने से ही हृदय में स्थित परमात्म का ज्ञान न होने का उल्लेख ) , वायु ९.४५ (उक्थ आदि की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से उत्पत्ति का उल्लेख - छन्दांसि त्रैष्टुभङ्कर्म स्तोमं पञ्चदशन्तथा। बृहत्साममथोक्थञ्च दक्षिणात्सोऽसृजन्मुखात् ।। ) , वा.रामायण १.१४.४१( उक्थ्य : अश्वमेध यज्ञ के तीन सवनीय दिनों में से एक का नाम ) , विष्णु १.५.५४ ( उक्थ आदि की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से उत्पत्ति का उल्लेख - यजूंषि त्रैष्टुभं छन्दः स्तोमं पंचदशं तथा । बृहत्साम तथोक्थं च दक्षिणादसृजन्मुखात्  ), हरिवंश १.१५.३१( अनल - पुत्र , वज्रनाभ - पिता , राम वंश - उक्थो नाम स धर्मात्मानलपुत्रो बभूव ह । वज्रनाभः सुतस्तस्य उक्थस्य च महात्मनः ।। ) , महाभारत वनपर्व २१९.२५( तीन उक्थों द्वारा अभिष्टुत होने वाली उक्थ्य  नामक अग्नि द्वारा महावाक् को उत्पन्न करने का कथन - उक्थो नाम महाभाग त्रिभिरुक्थैरभिष्टुतः। महावाचं त्वजनयत् समाश्वासं हि यं विदुः।। ), अथर्व ५.२६.३(इन्द्र उक्थामदानि अस्मिन् यज्ञे), द्र. बृहदुक्थ Uktha

 

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उक्षा विष्णु धर्मोत्तर ३.३०६.३३ ( इन्द्रियोपेत उक्षा का द्विजाति हेतु दान का फल कथन ) , स्कन्द ४.१.२९.३० ( गंगा सहस्रनामों में से एक ,शाब्दिक अर्थ फल सेक ) ,७.१.१७.१५२ ( रवि की पूजा में उक्षाणं पृश्निमिति ऋचा के विनियोग का उल्लेख ) , महाभारत वन १९७.१५ ( राजा शिबि द्वारा श्येन को कपोत के बदले उक्षा मांस को ओदन सहित पकाकर प्रस्तुत करने का प्रस्ताव), द्रोण १४.६१ ( अभिमन्यु द्वारा राजा पौरव की पराभव की उपमा सिंह द्वारा उक्षा की पराभव से करना )  Ukshaa

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उखल अग्नि ७७.१७( उखल पूजा मन्त्र ) , भागवत १०.९.१४ ( कृष्ण का उलूखल से बंधना , दाम / रस्सी का २ अंगुल ह्रस्व होना ,यमलार्जुन का उद्धार ), द्र.उलूखल, मूसल , यमलार्जुन Ukhala

 

उखा महाभारत शान्ति ३१५.१५ ( उपमा : उखा के स्पर्श से अग्नि के दूषित न होने का कथन )  Ukhaa

 

उग्र नारद १.५६.४५० ( गण्डान्त सन्धित्रितय के उग्र होने का उल्लेख ) , १.५८.४१ ( व्यास - पुत्र शुक द्वारा उग्र तप आरम्भ करने का उल्लेख ) , पद्म २.५.१०८ ( अदिति व कश्यप - पुत्र वसुदत्त इन्द्र के उग्र तेज से युक्त होकर उग्र तप करने का उल्लेख ) , ब्रह्म १.११५.२३ ( उग्र अन्न के गर्हित होने का उल्लेख ) , ब्रह्माण्ड १.२.१०.१६, १.२.१०.८३ ( उग्र रुद्र : दीक्षा - पति , सन्तान - पिता ) २.३.५.९४ ( मरुतों के तृतीय गण में से एक का नाम ) , २.३.७.९२ ( विक्रान्त - पिता ) , ३.४.३४.४१ ( १३ वें आवरण में स्थित रुद्रों में से एक , शतरुद्रिय प्रसंग ) , भागवत ६.६.१७ (  भूत व सरूपा - पुत्र , एकादश रुद्रों में से एक ) , मत्स्य २६५.४१( यजमान नामक देव मूर्ति के रक्षक ), मार्कण्डेय ७६.४७ / ७३.४७ ( चाक्षुष मनु की पत्नी विदर्भा के पिता का नाम ) , लिङ्ग १.२४.५३ ( ११ वें द्वापर में मुनि , लम्बोदर आदि चार पुत्रों के नाम ) , १.९५.३६ ( शिव के सब भूतों में उग्र होने का उल्लेख ) , १.९५.५५ ( शिव के सब दुष्टों में उग्र होने का उल्लेख ) , २.१३.१७ ( उग्र और ईशान शिव में समानता का उल्लेख ; उग्र देव की दीक्षा पत्नी और सन्तान पुत्र का उल्लेख ) , २.१३.२७ ( शिव का नाम, आत्मा / यजमान का रूप ) , २.४५.४२ ( भव , शर्व आदि अष्ट मूर्तियों के तत्त्वों के संदर्भ में उग्र शिव से वायु तथा त्वचा में स्पर्श की रक्षा की प्रार्थना ), वायु २३.१५२ ( ११ वें द्वापर में विष्णु के अवतार की संज्ञा , लम्बोदर आदि ४ पुत्रों के नाम ) , २७.१५ ( ब्रह्मा के चिन्तन से उत्पन्न कुमार नीललोहित द्वारा प्राप्त एक नाम ) , २७.५५ ( उग्र नामक रुद्र की दीक्षा पत्नी व सन्तान पुत्र ) , ६७.१२६ ( मरुतों के सात गणों में से तीसरे गण का एक नाम ) , विष्णु १.८.६ ( ब्रह्मा के मानस पुत्र रुद्र का एक नाम , ब्रह्मा द्वारा उग्र के स्थान, स्त्री व पुत्र का निर्धारण ) , विष्णु धर्मोत्तर ३.९६.९७ ( फलित ज्योतिष के संदर्भ में सूर्य होरा में उग्र कर्म तथा सौम्य होरा में सौम्य कर्म करने का निर्देश ) , शिव ४.३५.१२ ( शिव के सहस्रनामों में से एक ) , ५.३४.८७ ( अनूग्र : १४ वें मन्वन्तर में मनु - पुत्रों में से एक ) , ७.१.१२.४३ ( भव , शर्व आदि मूर्तियों के तत्त्वों के कथन के संदर्भ में ईश के स्पर्शमय होने और उग्र के यजमानात्मक होने का उल्लेख ) , स्कन्द १.२.१३.१७९ ( शतरुद्रिय प्रसंग में दैत्यों द्वारा शिव के राजिक लिंग की उग्र नाम से पूजा का उल्लेख ) , ४.२.६९.९८ ( उग्रेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य :उपसर्ग नाशक ), ४.२.७२.९७ (६४ वेतालों में से एक ), ४.२.९७.११३ ( उग्रेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : जाति स्मरण ) , ७.१.२५५.४२ ( राजा वृषादर्भि द्वारा ऋषियों को हेमपूर्ण उदुम्बर दान करने के प्रयास के संदर्भ में चण्ड व ऋषियों द्वारा उग्र प्रतिग्रह से डरने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३२१.११५( शूद्र द्वारा तृषित उग्रदेव द्विज को संतुष्ट करने पर उग्रदेव द्वारा दारिद्र्य नाश के उपाय का कथन : अधिक मास में दीप दान )  Ugra

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