PURAANIC SUBJECT INDEX पुराण विषय अनुक्रमणिका (From vowel i to Udara) Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar I - Indu ( words like Ikshu/sugarcane, Ikshwaaku, Idaa, Indiraa, Indu etc.) Indra - Indra ( Indra) Indrakeela - Indradhwaja ( words like Indra, Indrajaala, Indrajit, Indradyumna, Indradhanusha/rainbow, Indradhwaja etc.) Indradhwaja - Indriya (Indradhwaja, Indraprastha, Indrasena, Indraagni, Indraani, Indriya etc. ) Indriya - Isha (Indriya/senses, Iraa, Iraavati, Ila, Ilaa, Ilvala etc.) Isha - Ishu (Isha, Isheekaa, Ishu/arrow etc.) Ishu - Eeshaana (Ishtakaa/brick, Ishtaapuurta, Eesha, Eeshaana etc. ) Eeshaana - Ugra ( Eeshaana, Eeshwara, U, Uktha, Ukhaa , Ugra etc. ) Ugra - Uchchhishta (Ugra, Ugrashravaa, Ugrasena, Uchchaihshrava, Uchchhista etc. ) Uchchhishta - Utkala (Uchchhishta/left-over, Ujjayini, Utathya, Utkacha, Utkala etc.) Utkala - Uttara (Utkala, Uttanka, Uttama, Uttara etc.) Uttara - Utthaana (Uttara, Uttarakuru, Uttaraayana, Uttaana, Uttaanapaada, Utthaana etc.) Utthaana - Utpaata (Utthaana/stand-up, Utpala/lotus, Utpaata etc.) Utpaata - Udaya ( Utsava/festival, Udaka/fluid, Udaya/rise etc.) Udaya - Udara (Udaya/rise, Udayana, Udayasingha, Udara/stomach etc.)
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Puraanic contexts of words like Utthaana/stand-up, Utpala/lotus, Utpaata etc. are given here. उत्थान अग्नि ९२.४( वास्तु प्रतिष्ठा में प्रतिष्ठा के स्थापन, उत्थापन, आस्थापन आदि ५ भेदों का कथन ), देवीभागवत २.१०.६६( तक्षक नाग द्वारा राजा परीक्षित के दंशन पर तक्षक के मुख से घोर अग्निशिखाओं के उत्थान का उल्लेख ), २.१२.४५( जरत्कारु मुनि की पत्नी द्वारा सन्ध्याकाल होने पर पति को जगाने पर मुनि के कोपपूर्वक उत्थान का उल्लेख ), ३.१७.५२( स्वप्न में जगदम्बा से वर पाकर शशिकला के मोदयुक्त उत्थान का उल्लेख ), ५.२६.५६( कालिका देवी द्वारा चण्ड असुर के बन्धन पर मुण्ड असुर के उत्थान का उल्लेख ), ९.३७.८८( यमदूतों द्वारा पापियों के कुम्भीपाक नरक कुण्ड में बार - बार निमज्जन व उत्थापन का उल्लेख ), पद्म १.१६.११४( ब्रह्मा के यज्ञ में सारी अग्नियों के उत्थान पर दीक्षाकाल प्राप्त होने तथा सावित्री पत्नी को आहूत करने का उल्लेख ), ५.२.३०( श्रीराम के वन से प्रत्यागमन पर भरत द्वारा दण्डवत् प्रणाम करने तथा राम द्वारा अनुज का बाहुओं द्वारा उत्थापन का कथन ), ५.१०७.२६( वीरभद्र द्वारा अग्नि ज्वाला से भस्म ऋषियों को मृत्युञ्जय मन्त्र से अभिमन्त्रित करने पर ऋषियों के उत्थान का उल्लेख ), ५.१०७.८३( वीरभद्र द्वारा पञ्चमेढ्र राक्षस द्वारा भस्म किए गए देवताओं को जीवित करने पर मुनियों और देवों के उत्थान का कथन ), ५.१०८.३२( गोमय व गोमूत्र आहरण के लिए गौ के उत्थापन का निर्देश ), ६.७.३८( विष्णु व जालन्धर के युद्ध में शुक्राचार्य द्वारा मृत असुरों का जल से स्पर्शन तथा हुंकार से प्रबोधन करने पर मृत असुरों के उत्थापन का कथन ), ६.३०.१०७( मार्जार द्वारा मूषिका को पकडने के लिए उत्थान पर दीप के प्रकाशित होने की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२७.२४( वाम हस्त से जल का उत्थान करके पीने का निषेध ), १.२९.७( नारद ऋषि द्वारा बदरिकाश्रम में नारायण ऋषि को प्रणाम करने पर नारायण द्वारा नारद का उत्थान करके आलिङ्गन आदि करने का उल्लेख ), ४.१.४७.२( श्रीकृष्ण का सुख संभोग से उत्थान करके राधा के साथ मलयद्रोणी में वास का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.२४.२३( शिव द्वारा भूमि पर नत परशुराम का अपने हाथों से उत्थापन करने का उल्लेख ), २.३.२५.४( परशुराम द्वारा शिव को बार - बार उठकर? / उत्थाय- उत्थाय प्रणाम करने का उल्लेख ), ३.४.९.६७( समुद्र मन्थन क्रिया में वारुणी देवी के उत्थान का उल्लेख ), भविष्य २.२०.७( केवल उत्थित अवस्था में ही पूर्णाहुति देने का निर्देश ), ४.७०.५१( कार्तिक शुक्ल एकादशी को विष्णु के उत्थापन उत्सव का वर्णन ), ४.७४.५( पुलस्त्य ऋषि के आगमन पर राजा भीम द्वारा उत्थान करके ( उत्थाय ) ऋषि को अपना आसन आदि देने का उल्लेख ), ४.१३९.२३( इन्द्रध्वज उत्थापन उत्सव का वर्णन ), भागवत ३.२.३१( कृष्ण द्वारा कालिय नाग के उत्थापन का उल्लेख ), ३.२६.५१( महाभूतों से निर्मित अचेतन अण्ड से पुरुष के उत्थान तथा विराट् के उदतिष्ठन् का कथन ), ३.२६.५३( हिरण्मय अण्डकोश से उत्थान करके महान् देव द्वारा उसमें पुन: प्रवेश करने और उसमें मुख, घ्राण, चक्षु आदि छिद्र उत्पन्न करने का वर्णन ), ३.२६.६२( विभिन्न देवों द्वारा विराट् पुरुष में प्रवेश करके उसके उत्थान की चेष्टा तथा असफलता का वर्णन ), ३.२६.७०( चैत्य क्षेत्रज्ञ पुरुष द्वारा चित्त के माध्यम से हृदय में प्रवेश करने पर ही विराट् पुरुष के उत्थान का कथन ), ४.२१.१४( महासत्र की दीक्षा से राजा पृथु के उत्थान की नक्षत्रमण्डल में चन्द्रमा के उत्थान से उपमा ), १०.१३.२२( वेणु की ध्वनि सुनते ही ग्वालों की माताओं द्वारा उत्थान करके अपने पुत्रों का हाथों द्वारा उत्थापन करके उन्हें स्तनपान कराने का उल्लेख ), १०.१३.६३( ब्रह्मा द्वारा कनक दण्ड की भांति पृथिवी पर गिर कर कृष्ण को प्रणाम करने और फिर पुन: पुन: उठकर( उत्थायोत्थाय) कृष्ण के चरणों में प्रणाम करने का उल्लेख ), मत्स्य २६५.११( मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में रथ यात्रा हेतु उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते इत्यादि मन्त्रों से मूर्ति के उत्थापन का निर्देश ), वायु २५.४९( ब्रह्मा के समक्ष शिर का भेदन करके उत्थित होने के कारण सावित्री नाम होने का उल्लेख ), विष्णु ५.२३.२०( पाद से ताडन पर मुचुकुन्द का उत्थित होकर कालयवन को देखना और कालयवन का भस्म होना ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३.७( मेषों के हरण पर राजा पुरूरवा का नग्न ही उत्थित होकर मेषों का अन्वेषण करना, उर्वशी का तिरोभूत होना ), २.१२३.१०( वीरासन के लिए दिन में उत्थित होकर बैठने और रात्रि में उपविष्ट होने का निर्देश ), २.१३७.१०( उत्पातों के संदर्भ में पतित वृक्षों के उत्थान पर भेदकारी भय होने का उल्लेख ), २.१५५.१८( इन्द्रध्वज उत्सव के संदर्भ में ध्वज का यन्त्र द्वारा उत्थापन करने का निर्देश ), ३.२९५.६( उत्थानवान् पुरुष की प्रशंसा ), शिव २.२.३५.४( विष्णु द्वारा चरणों में पडे दक्ष का उत्थापन करने का उल्लेख ), २.५.५७.१७( ब्रह्मा के पुकारने पर गजासुर द्वारा बार - बार उत्थित होकर/उत्थायोत्थाय ब्रह्मा से अवध्यता का वर मांगना ), ३.७.८( शिव द्वारा चरणों में नत नन्दी का उत्थापन करने का उल्लेख ), ६.१२.६७( नान्दीमुख श्राद्ध के संदर्भ में द्विजों को भूमि पर दण्डवत् प्रणाम करने के पश्चात् उत्थित होकर अमृत वचन कहने का निर्देश ), स्कन्द १.१.२९.२५( तारक का मूर्च्छा के पश्चात् उत्थित होकर पुन: वीरभद्र से युद्ध करने का उल्लेख ), २.१.२५.१८( जाबालि तीर्थ में स्नान से विप्र के वेताल से मुक्त होकर उत्थित होने का उल्लेख ), २.४.३३.३१( कार्तिक शुक्ल एकादशी को विष्णु के उत्थापन की विधि का वर्णन ), ३.१.१२.७५( पराशर मुनि के स्पर्श से मनोजव राजा का मूर्च्छा त्याग कर उत्थित होने का उल्लेख ), ६.२०७.७१( इन्द्र यष्टि के उत्थापन के महत्त्व का कथन ), ६.२०८.४( शतानन्द द्वारा पिता गौतम से शिला में रूपान्तरित माता अहल्या के उत्थापन की प्रार्थना करना ), ६.२३१.८३( कार्तिक शुक्ल एकादशी को विष्णु के उत्थान करने और क्षीर समुद्र में जाने का उल्लेख ), ७.१.३२.९१( दधीचि - पुत्र पिप्पलाद द्वारा पितृ - हन्ता देवों को कृत्या के उत्थापन द्वारा मार डालने का उद्योग ), ७.२.१३.२( पुन: पुन: उत्थान करके/उत्थायोत्थाय स्नान करने का निर्देश ), महाभारत आदि २९.२७( महागज का शब्द सुनकर जल में रहने वाले कूर्म के उत्थित होने का उल्लेख ), ३०.३८( गरुड द्वारा सोम के आहरण हेतु स्वर्ग की ओर अग्रसर होने पर धूलिकणों व उत्पातों के उत्थित होने का उल्लेख ), ४७.१९( सन्ध्याकाल में सुप्त जरत्कारु ऋषि का पत्नी द्वारा उत्थापन तथा जरत्कारु ऋषि का क्रोध आदि ), ७८.१९( देवों द्वारा हत दैत्यों को शुक्र द्वारा विद्या द्वारा उत्थापित करने का उल्लेख ), २१६.२२( वर्गा आदि अप्सराओं का जल से उत्थित होकर अपना पूर्व स्वरूप प्राप्त करने का उल्लेख ), सभा ५.८७( कालज्ञ मन्त्रियों सहित उचित काल में उत्थान का निर्देश? ), ३७.३१( श्रीकृष्ण पर आक्षेपों के पश्चात् शिशुपाल का अपने आसन से उत्थित होकर सभा से बाहर जाने का उद्योग ), वन ३२.६( सब भूतों द्वारा अपने उत्थान को जानने और कर्मों के प्रत्यक्ष फल के उपभोग करने आदि का कथन ), ३२.५७( सतत् उत्थान युक्त होकर शत्रुओं के छिद्र का अन्वेषण करने का निर्देश ), ११५.२८( जल से एक सहस्र वाजियों के उत्थान के स्थान का अश्वतीर्थ नाम होने का उल्लेख ), १७५.१( रात्रि व्यतीत होने पर युधिष्ठिर द्वारा उत्थित होकर आवश्यक कार्य करने का उल्लेख ), १९०.९६( कलियुग के अन्त में कल्की नामक ब्राह्मण के उत्थित होने का कथन ), उद्योग २२.८( दुर्योधन के लिए उत्थानवीर्य विशेषण का प्रयोग ), ३४.९( कर्मों के विपाक, आत्मा/स्वयं के उत्थान आदि का विचार करके कर्म करने का निर्देश ), ३७.५१( क्रोध और हर्ष के उत्थित वेग को नियन्त्रित करने का निर्देश ), भीष्म ५७.२९( रणभूमि में जगत के विनाश के सूचक असंख्य कबन्धों के उत्थित होने का उल्लेख ), द्रोण ९०.२८( वही), ९७.१२( वही), १८७.२९( रणभूमि में रजोमेघ/धूलिमेघ के समुत्थित होने पर अपने और परायों के दृष्टिगोचर न होने का उल्लेख ), कर्ण ५२.३५( रणभूमि में अगणित कबन्धों के उत्थित होने का उल्लेख ), शल्य २२.३९( कृपाचार्य के साथ पांच पाण्डवों के युद्ध की तुलना देहधारियों की बार - बार विषयों की ओर प्रवृत्त होने वाली/उत्थायोत्थाय इन्द्रियों के साथ युद्ध से करना ), ३२.४८( युद्ध के पश्चात् स्तम्भित जल वाले सरोवर में छिपे हुए दुर्योधन के जल से उत्थित होने का उल्लेख ), ५४.३३( वही), सौप्तिक २.६, ११( अदैव उत्थान/पुरुषार्थ तथा दैव अनुत्थान के व्यर्थ होने का कथन ), शान्ति २९.११५( राजा गय द्वारा प्रतिदिन/उत्थायोत्थाय सहस्र गौ आदि दान करने का उल्लेख ), ४१.१८( युधिष्ठिर द्वारा विदुर, सञ्जय आदि को प्रतिदिन/उत्थायोत्थाय बूढे धृतराष्ट्र की सेवा करने का निर्देश ), ५६.१४( भीष्म - युधिष्ठिर संवाद में भीष्म द्वारा उत्थान/पुरुषार्थ के बिना दैव सिद्ध न होने का कथन ), ५८.१३-१५( बृहस्पति द्वारा राजाओं के लिए उत्थान/उद्योग के महत्त्व का कथन ), ७५.३( राजा के लिए धार्मिक पुरुषों की उत्थान आदि द्वारा पूजा करने का निर्देश ), १४०.२२( राजा के लिए प्रतिदिन उठ - उठकर/उत्थायोत्थाय शत्रु के घर जाकर उसका कुशल पूछने का निर्देश ), १६६.३८( ब्रह्मा के यज्ञ में अग्नि से असि रूपी भूत के उत्थित होने का उल्लेख ), १७७.७( उष्ट्र द्वारा २ दम्य गोवत्सों को उठाकर/उत्थाय भागने का उल्लेख ), ३३१.३७( उत्थान/प्रयत्न के फलित हो जाया करने की दशा में मृत्यु, वार्धक्य आदि से मुक्ति होने का उल्लेख ), ३५०.१४( ब्रह्मा द्वारा चरणों में पडे शिव का सव्य पाणि से उत्थापन करने का उल्लेख ), अनुशासन १७.१२९( उत्थान: सर्वकर्मणाम् : शिव के सहस्र नामों में से एक ), ४१.६( कामलोलुप इन्द्र का स्वागत करने के लिए उत्थातुकामा गुरु - पत्नी रुचि की देह का शिष्य विपुल द्वारा स्तम्भन करने का वर्णन ), १०४.१६( ब्राह्म मुहूर्त में धर्म - अर्थ का चिन्तन करने के पश्चात् उत्थित होकर आचमन आदि करने का निर्देश ) द्र. इन्द्रध्वज Utthaana
उत्पत्ति योगवासिष्ठ ३.१२+ ( आत्मा के लय के पश्चात् तन्मात्राओं व जगत की उत्पत्ति का वर्णन ), ३.९३( परमेष्ठी ब्रह्म से मन, मन से हिरण्यगर्भ/ब्रह्मा, उनसे मोह, अहंकार, अहंकार से विश्व की उत्पत्ति का वर्णन ), ४.१२( मोह व अज्ञान से जगत की उत्पत्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२३८.४८( मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पत्ति एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य : राजा मरुद्धन्व द्वारा अनावृष्टि में वृष्टि की प्राप्ति ), द्र. सर्ग, सृष्टि Utpatti
उत्पल नारद १.६८.३७ ( उत्पल की समित् से भूप - पत्नी व पद्म - समित् से भूपों को वश में करने का उल्लेख ) , १.८७.१४७ ( होम में उत्पल की आहुति द्वारा विश्व के वश में होने का उल्लेख ), १.९०.७०( उत्पल द्वारा देवी पूजा से उष्ट्र सिद्धि का उल्लेख ), १.९०.७०( रक्त उत्पल से देवी पूजा से अश्व सिद्धि का उल्लेख; उत्पल से उष्ट्र सिद्धि का उल्लेख ), पद्म ६.१३३.२४ ( सुभद्रा - सिन्धु संगम पर तीर्थ का नाम ) , ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३२ ( चक्षुओं में रूप हेतु लक्ष नीलोत्पल दान का उल्लेख ) , भविष्य ३.४.१०.५४ ( वाल्मीकि / मृगव्याध के तप से उत्पलारण्य की उत्पत्ति, वाल्मीकि के मरा-मरा जप से वन का उत्पल वन बनना, ब्रह्मा द्वारा उत्पलारण्य में तप करने का उल्लेख ) , मत्स्य १३.३४ ( कमलाक्ष तीर्थ में सती की महोत्पला नाम से स्थिति ) , १३.४५ ( उत्पलावर्तक तीर्थ में सती देवी का लोला नाम से वास ), ११४.३० ( मलय पर्वत से निकलने वाली उत्पलावती नदी ) , मार्कण्डेय ७४.२१/७१.२१ ( उत्पलावती : दृढधन्वा - पुत्री , राजा स्वराष्ट्र - भार्या , सुतपा ऋषि के शाप से मृगी रूप में जन्म, स्वराष्ट्र द्वारा मृगी की पुच्छ को ग्रहण करके नदी का प्लवन करना , उत्पलावती का लोल / तामस मनु की माता बनना ), लिङ्ग १.८१.२९( उत्पल पर षण्मुख की स्थिति का उल्लेख ), वायु ४५.१०५ ( मलय पर्वत से नि:सृत उत्पलावती नदी ) , विष्णुधर्मोत्तर ३.३७.११ ( निर्विकार स्थिति में उत्पल पत्र समान नेत्राकृति होने का कथन ) , ३.४८.१६ ( उमा देवी के हाथ में उत्पल वैराग्य का प्रतीक होने का उल्लेख ), ३.५२.१४( रति के हाथ में उत्पल सौभाग्य का प्रतीक ), ३.१२५.१९ ( उत्पलावर्तक तीर्थ में शौरि नाम से श्रीकृष्ण का कीर्तन करने का निर्देश ) , शिव २.५.५९ ( विदल व उत्पल दैत्यों की पार्वती पर आसक्ति , पार्वती द्वारा कन्दुक से दोनों दैत्यों का युगपत् नाश ), स्कन्द २.२.४४.५ ( संवत्सर व्रत में कार्तिक पूर्णिमा को उत्पल पुष्प द्वारा श्रीहरि की पूजा का निर्देश , अन्य मासों में अन्य पुष्पों का उल्लेख ),४.१.२१.३१ ( पुष्पों में नीलोत्पल की श्रेष्ठता का उल्लेख ) , ५.३.१९८.८३ ( उत्पलावर्त तीर्थ में उमा की लोला नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१५५.५८( स्वराष्ट्र राजा की योगिनी रानी उत्पलावती का वृत्तान्त : मृगी रूप धारण, तामस मनु को जन्म देना ), कथासरित् ९.६.११५ ( चन्द्रस्वामी द्वारा देवी से विषघ्न उत्पल की प्राप्ति , उत्पल प्रभाव से सर्प - दंशित पुत्र महीपाल का पुन: जीवित होना ) , १६.२.८०, १६.२.१७९ ( उत्पलहस्त : उज्जयिनी में चाण्डाल , पूर्व जन्म में विद्याधर , कन्या सुरतमञ्जरी का राजपुत्र अवन्तिवर्धन से विवाह करना , मुक्ति ), द्र. कमल , कुमुद , पद्म Utpala
उत्पलाक्ष देवीभागवत ७.३८.२८ ( सुवर्णाक्ष क्षेत्र में उत्पलाक्षी देवी की स्थिति ), पद्म ६.१३३.१४ ( रेवत गिरि पर उत्पलाक्ष / सहस्राक्ष तीर्थ की स्थिति ), मत्स्य १३.३४ ( सहस्राक्ष तीर्थ में सती की उत्पलाक्षी नाम से स्थिति ), स्कन्द ५.३.१९८.७२ ( सहस्राक्ष तीर्थ में उमा की उत्पलाक्षी नाम से स्थिति का उल्लेख ), द्र. कर्णोत्पल Utpalaaksha
उत्पात अग्नि २६३ ( उत्पात प्रकार व शान्तियां वर्णन) ,२६४.१( उत्पात शान्ति हेतु देव पूजा) , ३२१( उत्पात प्रकार अनुसार होम द्रव्य कथन ), देवीभागवत ११.२४( उत्पात शान्ति हेतु गायत्री जप विधि ), नारद १.५१.२( शान्ति कल्प में उत्पात शान्ति का विधान कथन ), १.५६.७४६ (उत्पात प्रकार वर्णन ),भविष्य २.३.२० (दिव्य , भौम , अन्तरिक्ष जन्य उत्पात , शान्ति उपाय ), ४.१३९ ( इन्द्रध्वज उत्सव में उत्पात ), भागवत ३.१७.३ (हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष के जन्म समय में उत्पात ), मत्स्य १६३.३०( हिरण्यकशिपु की सभा में उत्पात ), २२९+( उत्पात/ अद्भुत् भेद , लक्षण व शान्ति उपाय ), २३७( पशु - पक्षी जन्य उत्पात कथन ),महाभारत उद्योग १४३, भीष्म २, वा.रामायण ३.२३.१( खर द्वारा पञ्चवटी की ओर प्रस्थान करते समय उत्पात ), ६.२३.३( राम द्वारा सेतु पार करने पर द्रष्ट उत्पात ), ६.४१.१२ (राम द्वारा वानरी व राक्षसों की मृत्यु सूचक उत्पात दर्शन ), ६.५७.३३ (युद्ध के समय रावण - सेनानी प्रहस्त द्वारा द्रष्ट उत्पात ), ६.६५.४७( कुम्भकर्ण की रण यात्रा के समय उत्पात ), ६.७८.१७( मकराक्ष द्वारा युद्ध को प्रस्थान के समय उत्पात ), ६.९५.४२( रावण की रण यात्रा के समय उत्पात ), ६.१०६.२०( रावण - राम युद्ध के समय उत्पात ), विष्णुधर्मोत्तर १.३७(सिंहिका - पुत्र साल्व के नगर में उत्पात ), २.१३४( नाना विध उत्पात ), २.१३७( वृक्ष विकृति रूपी उत्पात व फल ), २.१३८( वृष्टि विकृति रूपी उत्पात ), २.१३९( जल विकृति रूपी उत्पात ), २.१४०( प्रसव विकृति रूपी उत्पात ), २.१४३( मृग - पक्षी विकृति रूपी उत्पात ), स्कन्द २.२.२५.६०( रथ यात्रा काल में रथ के अङ्गों के भङ्ग होने रूपी उत्पात का वर्णन ), ५.३.२८.३० ( बाण के त्रिपुर नाश हेतु शिव रथ के प्रस्थान के समय उत्पात वर्णन ) , ५.३.९०.४१ ( श्रीकृष्ण द्वारा वध से पूर्व तालमेघ दैत्य के समक्ष प्रकट उत्पातों का कथन ) , हरिवंश ३.४६( दैत्य विनाश सूचक उत्पात ), ३.५३.२७( बलि व इन्द्र के युद्ध में उत्पात ), लक्ष्मीनारायण २.१७६.३३ ( ज्योतिष में उत्पात योग कथन ), ३.१४६+ ( दैव , अन्तरिक्ष ,भौम आदि उत्पात व उनकी शान्ति वर्णन ), कथासरित् ८.५.९६( श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानी , अर्यमा देवता का अंश ) द्र.अद्भुत् , अपशकुन Utpaata |