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PURAANIC SUBJECT INDEX पुराण विषय अनुक्रमणिका (From vowel i to Udara) Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar I - Indu ( words like Ikshu/sugarcane, Ikshwaaku, Idaa, Indiraa, Indu etc.) Indra - Indra ( Indra) Indrakeela - Indradhwaja ( words like Indra, Indrajaala, Indrajit, Indradyumna, Indradhanusha/rainbow, Indradhwaja etc.) Indradhwaja - Indriya (Indradhwaja, Indraprastha, Indrasena, Indraagni, Indraani, Indriya etc. ) Indriya - Isha (Indriya/senses, Iraa, Iraavati, Ila, Ilaa, Ilvala etc.) Isha - Ishu (Isha, Isheekaa, Ishu/arrow etc.) Ishu - Eeshaana (Ishtakaa/brick, Ishtaapuurta, Eesha, Eeshaana etc. ) Eeshaana - Ugra ( Eeshaana, Eeshwara, U, Uktha, Ukhaa , Ugra etc. ) Ugra - Uchchhishta (Ugra, Ugrashravaa, Ugrasena, Uchchaihshrava, Uchchhista etc. ) Uchchhishta - Utkala (Uchchhishta/left-over, Ujjayini, Utathya, Utkacha, Utkala etc.) Utkala - Uttara (Utkala, Uttanka, Uttama, Uttara etc.) Uttara - Utthaana (Uttara, Uttarakuru, Uttaraayana, Uttaana, Uttaanapaada, Utthaana etc.) Utthaana - Utpaata (Utthaana/stand-up, Utpala/lotus, Utpaata etc.) Utpaata - Udaya ( Utsava/festival, Udaka/fluid, Udaya/rise etc.) Udaya - Udara (Udaya/rise, Udayana, Udayasingha, Udara/stomach etc.)
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Puraanic contexts of words like Ugra, Ugrashravaa, Ugrasena, Uchchaihshrava, Uchchhista etc. are given here Comments on Ugratapaa, Ugravaktra, Ugradanshtra, Ugravaktra, Ugraayudha उग्रचण्डा ब्रह्मवैवर्त्त २.१९.४६ ( कार्तिकेय - शंखचूड संग्राम में काली की सहचरी उग्रचण्डा आदि द्वारा मधु पान का उल्लेख ), २.६४.८२ (अष्टदल कमल के आठ दलों /दिशाओं में उग्रचण्डा आदि अष्टनायिका देवियों की पूजा का उल्लेख ) , ४.१२०.१६( कृष्ण - बाणासुर युद्ध प्रसंग में उग्रचण्डा आदि अष्ट नायिकाओं का शिव सहित युद्ध के लिए प्रस्थान ) Ugrachandaa
उग्रजन्मा पद्म ६.७७.४२ ( ऋषि पञ्चमी व्रत माहात्म्य के अन्तर्गत उग्रजन्मा विप्र द्वारा वसिष्ठ ऋषि से माता - पिता के कुयोनि से उद्धार के उपाय की पृच्छा )
उग्रतपा पद्म ५.७२.६ ( उग्रतपा मुनि का तप से कृष्ण - पत्नी सुनन्दा बनना ), वायु २३.१६४( १४ वें मन्वन्तर में गौतम नामक अवतार के पुत्रों में से एक ), कथासरित् ५.३.५७ ( शशिरेखा आदि विद्याधर - कन्याओं द्वारा उग्रतपा ऋषि को क्रुद्ध करना , उग्रतपा द्वारा कन्याओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप ) Ugratapaa Comments on Ugratapaa, Ugravaktra, Ugradanshtra, Ugravaktra, Ugraayudha
उग्रदंष्ट्र देवीभागवत ९.२०.३६( उग्रदंष्ट्रा, उग्रदण्डा आदि देवियों के रत्नेन्द्रसार निर्णाण विमान पर स्थित होने का उल्लेख ) , पद्म ५.३४.२२ ( विद्युन्माली - अनुज, विद्युन्माली द्वारा राम के अश्वमेधीय हय का हरण कर लेने पर शत्रुघ्न - सेनानियों पुष्कल , हनुमान व शत्रुघ्न से युद्ध , शत्रुघ्न द्वारा भ्राता - द्वय का वध ), भागवत ५.२.२३(उग्रदंष्ट्री : मेरु की ९ कन्याओं में से एक, हरिवर्ष - पत्नी ), ६.२.२३ ( उग्रदंष्ट्री : मेरु - कन्या , हरिवर्ष - पत्नी ) , शिव २.५.३३.३६ ( उग्रदंष्ट्र , उग्रदण्ड आदि के रत्नेन्द्रसार विमान पर स्थित होने का उल्लेख ), २.५.३८.३ ( शंखचूड - शिव युद्ध प्रसंग में उग्रदंष्ट्रा व उग्रदण्डा आदि देवियों द्वारा मधुपान का उल्लेख ) , स्कन्द ५.१.६३.९६ ( विष्णु सहस्रनामों में से एक ) Ugradanshtra Comments on Ugratapaa, Ugravaktra, Ugradanshtra, Ugravaktra, Ugraayudha
उग्रदर्शन मार्कण्डेय ८२.४२ ( महिषासुर - सेनानी , देवी से युद्ध )
उग्रदृष्टि वायु ३१.७ ( ग्रावजिन? नामक देवगण में से एक )
उग्रभट कथासरित् १२.७.२९ , १२.७.३५ ( राढा नगरी का राजा , मनोरमा - पति, लास्यवती नर्तकी से विवाह , पुत्रेष्टि द्वारा दो पुत्र प्राप्ति , ज्येष्ठ पुत्र का राज्य से निष्कासन )
उग्ररेता भागवत ३.१२.१२ (मन्यु , मनु आदि ११ रुद्रों में से एक ;११ रुद्रों की पत्नियों के नाम )
उग्रवक्त्र मार्कण्डेय ८२.४२ / ८०.१८ ( महिषासुर वध प्रसंग में देवी द्वारा महिषासुर के सेनानियों उग्रास्य , उग्रवीर्य तथा उग्रदर्शन के वध का उल्लेख ), स्कन्द १.३.२.१९.६३ ( दुर्गा द्वारा महिषासुर सेनानी उग्रवक्त्र का कुठार से वध का उल्लेख ) , ४.१.८.७२ ( उग्रास्य : नरक में यातना देने वाले यम के गणों में से एक ) , ४.२.७१.७० ( उग्रास्य : दुर्ग असुर के सेनानियों में से एक ) Ugravaktra Comments on Ugratapaa, Ugravaktra, Ugradanshtra, Ugravaktra, Ugraayudha
उग्रश्रवा पद्म १.१.२ ( सूत, लोमहर्षण - पुत्र , पिता द्वारा उग्रश्रवा को नैमिषारण्य में पुराण कथा का आदेश ) , ६.१९८.७९ ( सूत - पुत्र , पिता की मृत्यु पर मुनियों को पुराण कथन ) , भागवत ०.१.३ ( शौनक द्वारा नैमिषारण्य में सूत से भागवत कथा श्रवण ) , ३.२०.७ ( वही) , स्कन्द ३.१.२२.७९ ( पुत्र हत्या पर उग्रश्रवा द्वारा दुष्पण्य को शाप ) Ugrashravaa
उग्रसेन गर्ग १.५.२५ ( मरुत देवता के अंश ) , ७.१.३५ ( राजा मरुत का जन्मान्तर में उग्रसेन राजा बनना ) , ७.२+ ( उग्रसेन द्वारा राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान , प्रद्युम्न द्वारा दिग्विजय ) , ७.२.१७ ( उग्रसेन द्वारा प्रद्युम्न को खड्ग प्रदान करना ) , ९.१+ ( उग्रसेन द्वारा व्यास से भक्ति विषयक जिज्ञासा ) , १०.७ ( उग्रसेन द्वारा अश्वमेध यज्ञ का उद्योग ), गरुड ३.९.४(१५ अजान देवों में से एक), पद्म २.४८.१ ( पद्मावती - पति , गोभिल दैत्य द्वारा उग्रसेन का रूप धारण करके उग्रसेन की पत्नी से समागम , कंस की उत्पत्ति ) , ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०४.५० ( उग्रसेन का द्वारका में प्रवेश व देवों , मनुष्यों आदि द्वारा उग्रसेन का अभिषेक ) , ब्रह्माण्ड १.२.२३.१० ( उग्रसेन गन्धर्व की सूर्य रथ में स्थिति ) , भविष्य ३.३.२२.२९, ३.३.३२.५१ ( उग्रसेन का कलियुग में बलीठाठ ग्राम - अधिपति वीरसेन के रूप में जन्म ), ३.३.३२.३६ ( द्वापर युग के उग्रसेन नामक कौरव का कलियुग में पुण्ड्र देश के राजा के पुत्र के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ) , भागवत ९.२२.३५ ( परीक्षित के ४ पुत्रों में से एक ) , ९.२४.२४ ( उग्रसेन के कंस आदि ९ पुत्रों तथा कंसा , कंसवती आदि ५ पुत्रियों के नाम ) , १२.११.३८ ( नभस्य / भाद्रपद मास में उग्रसेन गन्धर्व की सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ) , मत्स्य ४४.७० ( आहुक व काश्या - पुत्र , उग्रसेन के पुत्रों के नाम ), वायु ९६.१३१/२.३४.१३१ ( उग्रसेन के कंस आदि ९ पुत्रों तथा कर्म , धर्मवती आदि ५ पुत्रियों के नाम ) , विष्णु ५.२१ ( कंस वध के पश्चात उग्रसेन का राज्याभिषेक , सुधर्मा सभा में विराजमान होना ) , विष्णुधर्मोत्तर १.१३५.१ ( उग्रसेन गन्धर्व का उर्वशी को पृथिवी से वापस लाने के लिए गमन ) , स्कन्द १.२.५४.१८ ( जटायु के पूर्वज ? - राजा उग्रसेन द्वारा श्रीकृष्ण से नारद ऋषि की चपलता का कारण पूछना ), ७.१.१.२९ ( उग्रसेनेश्वर लिंग माहात्म्य : अक्षमाला शूद्रा द्वारा स्थापना , अन्धासुर - पुत्र उग्रसेन द्वारा पुत्रार्थ पूजा ) , हरिवंश १.३७.३० ( आहुक - पुत्र , कंस आदि ९ पुत्रों के नाम ) , २.३२.५५ ( उग्रसेन द्वारा कृष्ण के साथ मिलकर कंस की अन्त्येष्टि क्रिया करना ) , २.३६.२ ( जरासन्ध - सेनानी भीष्मक से युद्ध ) Ugrasena
उग्रा नारद २.४३.८० ( गंगा स्तोत्र में गंगा की उग्रा नाम से अर्चना ) , ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७३ ( ४८ शक्ति देवियों में से एक ) , स्कन्द ४.१.२७.६९ ( गंगा सहस्रनामों में से एक ) , ४.२.७२.६२ ( उग्रा देवी द्वारा पादाङ्गुलियों की रक्षा ) Ugraa
उग्रायुध भविष्य ३.३.३२.३१ ( उग्रायुध आदि १० कौरवों का कलियुग में कैकय राजा के पुत्र बनना ) , भागवत ९.२१.२९ ( नीप - पुत्र , क्षेम्य - पिता , भरत / भरद्वाज वंश ) , मत्स्य ४९.५९ ( उग्रायुध द्वारा तप , शरणागत जनमेजय को राज्य दिलाने के लिए नीपवंशियों का शाप द्वारा संहार ) , वायु ९९.१८९ / २.३७.१८८ ( कृति - पुत्र , क्षेम - पिता , वंश वर्णन ) , विष्णु ४.१९.५३ (वही), हरिवंश १.२०.४४ ( कृत - पुत्र , क्षेम्य - पिता , नीपों का संहार , भीष्म - माता सत्यवती पर आसक्ति के कारण भीष्म द्वारा उग्रायुध का वध ) Ugraayudha Comments on Ugratapaa, Ugravaktra, Ugradanshtra, Ugravaktra, Ugraayudha
उग्राश्व पद्म ५.६७.४०( कामगमा - पति ), वराह ४३.१५ ( वामन द्वादशी व्रत के चीर्णन से हर्यश्व द्वारा उग्राश्व नामक पुत्र प्राप्त करना )
उच्चाटन अग्नि १३८ ( शत्रु के विरुद्ध उच्चाटन कर्म विधि ), भविष्य ४.५.३७ ( उच्चाटन कर्म की पाप के अन्तर्गत गणना ) , स्कन्द १.२.४१.५२ ( वही) द्र. अभिचार , शत्रु
उच्चैःश्रवा गर्ग ७.४१.१ ( हिरण्याक्ष - पुत्र शकुनि द्वारा उच्चैःश्रवा पर आरूढ होकर श्रीकृष्ण से युद्ध करने का उल्लेख ) , देवीभागवत ३.१३.२२ ( समुद्र मन्थन से उत्पन्न उच्चैःश्रवा अश्व आदि के इन्द्र को प्राप्त होने का उल्लेख ), ५.२३.२१( उच्चैःश्रवा अश्व के ७ मुख होने का उल्लेख ), ६.१७.५१ ( सूर्य - पुत्र रेवन्त का उच्चैःश्रवा पर आरूढ होकर विष्णु दर्शन हेतु गमन , लक्ष्मी की उच्चैःश्रवा पर आसक्ति के कारण विष्णु द्वारा लक्ष्मी को वडवा होने का शाप ) , पद्म १.४७.१२९ ( कद्रू- विनता आख्यान में सर्पों द्वारा उच्चैःश्रवा अश्व को विष द्वारा कृष्ण बनाने का उल्लेख ), ७.५.७० ( माधव द्वारा समुद्र पार करने के लिए उच्चैःश्रवा अश्व व मन्दुरा अश्वी के अश्व पुत्र की प्राप्ति ) , ब्रह्म १.६२.४० ( श्रीकृष्ण के स्नान / अभिषेक में देवों आदि के सहित उच्चैःश्रवा हय के भाग लेने का उल्लेख ) , ब्रह्मवैवर्त्त १.२०.४९ ( पत्नी कलावती द्वारा गर्भ धारण करने के उपलक्ष्य में द्रुमिल गोप द्वारा पञ्च लक्ष उच्चैःश्रवा आदि का ब्राह्मणों को दान करने का उल्लेख ) , भविष्य १.३२.१० ( एकनयना कद्रू द्वारा श्वेत वर्ण वाले उच्चैःश्रवा अश्व में कृष्ण बालों को देखना तथा कद्रू- विनता आख्यान ) , ४.३६.६ ( वही) , भागवत ८.८.३ ( समुद्र मन्थन से उच्चैःश्रवा की उत्पत्ति , बलि द्वारा उसे ग्रहण करने और इन्द्र द्वारा न करने का उल्लेख ) , मत्स्य २५१.३ ( उच्चैःश्रवा अश्व की समुद्र मन्थन से उत्पत्ति व सूर्य द्वारा प्राप्ति का उल्लेख ), लिङ्ग २.३९.५( हिरण्याश्व दान के संदर्भ में उच्चैःश्रवा अश्व दान विधि का वर्णन ), स्कन्द १.१.१८.७७ ( कितव / बलि द्वारा विश्वामित्र को उच्चैःश्रवा अश्व दान करने आदि का कथन ) , १.१.१८.१०७ ( कितव / बलि द्वारा गालव को उच्चैःश्रवा अश्व दान करने का उल्लेख ) , ४.१.५०.६ ( कद्रू- विनता आख्यान : सर्पों द्वारा श्वेत उच्चैःश्रवा अश्व के बालों में प्रवेश करके उसे कृष्ण बनाना ), ५.१.४४.११ ( समुद्र मन्थन से उच्चैःश्रवा आदि के प्राकट्य का उल्लेख ) , ५.१.४४.२५ ( सूर्य द्वारा समुद्र मन्थन से उत्पन्न सात मुखों वाले उच्चैःश्रवा अश्व की प्राप्ति का उल्लेख ) , ५.२.१६.४ ( तुहुण्ड दानव द्वारा इन्द्र के उच्चैःश्रवा अश्व के हरण का उल्लेख ), ५.३.७२ ( कद्रू- विनता आख्यान ), ५.३.१३१ ( वही), लक्ष्मीनारायण ३.१६.४९( इन्द्र के वाहन उच्चैःश्रवा की विष्णु के हस्त तल से उत्पत्ति का उल्लेख ), कथासरित् ४.२.१८१ (सूर्य के अश्व के वर्ण के विषय में कद्रू- विनता आख्यान ) , ८.३.२२१ ( समुद्र मन्थन से प्रकट उच्चैःश्रवा अश्व की नमुचि असुर द्वारा प्राप्ति , उच्चैःश्रवा अश्व के घ्राण मात्र से असुरों के जीवित हो जाने का उल्लेख, इन्द्र द्वारा नमुचि से उच्चैःश्रवा अश्व की याचना व प्राप्ति ) , १०.३.६६ ( सोमप्रभ द्वारा उच्चैःश्रवा - पुत्र आशुश्रवा की प्राप्ति ) , १८.४.१३ ( सूर्य के रथ के उच्चैःश्रवा अश्व द्वारा विक्रमादित्य राजा की अश्वी से रत्नाकर नामक अश्व उत्पन्न करना ), महाभारत आदि २०.१ ( विनता - कद्रू आख्यान ) , १९४.५३ ( अवीक्षित के ८ पुत्रों में से एक ) , उद्योग १०२.१२ ( समुद्र मन्थन से उच्चैःश्रवा आदि की उत्पत्ति ) , द्रोण १९६.३० ( अश्वत्थामा द्वारा जन्म लेते ही उच्चैःश्रवा की भांति हिनहिनाना ) Uchchaihshravaa
उच्छिष्ट अग्नि १५७.१७ ( मृतक के अशौच के संदर्भ में उच्छिष्ट के निकट एक पिण्ड देने का विधान ), कूर्म २.१४.७१( उच्छिष्ट व श्राद्ध भोजन का मन से भी चिन्तन न करने का निर्देश ), २.१७.९ ( उच्छिष्ट व उच्छिष्टभोजी के अन्न के ग्रहण का निषेध ), गरुड १.९९.२३ ( श्राद्ध में उच्छिष्ट सन्निधि में पिण्डदान का निर्देश ), देवीभागवत ११.२३.१( साधक द्वारा प्राणाग्निहोत्र के पश्चात् उच्छिष्ट भाग भोगियों को पात्रान्न देने का निर्देश ), ११.२३.५( विप्र का उच्छिष्ट से स्पर्श होने पर शुद्धि विधान कथन ), नारद १.१.७१( पुराणादि का उच्छिष्ट देश में कथन करने पर नरक प्राप्ति का उल्लेख ), १.२५.३१ (शिष्य हेतु उच्छिष्ट भोजन का निषेध ), १.५१.१२६ ( उच्छिष्ट की सन्निधि में पिण्ड देने का निर्देश ), १.६७.५० ( अर्चना में पुनराचमनीयक दान के संदर्भ में ईश्वर के स्मरण मात्र से उच्छिष्ट के शुद्ध होने का उल्लेख ), १.६७.१००( शिव, विष्णु, गणेश आदि देवों के उच्छिष्ट भोजियों चण्डेश, विश्वक्सेन, वक्रतुण्ड आदियों के नाम ), पद्म ३.५३.७१( उच्छिष्ट व श्राद्ध भोजन का मन से भी चिन्तन न करने का निर्देश ), ३.५६.९ ( उच्छिष्ट भोजी का अन्न ग्रहण करने का निषेध ), ७.८.१० ( उच्छिष्ट को गङ्गा में फेंकने का पातक कथन ), ७.१६.१२ (उच्छिष्ट अथवा अनुच्छिष्ट का ज्ञान न रखने वाले हरिभक्त शबर की कथा ), ब्रह्म १.११३.२८ ( उच्छिष्ट के वर्जन करने का निर्देश ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२१.७२( विप्रों के उच्छिष्ट का ग्रहण करने से पाप नष्ट होने आदि का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.१४.१०१( उच्छिष्टों के संस्पर्श , संभाषण अथवा भक्षण पर प्रायश्चित्त कथन ), भागवत १.५.२५( नारद द्वारा पूर्वजन्म में विप्रों के उच्छिष्ट का सेवन करने से पाप नष्ट होने का कथन ), ६.१८.६० ( इन्द्र द्वारा उच्छिष्टा दिति के गर्भ का छेदन ), ९.४.८( नाभाग के दायाद के संदर्भ में यज्ञ में उच्छिष्ट पर रुद्र का अधिकार होने का कथन ), ११.६.४६ ( उद्धव का स्वयं को कृष्ण का उच्छिष्ट भोजी कहना ), मत्स्य १७.५७ ( उच्छेष के दासवर्ग व पितरों का भाग होने का कथन ), मार्कण्डेय ३४.३१/३१.३१ (उच्छिष्ट अवस्था में आलाप, स्वाध्याय आदि आदि न करने का निर्देश ), ५१.३४/४८.३४ ( स्वयंहारिका द्वारा मनुष्यों के उच्छेष आदि का हरण करने का उल्लेख ), वा.रामायण २.११९.२० ( उच्छिष्ट तापस व ब्रह्मचारी का राक्षसों द्वारा भक्षण का उल्लेख ), लिङ्ग १.७९.५ ( उच्छिष्ट भक्त द्वारा शिव की पूजा से पैशाच स्थान प्राप्ति का कथन ), वराह २०२.६९( उच्छिष्ट अन्न प्रदाता की नरक में गति का कथन ), वामन १४.७८ ( उच्छिष्ट को गृह से बाहर फेंकने का विधान ), विष्णु ३.११.१० ( वही), शिव २.१.१३.१५ ( उच्छिष्ट वस्त्र से स्नान न करने का निर्देश ), विष्णु धर्मोत्तर १.२३१.३३ ( असुर ग्रह पीडित व्यक्ति द्वारा उच्छिष्ट भैरव नीरस रव करने का उल्लेख ), २.७३.२१९ ( रजस्वला स्त्री द्वारा उच्छिष्ट का संस्पर्श कर लेने पर शुद्धि न करने तक भोजन न करने का निर्देश ), २.७७.३ ( अशौच समाप्त होने पर उच्छिष्ट की सन्निधि में एक पिण्ड रखने का निर्देश ), ३.२३३.१५ ( उच्छिष्ट होकर शीर्ष का स्पर्श न करने का निर्देश ), स्कन्द १.२.४१.१४९( उच्छिष्ट - दूषित व्यक्ति द्वारा सूर्य दर्शन का निषेध ) , २.२.३८.३ ( भगवद् उच्छिष्ट / प्रसाद माहात्म्य ), ४.१.३५.२२८( भोजन के अन्त में उदक पान करके पीतशेष को भूमि पर गिराने से उच्छिष्टोदक इच्छुकों की तृप्ति होने का कथन ), ६.८८.४५ ( गर्भवती नारी द्वारा उच्छिष्ट अवस्था में प्रसर्पण करने पर उनके गर्भ का कालयवनों का भोजन होने का कथन ), ६.८८.४६ ( सूतिका भवन में उच्छिष्ट उत्पन्न होने पर बालक का कालयवनों का भोजन होने का उल्लेख ), ६.८८.५३ ( उच्छिष्ट स्थिति में बैठे पुरुष का कालयवनों का भोजन होने का उल्लेख ), ६.२१८.९ ( पात्र प्रक्षालन से भूमि पर प्राप्त उच्छिष्ट से प्रेतों आदि की तृप्ति होने का कथन ), ६.२२४.३५( श्राद्ध में उच्छिष्ट सन्निधि में पितृवेदी बनाने का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण १.२९४.५४( उच्छिष्ट आदि से मल मास की उत्पत्ति, मल मास की महिमा आदि ), ४.६६.१२ ( कथा के उच्छिष्ट भोजन से गृध्र की मुक्ति की कथा ), महाभारत वन ६५.६८ ( नल से वियोग होने पर दमयन्ती द्वारा उच्छिष्ट आदि भक्षण न करने की शर्त पर चेदिराज के भवन में निवास का उल्लेख), १३६.१४( कृत्या द्वारा कमण्डलु के हरण पर यवक्रीत मुनि के उच्छिष्ट होने और राक्षस द्वारा मारे जाने की कथा ), २६०.१७( दुर्वासा द्वारा महर्षि मुद्गल द्वारा प्रदत्त अन्न का भक्षण करके उच्छिष्ट अन्न को सारे अङ्गों में लपेट लेने का उल्लेख ), भीष्म ४१.१०( उच्छिष्ट भोजन तामस पुरुष को प्रिय होने का उल्लेख ), कर्ण ४१.१२( शल्य द्वारा कर्ण को उच्छिष्ट भोजी काक द्वारा हंस से प्रतिस्पर्धा करने के आख्यान का वर्णन ), शान्ति ११.७( पक्षी रूप धारी इन्द्र द्वारा ऋषियों को उच्छिष्ट भोजन व विघस भोजन /यज्ञशेष में अन्तर समझाना ), २२८.५९ (दैत्यों के आचार के वर्णन के अन्तर्गत दैत्यों द्वारा उच्छिष्ट करों से घृत का स्पर्श करने का उल्लेख ), अनुशासन १०४.६७( उच्छिष्ट होकर शयन करने अथवा शीर्ष का स्पर्श करने का निषेध ), १०४.८२( गृह से दूर उच्छिष्ट उत्सर्जन आदि करने का निर्देश ), आश्वमेधिक ५७.२३(उच्छिष्ट अवस्था में दिव्य कुण्डल धारण करने पर यक्षों द्वारा हरण का उल्लेख ), मौसल ३.३२ ( यादवों के परस्पर संहार के संदर्भ में यादव वीरों द्वारा सात्यकि पर उच्छिष्ट भाजनों द्वारा प्रहार का उल्लेख ), द्र. नैवेद्य , प्रसाद Uchchhishta
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