PURAANIC SUBJECT INDEX

पुराण विषय अनुक्रमणिका

(From vowel i to Udara)

Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar

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I - Indu ( words like Ikshu/sugarcane, Ikshwaaku, Idaa, Indiraa, Indu etc.)

Indra - Indra ( Indra)

Indrakeela - Indradhwaja ( words like Indra, Indrajaala, Indrajit, Indradyumna, Indradhanusha/rainbow, Indradhwaja etc.)

Indradhwaja - Indriya (Indradhwaja, Indraprastha, Indrasena, Indraagni, Indraani, Indriya etc. )

Indriya - Isha  (Indriya/senses, Iraa, Iraavati, Ila, Ilaa, Ilvala etc.)

Isha - Ishu (Isha, Isheekaa, Ishu/arrow etc.)

Ishu - Eeshaana (Ishtakaa/brick, Ishtaapuurta, Eesha, Eeshaana etc. )

Eeshaana - Ugra ( Eeshaana, Eeshwara, U, Uktha, Ukhaa , Ugra etc. )

Ugra - Uchchhishta  (Ugra, Ugrashravaa, Ugrasena, Uchchaihshrava, Uchchhista etc. )

Uchchhishta - Utkala (Uchchhishta/left-over, Ujjayini, Utathya, Utkacha, Utkala etc.)

Utkala - Uttara (Utkala, Uttanka, Uttama, Uttara etc.)

Uttara - Utthaana (Uttara, Uttarakuru, Uttaraayana, Uttaana, Uttaanapaada, Utthaana etc.)

Utthaana - Utpaata (Utthaana/stand-up, Utpala/lotus, Utpaata etc.)

Utpaata - Udaya ( Utsava/festival, Udaka/fluid, Udaya/rise etc.)

Udaya - Udara (Udaya/rise, Udayana, Udayasingha, Udara/stomach etc.)

 

 

 

Puraanic contexts of words like Utsava/festival, Udaka/fluid, Udaya/rise etc. are given here.

Comments on Udaka/water

Vedic view of Udaka ( by Dr. Tomar)

Comments on Udaya / rise

उत्सर्ग भविष्य ४.१२७ (वापी , कूप , तडाग उत्सर्ग विधि व माहात्म्य ), भागवत ६.१८.६( मित्र व रेवती - पुत्र ), स्कन्द ६.२६३.१४( देह उत्सर्ग से नर यज्ञ फल प्राप्ति का उल्लेख ) Utsarga

 

उत्सव अग्नि ६८ ( देवप्रतिष्ठा उपरान्त उत्सव विधि ) , ६९ ( स्नपनोत्सव विधि , कुम्भ विन्यास ) , २६८ ( शयनोत्थान उत्सव ) , नारद १.१२१.३९ ( नीराजन द्वादशी उत्सव विधि ) , पद्म ६.८३ ( दोलारोहण उत्सव ) , ६.८४ ( दमनक उत्सव ) , ६.८५ ( जलशयन उत्सव ) , भविष्य ३.३.२६ ( वामन उत्सव ) , ४.१३२( फाल्गुन पूर्णिमा उत्सव : राजा रघु व ढुण्ढा राक्षसी का वृत्तान्त ), ४.१३३ (दमनक उत्सव , दोलारोहण उत्सव , रथयात्रा उत्सव ) , ४.१३५ ( मदन उत्सव ) , ४.१३६ ( भूतमात्र उत्सव ) , ४.१३९ ( महेन्द्र ध्वज उत्सव ) , ४.१४० ( दीपमालिका उत्सव ), वामन ९१.५८ ( द्वार प्रतिपदा उत्सव , बलि राजा ) , ९१.६० ( कौमुदी उत्सव , बलि राजा ) , विष्णु ५.१० ( इन्द्र उत्सव ) , विष्णुधर्मोत्तर २.१५५ ( शक्रध्वज उत्सव ), शिव ५.५१.५५ ( चैत्र शुक्ल तृतीया को दोला उत्सव कथन ) , स्कन्द १.२.२२ ( जगदम्वा जन्म उत्सव ), २.२.३३ ( महादेवी उत्सव ) , , २.२.३६ ( चातुर्मास में पुरुषोत्तम शयन उत्सव विधि व माहात्म्य ), २.२.३९ ( कौमुदी उत्थापन उत्सव ), २.२.३९ ( शयन उत्सव , व्रत ) , २.२.४० ( प्रावरण उत्सव : पुरुषोत्तम का वस्त्रों दारा आच्छादन ) , २.२.४१( पुष्य स्नान उत्सव ), २.२.४२ (उत्तरायण उत्सव ) , २.२.४३ ( फाल्गुन में दोलारोहण उत्सव ),, २.४.३३.३८( प्रबोध उत्सव ) , २.४.३५.३३ ( त्रैपुर उत्सव ) , २.५.१४ ( मत्स्य उत्सव विधि व माहात्म्य ) , २.६.२.२५ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को आत्मोत्सव रूप प्रदान करना) , हरिवंश २.१५ ( व्रज में इन्द्र उत्सव ) , लक्ष्मीनारायण १.२८१( दोला उत्सव , मकर संक्रान्ति उत्सव , वसन्त उत्सव , होलिका उत्सव आदि ) , २.६५+ ( यज्ञोपवीत उत्सव वर्णन ) , २.११५.५४ ( फाल्गुन में पुष्प दोला महोत्सव विधि ), २.१७५.६३( उत्सव में गुरु के बलशाली होने का उल्लेख )  Utsava

 

उत्साह ब्रह्माण्ड १.२.३६.३९( महोत्साह : उत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक )

 

उत्स्थल कथासरित् ५.२.३३ (उत्स्थल द्वीप निवासी सत्यव्रत निषाद द्वारा शक्तिदेव की कनक द्वीप के अन्वेषण में सहायता करना ) , ५.३.१३७ ( उत्स्थल द्वीप में शक्तिदेव का बन्धन, सत्यव्रत - पुत्री बिन्दुमती से विवाह आदि )

 

उदक गरुड २.८.९/२.१८.९ ( उदकुम्भ प्रदान से किंकरी की तृप्ति होने का उल्लेख ) , २.२७.५/२.३७.५ ( उदकुम्भ प्रदान से प्रेत / मृत पुरुष की अस्थियों के पुष्ट होने का उल्लेख ) , ३.११.१(विष्णु के शयन काल में लक्ष्मी की उदक रूप में स्थिति) ३.११.३(निद्रासीन विष्णु के संदर्भ में उदक के गर्भोदक होने का उल्लेख), देवीभागवत ११.१६.५३ ( सायंकाल उदक प्रक्षेपण से सूर्य भक्षण के इच्छुक मन्देहा राक्षसों के नाश का कथन ) , नारद २.३२.६० ( विरोचन व उसकी पत्नी विशालाक्षी द्वारा द्विज के पादोदक ग्रहण करके उसे सिर पर ग्रहण करने व स्वर्ग जाने का वृत्तान्त ) , पद्म १.१०.२१ ( श्राद्ध में तिलोदक से पूर्ण उदकुम्भ दान का निर्देश ) , ३.२७.३२ ( पृथूदक तीर्थ की महिमा का वर्णन ), ३.३८.२७ ( गया में उदपान तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : वाजिमेध फल की प्राप्ति ) , ३.५३.८ ( गुरु के लिए नित्य प्रति उदकुम्भ आदि आहरण का निर्देश ), ६.१८८.४१ ( महाराष्ट्र में प्रत्युदक नगर में केशव ब्राह्मण द्वारा स्व - पत्नी के ताडन से अगले जन्म में शश बनने आदि की कथा ) , ६.२५२.३४ ( श्रीकृष्ण द्वारा स्वर्ण कलश से जल लेकर सखा सुदामा के पाद प्रक्षालन करने का उल्लेख ) , ७.२१.३४ ( भद्रक्रिय ब्राह्मण के पादोदक के स्पर्श से भषक / श्वान के उद्धार की कथा ) , ब्रह्म १.५७.६० ( पितृ तर्पण कर्म में उदक तर्पण की सम्यक् विधि का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१३७ ( उदधि की निरुक्ति :उदक का अयन ), १.२.३६.१०४ ( अरण्य - पुत्र उदक द्वारा वरुणत्व प्राप्ति और वारुणी - भ्राता होने का उल्लेख ), २.३.६.१०( महोदक : दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक ), २.३.१२.२१ ( नित्य बलि कर्म में उदकपूर्व तथा उदकान्त में बलि करने का निर्देश ) , २.३.१३.२६ ( ताम्रपर्णी - उदधि संगम से शंख -  मौक्तिक युक्त उदक आहरण से व्याधियों आदि से मुक्ति पाने का कथन ), ३.४.२.२७८( जन्म - मृत्यु रूपी उदक वाली नदी का उल्लेख ), भविष्य १.६४.२१ ( सूर्य का उदक से अभ्युक्षण करने से वरुण लोक प्राप्ति का उल्लेख ) , १.१०३.३७ ( क्षय में सूर्य का उदक से अभ्युक्षण करने से कृष्ण / गोपति लोक प्राप्ति का उल्लेख ) , १.१९७.२३ ( उदक प्रसृति पीकर उदक सप्तमी व्रत करने का निर्देश ) , भागवत ९.२१.२६ ( उदक्स्वन : विष्वक्सेन - पुत्र, भल्लाद - पिता , नीप वंश ) , १०.८०.२० ( श्रीकृष्ण द्वारा सुदामा के पाद प्रक्षालन करके पादोदक को शीर्ष पर धारण करने का उल्लेख ), लिङ्ग १.४३.४६ ( मेघों द्वारा नन्दी के अभिषेक से स्वर्णोदक नदी का प्रादुर्भाव ) , वराह ७६.१३ ( पश्चिम दिशा में उदकाधिपति वरुण की शुद्धवती पुरी की स्थिति का उल्लेख ) , ११२.३४ ( कपिला गौ दान के समय ब्राह्मण के हाथ में उदक देकर शुद्ध वाक् द्वारा उच्चारण का निर्देश ) , २१५.६६ ( मृग रूप धारी शिव के शृङ्ग मूल से निःसृत जल से निर्मित मृग शृङ्गोदक तीर्थ का माहात्म्य : पाप नाश ) , २१५.९० ( क्रोशोदक तीर्थ का माहात्म्य कथन ) , वामन २१.२१ ( कुरुक्षेत्र में स्थित पृथूदक तीर्थ में उदक द्वारा पितरों की पूजा का निर्देश ) , २२.४५ ( पृथूदक तीर्थ की महिमा के संदर्भ में कुरुक्षेत्र की उत्पत्ति का वर्णन : राजा कुरु द्वारा स्व - शरीर का कर्षण ) , ३१.८५ ( उदक रहित पूजा का फल बलि असुरराज को प्राप्त होने का उल्लेख ), ५८.११५ ( क्रौञ्च पर्वत के वध के पाप से मुक्ति हेतु स्कन्द को पृथूदक तीर्थ में स्नान , तप आदि करने का निर्देश ) , वायु ४९.८५ ( उदय पर्वत पर उदक वर्ष की स्थिति का उल्लेख ) , ७७.२६/२.१५.२६ ( ताम्रपर्णी - उदधि संगम से शंख -  मौक्ति युक्त उदक आहरण से व्याधि नाश का कथन ) , वा. रामायण २.६३.२६ ( सरयू तट पर माता - पिता हेतु उदक हरणार्थ गए मुनिकुमार का दशरथ द्वारा वध का वृत्तान्त ) , विष्णु ४.२.४० ( उदक ऋषि के अनुरोध पर कुवलयाश्व राजा द्वारा दुन्दु असुर के वध का उल्लेख ) , ४.४.५६ ( वसिष्ठ मुनि को शाप देने को उद्धत राजा सौदास द्वारा शाप हेतु पाणि के अम्बु को अपने पादों पर गिराना और पादों का कल्मषता को प्राप्त होना ) , ६.४.३२ ( प्रत्याहार में भूमि के उदक में व उदक के ज्योति में लीन होने आदि का कथन ) , विष्णुधर्मोत्तर २.२९.७ ( वास्तु विद्या के संदर्भ में उदक का शीध्र शोषण न करने वाली भूमि के प्रशस्त होने का उल्लेख ), ३.२३८.३४ ( पुण्यात्माओं द्वारा सूर्य के उदक में प्रवृत्त होने पर मृत्यु प्राप्त करने का उल्लेख ), ३.२९६.२ ( उदक महिमा के अन्तर्गत विभिन्न ऋतुओं में उदक के भण्डारण हेतु कूप , तडाग आदि निर्माण करने पर विभिन्न यज्ञों के फल की प्राप्ति का वर्णन ) , शिव ३.७.१८ ( शिव की जटाओं में आश्रित जल से जटोदक और स्वर्णोदक आदि नदियों के प्रादुर्भाव का कथन ) , स्कन्द १.२.४५.१, १.२.४६.१४७ ( बहूदक तीर्थ का विस्तृत माहात्म्य : नन्दभद्र वैश्य द्वारा कपिलेश्वर लिङ्ग की स्थापना , कुष्ठी बालक से संवाद आदि ), २.३.६.३६( सरस्वती के चारों वेदों का उदक? होने का उल्लेख ), २.४.३२.२५ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी को अपत्य रहित भीष्म हेतु उदक दान आदि करने का निर्देश ) , ५.२.६७.१८ ( केदारेश्वर तीर्थ में शिव द्वारा मन्त्रपूर्ण उदक निर्माण करने आदि का कथन ) , ५.२.८४.१६ ( परीक्षित राजा द्वारा उदक का दर्शन न कराने की शर्त पर मण्डूकराज आयु की कन्या को प्राप्त करना , उदक दर्शन पर कन्या अदृश्य होना आदि ), ५.३.२१.६ ( सरस्वती नदी के तोय द्वारा तीन दिन , यमुना द्वारा ७ दिन आदि में पवित्र करने का कथन ) , ७.१.३३४.४३ ( तप्तोदक तीर्थ माहात्म्य : शिव के तृतीय नेत्र की ज्वाला से निर्माण , विष्णु द्वारा श्रम नाश हेतु तप्तोदक कुण्ड में स्नान ) , ७.३.२१.१( पिण्डोदक तीर्थ माहात्म्य : पिण्डोदक ब्राह्मण पर सरस्वती की कृपा से तीर्थ की उत्पत्ति ) , हरिवंश २.७४.४० ( श्रीकृष्ण द्वारा बिल्वोदकेश्वर शिव की स्थापना व स्तुति ), महाभारत आदि १४९.१५ ( लाक्षागृह से सुरक्षित बचे हुए पाण्डवों को मृत समझ कर भीष्म का पाण्डवों के लिए उदक कर्म में प्रवृत्त होना , विदुर द्वारा भीष्म को रोकना ) , सभा ५०.२५ ( मय द्वारा बिन्दु सरोवर के रत्नों से निर्मित पुष्करिणी में दुर्योधन को उदक का भ्रम होना ) , वन १८७.११ ( तपोरत वैवस्वत मनु द्वारा उदक से क्षुद्र मत्स्य की प्राप्ति , मत्स्य द्वारा विशाल रूप धारण और जल प्रलय में मनु की रक्षा का वृत्तान्त ) , १८८.९० ( जल प्रलय की क्रमिक अवस्थाओं के पश्चात् मार्कण्डेय ऋषि द्वारा बाल मुकुन्द के दर्शन का वृत्तान्त ) , १९२.११ ( राजा परीक्षित द्वारा मण्डूकराज आयु की कन्या सुदर्शना को उदक दर्शन न कराने की शर्त पर प्राप्त करना , उदक दर्शन पर कन्या का अदृश्य होने आदि का वृत्तान्त ) , ३१३.४१ ( यक्ष द्वारा युधिष्ठिर को उदक पान से रोकना , युधिष्ठिर द्वारा यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देकर उदक पान करना आदि ) , ३१३.८५ ( आकाश के उदक होने का उल्लेख ) , शान्ति २३.४० ( पितरों को उदक प्रदान करने की चेष्टा पर लिखित के कटे हुए हाथों के पुन: प्रकट हो जाने की कथा ), ७४.२२(ब्राह्मण के लिए नित्योदकी होने का निर्देश), ३०१.६४(दुःख के उदक से पूर्ण कुण्ड का वर्णन ), ३४७.३ ( विष्णु द्वारा उदक्पूर्व में हयग्रीव अवतार धारण करने का उल्लेख ) , ३४७.३० (मधु - कैटभ असुरों द्वारा वेदों का हरण करके उदक्पूर्व में समुद्र में प्रवेश करने का उल्लेख ) , ३४७.५९ ( हयग्रीव अवतार द्वारा वेदों के उद्धार के पश्चात् स्वयं को समुद्र के उदक्पूर्व में स्थापित करने का उल्लेख ) , अनुशासन ९१.२६ ( श्राद्ध हेतु उदक आहरण के समय वरुण की स्तुति करने का निर्देश ), १०७.१३३ महाभारत के श्लोक में उदक व उदर्क का पाठ भेद ), द्र. उत्तंक , जल  Udaka

Comments on Udaka/water

Vedic view of Udaka ( by Dr. Tomar)

 

उदक्या गरुड १.१०५.४१ ( उदक्या से सम्पर्क पर शुद्धि विधान ), भविष्य ४.२०५.४६ ( उदक्या / रजस्वला स्त्री के दर्शन , स्पर्श , संभाषण का निषेध ), मार्कण्डेय ३५.३२ , ३५.३८ ( उदक्या स्त्री से स्पर्श या दर्शन पर स्नान आदि शोधन कर्म का विधान ) , स्कन्द १.२.४१.१५३ ( उदक्या स्त्री के दर्शन आदि का निषेध )  Udakyaa

 

उदङ्क स्कन्द ३.१.१६.१८( कक्षीवान - गुरु , कक्षीवान को विवाह हेतु उपाय कथन ), द्र. उत्तंक

 

उदधि ब्रह्माड १.२.१९.१३७ ( निरुक्ति ), द्र. समुद्र , सागर , सिन्धु

 

 

उदय अग्नि ११९.२० ( शाक द्वीप के ७ पर्वतों में से एक ) , कूर्म १.४९.३४ ( शाक द्वीप के ७ पर्वतों में से प्रथम ) , गरुड १.६२.१( सूर्य उदय की राशि से आरम्भ करके सूर्य द्वारा दिन व रात में ६ - ६ राशियों पर भ्रमण करने का कथन ) , देवीभागवत ८.१५.१८ ( मेरु के परित: चार दिशाओं में सूर्य के उदयास्त का कथन ),११.१६.९ ( उदय व अस्त के पश्चात् घटिका - त्रय तक सन्ध्या उपासना करने व उसके पश्चात् प्रायश्चित्त करने का निर्देश ), नारद १.५६.१७( उदय व अस्त पर सूर्य के शस्त्रों की भांति मेघों से आच्छादित होने के फल का कथन ) , २.४७.५० ( अगस्त्य द्वारा गया में शिला के वाम हस्त पर उदयाद्रि की स्थापना आदि का कथन ) , ब्रह्म १.२७.४४ ( उदित हुए सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने से सिद्धि प्राप्त होने का कथन ) , १.११३.५८ ( सूर्य के उदय व अस्त काल में शयन वर्जन का निर्देश ) , पद्म १.४५.६० ( उदय पर्वत की विशिष्ट संरचना का कथन ) , ६.२०१.२५ ( उदयस्थ पुत्र द्वारा पिता के यश में वृद्धि होने का उल्लेख ) , भविष्य १.२१४.२० ( सूर्योदय पर उदया नामक अंगुलि मुद्रा का स्वरूप कथन ) , भागवत २.३.१७ ( उदय व अस्त होते हुए सूर्य द्वारा पुरुषों की आयु हरण का उल्लेख ) , मत्स्य १२२.८  ( मेरु के परित: स्थित पर्वतों में से एक उदय गिरि का स्वरूप कथन ) , १२३.३० ( चन्द्रमा के उदय व अस्त होने के साथ समुद्र के जल की वृद्धि व क्षय होने का कथन ) , १२४.२० ( मेरु के परित: चार दिशाओं में स्थित इन्द्र आदि की पुरियों में सूर्य के उदय व अस्त होने का वर्णन ) , १२८.११( सूर्य उदय होने पर रात्रि की अग्नि की उष्मा व तेज के आंशिक रूप में सूर्य में प्रवेश करने का कथन ) , १६३.६९ ( उदय पर्वत की विशिष्ट संरचना का कथन ; हिरण्यकशिपु के क्रोध से कम्पित होने वाले पर्वतों में से एक ) , मार्कण्डेय ३१.५९ ( भानु के उदय व अस्त पर शयन का निषेध कथन ) , वराह ८१.२ ( चन्द्रोदय पर्वत पर नागों का वास ) , १७७.३८ ( उदयाचल पर सूर्य की आराधना का फल मथुरा में भी मिलने का वर्णन ) , वायु ४९.७७ ( शाक द्वीप में मेरु के परित: स्थित सात पर्वतों में से एक स्वर्णिम उदय पर्वत का उल्लेख ) , ४९.८४ ( उदय पर्वत(? ) पर उदय / उदक वर्ष की स्थिति का उल्लेख ) , ५०.९४( मेरु के परित: चार दिशाओं में स्थित इन्द्र आदि की पुरियों में सूर्य के उदय - अस्त का वर्णन ) , १०८.४३ / २.४६.४६ ( गया में अगस्त्य द्वारा शिला के वाम हस्त पर उदय गिरि को स्थापित करने का कथन ) , वा.रामायण ४.४०.५४ ( सीता अन्वेषण के संदर्भ में सुग्रीव द्वारा वानरों को उदयाचल प्रदेश व उसके परित: स्थित प्रदेशों की महिमा का वर्णन ), ६.२८.१२ ( हनुमान द्वारा उदित होते हुए सूर्य के भक्षण की चेष्टा का कथन ) , ६.८८.५ ( लक्ष्मण का हनुमान के पृष्ठ पर आरूढ होकर उदयाचल पर स्थित सूर्य के समान शोभा पाने का उल्लेख ) , विष्णु २.८.१३ ( विभिन्न दिशाओं में स्थित पुरियों में सूर्य के उदय - अस्त होने का वर्णन ) , विष्णुधर्मोत्तर १.८५.४२ ( उदय व अस्त काल में सूर्य के आयुध सदृश मेघों से आच्छादित होने पर अशुभ होने का कथन ) , १.८६.१४ ( उदय व अस्त होते हुए बृहस्पति, शुक्र व बुध ग्रहों द्वारा पीडा देने का उल्लेख ) , २.१२४.२१( उदित हुए तथा उदित होते हुए आदित्य को सात जलांजलि देने से मन के दुःख विनाश का कथन ) , शिव २.५.८.१० ( त्रिपुर वध हेतु निर्मित शिव के रथ में उदय पर्वत की कूबर रूप में स्थिति ) , ५.१८.७१ ( चन्द्रमा के उदय व अस्त से जल के वर्धन व क्षय का कथन ) , स्कन्द ३.१.५.१२४ ( उदय पर्वत पर राजा उदयन के जन्म की कथा ) , ३.१.३०.११७(अर्द्धोदय - महोदय तीर्थ के माहात्म्य का कथन) ३.१.५२.१०१(अर्द्धोदय काल का महत्त्व), ३.१.५२.११३(अर्द्धोदय में सेतु तीर्थ में स्नान का महत्त्व), ३.२.६.५१ ( उदय - अस्त आदि होते हुए सूर्य के दर्शन का निषेध ) , ४.१.२९.३० ( उदिताम्बर मार्गा : गंगा सहस्रनामों में से एक ) , ४.१.३८.४४ ( उदय आदि होते हुए सूर्य के दर्शन का निषेध )  , ५.१.३२.७४ ( सूर्य की स्तुति के संदर्भ में उदयाद्रि के नितम्ब रूप का उल्लेख ) , ६.१३५.६० ( पतिव्रता द्वारा माण्डव्य ऋषि से शप्त स्वपति के प्राणों की रक्षा के लिए सूर्योदय के निषेध की कथा ) , ७.१.२३७.३६ ( साम्ब द्वारा मुसल को जन्म देने पर उत्पातों के रूप में उदय व अस्त के समय सूर्य के कबन्धों से आवृत्त होने का उल्लेख ) ,७.२.१५.११(रैवतक गिरि पर उदय व अस्त के समय छाया रहित वृक्षों के महत्व का कथन ) , हरिवंश ३.३५.५ ( यज्ञ वराह द्वारा निर्मित उदय पर्वत की बाल सूर्य व वेदी से तुलना ; उदय पर्वत पर स्थित वृक्षों का स्वरूप कथन ) , लक्ष्मीनारायण १.५५६.४७( राजा हिरण्यतेज द्वारा नर्मदा का उदयाचल पर अवतरण कराने का उद्योग ), २.६०+ (उदयपुर के राजा उदय द्वारा आर्यायन ऋषि से कृष्ण नाम दीक्षा प्राप्ति , कृष्ण के विराट रूप के दर्शन , स्तुति , कृष्ण द्वारा अतिवृष्टि में रक्षा, मोक्ष ) , कथासरित् २.१.५५ ( सहस्रानीक - पत्नी मृगावती का पक्षी द्वारा हरण व उदय पर्वत पर त्याग ) , ३.४.२३५ ( उदय पर्वत का विद्याधरों से अनाक्रम्य होने का उल्लेख ) , १२.५.२३ ( उदयतुङ्ग : अहिच्छत्रा नगरी के राजा ; प्रतीहार - पुत्र विनीतमति का वृत्तान्त ) , १२.५.६६ ( उदयतुङ्ग - पुत्री उदयवती के विनीतमति से विवाह का वृत्तान्त ), महाभारत वनपर्व १०४.२ ( उदय व अस्त के समय सूर्य द्वारा कनकमय मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करने का उल्लेख ) , १०९.७९ ( युगान्त काल में उदय - अस्त के समय भानु के कबन्ध / राहु से ग्रस्त होने का उल्लेख ) , विराट २९.६ ( उपयुक्त काल आने पर पाण्डवों के अज्ञातवास से उदित होने का उल्लेख ) , उद्योग ९९.१० ( पाताल में नित्यप्रति चन्द्रमा के उदय होने तथा प्राणियों को अपने रश्मि रूपी अमृत से जीवित करने का उल्लेख ) , १०८.१६ (सूर्य द्वारा पूर्व दिशा में उदित होने पर कृतघ्नों ,मनुष्यों और असुरों का हनन करने का उल्लेख ) , १४३.२४ ( उदयास्त के समय शिवा /गीदडी द्वारा शब्द के पराभव का लक्षण होने का कथन ) , भीष्म २.२० ( उदयास्त के समय सूर्य का कबन्धों से घिरा होना भय सूचक होने का उल्लेख ) , ७.३ ( कुरुक्षेत्र में कौरव - पाण्डव युद्ध के आरम्भ में उदय के समय सूर्य के द्विधाभूत दिखाई पडने का उल्लेख ) , द्रोण २३.२९(उदयेन्दु इन्द्रप्रस्थ का अपर नाम), ३४.२१( श्वेत छत्र से सुशोभित दुर्योधन की उदय काल के सूर्य से उपमा ) , १८७.२ ( सूर्योदय होने पर पुन: कौरव - पाण्डव युद्ध आरम्भ होने का उल्लेख ) , कर्ण १२.२२ ( नाग / हस्ती पर बैठे भीमसेन की उदयाद्रि पर उदित भास्कर से उपमा ) , ६०.४० ( रण में श्वेत छत्र से विराजित कर्ण की चन्द्रमा से सुशोभित उदय पर्वत से उपमा ), शान्ति ३२८.३८/३३६.६२ ( सोम आदि ज्योतियों का उदय उदान / उद्वह वायु के कारण होने का उल्लेख ) , अनुशासन २३.२८ ( उदय से अस्त तथा अस्त से उदय होने में समर्थ व्यक्ति के ही केतन / पितृकार्य में उपयुक्त होने का उल्लेख ), द्र. अस्त ,नित्योदित, महोदय , शुभोदय Udaya

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