PURAANIC SUBJECT INDEX पुराण विषय अनुक्रमणिका (From vowel i to Udara) Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar I - Indu ( words like Ikshu/sugarcane, Ikshwaaku, Idaa, Indiraa, Indu etc.) Indra - Indra ( Indra) Indrakeela - Indradhwaja ( words like Indra, Indrajaala, Indrajit, Indradyumna, Indradhanusha/rainbow, Indradhwaja etc.) Indradhwaja - Indriya (Indradhwaja, Indraprastha, Indrasena, Indraagni, Indraani, Indriya etc. ) Indriya - Isha (Indriya/senses, Iraa, Iraavati, Ila, Ilaa, Ilvala etc.) Isha - Ishu (Isha, Isheekaa, Ishu/arrow etc.) Ishu - Eeshaana (Ishtakaa/brick, Ishtaapuurta, Eesha, Eeshaana etc. ) Eeshaana - Ugra ( Eeshaana, Eeshwara, U, Uktha, Ukhaa , Ugra etc. ) Ugra - Uchchhishta (Ugra, Ugrashravaa, Ugrasena, Uchchaihshrava, Uchchhista etc. ) Uchchhishta - Utkala (Uchchhishta/left-over, Ujjayini, Utathya, Utkacha, Utkala etc.) Utkala - Uttara (Utkala, Uttanka, Uttama, Uttara etc.) Uttara - Utthaana (Uttara, Uttarakuru, Uttaraayana, Uttaana, Uttaanapaada, Utthaana etc.) Utthaana - Utpaata (Utthaana/stand-up, Utpala/lotus, Utpaata etc.) Utpaata - Udaya ( Utsava/festival, Udaka/fluid, Udaya/rise etc.) Udaya - Udara (Udaya/rise, Udayana, Udayasingha, Udara/stomach etc.)
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Puraanic contexts of words like Indradhwaja, Indraprastha, Indrasena, Indraagni, Indraani, Indriya etc. are given here. इन्द्रनील गरुड १.७२( मणि : बल असुर के नेत्रों से उत्पत्ति, महिमा ), गर्ग ७.६.३०( माहिष्मती - राजा, प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करना ), १०.१४( इन्द्रनील का अनिरुद्ध - सेना से युद्ध व पराजय ), पद्म ६.६.२५( बल असुर की अक्षियों से इन्द्रनील मणि की उत्पत्ति का उल्लेख ) Indraneela
इन्द्रपद लक्ष्मीनारायण ४.२.९( राजा बदर के इन्द्रपद नामक विमान का कथन )
इन्द्रप्रतिम वायु ७०.८८/२.९.८८( वसिष्ठ व कपिञ्जली /घृताची - पुत्र, कुशीति उपनाम, वसु - पिता )
इन्द्रप्रस्थ पद्म ६.१९९ ( इन्द्र द्वारा खाण्डव वन में याग के पश्चात् याग स्थल का इन्द्रप्रस्थ नाम होना ), ६.२००( इन्द्रप्रस्थ क्षेत्र का माहात्म्य, शिवशर्मा व इन्द्र के अंश विष्णुशर्मा द्वारा स्नान ), ६.२०१( शिवशर्मा द्वारा निगमोद्बोध तीर्थ में स्नान से पुत्र प्राप्ति, निगमोद्बोध तीर्थ जल के पान से राक्षस को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का स्मरण, इन्द्रप्रस्थ तीर्थ में मरण से शरभ वैश्य को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति ), ६.२०५( इन्द्रप्रस्थ तीर्थ में अम्बुहस्ती राक्षस द्वारा पङ्क में फंसी गौ के उद्धार के प्रयास में जल में डूबने से मृत्यु पर मुक्ति, शरभ वैश्य का शिवशर्मा रूप में जन्म, शिवशर्मा द्वारा निगमोद्बोध तीर्थ में देह त्याग से मुक्ति ), ६.२०६( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्वर्ती द्वारका तीर्थ का माहात्म्य ), ६.२०७( विमल विप्र द्वारा निगमोद्बोध तीर्थ में स्नान से पुत्र वर की प्राप्ति ), ६.२०८( विमल विप्र द्वारा इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत द्वारका में स्नान से विष्णु भक्ति की प्राप्ति, द्वारका के जल से राक्षसियों का उद्धार ), ६.२०९+ ( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत कोशला तीर्थ का माहात्म्य : कोशला तीर्थ में अस्थि पतन से मुकुन्द द्विज व सर्प योनि प्राप्त नापित की मुक्ति इत्यादि ), ६.२१३+ ( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत मधुवन तीर्थ का माहात्म्य : विश्रान्ति तीर्थ का माहात्म्य ), ६.२१६( मधुवनस्थ बदरिकाश्रम का माहात्म्य ), ६.२१७( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत हरिद्वार का माहात्म्य ), ६.२१८+ ( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत पुष्कर का माहात्म्य : पुष्कर सेवन से भरत को विमान की प्राप्ति, पुण्डरीक की मुक्ति ), ६.२२०+ ( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्वर्ती प्रयाग तीर्थ का माहात्म्य : मोहिनी वेश्या का द्रविड देश के राजा की पत्नी बनना ), ६.२२२( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत काशी का माहात्म्य ; गोकर्ण तीर्थ का माहात्म्य; शिव काञ्ची का माहात्म्य; युधिष्ठिर द्वारा इन्द्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ करना ), ब्रह्माण्ड ३.४.१२.४४( भण्डासुर के भय से मुक्ति हेतु इन्द्र द्वारा पराशक्ति की आराधना का स्थान ) Indraprastha इन्द्रलोक वराह १४१.१०( बदरी तीर्थ के अन्तर्गत इन्द्रलोक तीर्थ का माहात्म्य ) इन्द्रवाह देवीभागवत ७.९.२८( इन्द्र के ककुद पर आरूढ होकरअसुरों से युद्ध के कारण ककुत्स्थ राजा का नाम ), लक्ष्मीनारायण ३.१५८.१( भूति द्वारा इन्द्रवाह मनु पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त ), द्र. ककुत्स्थ
इन्द्रसावर्णि ब्रह्मवैवर्त्त ४.४१.१११( चौदहवें मन्वन्तर में मनु, वंशानुकीर्तन ), भागवत ८.१३.३३( इन्द्रसावर्णि मनु के समय में सप्तर्षियों व अवतारों का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.१५८.१( भूति द्वारा इन्द्रसावर्णि मनु पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त ), द्र. मन्वन्तर Indrasaavarni
इन्द्रसेन पद्म ६.५८.५( माहिष्मती पुरी का राजा, इन्दिरा एकादशी व्रत से स्वर्ग प्राप्ति ), भागवत ५.२०.४( प्लक्ष द्वीप में सात मर्यादा पर्वतों में से एक ), ६.६.५( देवऋषभ - पुत्र, धर्म - पौत्र ), ८.२२.३३( राजा बलि का एक नाम ), ९.२.१९( कूर्च - पुत्र, वीतिहोत्र - पिता, वैवस्वत मनु/नरिष्यन्त वंश ), मत्स्य ५०.६( ब्रह्मिष्ठ - पुत्र, विन्ध्याश्व - पिता, मुद्गल/भद्राश्व वंश ), स्कन्द १.१.५.६४( अज्ञान में हर नाम उच्चटरण से इन्द्रसेन नृप का चण्ड नामक शिव गण बनना ), ३.१.३६.१८६(नल के पुत्र रूप में इन्द्रसेन का उल्लेख), ३.३.८.४०( नल व दमयन्ती - पुत्र, चित्राङ्गद - पिता, पुत्र की मृत्यु हो जाने की कल्पना में शत्रुओं द्वारा इन्द्रसेन का राज्य छीनना ), ६.३१.४४( सर्प दंश से मृत्यु पर इन्द्रसेन को प्रेत योनि की प्राप्ति, नाग तीर्थ में श्राद्ध से मुक्ति ), ७.३.३१( सुनन्दा - पति, पति की मृत्यु के मिथ्या समाचार से पत्नी का मरण, इन्द्रसेन द्वारा पत्नी विनाश पाप का प्रायश्चित्त ), लक्ष्मीनारायण १.२५८.४८( चन्द्रावती पुरी का राजा, इन्दिरा एकादशी व्रत के पुण्य दान से पिता चन्द्रसेन का उद्धार ), १.२६०.७८( चन्द्रसेन - पुत्र शशिसेन का उपनाम, रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से स्वर्ग लोक की प्राप्ति ) Indrasena इन्द्रसेना गरुड ३.१६.९५(दमयन्ती का अपर नाम), मार्कण्डेय १३३.२/१३०.२( बभ्रु - पुत्री, नरिष्यन्त - पत्नी, दम - माता ), १३४.३७/१३१.३७( पति नरिष्यन्त की मृत्यु पर इन्द्रसेना द्वारा अग्नि में प्रवेश ), वायु ९९.२००/२.३७.१९५( ब्रह्मिष्ठ - पत्नी, बध्यश्व - माता ), हरिवंश २.६१.७( नारायण - पुत्री ), महाभारत विराट २१.११( नारायण - पुत्री, वृद्ध मुद्गल ऋषि की पत्नी ), कथासरित् ९.६.२८६( नल व दमयन्ती - पुत्री, चन्द्रसेन - भगिनी ) Indrasenaa इन्द्राग्नि नारद १.८९.१४३( ललिता देवी के सहस्र नामों में से एक ), मत्स्य १७.३८( पितरों के श्राद्ध में पठित सूक्तों में इन्द्राग्नि सूक्त का उल्लेख ), वामन ८७.२९( केशव के वदन से इन्द्राग्नि की उत्पत्ति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.४( १२ खण्डयुगेश्वरों में से एक ), १.८३.१७( विशाखा नक्षत्र के इन्द्राग्नि देवता का उल्लेख ), १.१०२.१७( विशाखा नक्षत्र के लिए इन्द्राग्नी रोचना दिवं इति होम मन्त्र ( ऋ. ३.१२.९) का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.१०( इन्द्राग्नि लोक वर्णन के अन्तर्गत चन्द्रमा की ज्योतिष्मती पुरी, इन्द्र की अमरावती पुरी तथा अग्नि की अर्चिष्मती पुरी प्राप्ति के उपायों का वर्णन; विश्वानर द्विज द्वारा वीरेश्वर शिव की आराधना से वैश्वानर पुत्र प्राप्ति की कथा ), महाभारत उद्योग १५.३१( अग्नि द्वारा जल में छिपे हुए इन्द्र का पता लगाना ), १६.३२( इन्द्र द्वारा अग्नि को यज्ञ में इन्द्राग्नि नामक भाग प्रदान करने का उल्लेख ), द्रोण १०१.२४( रण में द्रोण व कृतवर्मा की अस्त्र वर्षा से मुक्त हुए कृष्ण व अर्जुन की इन्द्राग्नि सदृश शोभा का उल्लेख ) Indraagni/Indragni
इन्द्राणी अग्नि १४६.१९( इन्द्राणी देवी की ८ शक्तियों के नाम ), देवीभागवत ५.२८.२३(युद्ध में इन्द्राणी शक्ति का स्वरूप), ५.२८.५३( शुम्भ असुर से युद्ध में इन्द्राणी मातृशक्ति का ऐरावत गज पर आरूढ होकर आगमन तथा असुरों का संहार ), नारद १.५६.४१०( कन्या विवाह के समय शची से भाग्य, पुत्र आदि देने की प्रार्थना ), ब्रह्म २.५९.४४( महाशनि असुर द्वारा इन्द्र का बन्धन व विमोचन, इन्द्र व इन्द्राणी द्वारा गौतमी तट पर शिव की आराधना से वृषाकपि का प्राकट्य, वृषाकपि द्वारा महाशनि का वध, इन्द्र की वृषाकपि से प्रगाढ मैत्री पर शची को आपत्ति, इन्द्र द्वारा शची को आश्वासन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४५.३२( शिव - पार्वती विवाह में शची द्वारा शिव से हास्य ), ४.५९+ ( नहुष की शची पर आसक्ति, शची द्वारा प्रबोधन, शची द्वारा बृहस्पति की सहायता से नहुष का स्वर्ग से पतन कराना आदि ), भविष्य ३.४.३.५६( इन्द्राणी मातृका का वेणु व कन्यावती की पुत्री सिन्दूरा के रूप में जन्म ), भागवत ६.१८.७( पौलोमी शची के तीन पुत्रों जयन्त, ऋषभ व मीढुष का उल्लेख ), मत्स्य ६९.६०( कल्याणी व्रत के प्रभाव से वैश्य कुलोत्पन्न पौलोमी के इन्द्र - पत्नी होने का उल्लेख ), २६१.३१( इन्द्राणी मातृका की प्रतिमा के स्वरूप का कथन ), २८६.७( इन्द्राणी देवी का स्वरूप ), मार्कण्डेय ५.२५( शची का पाण्डव - पत्नी द्रौपदी के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), वराह २७.३४( इन्द्राणी मातृका : मत्सर का रूप ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४.६( संक्षिप्त नहुषोपाख्यान ), २.१३२.८( ऐन्द्री शान्ति के रुक्म वर्ण का उल्लेख ), ३.५०.२( शक्र व शची के स्वरूप का कथन ), स्कन्द १.१.१५.७५( नहुष की इन्द्राणी/शची पर आसक्ति, नहुष का सप्तर्षियों द्वारा वाहित शिबिका पर आरूढ होकर शची से मिलन हेतु गमन आदि ), १.२.१३.१६७( शतरुद्रिय प्रसंग में शची द्वारा बभ्रुकेश नाम से लवण लिङ्ग की आराधना का उल्लेख ), २.१.८.६( श्रीनिवास व कमला के विवाह में इन्द्राणी द्वारा श्रीहरि पर छत्र धारण करना ), ५.३.४६.३३( अन्धकासुर द्वारा शक्र से शची को छीन कर ले जाना, विष्णु द्वारा अन्धक वध का उद्योग ), ५.३.१९८.८९( देवलोक में उमा की इन्द्राणी नाम से स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश १.२०.१३३( शची के पुलोमा दानव की पुत्री होने का संकेत ), २.७५.४२( पारिजात हरण प्रसंग में पौलोमी शची द्वारा कृष्ण - पत्नियों के लिए दिव्य उपहार देना ), लक्ष्मीनारायण १.३७४.१(शची का जन्मान्तरों में १४ इन्द्रों की पत्नी होने का उल्लेख, नहुषोपाख्यान ), १.४७३.५२( पौलोमी शची द्वारा मनोरथ तृतीया व्रत से इन्द्र की पति रूप में प्राप्ति ), द्र. ऐन्द्री Indraanee/ indrani इन्द्रिय कूर्म २.११.३८( विषयों में विचरण करती हुई इन्द्रियों के निग्रह का प्रत्याहार नाम ), २.४६.१७( प्रलय के क्रमिक वर्णन में इन्द्रियों के तैजस अहंकार में क्षय होने का कथन ), नारद १.४२.६५( वृक्ष आदि में पांच इन्द्रियों के होने के प्रमाणों का कथन ), पद्म २.७+ ( आत्मा द्वारा ज्ञान, ध्यान का संग त्याग पञ्चेन्द्रियों से मैत्री करने पर दु: की प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८६.९७( मर्त्य स्तर पर इन्द्रियों के सुरगण होने का उल्लेख ), भविष्य १.१४५.९( प्राण निग्रह से इन्द्रिय कृत दोषों के दहन का उल्लेख ), ३.४.६.३२( इन्द्रिय, मन व बुद्धि का अव्यक्त प्रकृति के १२ अङ्गों के रूप में उल्लेख; समाधि द्वारा अव्यक्त से परे सूक्ष्म ब्रह्म की प्राप्ति तथा अव्यक्त को व्यक्त करने का निर्देश ), ३.४.२५.१६१( १० इन्द्रिय ग्रामों के प्रतीकों के रूप में गोकुल आदि १० ग्रामों का उल्लेख आदि ), भागवत २.२.२२( स्वर्ग लोक में विहार की इच्छा होने पर मन व इन्द्रियों सहित शरीर से निष्क्रमण का निर्देश ), २.५.२४( ईश्वर द्वारा स्वयं को व्यक्त करने के प्रक्रम में वैकारिक अहंकार से मन व इन्द्रियों के १० अधिष्ठातृ देवों, तैजस अहंकार से ५ ज्ञानेन्द्रियों व ५ कर्मेन्द्रियों तथा तामस अहंकार से पांच महाभूतों की उत्पत्ति का वर्णन ), २.१०.१७( वही), ३.२६.१३( काल पुरुष के २५ तत्त्वोंके अन्तर्गत १० इन्द्रियों की गणना ), ४.१८.१४( ऋषियों द्वारा बृहस्पति को वत्स बनाकर पृथिवी रूपी गौ से इन्द्रियों रूपी पात्र में छन्दोमय दुग्ध का दोहन ), ४.२२.३०( इन्द्रियों द्वारा विषयों की ओर आकृष्ट होने के दोषों का वर्णन ), ४.२३.१७( पृथु द्वारा शरीर त्याग के संदर्भ में मन को इन्द्रियों में तथा इन्द्रियों को उनके कारण रूप तन्मात्राओं आदि में लीन करने का वर्णन ), ५.१४.१( ६ इन्द्रियों की दस्यु संज्ञा ), ७.१०.८( कामना के उदय होने से इन्द्रियों, मन, प्राण आदि के नष्ट होने का उल्लेख ), ९.१८.१( देह में इन्द्रियों की भांति नहुष के ६ पुत्रों यति, ययाति आदि का उल्लेख ), १०.६.२४( हृषीकेश से इन्द्रियों की रक्षा की प्रार्थना ), ११.३.१५( प्रलय के क्रम वर्णन में महाभूतों का तामस अहंकार में, इन्द्रियों व बुद्धि का राजस अहंकार में तथा मन का सात्त्विक अहंकार में लीन होने का वर्णन ), ११.८.२०( निराहार द्वारा इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेने पर भी रसनेन्द्रिय के अविजित रहने का कथन ), ११.१४.४२( मन द्वारा इन्द्रियों का उनके अर्थों से कर्षण करके बुद्धि को सारथी आदि बनाने का कथन ), ११.२४.२४( प्रलय के क्रम में इन्द्रियों का अपनी योनियों में लीन होने का कथन ), १२.११.१६( विष्णु के आयुधों के वर्णन के संदर्भ में इन्द्रियों का बाणों के रूप में, कर्म का तरकस व काल रूप धनुष का उल्लेख ), मत्स्य ३.१८( मन सहित एकादश इन्द्रियों का कथन ), वायु ६२.३९( चतुर्थ तामस मन्वन्तर में देव गण ), विष्णु १.२२.७३( विष्णु के आयुध शर के इन्द्रियों का प्रतीक होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४०.१६( पुरुष के आधारभूत २६ तत्त्वोंके अन्तर्गत श्रोत्र, चक्षु आदि ५ बुद्धीन्द्रियों व शब्द, रूप आदि ५ कर्मेन्द्रियों की गणना ), स्कन्द ३.१.४९.७७(यक्षों को इन्द्रिय अराति बाधा), ५.२.६४.१७( राजा पशुपाल द्वारा ५ बुद्धीन्द्रियों व ५ कर्मेन्द्रियों के हनन का प्रयत्न करने का वृत्तान्त ), ५.३.५१.३४( इन्द्रिय निग्रह के आठ पुष्पों में से एक होने का उल्लेख ), ५.३.१३९.१०( इन्द्रिय ग्राम के निरोध से कुरुक्षेत्र आदि तीर्थों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.३.१५८.१७( इन्द्रिय ग्राम के संदर्भ में सार्वत्रिक श्लोक ), ६.२६३.१४(पांच इन्द्रियों वाले पशुओं को मारने का निर्देश ), योगवासिष्ठ ५.८२+ ( वीतहव्य मुनि द्वारा इन्द्रियों को प्रबोधन/अनुशासन ), ५.८६( वीतहव्य मुनि द्वारा समाधि प्राप्त करने से पूर्व इन्द्रिय वर्ग के निराकरण का वर्णन ), ६.१.५१( इन्द्रियों के अर्थों के मिथ्यात्व का विचार ), ६.२.६( विद्याधर द्वारा इन्द्रियों की निन्दा ), ६.२.१६३( इन्द्रिय जय का उपाय ), महाभारत वन २११.१२( इन्द्रियों के संदर्भ में पृथिवी, उदक आदि पांच महाभूतों के शब्द, स्पर्श आदि गुणों का वर्णन तथा इन्द्रियों द्वारा इन गुणों को सम्यक् प्रकार से धारण करने का निर्देश), उद्योग ३४.५९( इन्द्रिय रूपी अश्वों को आत्मा द्वारा नियन्त्रित करने का निर्देश आदि ), ६९.१८( इन्द्रियों की भोग कामनाओं के त्याग का निर्देश आदि ), १२९.२६( इन्द्रियों को नियन्त्रित करने की प्रशंसा ), भीष्म २७.४१( इन्द्रियों पर नियन्त्रण करके इन्द्रियों को मोहने वाले काम का नाश करने का निर्देश ), ३४.२२( कृष्ण का स्वयं को इन्द्रियों में मन कहना ), शल्य २२.३६( कृपाचार्य के पांच द्रौपदी - पुत्रों से युद्ध की देहधारी जीवात्मा के पांच इन्द्रियों से युद्ध से तुलना करना ), शान्ति २१३.२०( रजोगुण/राग से इन्द्रियों की उत्पत्ति व लय का कथन ), २१४.२३( इन्द्रिय शब्द की निरुक्ति का कथन ), २१६.६( इन्द्रियों के थक जाने पर तथा मन के लीन न होने के कारण स्वप्न आने का कथन ), २१९.१०( श्रवण, स्पर्शन, जिह्वा आदि ५ ज्ञानेन्द्रियों व हस्त, पाद आदि ५ कर्मेन्द्रियों से विषयों का विसर्जन करने का निर्देश ), २३९.१०( कर्ण, त्वचा आदि पांच ज्ञानेन्द्रियों के अर्थों/विषयों शब्द, स्पर्श आदि का कथन ), २४६.६( मन सहित इन्द्रियों को अन्तरात्मा में लीन करने पर अमृत पद प्राप्ति का उल्लेख ), २४७.९( इन्द्रियों व उनके अर्थों के मूल महाभूतों/पृथिवी आदि का कथन; सतोगुण आदि का विवेचन ), २४८.२( इन्द्रियों से परे अर्थ, अर्थ से परे मन, मन से परे बुद्धि और बुद्धि से परे आत्मा के होने का उल्लेख ; इन्द्रियों के साथ मन और बुद्धि का संयोग होने पर ही इन्द्रियों द्वारा विषयों का ग्रहण होने का वर्णन ), २७५.११( प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय के पृथक् - पृथक् कार्यों का वर्णन ), ३०१.८६( स्वप्न में आत्मा द्वारा इन्द्रियों की सहायता से सूक्ष्म विषयों के भोग का वर्णन ), ३११.१६( इन्द्रियों में मन की प्रधानता का वर्णन : मन के सहयोग न देने पर इन्द्रियों का निरर्थक होना ), ३१६.१३( समाधि प्राप्ति के प्रक्रम में इन्द्रियों को मन में तथा मन को अहंकार में विलीन करने आदि का वर्णन ), ३२९.४९( इन्द्रियों से ग्रहण होने वाले विषयों की व्यक्त तथा न होने वालों की अव्यक्त संज्ञा का उल्लेख ; इन्द्रियों के नियन्त्रण से तृप्ति प्राप्त होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक २२.२( घ्राण, चक्षु आदि ५ इन्द्रियों, मन व बुद्धि सहित ७ होताओं का परस्पर संवाद : प्रत्येक होता की प्रधानता का वर्णन ), २७.१३( ५ इन्द्रियों के समिधा होने का उल्लेख ), ३०.७( अलर्क द्वारा मन, घ्राण, जिह्वा आदि इन्द्रियों रूपी शत्रुओं पर बाणों का प्रहार, इन्द्रियों का बाणों से अप्रभावित रहना, ध्यान योग के एक बाण द्वारा इन्द्रियों का विद्ध होना ), ४२.१८( इन्द्रियों का आकाश आदि महाभूतों के अध्यात्म के रूप में वर्णन ; इन्द्रिय निरोध से महानात्मा के प्रकाशित होने का उल्लेख आदि ), योगवासिष्ठ ६.१.८०.७६( आकाशवृक्ष पर इन्द्रिय पुष्प का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.५०( जीवरथ में इन्द्रिय वाहन बनाने का निर्देश ), २.२५५.४०( , ३.१७५.४२( अलर्क द्वारा प्रयुक्त बाणों से इन्द्रियों का अप्रभावित रहना, श्रीहरि द्वारा प्रदत्त बाणों से इन्द्रियों का निग्रह ) Indriya
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