पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Pitaa to Puurnabhadra ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
Puraanic contexts of words like Pura / residence, Puranjana, Puranjaya, Purandara, Puraana, Pureesha etc. are given here.
पुन्नाग
पद्म
६.१८४.१८( पुन्नागकानन में गीता के दशमअध्याय का माहात्म्य -
कदाचिदासं कैलासं पार्श्वे पुन्नागकानने।
रणत्खेचरसुश्रोणि पूर्णस्तबककानने॥),
भविष्य
४.७५.३४( प्रेत द्वारा पुन्नाग वृक्ष से प्राप्त जलधारा
से अतिथि को तृप्त करना
-
पुन्नागवृक्षात्करको वारिधारामनोरमः ।। दध्योदनसमायुक्तो वर्धमानेन संयुतः ।।
),
स्कन्द
२.२.४४.५( माघ पूर्णिमा?
को विष्णु की पुन्नाग पुष्प द्वारा अर्चना का निर्देश
-
उत्पलं चैव वासंती कुंदं पुन्नागकं तथा।। एतानि क्रमशो दद्यात्कुसुमानि हरेर्मुदा
।।
),
६.२५२.२१( चातुर्मास में यक्षों की पुन्नाग वृक्ष में स्थिति का उल्लेख
-
गन्धर्वा मलयं वृक्षमगुरुं गणनायकः ॥ समुद्रा वेतसं वृक्षं यक्षा पुन्नागमेव च ॥
),
लक्ष्मीनारायण
१.४४१.८३( वृक्ष,
यक्षों का रूप
-
गन्धर्वा मलयवृक्षा अगुरुश्च गणाधिपः ।
पुर कूर्म १.४६( ब्रह्मा की पुरी के परित: अग्नि आदि की पुरी ), भविष्य ४.१४७( काञ्चन पुरी व्रत, पाप शमन हेतु काञ्चन पुरी व्रत, विष्णु व लक्ष्मी के पुर का निर्माण ), लिङ्ग १.७०.१७( पुर की निरुक्ति : अनुग्रह द्वारा पूरण आदि ), वराह ५२.५( पशुपाल राजा के पुत्र बने पापों द्वारा सृष्ट नवद्वार, एकस्तम्भ, चतुष्पथ वाले पुर का कथन ), वामन ७१.१५( बाणासुर - पुत्र, इन्द्र द्वारा वध ), वायु ८.११४( प्रशस्त - अप्रशस्त पुर के लक्षणों का कथन ), महाभारत शान्ति २५४.९( शरीर रूपी पुर में मन व बुद्धि के कार्यों का कथन ), द्र. तेज:पुर, त्रिपुर, हरपुर pura
पुरजित् ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८३( भण्डासुर के पुत्रों व सेनापतियों में से एक ), ३.४.२६.४८( पुराजित् : भण्डासुर के पुत्र सेनापतियों में से एक ), भागवत १०.६१.११( पुरुजित् : जाम्बवती व कृष्ण के पुत्रों में से एक ) purajit
पुरञ्जन ब्रह्माण्ड १.२.२०.२७( पुरञ्जन दैत्य के पुर की तृतीय तल/पाताल में स्थिति का उल्लेख ), भागवत ४.२५+ ( नारद प्रोक्त पुरञ्जन राजा का आख्यान : पुरञ्जन के नगर का वर्णन, नगर पर चण्डवेग का आक्रमण, पुरञ्जन द्वारा स्त्री योनि की प्राप्ति, अविज्ञात के उपदेश से पुरञ्जन की मुक्ति ), ४.२८( कालकन्या का आलिङ्गन करने से पुरञ्जन का विनाश ) puranjana
पुरञ्जय देवीभागवत ७.९.२८( शशाद - पुत्र द्वारा पुरञ्जय व ककुत्स्थ नाम प्राप्ति के कारण का कथन, वंश का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१५( सृञ्जय - पुत्र, महामना - पिता, प्रशंसा ), भागवत ९.६.१२( विकुक्षि - पुत्र, इन्द्रवाह और ककुत्स्थ उपनाम, दैत्यों से युद्ध के लिए इन्द्र को वाहन बनाना ), १२.१.२( मन्त्री शुनक द्वारा राजा पुरञ्जय की हत्या करने का उल्लेख, बृहद्रथ वंश का अन्तिम नृप ), १२.१.३६( मागधों के राजा विश्वस्फूर्जि पुरञ्जय द्वारा अब्रह्म/शूद्र प्रजा को प्रतिष्ठित करने का कथन ), मत्स्य ४८.१२( सञ्जय - पुत्र, जनमेजय - पिता, अनु वंश ), ५०.८४( मेधावी - पुत्र, उर्व - पिता, अधिसोमकृष्ण वंश ), वायु ९९.३६३/२.३७.३६०( शेषनाग - पुत्र स्वरपुरञ्जय भोगी नृप का उल्लेख ), विष्णु ४.२.२०( शशाद/विकुक्षि - पुत्र, ककुत्स्थ नाम प्राप्ति की कथा ), ४.१८.४( सृञ्जय - पुत्र, जनमेजय - पिता, अनु वंश ), ४.१९.५७( सुशान्ति - पुत्र, ऋक्ष - पिता, अजमीढ वंश ), ४.२४.५६( विन्ध्यशक्ति - पुत्र, रामचन्द्र - पिता, भविष्य के नृपों में से एक ), स्कन्द ४.१.३९.३५( परपुरञ्जय : राजा दिवोदास का नाम ), लक्ष्मीनारायण ४.९२.६२( वर्धमान नगर के राजा पुरञ्जय द्वारा स्वप्न में नरक यातनाओं का भोग व कृष्ण की शरण से मुक्ति का वृत्तान्त puranjaya
पुरन्दर गरुड ३.२८.१७(१४ इन्द्रों में सप्तम, निरुक्ति), ३.२८.२२(वालि रूप में अवतरण), ब्रह्माण्ड १.२.३६.२०५( देवों द्वारा पुरन्दर के नेतृत्व में पृथ्वी दोहन का उल्लेख ), भागवत ८.१३.४( वैवस्वत मन्वन्तर के देवों के गण के पुरन्दर नामक इन्द्र का उल्लेख ), ९.८.८( पुरन्दर द्वारा सगर के यज्ञीय अश्व के हरण का उल्लेख ), १०.७७.३६( पुरन्दर द्वारा वज्र से वृद्वा के वध का उल्लेख ), १२.८.१५( सप्तम मन्वन्तर में पुरन्दर द्वारा मार्कण्डेय की तपस्या में विघ्न ), मत्स्य २५२.२( वास्तु शास्त्र के १८ उपदेशकों में से एक ), वायु ६४.७( सहस्राक्ष पुरन्दरों के भूत व भव्य के स्वामी होने का उल्लेख ), ६७.१०२( पुरन्दर द्वारा दिति के गर्भ के छेदन का उल्लेख ), विष्णु ३.१.३१( सप्तम मन्वन्तर में इन्द्र के पुरन्दर नाम का उल्लेख ), ५.२१.१६( पुरन्दर द्वारा सुधर्मा सभा यादवों हेतु देने का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर २.१९.१( अभिषेक दिवस पर पौरन्दरी शान्ति विधि ), स्कन्द ३.१.२३.३२( गन्धमादन पर पुरन्दर के यज्ञ के ऋत्विजों के नाम, यज्ञ में सविता के छिन्नपाणि होने का वृत्तान्त ), द्र मन्वन्तर purandara
पुरश्चरण स्कन्द ६.१६२.१३( पुरश्चरण सप्तमी व्रत की विधि व माहात्म्य : राजा पुष्प के पापों का नाश, मार्कण्डेय - रोहिताश्व संवाद ) purashcharana
पुराकल्प वायु ५९.१३७/१.५९.११२( पुराकल्प शब्द की निरुक्ति व व्याख्या )
पुराण अग्नि २७१.१६( आग्नेय पुराण की महिमा का कथन ), २७२.१( पुराणों की श्लोक संख्या तथा विभिन्न मासों की पूर्णिमाओं में दक्षिणा सहित देय पुराणों का कथन ), ३८३( अग्नि पुराण का माहात्म्य ), कूर्म २.४६.६८( कूर्म पुराण की विषय अनुक्रमणिका व फलश्रुति ), गणेश २.१.५५( गणेश पुराण की फलश्रुति ), गरुड १.२+ ( गरुड पुराण का माहात्म्य ), १.२१५.१५( पुराणों व उपपुराणों के नाम ), ३.१.४३(पुराणों का सात्त्विक, राजस, तामस गुणों के अनुसार विभाजन), ३.१.५७(उपपुराणों का सात्त्विक, राजस आदि गुणों के अनुसार विभाजन), देवीभागवत ०.१( देवीभागवत पुराण का महत्त्व ), ०.२.४०( पुत्र प्राप्ति हेतु देवीभागवत पुराण श्रवण का महत्त्व, वसुदेव द्वारा देवीभागवत पुराण श्रवण से कृष्ण का जाम्बवान् को जीतकर गुफा से बाहर आना ), ०.३.५१( देवीभागवत पुराण श्रवण से सुद्युम्न के स्त्री से पुरुष होने की कथा ), ०.४.७१( देवीभागवत पुराण श्रवण से दुर्दम व रेवती से रैवत मनु पुत्र के जन्म का वृत्तान्त ), ०.५( देवीभागवत पुराण श्रवण की विधि ), १.१.१५( पुराणों में भागवत पुराण की प्रशंसा ), १.२.२१( पुराणों के सर्ग, प्रतिसर्ग आदि लक्षणों की व्याख्या ), १.३.२( पुराणों के नाम व श्लोक संख्या, उपपुराणों के नाम ), १.१५.५२+ ( देवी भागवत पुराण : आधे श्लोक सर्वं खल्विदं - - -की व्याख्या ), १२.१३( देवीभागवत पुराण का माहात्म्य ), नारद १.१( नारद पुराण के श्रवण का माहात्म्य ), १.९२++ ( १८ पुराणों की विषय अनुक्रमणिका व फलश्रुति, पुराण दान का फल ), १.१२५( नारद पुराण का माहात्म्य व फलश्रुति ), २.२४.१६( रुक्माङ्गद द्वारा वेद व स्मृति के सापेक्ष पुराण की प्रशंसा ), २.८२( नारद पुराण की फलश्रुति ), पद्म ३.६२.२( पुराणों का शरीर के अङ्गों में विन्यास ), ४.२५.२७( पुराण श्रवण का महत्त्व, पुराण वाचक के सम्मान की विधि ), ५.१०४.६( राम को पुराण कथा सुनाने के लिए शम्भु विप्र का हिमावान् पर्वत से आगमन, पुराण द्वारा शकुन निर्वचन की विधि का वर्णन ), ५.११३.१४( अङ्गिरा द्वारा पुराण श्रवण के माहात्म्य तथा विधि का वर्णन ), ५.११४.४०२( पुराण वक्ता के सब ब्राह्मणों से श्रेष्ठ होने का उल्लेख, पुराण वक्ता को गुरु मानने से पापों के नाश का कथन ), ५.११४.४०८( दुष्ट चरित्र वाले गौतम विप्र का पापों के प्रायश्चित्त के संदर्भ में पौराणिक से वार्तालाप ), ५.११५.२१( पुराण श्रवण हेतु उपयुक्त काल व विधि का वर्णन, पुराण वक्ता के सम्मान की विधि ), ५.११५.९४( उपपुराणों के नाम ), ६.२७.४७( पात्रों में सर्वश्रेष्ठ पुराणवित् की प्रशंसा ), ६.२८.२५( पुराण पठन के महत्त्व के संदर्भ में धरापाल राजा का वृत्तान्त ), ६.१९४.५५( कलियुग में अन्य ग्रन्थों की अपेक्षा भागवत पुराण की महिमा के संदर्भ में भागवत श्रवण से भक्ति, ज्ञान, वैराग्य के जाग्रत होने का कथन ), ६.१९८.१( भागवत पुराण सप्ताह श्रवण विधि व महत्त्व ), ६.२३६.१३( पुराणों के सात्त्विक , राजस आदि विभाग ), ब्रह्माण्ड १.१.१.३७( पुराणों के ५ लक्षण ), ३.४.४.४३( ब्रह्माण्ड पुराण का कथनानुकथन ), भविष्य १.१.५१( शूद्र - प्रमुख ४ वर्णों के लिए पुराणों की रचना का कथन ), १.१.६१( १८ पुराणों के नाम, भविष्य पुराण के अन्तर्गत वर्णित विषयों की सूची, भविष्य पुराण के वक्ता - श्रोताओं के नाम ), १.२.१( पुराणों के सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर, वंशानुचरित नामक ५ लक्षणों तथा ब्राह्म, वैष्णव, शैव, त्वाष्ट} व प्रतिसर्ग नामक ५ पर्वों का कथन ; ५ लक्षणों का वर्णन ), १.२.५६( ब्रह्मा के पञ्चम मुख से १८ पुराणों व इतिहास आदि की सृष्टि का उल्लेख ), १.२१६.४३( पुराण श्रवण की विधि, पुराण रूपी पुस्तक का देव स्वरूप, पुराण वाचक व पुराण श्रोता के लक्षणों का वर्णन ), २.१.१.८( भविष्य पुराण के मध्यम पर्व के लक्षणों का कथन ), २.१.७( पुराण श्रवण की विधि व पुराणों के वक्ता ), ३.३.२८.९( १८ पुराणों व उनके वक्ताओं के नाम ), ३.४.४.४३( ब्रह्माण्ड पुराण के ४ पादों का कथन, पुराण का महत्त्व व वक्ता - श्रोता परम्परा ) भागवत २.१०( भागवत पुराण के १० लक्षण ), १२.७( पुराणों के आचार्य व पुराण के लक्षण ), १२.१३( पुराणों में श्लोक संख्या, भागवत पुराण की महिमा ), मत्स्य ३.३( तपोरत ब्रह्मा के मुख से विनि:सृत प्रथम शास्त्र ), ५३.१( ब्रह्मा के मुख से वेदों से पूर्व निर्गत पुराणों की श्लोक संख्या, विभिन्न मासों में विभिन्न पुराणों के दान तथा उसके फल का वर्णन ), २९०.१५( कल्प अनुसार पुराणों के सात्विक, राजस आदि भेद, पद्म व ब्रह्म पुराणों की महिमा आदि ), मार्कण्डेय १३७.७/१३४.७( १८ पुराणों के नाम, पुराणों के ५ लक्षणों का कथन ), लिङ्ग १.३९.६१( पुराणों के नाम तथा कालभेद से पुराणों के भेद हो जाने का कथन ; लिङ्ग पुराण के ११ भेदों का उल्लेख ), वराह ६६ ( नारद पुराणार्थ सूचक नामक अध्याय में पाञ्चरात्र विधान की प्रशंसा ), ११२.६७( वराह पुराण की श्रवणानुश्रवण परम्परा, १८ पुराणों के नाम ), २१७( वराह पुराण की फलश्रुति ), वायु १०३.५५/२.४१.५८( वायु पुराण श्रवणानुश्रवण परम्परा का वर्णन ), १०४.२/२.४२.२( पुराणों की श्लोक संख्या का कथन ), विष्णु ३.६.१५( पुराणों के नाम ), ६.८.१२( विष्णु पुराण के अन्तर्वर्ती विषयों का कथन, फलश्रुति, श्रवणानुश्रवण शिष्य परम्परा ), शिव १.२( शिव पुराण ), ५.१३.३( पुराणज्ञ की प्रशंसा, पुराण श्रवण का महत्त्व ), ५.१३.४१( पुराणों की संख्या २६ होने का उल्लेख ), ७.१.१.२५( १८ विद्याओं में से एक, ब्रह्मा के मुख से पुराण निर्गत होने के पश्चात् वेदों की सृष्टि का उल्लेख , वेदाध्ययन में पुराणों के महत्त्व का कथन, १८ पुराणों के नाम, शिव पुराण के अन्तर्गत विभिन्न संहिताओं का कथन ), स्कन्द २.१.२७.२५( पुराण श्रवण विधि ), २.२.४९.५( पुराण श्रवण की विधि ), २.५.१६.२९( भागवत पुराण का माहात्म्य ), ३.३.२२( पुराण श्रवण का माहात्म्य, विदुर ब्राह्मण व बिन्दुला पत्नी का आख्यान ), ४.१.२.९७(पुराण की हृदय से उपमा), ४.१.३३.१३२( पुराणेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : १८ विद्याओं की प्राप्ति ), ५.३.१.१६( श्रुति, स्मृति व पुराणों के लोचनत्रय होने का कथन ; पुराणों के वेदों की आत्मा होने आदि का कथन ; ब्रह्मा के मुख से पहले पुराणों तथा पश्चात् वेदों के उत्पन्न होने का कथन ; १८ पुराणों तथा उपपुराणों का वर्णन ), ५.३.१.२२( पुराणों के नाम, श्लोक संख्या, उपपुराणों के नाम ), ७.१.२( पुराणों के नाम, श्लोक संख्या, उपपुराणों के नाम ), हरिवंश ३.१३२.७१( हरिवंश पुराण के श्रवण का फल तथा श्रवण काल में दान योग्य द्रव्यों का कथन ), ३.१३४( हरिवंश पुराण में वर्णित वृत्तान्तों का संग्रह ), ३.१३५( हरिवंश पुराण के श्रवण का फल, देय दक्षिणा का वर्णन ) puraana/ purana
पुराण पुरुष भविष्य ३.४.२५.८०( राशियों में स्थिति पर अवतारों के नाम )
पुरीतत् योगवासिष्ठ ६.२.१०८.५( पुरीतत् नगरी में राजा विपश्चित् का आख्यान ), ६.२.१९७५, लक्ष्मीनारायण १.३११.४३( पुरीतत् नाडी द्वारा कृष्ण पर व्यजन द्वारा पवनार्पण करने का उल्लेख )
पुरी भविष्य ३.४.११.७०( वसुशर्मा द्वारा पुरीशर्मा नामक मृत्युञ्जय पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त, अजैकपाद रुद्र का अंश ), ३४१२७०, लक्ष्मीनारायण १.५१४.५(३ महत्त्वपूर्ण पुरियों के नाम)
पुरीष गरुड २.४.१४२(पुरीष में पित्तल देने का उल्लेख), २.३०.५२/२.४०.५२( मृतक के पुरीष में पित्तल देने का उल्लेख ), पद्म ६.६.२७( वल असुर के पुरीष के कांस्य बनने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१६६( पञ्चपत्तलक - पुत्र? पुरीषभीरु द्वारा २१ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), भागवत ३.१२.४०( पुरीष्य/चयन आदि यागों की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से उत्पत्ति का उल्लेख - षोडश्युक्थौ पूर्ववक्त्रात् पुरीष्यग्निष्टुतावथ । आप्तोर्यामातिरात्रौ च वाजपेयं सगोसवम् ॥ ), ६.१८.४( विधाता व क्रिया से पुरीष्य नामक ५ अग्नियों की उत्पत्ति का उल्लेख - अग्नीन्पुरीष्यानाधत्त क्रियायां समनन्तरः। ), १२.१.२५( पुरीषभीरु : तलक - पुत्र, सुनन्दन - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक ), वायु ६८.७९( शौच/पुरीष त्याग के नियम ) pureesha/ purisha
|