पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Pitaa to Puurnabhadra ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Pitaa / father, Pitaamaha / grandfather etc. are given here. पिता पद्म १.१५( पिता के प्रजापति लोक का स्वामी होने का उल्लेख ), २.६१+ ( पितृ तीर्थ का वर्णन, सुकर्मा द्वारा पिप्पल को पितृ भक्ति की शिक्षा ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.८.४७( विद्यादाता, अन्नदाता आदि पितरों के ५ प्रकारों का कथन ), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.४( पितृदत्ता : विवाह के ४ प्रकारों में से एक ), मत्स्य १०.८( वेन के पिता के अंशभूत दक्षिण हस्त के मन्थन से धनुष, कवच आदि धारण करने वाले पृथु की उत्पत्ति का कथन ), १९.३( पिता के वसुओं का रूप होने का उल्लेख ), २११.२६( पिता गार्हपत्य अग्नि व प्रजापति का रूप, माता दक्षिणाग्नि, गुरु आहवनीय होने का उल्लेख ), २९०.११( ३०वें कल्प के रूप में पितृकल्प का उल्लेख ; ब्रह्मा का कुहू का रूप ), वायु ६९.१३२/२.८.१२७( ब्रह्मधना के १० पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३९.२१( श्राद्ध में पितृपिण्ड के चतुर्व्यूह में प्रद्युम्नात्मक होने का कथन ), २.३७.५१( पिता के प्रजापति की मूर्ति होने का उल्लेख ), २.३७५६( पिता के गार्हपत्य अग्नि होने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.३६.७६( पिता की भक्ति से भुव: लोक पर विजय ), ५.३.१४६.४६( पिता व पुत्र के श्रुति - स्मृति की भांति तथा बिम्ब के बिम्ब की भांति सदा एक होने का उल्लेख ), ५.३.२०९.५४( जनिता, उपनेता, विद्या प्रदाता, अन्नदाता व भयत्राता नामक ५ पितरों का उल्लेख ), महाभारत वन ३१३.६०( पिता के खं/आकाश से उच्चतर होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), लक्ष्मीनारायण १.१०१.३१( ५ प्रकार के पिताओं का कथन ) pitaa
पितामह पद्म १.३२.१३१( वसुगण पिता, रुद्रगण पितामह तथा आदित्यगण प्रपितामह होने का उल्लेख ), ३.२१.४( नर्मदा तट पर पितामह तीर्थ में पिण्डादि दान का संक्षिप्त माहात्म्य ), मत्स्य १९.३( पितामह रुद्र गण का रूप, प्रपितामह आदित्य गण का रूप ), १५४.४३५( शिव के विवाह के अवसर पर पितामह ब्रह्मा द्वारा जटाजूट में चन्द्रखण्ड बांधने का उल्लेख ), लिङ्ग २.२७.२२५( पितामह व्यूह का वर्णन ), वामन ६९.१०१( प्रपितामह/ब्रह्मा द्वारा पद्म को घुमा कर दिव्य जल का अभिषेक करने का कथन ), वायु १०६.५६/२.४४.५६( प्रपितामह द्वारा गया में शिला को स्थिर करने के लिए धारित ५ रूपों में से एक ), स्कन्द ४.२.६१.१४९( पितामह तीर्थ का माहात्म्य ), ४.२.६६.५( पितामहेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.२.२३( शिव द्वारा ब्रह्मा को पितामह नाम देना ), ५.३.३९.३०( कपिला गौ के शृङ्ग मध्य में पितामह की स्थिति का उल्लेख ), ५.३.५५.२२( विष्णु के पितृ रूप, ब्रह्मा के पितामह व रुद्र के प्रपितामह का रूप होने का उल्लेख ), ५.३.१४६.४३( ब्रह्मा, विष्णु व महेश के पिता, पितामह व प्रपितामह होने का उल्लेख ), ५.३.२०४( पितामह तीर्थ का माहात्म्य : ब्रह्मा द्वारा स्वपुत्री के प्रति कामुक होने पर शिव द्वारा अपूज्यत्व का शाप, ब्रह्मा द्वारा शिव की आराधना ), ५.३.२०४( भृगु तीर्थ की पैतामह तीर्थ के नाम से ख्याति का कारण : पितामह ब्रह्मा द्वारा विस्मृत वेदों की प्राप्ति हेतु तप का स्थान ), हरिवंश १.४.१( पितामह द्वारा ब्रह्माण्ड के विभिन्न पदों पर अधिपतियों की नियुक्ति का वर्णन ), योगवासिष्ठ ४.२७( ब्रह्मा द्वारा देवों को दाम, व्याल व कट असुरों को जीतने का उपाय बताना ) pitaamaha/ pitamah
पितृयान ब्रह्माण्ड १.२.२१.१५९( पितृयान पथ का निरूपण ), १.२.३५.१११( पितृयान के आश्रित लोगों द्वारा दाराग्निहोत्री बनकर प्रजा उत्पन्न करने का कथन ), भागवत ३.३२.२०( अर्यमा के दक्षिण पथ से पितृलोक जाने वालों की गति का कथन ), मत्स्य १२४.९७( वैश्वानर पथ से बाहर पितृयान पथ का निरूपण ), वायु ५०.२१०( पितृयान मार्ग का कथन ), ६१.१००( पितृयान के आश्रित लोगों द्वारा दाराग्निहोत्री बनकर प्रजा उत्पन्न करने का कथन ), विष्णु २.८.८५( वैश्वानर पथ से बाहर पितृयान पथ का निरूपण ), द्र देवयान - पितृयान pitriyaana |