पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Pitaa to Puurnabhadra  )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

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Pitaa- Pitriyaana ( words like  Pitaa / father, Pitaamaha / grandfather etc. )

Pitrivartee - Pishangajata ( Pinaaki, Pipeelikaa / ant, Pippalaa, Pippalaada etc.)

Pishaacha - Peevari ( Pishaacha, Pishta / ground, Peetha / chair, Peeta / yellow, Peevari etc.)

Punshchalee - Punyajana ( Punjikasthalaa, Pundareeka, Pundra, Punya etc.)

Punyajani - Punarvasu ( Punyasheela, Putra / son, Putri / Putree / daughter, Punarvasu etc.)

Punnaaga - Pureesha (Pura / residence, Puranjana, Puranjaya, Purandara, Puraana, Pureesha etc. ) 

Puru - Purusha ( Puru, Purukutsa, Purusha / man etc. )

Purusha - Pulaka  ( Purushasuukta, Purushaartha, Purushottama, Puruuravaa, Purodaasha, Purohita etc.)

Pulastya - Pulomaa ( Pulastya, Pulinda, Pulomaa etc.)

Pulkasa - Pushkaradweepa (  Pushkara etc. )

Pushkaraaksha - Pushpa ( Pushkaraavarta, Pushkarini /pushkarinee, Pushkala, Pushti, Pushpa / flower etc.)

Pushpaka - Pushya ( Pushpaka, Pushpadanta, Pushpabhadra, Pushya etc.)

Pushyamitra - Puujaa (Puujaa / worship)

Puutanaa - Puurnabhadra (  Puurana, Puuru /pooru, Puurna / poorna / complete, Puurnabhadra /poornabhadra etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Peevari, Punjikasthalaa, Pundareeka, Pundra, Punya etc. are given here.

पुंश्चली ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४( वेश्या के पुंश्चली आदि प्रकारों का कथन )

 

पुंसवन भागवत ६.१९( पुंसवन व्रत की विधि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.२२( अवृष नामक २७वें वत्सर में नरमेध में भक्त के जीवन के रक्षार्थ पुंस्त्व नारायण के प्राकट्य का वर्णन ; कृष्ण के वृषणों का शालग्राम बनना ) punsavana

 

पुक्लस ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९६( भण्डासुर - सेनानी, शिवदूती द्वारा वध )

 

पुङ्ख स्कन्द ५.३.२१०( पुङ्खिल तीर्थ के माहात्म्य का कथन )

 

पुङ्गव द्र. राक्षसपुङ्गव

 

पुच्छ स्कन्द ५.१.५२.४५( यज्ञवराह की पुच्छ के कर्माशन? होने का उल्लेख ), ५.३.३९.३२( कपिला गौ के पुच्छाग्र में सूर्य रश्मियों की स्थिति का उल्लेख ) puchchha

 

पुञ्जिकस्थला ब्रह्माण्ड १.२.२३.४( सुस्थला व पुञ्जिकस्थला : मधु - माधव मास में सूर्य रथ पर स्थिति ), २.३.७.१४( १० अप्सराओं में से एक ), ३.४.३३.१९( गोमेदक महाशाला में स्थित अप्सराओं में से एक ), भागवत १२.८.२६( काम द्वारा मार्कण्डेय मुनि के सम्मोहन के प्रयास में पुञ्जिकस्थला अप्सरा की चेष्टाओं व क्रीडाओं का कथन ), १२.११.३४( माधव/वैशाख मास में सूर्य रथ पर पुञ्जिकस्थली अप्सरा की स्थिति का उल्लेख ), मार्कण्डेय ६१.६/६४.६( पार नामक ब्रह्मचारी व पुञ्जिकस्थला अप्सरा से उत्पन्न कन्या का वृत्तान्त ), वायु ५२.४( पुञ्जिकस्थली : मधु - माधव मास में सूर्य रथ पर स्थित २ अप्सराओं में से एक ), ६९.५०/२.८.५०( १० अप्सराओं में से एक ), विष्णु २.१०.५( माधव मास में पुञ्जिकस्थला अप्सरा की सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख ), वा.रामायण ४.६६.८( पुञ्जिकस्थला का अञ्जना रूप में अवतरण, केसरी - भार्या, वायु के संयोग से हनुमान के जन्म का वृत्तान्त ), ६.१३.११( रावण द्वारा पुञ्जिकस्थला अप्सरा से बलात्कार पर ब्रह्मा द्वारा रावण को शाप ) punjikasthalaa

 

पुटक ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३४( नासा सौन्दर्य हेतु पुटक दान का निर्देश )

 

पुण्डरीक/पुंडरीक अग्नि ५६.१३( ध्वज के एक देवता का नाम - कुमुदः कुमुदाक्षश्च पुण्डरीकोथ वामनः। शङ्कुकर्णः सर्व्वनेत्रः सुमुखः सुप्रतिष्ठितः ।। ), ९६.९( ध्वज के ८ दिशाओं में ८ देवताओं में से एक - कुमुदः कुमुदाक्षश्च पुण्डरीकोथ वामनः। शङ्कुकर्णः सर्वनेत्रः सुमुख सुप्रतिष्ठितः ।। ), कूर्म १.१३.१२( पुण्डरीकाक्षा : वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्री ), नारद २.७३( पुण्डरीक पुर का माहात्म्य : जैमिनि के समक्ष शिव द्वारा ताण्डव नृत्य का स्थान ),  गरुड १.११.४४(पुण्डरीकाक्ष विद्या द्वारा अर्घ्य – पाद्यादि देने का निर्देश - अर्घ्यपाद्यादि वै दद्यात्पुण्डरीकाक्षविद्यया ।।), २.४.११९/२.१४.११९(प्रेतकार्य में पुण्डरीकाक्ष अर्चना मन्त्र - अक्षयः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्षप्रदो भव ।), २.३०.१८ /२.४०.१८( प्रेतकार्य में पुण्डरीकाक्ष अर्चना मन्त्र - अनादिनिधनो देवः शङ्खचक्रगदाधरः ॥ अव्ययः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्षप्रदो भवेत् । ), पद्म २.३७.३५( पुण्डरीक यज्ञ में गज हनन का उल्लेख - पुंडरीके गजं हन्याद्गजमेधेऽथ कुंजरम्  ), ३.२६.७८( शुक्ल पक्ष की दशमी को पुण्डरीक तीर्थ में स्नान के माहात्म्य का उल्लेख ), ६.४७.६( नागों के राजा पुण्डरीक द्वारा ललित गन्धर्व को शाप का वृत्तान्त ), ६.८०.१५( विष्णु भक्त पुण्डरीक को नारद द्वारा आगम का उपदेश, पुण्डरीक द्वारा विष्णु की स्तुति ), ६.२१८.१८( पुण्डरीक द्वारा मामा मालव से धन की प्राप्ति, दुष्ट भ्राता भरत से पुष्कर माहात्म्य का श्रवण, माधव का पुण्डरीक के गृह में एक मास तक वास, पुष्कर स्नान से पुण्डरीक की मुक्ति ), ब्रह्म १.४७.५१(पुण्डरीकाक्ष की मूर्ति का स्वरूप - द्वितीयं पुण्डरीकाक्षं नीलजीमूतसंनिभम्। अतसीपुष्पसंकाशं पद्मपत्रायतेक्षमण्॥ ),  ब्रह्माण्ड १.२.११.३९( पुण्डरीका : ऊर्जा व वसिष्ठ - कन्या, प्राण - भार्या, द्युतिमान् – माता - ज्यायसी च सुता तेषां पुंडरीका सुमध्यमा ।। जननी सा द्युतिमतः प्राणस्य महिषी प्रियाः ।। ), १.२.१९.६८( क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक, द्विविद से परे पुण्डरीक व पुण्डरीक से परे दुन्दुभिस्वन की स्थिति का उल्लेख - द्विविदात्परतश्चापि पुंडरीको महागिरिः ।। पुंडरीकात्परश्चापि प्रोच्यते दुंदुभिस्वनः ।। ), २.३.७.३३५(रथन्तर साम द्वारा पुण्डरीक व कपिल गजों  की उत्पत्ति - कपिलः पुण्डरीकश्च सुनामानौ रथन्तरात् । जातौ नाम्ना श्रुतौ ताभ्यां सुप्रतीकप्रमर्दनौ ॥  ), २.३.१३.५६( पुण्डरीक तीर्थ में श्राद्ध से पुण्डरीक यज्ञ फल की प्राप्ति का उल्लेख - पुण्डरीके महातीर्थे पुण्डरीकसमं फलम् । ), २.३.६३.२०२( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश - नभसः पुण्डरीकस्तु क्षेम धन्वा ततः स्मृतः ), भविष्य १.६८.८(पुण्डरीक पुष्प से सौभाग्यप्राप्ति का उल्लेख - सौभाग्यं पुण्डरीकैश्च भजत्येव शाश्वतम् ), ३.३.१३.४१( पुण्डरीक नाग द्वारा शाप से नाग के शुक बनने का उल्लेख - शुकः पन्नगः पूर्वं पुंडरीकेन शापितः ।। रेवत्यंशस्य कार्यं कृत्वा मोक्षत्वमागतः ।। ), ३.३.११८( पुण्डरीक नाग द्वारा आह्लाद को नाग भूषण देना ), ३.४.१७.५१( दिग्गज, ध्रुव व दिशा? – पुत्र, आग्नेय दिशा में स्थिति - आग्नेय्यां दिशि वै तस्मात्पुंडरीको गजोऽभवत् ।।  ), ३.४.२३.३ (पुण्डरीक नाग की किलकिला पुरी का कथन - आग्नेय्यां दिशि विख्याता पुण्डरीकेण निर्मिता पुरी किलकिला नाम तत्र राजा बभूव ), भागवत ९.१२.१( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश ), मत्स्य १२.५३( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश ), २२.७७( पुण्डरीकपुर : श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक ), ५३.२७( कार्तिक में मार्कण्डेय पुराण दान से पुण्डरीक यज्ञ फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ७०.३४( पण्यस्त्री व्रत के संदर्भ में पुण्डरीकाक्ष की अर्चना विधि व अङ्गों में काम का विभिन्न नामों से  न्यास ), १२२.८२( क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक ), १२२.८८( पुण्डरीका : क्रौञ्च द्वीप की ७ गङ्गाओं में से एक ), वराह १२६.५९( कुब्जाम्रक तीर्थ के अन्तर्गत पुण्डरीक तीर्थ के चिह्न व माहात्म्य का कथन –-- रथचक्र समान कच्छप का चार - रथचक्रप्रमाणो वै चरते तत्र कच्छपः।। ), १६४.१९( गोवर्धन तीर्थ के अन्तर्गत पुण्डरीक कुण्ड में स्नान के माहात्म्य का कथन ), वामन ९०.६( महाम्भस तीर्थ में विष्णु का पुण्डरीक नाम से वास ), वायु २८.३४( पुण्डरीका : वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्री, पाण्डु - पत्नी, द्युतिमान् - माता ), ४९.६३( क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक ), ६९.७२/२.८.६९( कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), ८८.२०२/२.२६.२०१( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश ), विष्णु २.४.५१( पुण्डरीकवान् : क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक ), ४.४.१०६( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश ), शिव ५.४२.११( भारद्वाज के ७ पुत्रों का जन्मान्तर में द्विज योनि में जन्म लेने पर एक छन्दोग/सामग पुत्र का नाम ), ७.१.१७.३३(ऊर्जा व वसिष्ठ से ७ पुत्र व पुण्डरीका पुत्री के जन्म का उल्लेख, पुत्रों के नाम), स्कन्द २.२.४.९१( दुराचारी पुण्डरीक व अम्बरीष की पुरुषोत्तम क्षेत्र में मुक्ति, भगवद् स्तुति - संस्मरंतौ स्वजातिं तौ पुंडरीकांबरीषकौ ।। निंदन्तौ दुश्चरित्रं स्वं परस्परमभाषताम् ।। ), २.४.३५.११( पुण्डरीकाक्ष विष्णु द्वारा सहस्र पद्मों से शिव अर्चन के संकल्प को नेत्र रूपी पद्म के अर्पण से पूरा करना - पुण्डरीकाक्ष इत्येवं मां वदंति मुनीश्वराः ।।  नेत्रं मे पद्मसदृशे पद्मार्थे त्वर्पयाम्यहम् ।। ), ५.३.२८.१३१( ज्वालेश्वर तीर्थ में पिण्डदान आदि से पौण्डरीक फल प्राप्ति का उल्लेख - तिलसंमिश्रतोयेन तर्पयेत्पितृदेवताः पिण्डदानेन पितॄन् पौण्डरीकफलं लभेत् ), ५.३.१०९.१३( चक्र तीर्थ में स्नान कर अच्युत की पूजा से पुण्डरीक यज्ञ फल प्राप्ति का उल्लेख - चक्रतीर्थे तु यः स्नात्वा पूजयेद्देवमच्युतम् पुण्डरीकस्य यज्ञस्य फलमाप्नोति मानवः ), ६.२१३.९१( पुण्डरीकाक्ष से जठर की रक्षा की प्रार्थना - जठरं पुंडरीकाक्षः कटिं पातु गदाधरः जानुनोर्युगलं कृष्णः पादौ धरणीधरः ), ७.१.१७.११३( पुण्डरीक पुष्प की महिमा – सौभाग्य व अर्थ प्राप्ति - सौभाग्यं पुंडरीकैस्तु भवत्यर्थश्च शाश्वतः ),  ७.१.७५.१०( नारद द्वारा पौण्डरीक यज्ञ करने का वृत्तान्त ), महाभारत आदि १५०.१७(पाण्डु – भार्या कुन्ती का पुण्डरीकान्तरप्रभा/पुण्डरीकोदरप्रभा विशेषण), १७२.८(पुण्डरीक सुगंधि से मुकुट का स्पर्श करने पर राजा संवरण के प्राण पुनः लौटने का उल्लेख - अस्पृशन्मुकुटं राज्ञः पुण्डरीकसुगन्धिना।। ततः प्रत्यागतप्राणस्तद्बलं बलवान्नृपः।),  १९६.९(स्त्री के अश्रुबिन्दुओं के स्वर्ण पुण्डरीक बनने का कथन), वन ८३.६९(शुक्ल दशमी को पुण्डरीक तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य - शुक्लपक्षे दशम्यां च पुण्डरीकं समाविशेत्। तत्र स्नात्वा नरो राजन्पौण्डरीकफलं लभेत् ।।), ८४.११३(कम्पना नदी में स्नान से पुण्डरीक प्राप्ति का उल्लेख - कम्पनां तु समासद्य नदीं सिद्धनिवेषिताम्। पुण्डरीकमवाप्नोति स्वर्गलोकं गच्छति ।।),  ८४.११९(तीर्थकोटि में अभिषेक से पुण्डरीक प्राप्ति का उल्लेख - तत्राभिषेकं कुर्वीत तीर्थकोट्यां युधिष्ठिर ।। पुण्डरीकमवाप्नोति विष्णुलोकं गच्छति।), ८६.४(कृष्ण व अर्जुन का पुण्डरीकाक्ष – द्वय के रूप में उल्लेख - त्रियुगौ पुण्डरीकाक्षौ वासुदेवधनंजयौ। ), उद्योग ७०.६( पुण्डरीकाक्ष की निरुक्ति – नित्य अक्षय अक्षर पुण्डरीक धाम के भाव वाला), अनुशासन २५.४३(कृत्तिका उर्वशी योग में लौहित्य सरोवर में स्नान से पुण्डरीक फल प्राप्ति का उल्लेख - उर्वशीं कृत्तिकायोगे गत्वा चैव समाहितः। लौहित्ये विधिवत्स्नात्वा पुण्डरीकफलं लभेत्।।), २५.५५(ब्रह्मसर में स्नान से पुण्डरीक प्राप्ति का उल्लेख - तथा ब्रह्मसरो गत्वा धर्मारण्योपशोभितम्। पुण्डरीकमवाप्नोति उपस्पृश्य नरः शुचिः।। ), १०२.५४(रथन्तर व बृहत् दोनों साम गाये जाने वाले, जहां वेदी पर पुण्डरीक फैलाये जाते हैं, उस याग का कथन),  लक्ष्मीनारायण १.२६४.४८( पुरुषोत्तम मास शुक्ल धामदा एकादशी के माहात्म्य के संदर्भ में राजा पुण्डरीक द्वारा रानी कुमुद्वती को धामदा एकादशी के फल का अर्पण करने से रानी के कल्याण का वृत्तान्त ), २.२८.२०( पुण्डरीक जाति के नागों का वाटिकाकार बनना - पुण्डीकास्तथा नागा भवन्ति वाटिकाकराः ।। ), २.२३९.२( पौण्डरीक राजा द्वारा कार्तिक एकादशी व्रत से हंस रूप धारी श्रीहरि के दर्शन व मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.१६.३६( १९वें वत्सर में लक्ष्मी का पुण्डरीक - पुत्री पुण्डरीकश्री के रूप में जन्म लेकर श्रीवार्धि नारायण की पत्नी बनने का वृत्तान्त ), द्र.  पौण्डरीक, पौण्ड्रक pundareeka/ pundarika

Vedic references on Pundarika 

पुण्डरीका ब्रह्माण्ड १.२.१८.७०( नील पर्वत पर पयोद नामक सर से नि:सृत २ नदियों में से एक ), २.३.७.५( २४  मौनेया अप्सराओं में से एक ), मत्स्य १२२.८८( क्रौञ्च द्वीप की ७ नदियों में से एक ), वायु ४७.६७( नील पर्वत पर पयोद नामक सर से नि:सृत २ नदियों में से एक ), ४९.६९( क्रौञ्च द्वीप की ७ नदियों में से एक ), ६९.७/२.८.७( २४  मौनेया अप्सराओं में से एक ), विष्णु २.४.५५( क्रौञ्च द्वीप की ७ नदियों में से एक ) pundareekaa/ pundarikaa

 

पुण्ड्र गरुड १.५५.१२( पूर्व - दक्षिण के देशों में से एक ), ३.२९.४८(पुण्ड्र धारण में केशवादि के स्मरण का निर्देश), गर्ग ७.१५.२०( कामरूप देश - अधिपति, प्रद्युम्न से पराजय ), पद्म ४.२१.१३( अच्छिद्र ऊर्ध्वपुण्ड्र की निन्दा ), ६.१३३.१५( पाटल क्षेत्र में पुण्ड्रवर्धन तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), ६.२२५.१( ऊर्ध्वपुण्ड्र धारण विधि ), ब्रह्माण्ड १.२.२२.५३( पुण्ड्र नगर के तुषारजनित वर्षा का स्थान होने का उल्लेख ), १.२.३५.२९( याज्ञवल्क्य के वाजी संज्ञक १५ शिष्यों में से एक ), २.३.७.२३७( प्रधान वानरों में से एक ), २.३.७१.१८६( सुगन्धी व वसुदेव के २ पुत्रों में से एक ), ३.४.२१.७९( पुण्ड्रकेतु : भण्ड असुर के सेनानी पुत्रों में से एक ),३.४.२५.२८( पुण्ड्रकेतु : भण्डासुर के १५ सेनापतियों में से एक ), ३.४.२५.९७( भण्डासुर - सेनानी, त्वरिता देवी द्वारा वध ), भागवत ९.२३.५( दीर्घतमा से उत्पन्न बलि के क्षेत्रज पुत्रों में से एक ), मत्स्य १३.३५( पुण्ड्रवर्धन में सती देवी की पाटला नाम से ख्याति का उल्लेख ), ४६.२१( वसुदेव व सुतनु?/रथराजी? - पुत्र ), ४८.२९( बलि के क्षेत्रज पुत्रों में से एक ), वायु ५१.४८( हेमकूट शैल पर नगर का नाम ), ९६.१८३/२.३४.१८३( वसुदेव के २ पुत्रों में से एक, राजा ), ९९.८५/ २.३७.८५( दीर्घतमा से उत्पन्न बलि के क्षेत्रज पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.२४.६४( देवरक्षित द्वारा रक्षित देशों में से एक ), स्कन्द ५.३.१९८.७३( पुण्ड्रवर्धन तीर्थ में देवी की पाटला नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.११४+( पुण्ड्र धारण की महिमा व विधि ), २.८०.१९( राजा बलेशवर्मा द्वारा अतिथि हेतु पुत्र पुण्ड्रक का हृदय भोजन रूप में देने का वृत्तान्त ), २.८१.५७( श्रीहरि द्वारा विष्णु रूपी पुण्ड्रक को पुण्ड्रक नगर में निवास का निर्देश), ३.६९.८९( भक्त द्वारा धारणीय १२ ऊर्ध्वपुण्ड्रों का महत्त्व ), ३.२०२.५( निम्बवटिका नगरी के शासक पुण्ड्रवर्मा द्वारा व्रतर्दि नामक गायक भक्त की संगति से प्रजासहित वैष्णवत्व व मोक्ष की प्राप्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् १२.१९.२७( मन्त्री दीर्घदर्शी द्वारा पुण्ड्र नगरी में निधिदत्त वैश्य का आतिथ्य स्वीकार करने का वृत्तान्त ), द्र. पौण्ड्रक, त्रिपुण्ड्र pundra

 

पुण्य देवीभागवत ९.१.१०७( प्रतिष्ठा - पति ), पद्म ५.९६.४७( यज्ञदत्त ब्राह्मण द्वारा यम से स्वर्ग प्राप्ति के लिए अपेक्षित पुण्य के विषय में पृच्छा ), ब्रह्माण्ड १.२.११.३८( पुण्या : क्रतु व सन्नति की २ पुत्रियों में से एक, पर्वश - भार्या ), मत्स्य ४९.६( पुण्येयु : भद्राश्व व धृता अप्सरा के १० पुत्रों में से एक ), ५०.३०( पुण्यवान् - पुत्र, सत्यधृति - पिता, दिवोदास वंश ), वराह १४५.६९( शालग्राम क्षेत्र  में पुण्यनदी में स्नान के माहात्म्य का कथन ), वायु २८.३०( पुण्या : क्रतु व सन्तति की २ पुत्रियों में से एक, पर्वस - भार्या ), स्कन्द २.४.३०.४( व्यवहार में संसर्ग से प्राप्त पाप - पुण्यों का वर्णन ), ५.१.३१.८३( पुण्येश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य : गाणपत्य प्राप्ति ), योगवासिष्ठ ५.१९द्द ( दीर्घतपा - पुत्र ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.५०( वासना सागर से पार करने वाले जीव रथ में पुण्य के सारथी होने का उल्लेख ), ३.१६.५८( पितरों के पुण्य वाहन का उल्लेख ), ३.१८.१३( सवृत्ति गृहदान से पुण्यदान व पुण्यदान से धर्मकर्म प्रदान के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ३.१३१.६०( पुण्यों के दान का महत्त्व ), ४.२५.६१( श्रीकृष्ण के पितरों के पुण्य संचय में वास का उल्लेख ), कथासरित् ३.१.९७( राजा पुण्यसेन के मन्त्रियों द्वारा राजा की मृत्यु के मिथ्या समाचार द्वारा राज्य की रक्षा का वृत्तान्त ) punya

 

पुण्यक ब्रह्मवैवर्त्त ३.४( पुण्यक व्रत विधान का वर्णन ), हरिवंश २.७६+( सत्यभामा द्वारा पुण्यक व्रत का चीर्णन ), महाभारत आदि ३.९७( आदि धौम्य गुरु की पत्नी द्वारा पुण्यक व्रत चीर्णन का कथन व उसके लिए कुण्डलों की आवश्यकता का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.९५ +( माघ शुक्ल त्रयोदशी को आरम्भ होने वाले पुण्य व्रत की विधि, हरि - पूजा ), १.४५०.१०( पार्वती द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु पुण्यक व्रत के चीर्णन का वर्णन ) punyaka

 

पुण्यकीर्ति स्कन्द ४.२.५८.८०( दिवोदास का काशी से उच्चाटन करने हेतु काशी में विष्णु द्वारा पुण्यकीर्ति नामक बौद्ध का रूप धारण करने का वृत्तान्त ),

 

पुण्यजन भागवत २.३.८( रक्षा की कामना पूर्ति हेतु पुण्यजनों की अर्चना का निर्देश ), वायु ८८.१/२.२६.१( रैवत ककुद्मी के ब्रह्मलोक गमन पर पुण्यजन राक्षसों द्वारा कुशस्थली को रौंदने का कथन ), विष्णु ४.२.१( रैवत ककुद्मी की अनुपस्थिति में पुण्यजन संज्ञक राक्षसों द्वारा कुशस्थली पर अधिकार का उल्लेख ) punyajana