पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Pitaa to Puurnabhadra ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Puujaa /poojaa, Puurana, Puuru /pooru, Puurna / poorna / complete, Puurnabhadra /poornabhadra etc. are given here. पूतना अग्नि ९३.२७( वास्तुमण्डल के पदों के देवताओं में से एक पूतना को पित्त व रुधिर देने का निर्देश ), १०५.१३( वास्तु मण्डल के ८१ पदों के देवताओं में से एक ), २९९.१९( बालतन्त्र के अन्तर्गत मास भर के वत्स को पूतना ग्रही द्वारा गृहीत करने पर बालक के लक्षणों व उपाय का कथन ), गर्ग १.६.६२( बकासुर - भगिनी, कंस के बकासुर से युद्ध के संदर्भ में कंस की भगिनी/सखी बनने का कथन ), १.१३( बलि - पुत्री रत्नमाला का अंश, कृष्ण द्वारा उद्धार ), देवीभागवत ४.२२.४६( बलि - पुत्री का अंश ), नारद १.६६.११४( मन की शक्ति पूतना का उल्लेख ), ब्रह्म १.७५( कृष्ण द्वारा पूतना के स्तनों को प्राण सहित पीकर पूतना के वध का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०( कृष्ण द्वारा पूतना के मोक्ष का वृत्तान्त ), ४.११५.९१( बल - कन्या, वामन पर आसक्ति से पूतना बनना ), ब्रह्माण्ड २.३.५.४३( बलि असुर की २ कन्याओं में से एक ), २.३.७.१५८( बालग्रहों/स्कन्दग्रहों में से एक ), २.३.५९.१२( भद्रम की २ पत्नियों में से एक, पूतना के पुत्रों की नैर्ऋत नाम से ख्याति का उल्लेख ), ३.४.४४.५९( वर्णों की शक्तियों में से एक पूतना का उल्लेख ), भविष्य ३.४.२५.१६८( तामसिक अंश ), भागवत ३.२.२३( बृकी द्वारा स्तनों में कालकूट लगाकर कृष्ण को स्तनपान कराने का उल्लेख ), १०.६( कृष्ण द्वारा पूतना का उद्धार, पूतना की चिता से सुगन्ध की उत्पत्ति का उल्लेख ), मत्स्य १७१.५४( पूतनानुग ), वामन ७२.२८( पूतना अप्सरा द्वारा क्रतुध्वज - पुत्रों के तप में विघ्न ), वायु ८४.१२/२.२२.१२( सद्रम - पत्नी के रूप में तामसी पूतना का उल्लेख ), विष्णु ५.५( कृष्ण द्वारा पूतना के वध की कथा ), स्कन्द ५.१.६४.८( महामारी आदि ९ मातृकाओं में से एक ), हरिवंश २.६( कृष्ण द्वारा पूतना का वध ), योगवासिष्ठ ३.४९.२४( अपर नाम रूपिका, राजा विदूरथ द्वारा प्रयुक्त पूतना अस्त्र का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.३२.३१( शीतपूतना द्वारा मनुष्यों के गर्भों के हरण का उल्लेख ), २.१४६.१४१( वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक, नैर्ऋत् कोण में स्थिति ), २.१५७.२३( पूतनादि का देवमूर्ति के नखों में न्यास का उल्लेख ) pootanaa/ puutanaa/putana
पूतात्मा स्कन्द ४.१.१३.३( कश्यप - पुत्र पूतात्मा द्वारा पवनेश्वर लिङ्ग की स्थापना, दिक्पाल पद प्राप्ति, तप से गन्धवती पुरी पर आधिपत्य की प्राप्ति ),),
पूति ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८९( भण्डासुर के सेनापति पुत्रों के रूप में पूतिनासिक, पूतिदन्त आदि नामों का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.८९.१( पूतिकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : जाम्बवान् द्वारा प्रसेनजित् के वक्ष से मणि लेने पर व्रण दोष से मुक्ति ) pooti/ puti
पण्य ब्रह्माण्ड ३.४.२.१६४( पण्यवह नामक नरक को प्राप्त होने वालों के कर्मों का कथन ), भागवत ५.२६.७( पण्योद : २८ नरकों में से एक ), ५.२६.२३( पण्योद नरक को प्राप्त होने वाले मनुष्यों के कर्मों का कथन ), वायु १०१.१६२/२.३९.१६२( पण्यवह नामक नरक को प्राप्त होने वालों के कर्मों का कथन ), विष्णु २.६.१८( पण्यवह नरक को प्राप्त होने वालों के कर्मों का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८८( नरक में पण्य कुण्ड प्रापक कर्म का उल्लेख ), २.५.८८( ब्रह्मकूर्च असुर की अनिष्ट धातुओं से उत्पन्न पुत्रों में से एक ) Panya
पूरण ब्रह्माण्ड १.२.३२.११८( १३ कुशिक श्रेष्ठों में से एक ), २.३.६६.६९( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक ), २.३.७.३८१( पिशाचों/कूष्माण्डों के १६ कुलों में से एक ), २.३.७.३९७( पूरण पिशाचों का स्वरूप ), २.३.७४.१८३( पूरिका नगरी के नृप शिशिक का उल्लेख ), मत्स्य १९८.११५( त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), वायु ६९.२६३/२.८.२५७( पूरिण : कूष्माण्डों/पिशाचों के १६ कुलों में से एक ), ९१.९०/२.२९.९३( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक ) poorana/ purana
पूरु अग्नि २७८.१( जनमेजय - पिता पुरु के वंश का वर्णन ), पद्म २.७८+ ( पूरु द्वारा ययाति से जरा ग्रहण का प्रसंग ), ब्रह्म २.७६( पूरु द्वारा पिता ययाति से जरा ग्रहण, कालान्तर में गङ्गा तट पर तप से जरा से मुक्ति व पूरु द्वारा भ्राताओं की शाप से मुक्ति का उद्योग ), भागवत ४.२७.२०( राजर्षि पूरु द्वारा काल - कन्या जरा/दुर्भगा के वरण का उल्लेख ), ८.५.७( चाक्षुष मनु के पुत्रों में से एक ), ९.१५.३( जह्नु - पुत्र, बलाक - पिता, पुरूरवा वंश ), ९.१८.३३( शर्मिष्ठा व ययाति के ३ पुत्रों में से एक, पिता की जरा को स्वीकार करने का कथन ), ९.१९.२१( ययाति द्वारा पूरू से जरा वापस लेने व सारे भूमण्डल का अधिपति बनाने का कथन ), ९.२०( पूरु वंश का वर्णन ), मत्स्य ४.४१( चाक्षुष मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक ), २४.५४( ययाति - पुत्र पूरु द्वारा पिता की जरा स्वीकार करने तथा पूरु वंश का वर्णन ), ३३+ ( ययाति व शर्मिष्ठा - पुत्र, पिता से जरा ग्रहण की स्वीकृति, राज्य व वर प्राप्ति ), ३६( ययाति द्वारा पूरु को अभिषेकोत्तर उपदेश ), ४९.१( पूरु वंश का वर्णन ), वायु ९३.६१/२.३१.६१( पूरु द्वारा ययाति से जरा प्राप्ति की कथा ), विष्णु ३.१.२९( चाक्षुष मनु के पुत्रों में से एक ), ४.१०.१५( पूरु द्वारा पिता की जरा स्वीकार करने तथा पिता द्वारा जरा को वापस लेकर पूरु का राज्याभिषेक करने का वृत्तान्त ), ४.१८.३०+ ( पूरु वंश का वर्णन ), ४.१९( पूरु/पुरु वंश का वर्णन ), वा.रामायण ७.५९( पूरु द्वारा पिता ययाति की जरा को ग्रहण करना ) pooru/puuru/ puru
पूर्ण नारद १.५०.४४( गान की दशविध गुणवृत्तियों में से एक पूर्ण की व्याख्या ), ब्रह्म २.५२( धन्वन्तरि का तप से इन्द्र बनना, खण्ड धर्म दोष से इन्द्र का राज्य भ्रष्ट होना, पूर्ण तीर्थ का माहात्म्य, सुकृतों की पूर्णता हेतु इन्द्र द्वारा गोदावरी की स्तुति ), ब्रह्माण्ड २.३.६.३८( क्रोधा से उत्पन्न १० देवगन्धर्वों में से एक ), ३.४.४४.५५( पूर्णोदरी : १६ स्वर शक्तियों में से एक ), भविष्य २.१.२०.१( होमों के अन्त में पूर्णा दर्वीति इत्यादि मन्त्रों द्वारा पूर्ण होम विधि व महत्त्व ), मत्स्य २६२.७-१७( पीठिका के १० भेदों में से एक पूर्णचन्द्रा पीठिका के स्वरूप का कथन ), २७३.३( पूर्णोत्सङ्ग : मल्लकर्णि - पुत्र, शान्तकर्णि - पिता, १८ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), वायु ४५.१२१( पूर्णदर्व : भारत के उत्तर के देशों में से एक ), ५९.१०४( पूर्णातिथि : आत्रेय मन्त्रकार ऋषियों में से एक ), विष्णु ४.२४.४५( शान्तकर्णि - पुत्र, शातकर्णि - पिता ) poorna/ puurna/ purna
पूर्णकला स्कन्द ६.१३४( हारीत -पत्नी, काम से रति, हारीत शाप से खण्ड शिला बनना, कण्डशिला की पूजा करने का महत्त्व ), लक्ष्मीनारायण १.५०२.१( हारीत - पत्नी पूर्णकला पर काम की आसक्ति से पूर्णकला का खण्डशिला बनना, रवि द्वारा शिला का स्पर्श करने से शिला का पूर्वरूप में आना ) poornakalaa/ purnakala
पूर्णगिरि वायु १०४.७९/२.४२.७९( पूर्णगिरि पीठ की ललाट में स्थिति )
पूर्णभद्र मत्स्य ४८.९८( चम्प राजा द्वारा पूर्णभद्र की कृपा से हर्यङ्ग पुत्र प्राप्त करने का उल्लेख ), १८०, वायु ६९.१५८/२.८.१५३( देवजननी व मणिवर यक्ष के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.१.३२.८( यक्ष, रत्नभद्र - पुत्र, कनककुण्डला - पति, शिव भक्ति से हरिकेश पुत्र की प्राप्ति, पुत्र हरिकेश की शिव भक्ति का वृत्तान्त ), हरिवंश १.३१.४९( चम्प राजा द्वारा पूर्णभद्र की कृपा से हर्यङ पुत्र को प्राप्त करने का उल्लेख ) poornabhadra/ purnabhadra |